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काशी के गांवों में मोदी के स्टार्टअप इंडिया को साकार करतीं एक फैशन डिजाइनर, महिलाओं को बना दिया आत्मनिर्भर

शिप्रा ने जप माला के कारोबार को दी नई पहचान... हजारों से शुरू हुआ बिजनेस करोड़ों तक पहुंचा...विदेशों में ऑनलाइन होता है जप माला का बिजनेस... मोदी के स्टार्ट अप इंडिया योजना को साकार करती शिप्रा...

काशी के गांवों में मोदी के स्टार्टअप इंडिया को साकार करतीं एक फैशन डिजाइनर, महिलाओं को बना दिया आत्मनिर्भर

Tuesday February 16, 2016 , 6 min Read

दुनिया बदल रही है। बदलाव की एक बयार बनारस के नरोत्तमपुर गांव में भी बह रही है। कल तक घूंघट में सिमटी रहने वाली गांव की महिलाएं आज कामयाबी और महिला सशक्तिकरण की नई इबारत लिख रही है। ये महिलाएं मोदी के स्टार्टअप इंडिया के सपनों को साकार करने में जुटी हैं। इन महिलाओं की मेहनत और कुछ अलग करने की जिद्द ने इन्हें उस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया है। जहां पहुंचना हर किसी का सपना होता है। नरोत्तमपुर गांव की महिलाओं की पूरी कहानी आपको बताएं, उससे पहले आपको मिलवाते हैं इन महिलाओं के लिए फरिश्ता बनकर आईं फैशन डिजाइनर शिप्रा शांडिल्य से। फैशन की दुनिया में शिप्रा एक जाना पहचाना चेहरा है। कई साल तक दिल्ली और नोएडा जैसे शहरों में अपनी धाक जमाने के बाद अब शिप्रा बनारस की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के साथ ही जागरुक कर रही हैं। शिप्रा ने बनारस के दर्जन भर से अधिक गांवों की महिलाओं के हुनर को पहचाना और अब उन्हें तरासने का काम कर रही हैं।

खोती पहचान को जीवित रखने की कोशिश

शिप्रा ने बनारस में दशकों से बनने वाले जप मालाओं को अब फैशन से जोड़कर बड़ा बिजनेस खड़ा कर लिया है। शिप्रा पिछले तीन सालों से जप मालाओं को बेहतर और आकर्षक रूप देने में लगी हैं ताकि पहचान खोती इन मालाओं को भारतीय कला और संस्कृति के तौर पर बचाया जा सके। शिप्रा का मकसद तब और भी नेक हो जाता है जब वे अपनी इस मुहिम में वाराणसी के नरोत्तमपुर गांव की महिलाओं को भी जोड़ती हैं। शिप्रा का मकसद जप मालाओं के व्यापार के साथ महिलाओं को भी सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है। शिप्रा ने योर स्टोरी को बताया,

''शुरु से ही मेरे मन में कुछ अलग करने की चाहत थी। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद मैं उन महिलाओं के लिए काम करना चाहती थी जो आज समाज में हाशिए पर है। इसलिए मैं आज गांव की महिलाओं के साथ अपने रोजगार को आगे बढ़ा रही हूं। वर्तमान में मेरे साथ इस रोज़गार में 100 से अधिक ग्रामीण महिलाएं जुड़कर काम कर रही हैं। ''
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शिप्रा और उनके साथ काम करने वाली महिलाओं के लगन का ही नतीजा है कि हजारों से शुरू हुआ उनका ये कारोबार आज करोड़ों रुपए में पहुंच गया है। शिप्रा ने छोटी सी पूंजी के साथ जप माला बनाने का काम शुरू किया और आज देखते ही देखते नोएडा, दिल्ली, सहित लखनऊ जैसे शहरों में उनका ये कारोबार फैल गया है। इन शहरों में शिप्रा ने बकायदा शो रूम खोला है। जहां बनारस में बनी हुई जप मालाएं हाथों हाथ बिकती है। यही नहीं विदेशों में डिजाइनर जप माला के लोग मुरीद होते जा रहे हैं। विदेशों में जप मालाओं की बढ़ती डिमांड को देखते हुए शिप्रा ने malaindia.com के नाम से वेबसाइट बनाई है। साथ ही कई ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनी से शिप्रा की कंपनी माला इंडिया का करार है। इंटरनेट के माध्यम से शिप्रा काशी की इस पहचान को देश विदेश तक पहुंचा रही हैं। शिप्रा ने बताया उनकी कंपनी में हर प्रकार की जप मालाएं हैं जिनमें काला रुद्राक्ष, चंदन की माला, तुलसी की माला, मुखदार रुद्राक्ष और रत्नों की माला ख़ास है।


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शिप्रा बताती है,

''आने वाले दिनों में मैं अपने कारोबार को और बड़ा रुप देने में लगी हूं ताकि गांव की महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके। मोदी के स्टार्टअप कार्यक्रम से मुझे नई ऊर्जा मिली है। काम करने का एक नया नजरिया मिला है। अब मैं अपने रोजगार को परंपरा के साथ-साथ आधुनिकता से जोड़ना चाहती हूं ''
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गांव की महिलाओं को जोड़ना

बनारस से सटे गाजीपुर जिले की मूल निवासी शिप्रा के लिए गांव की महिलाओं को जोड़ना आसान नहीं था। बड़े शहरों में काम करने के बावजूद कुछ सालों बाद शिप्रा को गांव की माटी अपनी ओर खिंच लाई। शिप्रा ने बनारस के नरोत्तमपुर गांव को अपनी कर्मभूमि बनाया। आमतौर पर इस गांव की महिलाएं फूलों की खेती करती थी और खाली समय में मोतियों की माली पिरोती थीं। लेकिन इन महिलाओं का काम आधुनिकता के पैमाने पर खरा उतरने लायक नहीं था और न ही काम के हिसाब से उन्हें मेहनताना मिलता था। शिप्रा ने गांव की महिलाओं के हुनर को उनका हौसला बनाया। उन्हें अच्छी ट्रेनिंग देकर उनका उत्साह बढ़ाया। फिर क्या था महिलाओं ने अपना कौशल दिखाना शुरू किया और नतीजा आपके सामने हैं।

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शुरुआत में शिप्रा के साथ गांव की चुनिंदा महिलाएं थीं लेकिन वक्त बीतने और रोजगार बढ़ने के साथ कुछ और गांव की महिलाओं का साथ मिलने लगा। फिलहाल शिप्रा इन महिलाओं के साथ मिलकर हर महीने लगभग आठ से दस लाख रुपए तक का कारोबार करती हैं। यानी साल भर में पूरा बिजनेस करोड़ों का आंकड़ा छू लेता है। वाराणसी के साथ देश के कई शहरों में इन जप मालाओं की खूब डिमांड हैं। खासतौर पर विदेशों से आने वाले सैलानी तो इन मालाओं के दीवाने हैं। चूंकि बनारस धार्मिक शहर है लिहाजा यहां आने वाले श्रद्धालुओं में जप माला को लेकर खासा क्रेज होता है। शिप्रा ने श्रद्धालुओं की इन्हीं भावनाओं को पहचाना और अपने रोजगार को बढ़ावा देने में जुट गई।

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बदल गई गांव की तस्वीर और महिलाओं की ज़िंदगी

रोजगार बढ़ने से नरोत्तमपुर गांव की महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी बदल गई। गांव की ही रहने वाली शहनाज बेगम कहती हैं, 

''जब से मैडम का साथ मिला है हमारी जिंदगी पटरी पर लौट आई है। पहले परिवार का पेट जैसे तैसे भरता था लेकिन अब तो दो पैसे की बचत भी हो जाती है....''

मोदी के बनारस से उठी ये आवाज उन लोगों के लिए मिसाल है जो कुछ करना तो चाहते हैं लेकिन हौसला नहीं रखते। शिप्रा की इस छोटी सी कोशिश ने महिलाओं को न सिर्फ मजबूत बनाया है बल्कि अपने प्रधानमंत्री के सपने को भी पूरा कर रही हैं जो उन्होंने स्टार्टअप इंडिया के जरिए देखा है।

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