Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

अपने स्टार्ट-अप में फाउंडर को खुद ही सारे निर्णय क्यों नहीं लेने चाहिये?

अपने स्टार्ट-अप में फाउंडर को खुद ही सारे निर्णय क्यों नहीं लेने चाहिये?

Thursday January 11, 2018 , 5 min Read

इस दुनिया में अधिकांश लोगों का सपना होता है, 'अपना काम' शुरू करना। अपना काम यानि कि वो काम जो उनको सबसे ज्यादा पसंद हो, जिसमें वो अपने हिसाब से हर चीज डिजाइन कर सके, प्लानिंग बना सके और उसका क्रियांवयन कर सकें। इंसान की मेहनत और सूझ-बूझ ही उसकी सफलता की कहानी लिखती है, वरना अच्छे से अच्छा आइडिया भी फुस्स पड़ जाता है।

सांकेचिक तस्वीर (फोटो साभार- शटरस्टॉक)

सांकेचिक तस्वीर (फोटो साभार- शटरस्टॉक)


फाउंडर को चाहिये कि वह अपनी जिम्मेदारियों को कुछ कम करे और सहयोगियों को भी आपके व्यवसाय से जुड़ी जिम्मेदारी उठाने दें और महत्वपूर्ण निर्णय लेने का मौका दें।

यह बात सौ आने सच है कि एक आंत्रप्रेन्योर जो करता है वो अपनी काबिलियत के बल पर ही करता है। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि काम से जुड़ी सभी चीजो पर फाउंडर का ही अधिकार है।

इस दुनिया में अधिकांश लोगों का सपना होता है, 'अपना काम' शुरू करना। अपना काम यानि कि वो काम जो उनको सबसे ज्यादा पसंद हो, जिसमें वो अपने हिसाब से हर चीज डिजाइन कर सके, प्लानिंग बना सके और उसका क्रियांवयन कर सकें। इंसान की मेहनत और सूझ-बूझ ही उसकी सफलता की कहानी लिखती है, वरना अच्छे से अच्छा आइडिया भी फुस्स पड़ जाता है। सही आइडिया के साथ सही दिशा में काम करना भी जरूरी होता है। यही बात आंत्रप्रेन्योर्स पर भी लागू होती है और ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है उन आदतों से बचकर रहना जो आपकी सफलता में बाधक हैं। किसी भी आंत्रप्रेन्योर को अपने नए काम की शुरूआत में काफी रोमांच रहता है। कई बार तो उन्हें ऐसा लगता है कि वो अपने काम से जुड़े हर पहलू को जानना और समझना चाहते हैं। वो अपने काम में इतना ज्यादा मशगूल हो जाते हैं कि किसी भी दूसरे व्यक्ति को जिम्मेदारी सौंपने में कतराने लगते हैं।

आखिर में हालात ऐसे हो जाते हैं कि खुद के किये सारे कामों को हमेशा सही साबित करने की आदत हो जाती है। फाउंडर को चाहिये कि वह अपनी जिम्मेदारियों को कुछ कम करे और सहयोगियों को भी आपके व्यवसाय से जुड़ी जिम्मेदारी उठाने दें और महत्वपूर्ण निर्णय लेने का मौका दें। दुनिया भर से ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें एक कहानी उबर (कैब सर्विस) के मालिक ट्रेविस कैलानैक की भी है। किसी अन्य को जिम्मेदारी ना सौंपने और निर्णय ना लेने की सूरत में उनकी स्थिति एक वक्त ऐसी हो गई कि उन्हें खुद ही कंपनी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। फाउंडर को छोटी चीजों में खुद को नहीं उलझाना चाहिये।

एक आंत्रप्रेन्योर के पास जाहिर तौर पर एक बार में करने के लिये बहुत से काम होते हैं। एक मीटिंग से दूसरे में, इन्वेस्टर के कॉल, पार्टनरशिप के लिये जद्दोजहद जैसी कई चीजें उसे उलाझाए रखती हैं। पर जब वह एक साथ सारी चीजों को देखना चाहता है, जो मनुष्य प्रवृति के हिसाब से उससे कभी न कभी कोई गलती होने की संभावना रहती है। इसलिये ज्यादा जरूरी यह है कि कंपनी के भविष्य और विजन पर उसकी नजर बनी रहे और उसके सहयोगी कर्मचारी बाकी जिम्मेदारियों पर ध्यान देते रहें। यह बात सौ आने सच है कि एक आंत्रप्रेन्योर जो करता है वो अपनी काबिलियत के बल पर ही करता है। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि काम से जुड़ी सभी चीजो पर फाउंडर का ही अधिकार है। यदि एक आंत्रप्रेन्योर सचमुच ही सफलता पाना चाहते हैं, तो पहले वो खुद को सफल बनायें और खुद के भीतर से सिर्फ मैं और मेरा वाली भावना को बाहर निकाल दें।

फाउंडर के निर्णय पूरी कंपनी को ध्यान में रखते हुए होनी चाहिये, ना कि हर छोटे काम को तोलकर। बेहतर काम के लिये कई बार तुरंत निर्णय लेने होते हैं, और बिल्कुल भी जरूरी नहीं कि फाउंडर हर वक्त हर निरअणय के लिये मौके पर मौजूद हो। इसलिये जिम्मेदारियां बांटना ही समझदारी है। ज्यादा कंट्रोल असंतोष बढ़ाता है। अगर फाउंडर लगातार अपने निर्णय सभी पर थोपने की कोशिश करता है, तो कर्मचारी उससे नफरत करने लगते हैं। कर्मचारियों की कमी तक होने की संभावना तक रहती है। कंपनी के ग्रोथ पर असर इसके बाद पड़ना तय है। व्यवसायी सही भी हो तो भी ये हालात पैदा हो सकते हैं। हक और अधिकार जमाना किसी काम की शुरुआत का अंत कर सकता है, ठीक उसी तरह जब संबंधों में अधिकार की बात आती है, तो संबंध खत्म हो जाते हैं।

एक फाउंडर ही अगर सभी दिशाओं में काम करने लगेगा तो कहीं भी अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाएगा। टीम के पास जिम्मेदारियां होने से काम भी आसान होता है और नए तरीके भी बेहतर तरीके से उभर कर सामने आते हैं। एक आंत्रप्रेन्योर के तौर पर आप खुद ही अपने सबसे बड़े दोस्त हैं और सबसे बड़े दुश्मन भी। सूझ-बूझ के साथ उठाया गया आपका बेहतरीन कदम आपको ऊंचाईयों तक ले जा सकता है, लेकिन यदी वही कदम गलत पड़ गया तो आपकी सारी मेहनत पर पानी फिरने में देर नहीं लगती और सब खत्म हो जाता है।

इतिहास गवाह है कि कोई भी काम अगर टीम भावना के साथ किया जाए तो वो रंग लाता है। छोटा सा उदाहरण अपने घर से ही उठाते हैं, मान लीजिए घर में किसी की शादी होने वाली है। एक कोई होगा जो इस काम का प्रमुख होगा। कोई भी घर का बुजुर्ग या जिम्मेदार इंसान। ऐसा तो होगा नहीं कि फूल वाले से लेकर हलवाई तक और कार्ड बनाने वाले से लेकर टेंट वाले तक की निगरानी रखने का काम वही एक इंसान कर ले।

व्यवहारिक रूप से क्या होता है? यही न कि वो प्रमुख इंसान अलग-अलग विभाग बना देगा और लोगों को चुनकर जिम्मेदारियां सौंप देगा। हां वो ये भले करेगा कि इन सब कामों की रिपोर्ट अंततः उसके पास तक पहुंचे। इससे क्या होगा, वो सारे काम प्रमुख की ही निगरानी में बस उसके हाथ दो की जगह अनेकों हो जाएंगे। बस यही टैक्टिक्स आंत्रप्रेन्योर को अपने उद्यम में अपनानी है।  

ये भी पढ़ें: बिटकॉइन की आसमान छूती कीमतों से हैरान हैं! यहाँ जानिए क्या हैं इसके कारण?