तकनीक के जरिये पारदर्शिता लाने का जीता जागता उदाहरण बना स्टार्टअप 'ब्रिज इंपैक्ट'
ब्रिज इंपैक्ट एक ऐसा स्टार्टअप जो अपने मंच पर विभिन्न कंपनियों के सीएसआर खर्च को एकत्रित करता है और उन्हें यह जानने और समझने में मदद करता है कि उनका योगदान कहां और कैसे परिवर्तन लाने में किया जा रहा है।
सीएसआर कार्यक्रम कॉर्पोरेट और एनजीओ के मध्य एक मजबूत साझेदारी के माध्यम से लागू किए जाते हैं। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने रिपोर्ट दी है कि कंपनियों ने वित्त वर्ष 2017 में सीएसआर गतिविधियों पर 28,111.63 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
हर कोई अपने तरीके से समाज में परिवर्तन लाता है। अक्सर बढ़े हुए सीएसआर बजट के जरिये इस सोच को धरातल पर उतारने के लिये अधिकांशतः एनजीओ का उपयोग किया जाता है। सच्चाई यह है कि अधिकांश लोग उन्हें शक की निगाह से ही देखते हैं। हमें यह पता ही नहीं चलता कि ये एनजीओ कैसे काम करते हैं, मिलने वाले पैसे के साथ क्या करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें यह भी पता नहीं चलता क्या वे वास्तव में कोई प्रभाव डालने में कामयाब हो भी रहे हैं या नहीं।
सोनल चोपड़ा ने बिल्कुल ऐसी ही चिंताओं से दो-चार हो रहे लोगों की मदद के लिये ब्रिज इंपैक्ट की स्थापना की। यह स्टार्टअप प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए एनजीओ को पारदर्शी बनाने में मदद करता है ताकि दानदाताओं को इस बात की पूरी जानकारी रहे कि उनका पैसा कहां और कैसे इस्तेमाल हो रहा है।
ब्रिज इंपैक्ट की अपनी ही एक शोध इस बात का खुलासा करती है कि बहुत बड़ी संख्या में कंपनियां और एनजीओ अब भी सीएसआर कार्यक्रमों को क्रियान्वित करते समय डेटा एकत्रित करने, उसे संकलित करने और रिपोर्ट करते समय पारंपरिक और कम प्रभावी तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। इसका नतीजा खराब निष्कर्ष, गलत परिणामों और दोषपूर्ण प्रभाव मूल्यांकन के रूप में सामने आता है। आज के डिजिटल युग में ऐसा करना प्रयास, धन और समय की बर्बादी है।
ब्रिज इंपैक्ट सीएसआर प्रबंधन, निगरानी और रिपोर्टिंग से जुड़े इन तमाम मसलों को प्रौद्योगिकी आधारित दृष्टिकोण के जरिये संबोधित करता है। इन्होंने विशेष रूप से एक वेब और मोबाइल इंटरफेस विकसित किया है जो विभिन्न कॉर्पोरेट्स को उन सीएसआर परियोजनाओं पर नजर रखने की आजादी देता है जिनमें उन्होंने यागदान दिया है और वह भी रियल टाइम में।
बदलाव का वाहक बनने का इरादा
सोनल ने इस सफर को सिर्फ 16 वर्ष की उम्र में तब शुरू किया जब उन्होंने हावर्ड यूनिवर्सिटी लीडरशिप समिट और वाशिंगटन डीसी के प्रेज़िडेंशियल क्लासरूम में भाग लिया। वे वहां से समाज में परिवर्तन लाने के विचारों के साथ लौट कर आईं। सोनल हाशिये पर जीवन यापन कर रहे लोगों के स्तर को सुधारने के लिये कुछ बेहतर करना चाहती थीं और इसे लिये एनजीओ शुरू करने का विचार बिल्कुल स्पष्ट था। हालांकि जब उन्होंने कुछ एनजीओ का दौरा किया तो उनका ध्यान इस ओर गया कि विकास से जुड़े इस क्षेत्र में उस परिचालन दक्षता की बेहद कमी है जो निजी क्षेत्र के उपक्रमों में होती है। इसके अलावा उन्होंने यह भी महसूस किया कि तकनीक वास्तव में ऐसे लोगों के उत्थान की दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
सोनल कहती हैं, 'हमारी सोच बिल्कुल स्पष्ट है - किसी जरूरतमंद को कंबल दान करना उसे ठंड से बचाएगा जिससे उसे सिर्फ क्षणिक राहत ही मिल पाएगी। हालांकि इससे उनके जीवन में कोई स्थाई परिवर्तन नहीं आएगा। वास्तव में परिवर्तन लाने के लिये हमें उन्हें आत्मनिर्भर होने के लिये सशक्त करना चाहिये।' लंदन के किंग्स कॉलेज से बिजनेस-इकोनॉमिक्स स्ट्रैटिजी में डिग्रीधारक सोनल ने मार्च 2017 में ब्रिज इंपैक्ट की स्थापना की।
समाज को वापस लौटाने का सार
ब्रिज इंपैक्ट की स्थापना इस आधार पर की गई थी कि समान सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करते समय, कंपनियां और सामाजिक संगठन लगातार पारदर्शिता की कमी, प्रभाव की समझ, और अक्षम समन्वय जैसे विभिन्न मुद्दों का सामना करते हैं। ठीक साधनों की गौरमौजूदगी के चलते अक्सर विभिन्न हितधारक अपने निवेश के बदले होने वाले सामाजिक परिवर्तनों की निगरानी करने और उसे मापने के लिये अनुपयुक्त होते हैं।
सोनल कहती हैं, 'एक तरफ जहां विभिन्न वित्तीय मीट्रिक्स का इस्तेमाल करते हुए वित्तीय प्रदर्शन का मूल्यांकन करना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन मात्रात्मक मूल्यों में सामाजिक प्रभाव को नापना इन संगठनों के लिये अक्सर काफी चुनौतीपूर्ण और कठिन कार्य हो जाता है।' ब्रिज इंपैक्ट के साथ वे अपनी सीएसआर परियोजनाओं, कर्मचारियों की वालियंटेरिंग और पेरोल का सुगमता से प्रबंधन और निगरानी करने में सक्षम होते हैं बल्कि सिर्फ योजना तैयार करने में ही नहीं साथ ही कार्यान्वयन और प्रदर्शन की निगरानी भी कर सकते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, यह समाधान बड़े पैमाने पर ओवरहैड लागत को कम करता है जिससे कार्यक्रमों के लिये उपलब्ध होने वाला धन अपने आप ही बढ़ जाता है।
समाधान की कार्यप्रणाली
प्रौद्योगिकी संचालित एंड-टू-एंड सीएसआर प्रबंधन पारदर्शिता लाने में भी मदद करने के अलावा इस तरह के कार्यक्रमों के वित्त पोषण और मूल्यांकन की प्रभावी निगरानी भी कर रहा है। सोनल कहती हैं, 'हमारा मंच अधिकतम प्रभाव प्राप्त करने के लिए प्रभावी कार्यान्वयन और वास्तविक समय की निगरानी, मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए उपयोग में बेहद आसान वेब और मोबाइल इंटरफेस प्रदान करता है। हमारी तकनीक मोबाइल डेटा संग्रह, परियोजना निगरानी और ट्रैकिंग, विश्लेषण और अंतर्दृष्टि और स्वतः जेनरेट की गई अनुकूलित रिपोर्ट तैयार करती है जो पूरी प्रक्रिया में बहु-हितधारक भागीदारी को सुनिश्चित करती है।'
ब्रिज इंपैक्ट मुख्यतः तीन चरणों में काम करता हैः
कार्यान्वयन-पूर्वः इसमें उच्च सामाजिक परिवर्तन वाली परियोजनाओं के लिए कार्यान्वयन भागीदारों को चयनित करना शामिल है। यह परियोजना के जीवन चक्र में निगरानी रखने के लिए सभी संकेतकों और मीट्रिक को मानचित्रित भी करता है।
निगरानी और मूल्यांकनः यहां पर, मंच परियोजना कार्यान्वयन चरण के दौरान एकीकृत किया गया है, जहां कार्यान्वयन टीम रिमोट स्थानों से जमीनी स्तर पर रियल डाटा को इकट्ठा करते हुए उसतक पहुंच बनाना संभव करती है।
रिपोर्टिंग और प्रभाव विश्लेषणः इसके जरिये वे परियोजना पूरी होने के बाद सामाजिक भागीदारी द्वारा किए गए परिवर्तनों का विश्लेषण करने के लिए एक विशेष प्रभाव तंत्र का उपयोग कर सकते हैं।
उद्योग का पारिस्थितिकी तंत्र और ब्रिज इंपैक्ट
सीएसआर कार्यक्रम कॉर्पोरेट और एनजीओ के मध्य एक मजबूत साझेदारी के माध्यम से लागू किए जाते हैं। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने रिपोर्ट दी है कि कंपनियों ने वित्त वर्ष 2017 में सीएसआर गतिविधियों पर 28,111.63 करोड़ रुपये खर्च किए थे। अनिवार्य सीएसआर कार्यान्वयन के अपने पहले दो वर्षों में, कंपनियां ज्यादातर अनुपालन भाग पर केंद्रित थीं। अब अनिवार्य सीएसआर के चैथे वर्ष में कदम रखने के साथ, कंपनियों का दृष्टिकोण सीएसआर कार्यक्रम सिर्फ अनुपालन के बजाय उसके वास्तविक प्रभाव की ओर स्थानांतरित हो गया है।
विभिन्न कंपनियां अब अपने प्रयासों के दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए आकलन अध्ययन करते हुए यह सुनिश्चित कर रही हैं कि जिस धन का वे निवेश कर रहे हैं वह बेहतर तरीके से उपयोग किया जा रहा है या नहीं। हालांकि, एसआरओआई (निवेश पर सामाजिक रिटर्न) की गणना करने के लिए उनके पास अभी भी कौशल और विशेषज्ञता की भारी कमी है।
वर्तमान में, भारत में करीब 30 लाख एनजीओ हैं, जिनमें से कई ने सीएसआर कार्यक्रमों को लागू करने के लिए विभिन्न कॉर्पोरेट्स के साथ भागीदारी की हुई है। 2018 के एपिक आउटलुक रिसर्च ने 4,000 एनजीओ का सर्वेक्षण किया था, जिसमें सामने आया कि उनमें से 31 प्रतिशत में बुनियादी ढांचे के साथ निगरानी और मूल्यांकन तकनीकों के तकनीकी ज्ञान की बेहद कमी है।
भविष्य का सफर
अस्तित्व में आने के एक वर्ष के ही भीतर ब्रिज इंपैक्ट ने विभिन्न संगठनों को उनके सामाजिक लक्ष्यों को पाने में मदद करने के लिये कई कर्मचारी आधारित कार्यक्रम तैयार और क्रियान्वित किये हैं। यह कुछ कंपनियों के लिये भी काम कर रहे हैं लेकिन उनके विवरण को बिल्कुल गुप्त रखा गया है। अपने बिजनेस मॉडल के तहत ये अपने व्यवसायिक मॉडल मंच का इस्तेमाल करने के बदले कंपनियों से एक वार्षिक शुल्क वसूलते हैं।
सोनल का दावा है कि ब्रिज इंपैक्ट ने लड़कियों के बीच बाल शिक्षा को बढ़ाने के लिए गर्ल स्कूलों को ‘शैक्षणिक उत्कृष्टता के केंद्र’ में बदलने के लिए राजस्थान सरकार के साथ करार किया है। इस कार्यक्रम में लड़कियों और उनके वर्ग के समग्र विकास के साथ नियमित उपचार कार्यक्रमों, करियर परामर्श, कॉलेज में प्रवेश भी शामिल हैं। इन्होंने नोएडा में एक एफएंडबी उपभोक्ता के लिए ‘विकलांगता कौशल परियोजना’ और एक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांड के लिए ‘लाइवलीहुड स्किल ट्रेनिंग प्रोजेक्ट’ भी तैयार किया है।
ब्रिज इंपैक्ट को प्रमुख रूप से तीन प्र्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है - कार्य के प्रमाण को बनाए रखने में स्पष्टता की कमी, सर्वजन की ओर देख रहे एजनीओ और एनजीओ के सामने आने वाली दिक्कतों से पूरी तरह बेखबर कॉर्पोरेट्स। सोनल आगे कहती हैं कि किसी भी छोटे सा बड़े संस्थान को उनके कार्यक्रमों के लिये तकनीक खरीदने को राजी करना अपने आप में बेहद चुनौतीपूर्ण काम है।
वे बताती हैं, 'किसी भी व्यवसायिक उपभोक्ता को मनाने का प्रारंभिक चरण काफी कठिन होता है लेकिन एक बार वे हमारे साथ जुड़ जाते हें और डिजिटल समाधान द्वारा किये गए प्रभावों से दो-चार होते हैं, तो हमारे तमाम प्रयास और संघर्ष सफल हो जाते हैं। एक बार पोर्टफोलियो तैयार होने और एनजीओ को दानदाता मिल जाने के बाद किसी भी विशेष कार्यक्रम में शामिल सभी प्रमुख भागीदारों, दोनों के लिये फायदे की स्थिति होती है।' बिग इंपैक्ट की प्रतिस्पर्धा लेट्सनर्चर जैसी कंपनियों के साथ है जो एनजीओ के लिये प्रौद्योगिकी का निर्माण करती हैं।
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