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लोहे और मिट्टी के बर्तनों से पुरानी और स्वस्थ जीवनशैली को वापस ला रही हैं कोच्चि की ये दो महिलाएं

कोच्चि की राधिका मेनन और प्रिया दीपक के ये बर्तन वापस ला रहे हैं स्वस्थ्य जीवनशैली...

लोहे और मिट्टी के बर्तनों से पुरानी और स्वस्थ जीवनशैली को वापस ला रही हैं कोच्चि की ये दो महिलाएं

Wednesday March 07, 2018 , 6 min Read

बहुत पहले टेफ्लॉन रहित पैन और वोक्स (कड़ाई) आदर्श बर्तन थे, हमारे दादा दादी मिट्टी के बर्तनों और कच्चे लोहे के पैन में खाना पकाया करते थे लेकिन एक उम्र के साथ उनका चलन बंद होता गया। इन बर्तनों में भोजन स्वादिष्ट बनता था और किसी को हमारे शरीर में टेफ्लॉन जैसे जहर की चिंता नहीं होती थी। यही कारण है कि कोच्चि की राधिका मेनन और प्रिया दीपक को इन बर्तनों ने आश्चर्य में डाल दिया।

राधिका मेनन और प्रिया दीपक

राधिका मेनन और प्रिया दीपक


राधिका को यह जानकर हैरानी थी कि ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता था कि किस प्रकार से लोहे के कूकरवेयर का सेवन किया जाए और कैसे उन्हें इस्तेमाल किया जाए। राधिका ने सोचा कि क्यों न, कच्चे लोहे के बर्तनों को बेचकर उनकी मदद की जाए।

बहुत पहले टेफ्लॉन रहित पैन और वोक्स (कड़ाई) आदर्श बर्तन थे, हमारे दादा दादी मिट्टी के बर्तनों और कच्चे लोहे के पैन में खाना पकाया करते थे लेकिन एक उम्र के साथ उनका चलन बंद होता गया। इन बर्तनों में भोजन स्वादिष्ट बनता था और किसी को हमारे शरीर में टेफ्लॉन जैसे जहर की चिंता नहीं होती थी। यही कारण है कि कोच्चि की राधिका मेनन और प्रिया दीपक को इन बर्तनों ने आश्चर्य में डाल दिया। जिसके बाद उन्होंने तय किया कि यह पुरानी परंपराओं और पुराने भोजन पकाने के बर्तन को वापस लाने का सही समय है। इसने उन्हें 'द विलेज फेयर नेचुरल कुकवेयर' की स्थापना के लिए प्रेरित किया।

विलेज फेयर उस फेसबुक पोस्ट से पैदा हुआ था, जिसमें एक नया आविष्कार बताया गया था। उस फेसबुक पोस्ट में बताया गया था, 'कच्चे लोहे के बर्तन में बनाई गई एक छोटी सी मछली अगर नियमित रूप से खाना पकाने के बर्तन में डालते हैं तो ये हमारे आहार में आयरन की कमी का ख्याल रख सकती है।" ये बात सिद्ध है कि अगर आप लोहे के बर्तन में खाना पका रहे हैं तो आयरन की कुछ मात्रा आपके भोजन में आ जाती है और इसे खाने से आपके शरीर में भी जाता है। कई रिसर्च में भी बताया गया है कि कच्चा खाना जब आयरन पैन और नॉन आयरन पैन में बनता है तो दोनों में अंतर मिलता है। विलेज फेयर की इस पोस्ट ने काफी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। कई लोग पूछते और सोचते रहे कि कैसे पीढ़ियों से हमारे पूर्वजों ने कच्चे लोहे के बर्तनों में खाना पकाया था।

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मिट्टी और लोहे के बने बर्तन

मिट्टी और लोहे के बने बर्तन


राधिका कहती हैं, 'जब एक पारंपरिक कच्चे लोहे का पतीला वही और बेहतर ट्रिक आपके लिए करे तो आप कुछ भी किसी और बर्तन में क्यों डालें? और इसलिए मैंने फेसबुक पर मेरी कास्ट आयरन कड़ाई (वोक) की एक तस्वीर पोस्ट की। जिसके बाद वह पूछताछ का जरिया बन गई। हर कोई जानना चाहता था कि आप इसे कहां प्राप्त कर सकते हैं!'

राधिका को यह जानकर हैरानी थी कि ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता था कि किस प्रकार से लोहे के कूकरवेयर का सेवन किया जाए और कैसे उन्हें इस्तेमाल किया जाए। राधिका ने सोचा कि क्यों न, कच्चे लोहे के बर्तनों को बेचकर उनकी मदद की जाए। क्योंकि राधिका को लगा कि लोगों के पास से स्वस्थ खाना पकाने के विकल्प गायब होते जा रहे हैं। राधिका ने सोचा कि ये 'द विलेज फेयर' को रणनीतिक तरीके से वापस लाने का सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि हर एक चीज नहीं लेकिन कम से कम उस जीवनशैली को वापस लाया जा सकता है जिसमें हम कैसे खाना बनाते और खाते हैं।

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यह विचार अब खाना बनाने के बर्तनों के बाजार में एक चर्चा का विषय बन गया है, और अब ये महिलाओं के स्व-सहायता समूहों द्वारा घर पर स्वाभाविक रूप से पौष्टिक और सुव्यवस्थित/प्राकृतिक भोजन के बर्तन प्रदान करता है। प्रिया कहती हैं कि टेफ्लॉन के आने का जो मतलब था कि वह खाना पकाने में तेल को कम करता है लेकिन अब हम जानते हैं कि स्वास्थ्य के लिए केमिकल खराब हैं। पूरे विश्व में लोग टेफ्लॉन से छुटकारा पाना चाहते हैं, लेकिन भारत सहित अधिकांश स्थानों में हमारे पास बहुत कम महत्वपूर्ण विकल्प हैं।

राधिका ने अपने गांव 'ग्राम चंदा' में मंगलवार के बाजार मेले के बाद अपनी पहल 'द विलेज फेयर' को लगाने का फैसला किया। ये फेयर एक तरह का बाजार ही था जहां ज्यादातर बर्तन और पैन खरीदे गए। इसी नाम (द विलेज फेयर) को फॉलो करते हुए फेसबुक पोस्ट के बाद मई 2015 में एक फेसबुक पेज जारी किया गया। पहले कुछ ऑर्डर बेंगलुरु के थे। और दोनों (राधिका और प्रिया) ने उन्हें डिलीवर करने के लिए शहर के सभी रास्तों पर ड्राइव की। कुकवेयर के पहले बैच ने करीब 25 लाख का कारोबार किया और तब से कारोबार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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द विलेज फेयर के उत्पादों को कारीगरों से या केरल और तमिलनाडु में सर्वोत्तम विनिर्माण इकाइयों से सावधानीपूर्वक उठाया जाता है। लोगों को सुरक्षित और स्वस्थ विकल्प प्रदान करने के साथ-साथ, द विलेज फेयर उन मानव समूहों को साथ लाने में विश्वास करता है जो साथ मिलकर काम करने के इच्छुक हैं। अभी वर्कफोर्स संचालन में पांच लोगों की टीम और 18 स्वयं सहायता महिलाओं का समूह शामिल है।

शिपिंग शुल्क को छोड़कर, 600 से 6,000 रुपये के बीच द विलेज फेयर के प्रोडक्ट्स की कीमत होती है। जिसमें कच्चा लोहा और मिट्टी से बने कूकरवेयर और बर्तन शामिल हैं। जल्द ही पत्थर के बर्तनों को लॉन्च करने की उम्मीद है। प्रिया कहती हैं "दुनिया भर में हम सब 'अच्छे पुराने दिनों' के बारे में बात करते हैं जब चीजें स्वस्थ और बेहतर होती थीं। मनुष्यों ने घड़ी को गति देने और समय बचाने के लिए आसान तरीकों को खोजने के साथ, हमने सबसे महत्वपूर्ण तत्व खो दिया है जिस पर हमसे पहले की दो पीढ़ियों ने बहुत ध्यान दिया था- एक स्वस्थ जीवन शैली।"

द विलेज फेयर ने एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला प्रक्रिया और बाजार की रणनीति विकसित की है। उन्होंने फेसबुक के माध्यम से परीक्षण करके और बाद में अपनी वेबसाइट और ई-शॉप शुरू कर दी है। उन लोगों के लिए जो उत्पादों को छूना और महसूस करना चाहते हैं, द विलेज फेयर ने महानगरों में स्टोरों के साथ भागीदारी की है। जो जैविक और स्वस्थ रहने वाले लोगों को बढ़ावा देती हैं। टीम चरणबद्ध ढंग से दुनिया भर में इस मॉडल को दोहराने की योजना में है।

द विलेज फेयर हर साल लगभग 40 लाख का कारोबार करता है। देश और विदेशों में प्रति दिन लगभग 50 पीस भेजे जाते हैं। खुद से शुरू की गई पहल, हर चीज पर 40 से 50 प्रतिशत के मार्जिन से चल रही है। हर बिक्री का पांच प्रतिशत दवाओं के लिए मेहैक फाउंडेशन को जाता है। मेहैक फाउंडेशन इसका इस्तेमाल अपने आउटरीच क्लिनिक में उनकी देखभाल के अंतर्गत आने वाले मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए करता है।

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