पुरानी मान्यताओं को छोड ग्रामीण युवाओं को बेहतर भविष्य देने में जुटीं 'अश्वीता शेट्टी'
ग्रामीण स्नातकोे को सशक्त बनते हुए अवसरों से रूबरू करवाने के लिये की ‘बोधी ट्री फाउंडेशन’ की स्थापना20 वर्ष की उम्र में यंग इंडिया फेलोशिप के लिये चयनित होकर दिल्ली आईं और पहली बार शहरी जीवन से हुई रूबरूफेलोशिप के बाद एक सामाजिक उद्यम एसवी हेल्थकेयर के साथ ‘कम्युनिटी एंगेजमेंट मैनेजर’ के रूप में किया काम प्रारंभमदर टेरेसा वाईआईएफ सोशल एंटरप्राइज़ स्काॅलरशिप से हो चुकी हैं सम्मानित
‘‘मेरा लालन-पालन तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले एक छोटे से गांव में हुआ। ग्रामीण परिवेश में बढ़ने के अपने फायदे होते हैं और मिट्टी में खेलने, आरूद के पेड़ पर पत्थर फेंकने, इमली तोड़ने के अलावा अपने शाॅल की मदद से मछली पकड़ने जैसी गतिविधियां मुझे बचपन के दिनों मेें व्यस्त रखती थीं। जेसे-जैये मैं किशोरावस्था की ओर कदम बढ़ाती गई मेरा सामना अपने परिवार और गांव के पुरुष प्रधान समाज के साथ होने लगा। मैंने गांव में शायद ही कभी किसी पुरुष से बात की हो और मैं हमेशा बुजुर्गों के सामने अपनी राय रखने से बचती थी।’’
संयोग से 13 वर्ष की उम्र में अश्वीता को हेलेन केलर की आत्मकथा से रूबरू होने का मौका मिला और उनका मायना है कि इसे पढ़ना ही उनके जीवन में निर्णायक बदलाव लाने वाला क्षण रहा। उन्हें अपने भीतर से एक आवाज सुनाई दी कि जीवन में बदलाव लाने की शक्ति उनमें स्वयं में हैं अन्य किसी और में नहीं है। अश्वीता प्रारंभ से ही पढ़ाई में बहुत अच्छी थीं और वे हमेशा से ही शिक्षण को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहती थीं। उन्होंने अपने मित्रों और पड़ोसियों को पढ़ाई में मदद करनी शुरू की और कुछ समय बाद बच्चों के लिये एक ट्यूशन केंद्र खोल लिया जहां इन्होंने बच्चों को 15 से 20 के समूह में बुनियादी विषयों की शिक्षा देनी प्रारंभ की। जैसे-जैसे इनके केंद्र में आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी वैसे-वैसे ही इनके आत्मविश्वास में ही इजाफा हुआ।
अश्वीता के माता-पिता एक प्रकार की बनी हाथ से स्थानीय सिगरेट जिसे बीड़ी कहते हैं को बनाने का काम करते हैं और रात-दिन मेहनत मजदूरी करने के बाद बमुश्किल गुजारे लायक पैसे कमा पाते हैं।
‘‘मेरे माता-पिता अनपढ़ हैं और वे शिक्षा के बिल्कुल अनजान हैं। ऐसे में मुझे शिक्षा की प्रत्येक अगली पायदान पर चढ़ने से पहले उन्हें समझाने और राजी करने में बहुत जद्दोजहद के दौर से गुजरना पड़ता। हालांकि हालात बिल्कुल प्रतिकूल थे लेकिन मैं खुद को बहुत खुशनसीब मानती हूँ कि मुझे ऐसे माता-पिता मिले जो अब जीवन के मेरे रास्ते और मंजिल को समझते हैं।’’
काॅलेज और सपने
अंग्रेजी में उनका हाथ बहुत तंग था और बिना किसी हिचकिचाहट के इस सच को स्वीकारते हुए वे कहती हैं, ‘‘हालांकि मैं तिरुनेलवेली के एक काॅलेज से बैचलर इन बिजनेस मैनेजमेंट में गोल्ड मेडलिस्ट हूँ लेकिन अगर आप वहां अध्ययन किये गए विषयों के बारे में बात करेंगे तो मुझे उनसे संबंधित बहुत अधिक ज्ञान नहीं है। सबकुछ अंग्रेजी में था इसलिये मैं सिर्फ याद कर लेती थी। इसके अलावा मेरी अच्छी लिखावट की वजह से भी मुझे अच्छे अंक मिले।’’
हमेशा बाहर की दुनिया की ओर आकर्षित करने वाली यह लड़की हमेशा से ही यह सपना देखती थी कि एक दिन वह सबसे बेहतरीन संस्थान में जाएगी और वहां उसे सबसे अच्छे प्रोफेसरों से सीखने का मौका मिलेगा। वह अक्सर अपनी माँ से कहती, ‘एक दिन मैं काॅलेज जरूर जाऊँगी’ और अश्वीता की माँ का हर बार एक ही जवाब होता, ‘पहले अपना हाई स्कूल खत्म करो।’ अश्वीता कहती हैं, ‘‘उनका इरादा कभी भी मुझे हतोत्साहित करने का नहीं होता था बल्कि वे मुझे यह अहसास करवाना चाहती थीं कि एक महिला होने के नाते यह सपना मेरे लिये दूर की कौड़ी है।’’
अपनी स्नातक की अंतिम वर्ष की पढ़ाई के दौरान उन्होंने एक तमिल पत्रिका में यंग इंडिया फेलोशिप के बारे में पढ़ा और उसके बाद सारी कायनात उन्हें वह देने के प्रयासों में लग गई जो उनका सबसे बड़ा सपना था। एक लाइब्रेरियन ने उनकी ईमेल आईडी तैयार करने में मदद की, उन्हें एक टेलीफोनिक साक्षात्कार के लिये खुद को तैयार करने और आवेदन भरने के लिये एक मित्र से प्रतिदिन फोन मिल जाता और इससे भी अधिक उनके पास फाइनल राउंड के लिये दिल्ली जाने लायक पैसे नहीं थे तो ऐसे में साक्षात्कार बोर्ड ने उनके लिये विशेष रूप से स्काईप साक्षात्कार की व्यवस्था की जो पास ही एक शहर में आयोजित किया गया।
बदलाव का क्षण
उन्होंने अपने जीवन में पहली बार 20 वर्ष की उम्र में टेलीफोनिक साक्षात्कार के दौरान अंग्रेजी में बातचीत की। अश्वीता कार्यक्रम के लिये चयनित हुईं और दिल्ली आ गईं। वे भीतर से खुद को जीवन के लगभग सभी पहलुओं में सामने आने वाले त्वरित बदलावों के लिहाज से तैयार नहीं कर पाई थीं। ‘‘प्रारंभिक दौर में मैं हीनभावना से ग्रस्त थी। जब मैंने पहली बार शहरी जीवन का सामना किया तो मैं चकित रह गई। मैं कई प्रोफसरों के अंग्रेजी बोलने के अमेरिकन लहजे के चलते कुछ व्याख्यानों को समझने में कठिनाईयों का सामना करती थी और उन्हें समझना मेरे लिये बहुत बड़ी चुनौती होता था। इसके अलावा मैं अंग्रेजी में अपनी भावनाओं और विचारों को सामने रखने में बहुत कठिनाई महसूस करती थी।’’ लेकिन हार न माममने के जज्बे से ओतप्रोत अश्वीता ने अपना अधिक से अधिक समय प्रोफेसरों के साथ गुजारते हुए अंग्रेजी पर इतनी कमान हासिल कर ली कि आज जब वे बात करती हैं तो वे न केवल स्पष्ट होती हैं बल्कि पारंगत भी होती हैं। फेलोशिप ने उन्हें नई ऊँचाईयों से रूबरू होने का मौका दिया। ‘‘इसने मुझे विभिन्नताओं को स्वीकार करते हुए लोगों को वो जैसे भी हों उसी रूप में उनका सम्मान करना सिखाया। इसके अलावा इसने अंग्रेजी में मेरे बोलने और लिखने के हुनर को और अधिक सशक्त किया। मेरे साथियों ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित करने के अलावा मेरे साथ सदैव बहुत अच्छा व्यवहार किया और मैं आजीवन के दोस्त बनाने में कामयाब रही।’’
मौके ने दस्तक दी
फेलोशिप सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद अश्वीता ने भारत के ग्रामीण इलाकों में सस्ती प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को संचालित करने का माॅडल विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने वाले वाले एक सामाजिक उद्यम एसवी हेल्थकेयर के साथ ‘कम्युनिटी एंगेजमेंट मैनेजर’ के रूप में जुड़ गईं। अपने काम को एक भाग के रूप में उन्होंने स्कूलों और काॅलेजों के साथ संपर्क स्थापित किया और रक्ताल्पता और हृदय रोगों से संबंधित जागरुकता सत्रों का आयोजन किया।
अच्छी शिक्षा और एक सम्मानजनक आजीविका, यह दो चीजें किसका सपना नहीं होंगी? अश्वीथा को अब भी कुछ कमी सी महसूस होती थी।
‘‘वहां पर काम करने के दौरान मैं लगातार खुद से यह पूछती रहती थी कि मैं उस ज्ञान का क्या इस्तेमाल कर रही हूँ जिसे मैंने इतने संघर्षों के बाद पाया है? दुनिया में क्या परिवर्तन लाने की आवश्यकता है? मुझमें और मेरे उन साथियों में क्या फर्क है जो अब भी गांव में ही एक उपयुक्त करियर के विकल्प को पाने के लिये संघर्ष के दौर से गुजर रहे हैं?’’
उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि वे सिर्फ दो महत्वपूर्ण वजहों से जीवन में आगे बढ़ने में सफल रहीं और वे दो वजहें हैं समय पर सामने आए अवसरों को लपकना और उनके सुधरे हुए साॅफ्ट स्किल।
बोधी ट्री फाउंडेशन की स्थापना
अश्वीता वापस तिरुनेलवेली लौट गईं और ग्रामीण स्नातकों को सशक्त बनते हुए अवसरों से रूबरू करवाने और और उन्हें साॅफ्ट-स्किल का प्रशिक्षण देने के इरादे से ‘बोधी ट्री फाउंडेशन’ की स्थापना की। अश्वीता आगे कहती हैं, ‘‘हमें पूरा विश्वास है कि ग्रामीण स्नातकों को भी प्रशिक्षित करते हुए दूसरों के संवाद करने में सक्षम बनाया जा सकता है और इसके अलावा उनके आत्मसम्मान का विकास करते हुए उन्हें उनके द्वारा किये गए कार्यों की जिम्मेदारी उठाने और समझने के लायक बनाते हुए उचित निर्णय लेने में दक्ष बनाया जा सकता है। इसके अलावा हमें यह भी भरोसा है कि हमारा यह हस्तक्षेप ऐसे सच्चे अगुवाओं को तैयार करने में मदद करेगा जो ज्यादा बड़े सपने न देखते हुए अपने गांव को एक बेहतर स्थान में बदलने का प्रयास करेंगे।’’ वे ग्रामीण स्नातकों को सामने आने वाले अवसरों जैसे फेलोशिप, छात्रवृत्ति, सरकारी और निजी नौकरियों उद्यमशीलता इत्यादि के बारे में जानकारी देने के लिहाज से 3 घंटों के जागरुकता सत्र का आयोजन करते हैं। इसके अलावा ये कला और विज्ञान के छात्रों के व्यवसायिक विकास पर केंद्रित दो दिवसीय प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन करने के साथ पाॅलीटेक्निक और इंजीनियरिंग के छात्रों के लिये सकारात्मक दृष्टिकोंण का एक कोर्स भी आयोजित करते हैं।
अश्वीता के ही काॅलेज से बीबीए करने वाली गांधी माथी उनके इस कार्यक्रम से लाभान्वित होने वाले कई छात्रों में से एक हैं। गांधी की प्रगति सराहनीय है। वह सबके साथ बहुत बेहतरीन तरीके से वार्ता करती है और सिर्फ कुछ मौकों पर व्याकरण की गलतियों को कर देती है। वे कहती हैं, ‘‘मैं एक गांव से संबंध रखती हूं और मुझे बिल्कुल भी अंग्रेजी नहीं आती। संचार पर आधारित सत्र से मुझे जीवन में अंग्रेजी के महत्व से रूबरू होने का मौका मिला और अब मैं घबराती नहीं हूँ।’’ अश्वीथा कहती हैं कि उनके इस कार्यक्रम की सफलता का श्रेय उनकी टीम के तीन नायकों, बालाजी, सेबेस्टियन और पद्मा को जाता है।
एक लंबा सफर अभी बाकी है
इसके अलावा अश्वीता एक्यूमेन की भी फेलो हैं। बोधी ट्री फाउंडेशन की स्थापना के समय प्लसटार्ट ने अश्वीथा के निजी खर्च उठाने में मदद की। इसके अलावा उन्हें मदर टेरेसा वाईआईएफ सोशल एंटरप्राइज़ स्काॅलरशिप से भी नवाजा जा चुका है जिससे उन्हें अपने इस उद्यम को संचालित करने में बहुत मदद मिली है। साथ ही उन्हें कुछ व्यक्तिगत दानदातोओं की भी सहायता मिलती रहती है और वे अपनी पहुंच, टीम और कार्यक्रमों के विस्तार के लिये अधिक धन जुटाने के प्रयास कर रही हैं।
अश्वीता का सपना एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना है जहां मानव ज्ञान, कौशल, संसाधनों और अवसरों के आधार पर किसी भी प्रकार का ग्रामीण और शहरी भेदभाव और विभाजन न हो और बोधी ट्री फाउंडेशन इस सपने को पूरा करने की दिशा में एक कदम है।