पर्यावरण के लिए नौकरी छोड़ शुरू किया गिफ्ट में पौधे देने का बिजनेस
इंजिनियर ने पर्यावरण को बचाये रखने के लिए छोड़ दी नौकरी...
बड़े बुजुर्ग कहते थे कि जन्मदिन पर पौधे लगाने चाहिए। लेकिन हम लोग व्यर्थ के भौतिकतावाद के फेर में फिजूल के गिफ्ट्स पर पैसे बर्बाद करते हैं। इस कुरीति को दूर करने के लिए एक नौजवान डटा पड़ा है, नाम है पवन कुमार राघवेंद्रन।
पवन का अपना खुद का फर्म है पीकेआर ग्रीन्स एंड कंसलटेंसी। जिसके जरिए वो लोगों को पौधे डिलीवरी करते हैं।
इस स्टार्टअप की सफलता को देखते हुए पवन के दोस्तों ने छत पर ही गार्डेन बना डालने की सलाह दी। पवन ने टेरेस फार्मिंग करते हुए सब्जियों के खूब सारे पौधे उगा डाले।
बड़े बुजुर्ग कहते थे कि जन्मदिन पर पौधे लगाने चाहिए। लेकिन हम लोग व्यर्थ के भौतिकतावाद के फेर में फिजूल के गिफ्ट्स पर पैसे बर्बाद करते हैं। इस कुरीति को दूर करने के लिए एक नौजवान डटा पड़ा है, नाम है पवन कुमार राघवेंद्रन। पवन चेन्नई में रहते हैं और हरियाली फैलाने का एक बड़ा ही नेक, समझदारी भरा काम कर रहे हैं। उनका अपना खुद का फर्म है पीकेआर ग्रीन्स एंड कंसलटेंसी। जिसके जरिए वो लोगों को पौधे डिलीवरी करते हैं। इस स्टार्टअप की सफलता को देखते हुए पवन के दोस्तों ने छत पर ही गार्डेन बना डालने की सलाह दी। पवन ने टेरेस फार्मिंग करते हुए सब्जियों के खूब सारे पौधे उगा डाले।
वो लोगों के बीच जन्मदिन पर पौधे भेट करने की परंपरा को फिर से जिंदा कर रहे हैं। पवन ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी और एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप कर रहे थे। जल्द ही वो इस मशीनी दुनिया से आजिज आ गए। उनका दिल बड़ा रचनात्मक कार्यों में रमता था। उन्होंने इस सुखा देने वाली फील्ड को छोड़कर अपना काम शुरू करना है। इस जरूरी स्टार्टअप की शुरुआत हुई थी एक फेसबुक स्टेटस से। पवन के घर में जगह की कमी के कारण कुछ पौधों के गमलों को जगह नहीं मिल पाई थी। उन्होंने उन गमलों की फोटो खींच कर फेसबुक पर एक ग्रुप में डाल दिया।
पोस्ट लिख दिया कि ये बिक्री के लिए हैं, जिसको जरूरत हो उसके घर डिलीवरी हो जाएगी। एक महिला ने रिप्लाई किया, उनको लगा कि पवन कोई नर्सरी चलाते हैं। उन्होंने इन पौधों के अलावा और भी पौधों की डिमांड कर दी। पवन को ये आइडिया बड़ा स्ट्राइकिंग लगा। उन्होंने बगल की एक नर्सरी से पौधे मंगाए और उन महिला के घर जाकर डिलीवरी कर दी। यहीं से पवन को अपनी फर्म बनाने की सूझी। फेसबुक और प्रिंट प्रमोशन से उनके प्लांट डिलीवरी की मांग बढ़ती ही जा रही है।
शुरू में तो पवन को न के बराबर ही लाभ हो रहा था लेकिन लोगों की जागरूकता बढ़ने के साथ साथ पौधों की मांग भी बढ़ रही है। पवन के मुताबिक, हमारा मुख्य उद्देश्य लोगों के घरों, ऑफिसों, कॉरपोरेट कॉम्प्लेक्स, मॉल, स्टडी सेंटर में ज्यादा से ज्यादा पौधे लगवाना। ताकि लोग खुली हवा में सांस ले सकें और हरियाली के महत्व को समझ सकें। हालांकि पवन का ये सफर आसान नहीं रहा है। उनकी पहली कमाई मात्र 300 रुपए थी। और ये तीन सौ रुपए भी उन्हें तब मिलते थे जब वो पांच घरों में जाकर डिलीवरी करते थे।
उन्हें ढेर सारे गमले लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करना पड़ता था। जिसका टिकट पचास रुपए होते थे। कई कई घर रूट से काफी दूर हुआ करते थे तो पवन को पैदल ही इतना भारी झोला लेकर जाना पड़ता था। पवन ने तकरीबन तीस गमले एक साथ रखने के लिए एक बड़ा सा जूट का बैग सिल लिया था। कुछ ही महीनों के बाद पवन के काम को पहचाना जाने लगा। सोशल मीडिया ने इसके प्रचार प्रसार में काफी मदद की है। आज ढेर सारे लोग पीकेआर ग्रीन एंड कंसल्टेंसी से जुड़ना चाह रहे हैं, उनके विचारों को आगे बढ़ाना चाह रहे हैं।
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