डीएम बने बच्चों के दोस्त, नंगे पांव स्कूल जाने वाले 25000 गरीब बच्चों को 'चरण पादुका' स्कीम के तहत पहनाए जूते
26 जनवरी 2016 को नंगे पांव स्कूल जाने वाले बच्चों को 25000 जोड़ी जूते दिए जा रहे हैं...
ठंड में नंगे पावं स्कूल जाते बच्चों को देख कर डीएम ने इस पर कुछ करने का विचार किया...
जनवरी 2016 में इस योजना पर अमल करने के लिए “चरण पादुका” स्कीम की शुरुआत की...
कहते हैं जो आम लोगों से अलग होता है उसके हर काम में आपको कुछ अलग ज़रूर दिखेगा। और अगर उसका काम आम लोगों के लिए हो तब तो तय मानिए कि उस शख्स का काम ज़माना याद रखता है।
ये कहानी राजस्थान के एक जिले जालौर की है। यहां के जिलाधिकारी जितेंद्र कुमार सोनी ने वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद आम तौर पर लोग नहीं करते हैं। पदभार संभालने के साल भर के अंदर जितेंद्र सोनी ने आम लोगों से जुड़े कई ऐसे काम किए जो वाकई काबिल के लायक है। जितेंद्र सोनी ने एक अनोखा अभियान शुरू किया है। नंगे पांव स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए “चरण पादुका” स्कीम। जालौर के डीएम सोनी ने महज एक सप्ताह पहले “चरण पादुका” नाम से एक योजना बनाई जिसके तहत नंगे पांव स्कूल जाने वाले बच्चों को जूते दिए जाने की व्यवस्था थी।
कलेक्टर जितेंद्र कुमार सोनी ने जिले के सभी 274 ग्राम पंचायतें और तीन नगर पालिकाओं के तमाम सरकारी स्कूलों से ऐसे गरीब बच्चों की जानकारी मांगी जो नंगे पांव स्कूल आते हैं। डीएम के पास जल्द ही ये सूचना पहुंची कि जिले के करीब 2500 स्कूलों में 25000 ऐसे बच्चे हैं जिनके पास इस ठंड में भी पहनने के लिए जूते नहीं है। गणित की भाषा में बात करें तो औसतन करीब 10 जूते प्रति स्कूल के हिसाब से चाहिए थे। बस क्या था, इस युवा आईएएस अधिकारी ने महज एक सप्ताह के अंदर असंभव दिखने वाले इस काम को अंजाम देने का फैसला ले लिया। दरअसल इस योजना के शुरु होने के पीछे एक बड़ा ही दिलचस्प वाकया है जो आपके दिल को छू जाएगा। दिसंबर-2015 में एक स्कूली कार्यक्रम में शामिल होने गए डीएम सोनी ने स्कूल के तीन बच्चों को नंगे पांव देखा। इस ठिठुरन भरी सर्दी में बच्चों को नंगे पांव देखना इस युवा जिलाधिकारी से सहन नहीं हुआ। उनके आखों में आंसू आ गए। वो तुरंत ही इन तीनों को बाजार ले गए, इनके लिए जूते खरीदे और उन बच्चों को खुद से जूते पहनाया। यहीं से जिलाधिकारी के मन में एक ऐसी योजना पर काम करने की रुप रेखा घर कर गई जिससे कि छोटे-छोटे बच्चों को गरीबी की वजह से कड़ाके की सर्दी में नंगे पांव स्कूल न जाना पड़े।
इस घटना के तूरंत बाद ही ऐक ऐसी योजना पर जिलाधिकारी जितेंद्र सोनी ने विचार किया जिसके तहत नंगे पांव स्कूल आने वाले गरीब बच्चों को जूते मुहैया करवाए जाए। और यहीं से “चरण पादुका” स्कीम की रुप रेखा तैयार की गई। 25000 नंगे पांव स्कूल आने वाले बच्चों को 26 जनवरी 2016 को जूते पहनाने की योजना तो बन गई लेकिन इसमें फंड की दिक्कत थी। कहा जाता है ना कि जब आप किसी मुश्किल और नेक काम करने की ठान लेते हैं तो पूरी कायनात आपका साथ देने लगती है और ऐसा ही कुछ इस योजना के साथ भी हुआ। डीएम सोनी के द्वारा ‘चरण पादुका’ स्कीम के बनते ही जिले के कई लोग इस योजना में भागीदारी के लिए आगे आए और पैसों का इंतजाम होने लगा।
योर स्टोरी से बात करते हुए डीएम सोनी ने बताया,
कई स्कूलों में जब बच्चों को ये पता लगा कि नंगे पांव स्कूल आने वाले उनके दोस्तों को जूते देने की योजना बनी है तो उन बच्चों ने सहायता रुप में अपना पॉकेट मनी दान कर दिया। इतना ही नहीं कई शिक्षकों और ग्रामीणों ने भी इस योजना के लिए चंदे इक्कठा किए।
जिलाधिकारी और उनके कुछ अधिकारियों ने मिलकर 27000 रुपए जमा किए और बैंक अकाउंट खोलकर इन पैसों को बच्चों को जूते देने की योजना के नाम से जमा किया गया और साथ ही जिलाधिकारी के तरफ से आम लोगों से इसमें हाथ बंटाने की अपील की गई। इस स्कीम की घोषणा होते ही सोशल मीडिया पर डीएम के इस कदम की ऐसी सराहना हुई कि जल्द इस पर जबरदस्त रिसपॉन्स मिलना शुरु हो गया। लोगों के कॉल्स आने लगे, कई ऐसे लोग जो बेहद ही दूर-दराज के गांवों में रहते हैं, इन बच्चों को जूते देने की इस योजना में या तो पैसे या जूते दान में दिए। जिले के की स्वंय सेवी संस्थाएं, सरपंच आदि ने भी इस योजना को सफल बनाने के लिए अपना योगदान दिया। इतना ही नहीं विदेशों से भी मदद के लिए हाथ बढ़े और विदेशों में रहने वाले कुछ भारतीयों ने जिलाधिकारी सोनी को कॉल कर इस काम के लिए उनकी सराहना की और मदद भी भिजवाए।
जिलाधिकारी जितेंद्र सोनी ने योर स्टोरी को बताया,
मेरे पास लंदन और गुआंझो (चीन से) NRIs के कॉल आए और उन्होंने भारत में रहने वाले अपने रिश्तेदारों के मार्फत इन बच्चों के लिए जूते भिजवाए हैं।
योर स्टोरी से बात करते हुए जिलाधिकारी सोनी बताते हैं कि ये स्कीम एक अभियान का शक्ल ले चुकी है और गांव-गांव में लोग स्कूलों में जाकर नंगे पांव स्कूल जाने वाले बच्चों को जूता मुहैया करवा रहे हैं। उनके मुताबिक हम जिस समाज में रहते हैं वहां सभी के पास सब कुछ नहीं है। ऐसे में हमें ऐसे जरुरतमंद लोगों और खासकर बच्चों की जरुरतों को पूरा करने लिए आगे आना चाहिए।
आगे सोनी बताते हैं कि उनके पिताजी भी बहुत पैसे वाले नहीं थे लेकिन दोनों भाईयों को बेहतर शिक्षा देने की हर संभव कोशिश की। जिलाधिकारी जितेंद्र सोनी के मुताबिक उनकी पढ़ाई-लिखाई भी सकारी स्कूलों और कॉलेजों में ही हुई। उन्होंने काफी मेहनत के बाद इस मुकाम को हासिल किया है सो वो हमेशा लोगों की दिक्कतों में उनकी हर संभव मदद की बात सबसे पहले सोचते हैं।
योर स्टोरी ने जब जिलाधिकारी सोनी के पिता श्री मोहनलाल सोनी से बात की तो उन्होंने बताया,
जितेंद्र बचपन से ही काफी संवेदनशील रहा है और उनके उपर सामाजिक घटनाओं का असर लंबे वक्त तक रहता है।
पत्नी अंजली सोनी के मुताबिक वो जिलाधिकारी तो हैं लेकिन इसके साथ-साथ उनके अदंर एक बेहद संवेदनशील व्यक्तित्व का वास है। अंजली बताती हैं कि वो जिलाधिकारी के अलावे एक बेहतरीन पेंटर, फोटोग्राफर भी हैं। इतना ही नहीं हाल ही में राजस्थानी लोक भाषा में उनके द्वारा लिखी कविता संग्रह ‘रणखार’ का विमोचन हुआ है जिसे राजस्थानी साहित्य की दुनिया में काफी सराहना मिल रही है।
जालौर के इस युवा जिलाधिकारी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। जितेंद्र सोनी को उनके “चरण पादुका” मिशन के लिए योर स्टोरी की तरफ से शुभकामनाएं वो ऐसे ही अपने मिशन को अंजाम देते रहें ताकि नंगे पांव स्कूल जाने वाले बच्चों को वो सारी सुविधाएं मिले जो एक बच्चे की पढ़ाई के लिए जरुरी है।