तारो को पुरस्कार देने पर सवालों के घेरे में साहित्य अकादमी
इस साल युवा कवि की हिंदी कविता का पुरस्कार तारो सिंदिक झा के नाम घोषित हुआ है। तारो सिन्दिक अरुणाचल के हिंदी कवि हैं। हिंदी कविता के लिए युवा कवि का पुरस्कार उन्हें दिए जाने पर कवि-साहित्यकारों की तीखी प्रतिक्रियाओं का भूचाल सा आ गया है।
साहित्य अकादमी ने इस साल युवा कवि की हिंदी कविता का पुरस्कार अरुणाचल के तारो सिंदिक झा को देने की घोषणा की है। इस पर देश के कवि-साहित्यकारों की प्रतिक्रियाओं का भूचाल-सा आ गया है। इससे पहले की बात है। शायरा एवं मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव डॉ. नुसरत मेंहदी ने बताया था कि जिस प्रकार से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कुछ योग्य एवं अयोग्य साहित्यकार, कवि, लेखक, कलाकार साम-दाम-दण्ड-भेद सब अपना रहे हैं और अपने प्रयासों में प्रायः सफल भी हो रहे हैं, उससे सम्मानों और पुरस्कारों के चयन की प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
जिस प्रकार से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कुछ योग्य एवं अयोग्य साहित्यकार, कवि, लेखक, कलाकार साम-दाम-दण्ड-भेद सब अपना रहे हैं और अपने प्रयासों में प्रायः सफल भी हो रहे हैं, उससे सम्मानों और पुरस्कारों के चयन की प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
हाल ही में शायरा एवं मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव डॉ. नुसरत मेंहदी ने कहा था, कि बहुत से साहित्यकारों, कवियों, लेखकों, कलाकारों की स्व-स्तुति और आत्ममुग्धता इतनी बढ़ गई है, कि वे अपने अतिरिक्त किसी को सम्मान योग्य नहीं समझते हैं। कमियां दोनों ओर हैं। जिस प्रकार से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कुछ योग्य एवं अयोग्य साहित्यकार, कवि, लेखक, कलाकार साम-दाम-दण्ड-भेद सब अपना रहे हैं और अपने प्रयासों में प्रायः सफल भी हो रहे हैं, उससे सम्मानों और पुरस्कारों के चयन की प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। ऐसे वातावरण में यदि उपरोक्त कार्य योग्यता और गुणवत्ता के आधार पर भी किया जाए तो विवाद के घेरे में आ जाता है। साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2017 घोषित होने के बाद डॉ.मेंहदी का कथन एक बार फिर आईने की भूमिका में है।
उल्लेखनीय है, कि इस साल युवा कवि की हिंदी कविता का पुरस्कार तारो सिंदिक झा के नाम घोषित हुआ है। तारो सिन्दिक अरुणाचल के हिन्दी कवि हैं। हिंदी कविता के लिए युवा कवि का पुरस्कार उन्हें दिए जाने पर कवि-साहित्यकारों की तीखी प्रतिक्रियाओं का भूचाल सा आ गया है। इसी बहाने अकादमी के पुरस्कार निर्णायक मंडल पर भी उंगलियां उठ रही हैं। आइए, पहले तारो की वह कविता पढ़ते हैं, जिस पर पुरस्कार घोषित हुआ है-
1)
ऐ अंधकार ! ले ले मुझे आगोश में
कोई ना देखे मुझे, मैं ना देखूं किसी को
तुम जिसे रोशनी कहते हो, अंधेरा कितना छिपा है इसमें
हर चेहरों पे मुखौटा और ना जाने कितने परतों में बँटा ये मुखौटे
साये भी अब अपना नहीं, तो ताज्ज़ुब किस बात की है
जब कोई अपना साथ नहीं, जग में आया खुद के साथ
जाना भी है छोड़ इसे देकर अपना साथ !
2)
सविनय निवेदन.....!
जीवन का स्वाद अभी चखा ही क्या है
दर्द का कठोर रुप अभी देखा ही क्या है
ठीक से चलना अभी सीखा ही क्या है
ऐ मेरे भोले बंधुओं!
जिन रास्तों पर तेरे कदम है
जाती वह अंधकार की ओर है
रखो खुद को, काबू में अपने।
हिंसा नफरत दिलों में जितने
करो कोशिश उसे मिटाने
दो पल का ही, ये जीवन है
प्रेम से जी लो, समस्या क्या है?
तेरे एक गलत करनी से
सबका शीश झुके शर्म से
गलती तेरी सुधारने को
पैसा पसीना दोनों बहाए
फ़िर भी बाज तुम ना आए।
सम्भल जाओ, ठहर जाओ!
सही रास्तों की कमी नहीं है
उन्हें पहचान कर लौट आओ !
ये भी पढ़ें,
कविता के तपस्वी आनंद परमानंद
इस कविता के लिए 50 हजार रुपए का सम्मान घोषित होने पर जाने-माने कवि-लेखक अनिल जनविजय का कहते हैं- 'कैसे-कैसे कवियों को साहित्य अकादमी पुरस्कार देती है? इस पुरस्कार के निर्णायक थे- मृदुला गर्ग, कमलकिशोर गोयनका और कोई रत्न कुमार पाण्डे। रत्न कुमार का नाम तो मैंने सुना ही पहली बार है। हाँ, गोयनका जी को जानता हूँ। उन्हें तथाकथित प्रेमचन्द विशेषज्ञ माना जाता है।' कवयित्री-लेखिका विजय पुष्प पाठक का तंज भरे अंदाज में कहना है, कि 'कविता वही है, जिसमें व्याकरण न हो ,वर्तनी की टांग टूटी हो और भाषा ऐसी हो, जो समझ न आये और हो सकता है, नार्थ ईस्ट में हिंदी प्रोमोट करने को दिया हो।'
'लहक' के संपादक उमाशंकर सिंह परमार ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है कि 'इन कविताओं को पढ़िए, इनके रचनाकार को हिन्दी युवाकवि का सम्मान मिला है साहित्य अकादमी द्वारा। अब भी कोई आशंका है? इन पुरस्कार दाता संस्थाओं के रवैये, राजनीति और समझ पर। हम इन अकादमियों, पीठों, संस्थानों की और इनके द्वारा पुरस्कृत मिडियाकरों की फर्जी आलोचना नहीं करते हैं। हिन्दी को रसातल में भेजने का काम इन्ही लोगों ने किया है।'
अजामिल व्यास कहते हैं- 'यह तो साहित्य अकादमी की पुरानी परंपरा है। उसने नया क्या किया है!'
तारो के सम्मान पर उमानाथ लाल दास का कहना हैं, कि निर्णायकों के काव्य-विवेक और जीवन सरोकार से हिंदी जगत पहले से भलीभांति अवगत है। इनमें अज्ञात कुलशील पांडेयजी भी सत्ता के किसी कोटर से ही होंगे। ये लोग यही कर भी सकते हैं। युवा कवि-समीक्षक मनोज कुमार झा लिखते हैं- पुरस्कार के लिए सबकुछ चलता है। घृणित है, हिन्दी साहित्य का तंत्र। और कवि बहुत हैं। फ़ैशनबाज और पैसेवाला ही पुरस्कार पाता है। सार्त्र जैसे साहित्यकार और दार्शनिक ने नोबेल पुरस्कार को आलू का बोरा कह कर ठुकरा दिया था।
पुरस्कार पर इंद्रमणि उपाध्याय ने संभावनापूर्ण टिप्पणी की है कि, वैसे अहिन्दी क्षेत्र को देखते हुए ठीक ही है। यह क्या कम है कि वो हिंदी पढ़ रहे हैं। इसी तरह गोविंद माथुर का मानना है कि पुरस्कार युवा कवियों को प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता है। हो सकता है, पुरस्कार मिलने के बाद तारो अच्छी कविताएं भी लिखने लगें।