पार्टनर यदि करता है हैरेस, तो ये प्यार नहीं अपराध है
एक मजबूत, आत्मनिर्भर औरत, जिसकी अपनी एक सोशल लाइफ है, वो क्यों सालों-साल घरेलू हिंसा पर चुप रहती है? एक औरत जो पैसों के लिए अपने पति का मुंह नहीं ताकती, वो क्यों कई सालों तक उसकी हैरेसमेंट झेलती है? जानने के लिए पढ़ें पूरी स्टोरी...
समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है, लोगों के रहन-सहन से लेकर खान-पान तक, पहनावों से लेकर सोच तक और इन्हीं सबके बीच घरेलू हैरेसमेंट और दबाव की इंटेंसिटी भी थोड़ी कम हुई है, लेकिन फिर भी घरेलू हिंसा के ग्राफ का स्तर जस का तस बना हुआ है। ऐसा क्यों?
निगेला लॉसन की घटना सिर्फ एक उदाहरण है। न जाने कितनी समर्थ औरतें अभी भी डॉमेस्टिक हैरेसमेंट झेल रही हैं। वो कौन-सी वजह है, जिसके जो चलते औरतें एक घातक रिश्ते को भी बचाकर रखना चाहती हैं।
निगेला लॉसन, लंदन की एक मशहूर शेफ और टीवी जर्नलिस्ट। 2003 में एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें निगेला के पति चार्ल्स साची उनका गला दबा रहे हैं। इस घटना के बाद निगेला ने साची से तलाक ले लिया, लेकिन बाद में निगेला ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनका साची से अलग होने का फैसला केवल उस दिन के दुर्व्यवहार की वजह से ही नहीं था। निगेला और साची की शादी 10 साल पुरानी थी। निगेला ने ये बात मानी कि साची अक्सर उनको हैरेस करता था।
ये बात उस तस्वीर (जो 2003 में सामने आई थी) से भी ज्यादा चौंकाने और डराने वाली है, कि एक मजबूत, आत्म-निर्भर औरत जिसकी एक पब्लिक लाइफ भी है, वो इतने सालों तक घरेलू हिंसा पर चुप रही। एक औरत जो पैसों के लिए अपने पति का मुंह नहीं ताकती थी, वो औरत दस सालों तक हैरेसमेंट झेलती रही।
निगेला लॉसन की वो तस्वीर, जो 2003 में सामने आई थी। इस तस्वीर में उनके पति चार्ल्स साची उनका गला दबा रहे हैं।a12bc34de56fgmedium"/>
"हमारे समाज में आमतौर से महिलाओं पर परिवार को बचाकर रखने और जोड़कर रखने का पूरा दवाब होता है। शादी होती है तो औरतों के करियर की प्राथमिकता उसके घरवाले डिसाइड करते हैं। उसकी सैलरी को कहां कैस खर्च करना है, इस पर भी उसके ससुरालवालों की कड़ी निगरानी रहती है।"
जब बच्चा पैदा होता है तो उसकी परवरिश की जिम्मेदारी के लिए घर में सबका चेहरा उसकी मां की ओर घूम जाता है। औरत से उम्मीद की जाती है कि बच्चों को संभालने का पूरा भार वो ही उठाए और इन सब तमाम उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए औरत पर हर तरह का दवाब बनाया जाता है। अगर ये मानसिक और भावनात्मक दवाब पूरा असर पैदा नहीं कर पाता, तो उसको फिजिकल हैरेस किया जाता है।नये सच है कि वक्त बदल रहा है, साथ ही लोगों की सोच भी। घरेलू हैरेसमेंट और दबाव की इंटेंसिटी थोड़ी कम हुई है, लेकिन फिर भी घरेलू हिंसा का ग्राफ का स्तर जस का तस बना हुआ है।
हर घंटे होते हैं घरेलू हिंसा के 10 मामले
मॉडर्न लाइफस्टाइल में हैरेसमेंट के तरीके भी बदल गये हैं, लेकिन हैरेसमेंट होता है ये सच्चाई नहीं बदली है। 2015 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक पति और ससुरालवालों द्वारा औरतों को परेशान करने के पिछले दस सालों में 9 लाख से भी ज्यादा केस दर्ज किये गये हैं। मतलब हर घंटे तकरीबन दस मामले, जिनमें औरतों को उनके घर वालों ने ही हैरेस किया। ये मामले इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 498-ए के अंतर्गत दर्ज किए गए थे। ये तो वे मामले हैं जो संज्ञान में आए हैं, इनके अलावा ऐसी न जाने कितनी कहानियां, कितने मामले, कितने सच हैं, जो घर की दीवारों के भीतर कैद होकर रह जाते हैं। न तो उन्हें बाहर निकलने का मौका मिलता है और न ही सांस लेने का और एक दिन आता है कि वो उसी अंधेरे कमरे में दम तोड़ देते हैं।
औरत क्यों बाहर नहीं आ पाती है ऐसे संबंधों से?
इस तरह के रिश्तों से बाहर न आ पाने की कई सारी वजहें हो सकती हैं, कभी परिवार, कभी बच्चे और कभी झूठी मोहब्बत के खतरनाक दावे। लेकिन सबसे ज्यादा बढ़ावा औरतों को त्याग और सहनशीलता की मूर्ती बनाकर दिखाने वाली हमारी परंपराओं दिया है। बचपन से ही लड़की के दिमाग में इतनी सारी बातें भर दी जाती हैं, कि वो बड़े होते तक बरदाश्त करना अपनी आदतों में शुमार कर लेती है और तब तक बरदाश्त करती है, जब तक अत्याचार की इंतेहा नहीं हो जाती। वो इसी कोशिश में रहती है, कि किसी तरह उसका परिवार बचा रहे।
"कई केसिज़ में ऐसा भी होता है कि बचपन से ही लड़कियों को मारा-पीटा जाता है। उन्हें ऐसा बना दिया जाता है, कि उनको हिंसा नॉर्मल लगने लगती है। उन्हें लगता है कि उनके साथ जो भी हो रहा है वो उन्हीं की गलती है। एक किस्म का अपराधबोध बचपन से ही उनके दिमाग में भर दिया जाता है। ऐसे में वे शादी के बाद होने वाली हैरेसमेंट को जिंदगी का हिस्सा मान बैठती हैं।"
हमेशा से ही फैंटेसी बना दी गई है, कि एक बुरा लड़का और एक भली लड़की की जोड़ी बहुत प्यारी लगती है। फिल्मों में, कहानियों में ऐसा ही कथानक होता है। लड़की सोचती है, कि वो अपने प्यार और अपनेपन से लड़के के जंगलीपन को दूर कर देगी। लेकिन फैंटेसी और असल जिंदगी में फर्क होता है। जब तक ये बात औरत को समझ आती है वो काफी तकलीफ झेल चुकी होती है।
बहुत आम-सी बात है एक औरत का पति के पैसों पर निर्भर रहना (हालांकि समय ने इस गणित को बदला है और औरत आत्मनिर्भर हुई है, लेकिन उसका प्रतिशत छोटे शहरों में मैट्रो सीटीज़ की अपेक्षा काफी कम है और गांवों में छोटे शहरों की अपेक्षा बहुत ही कम)। ऐसा टेंडेंसी है कि जो इंसान घर चलाने के लिए पैसे देता है, वो सबसे ऊपर होता है। एक तो पैसे का गुरूर, दूजा पुरुष होने का अभिमान। ये दोनों वजहें मिलकर एक भयानक सोच बन जाती हैं, जिसकी वजह से मर्द अपनी पत्नी को गुलाम समझने लगता है और जैसा जी चाहे बर्ताव करने लगता है।
कैसे रोकी जाये घरेलू हिंसा?
सबसे बेसिक जरूरत है, लड़कियों का अपने पैरों पर खड़े होना। जब वो पैसों के लिए किसी और का मुंह नहीं तकती है, तो काफी चीजों में सुधार आता है। लेकिन निगेला जैसी तमाम कामकाजी और आत्मनिर्भर औरतें भी अगर घरेलू हिंसा झेलती आई हैं, झेल रही हैं और शायद आगे भी झेलती रहेंगी, तो इसके पीछे उनकी वो सोच जिम्मेदार है जो मर्द को औरत से ऊपर मानती है। इसके निदान के लिए जरूरी है कि अपनी बेटियों, बहनों, दोस्तों को ये समझाएं कि हर इंसान को सम्मान से जीने का बराबर हक है और रिश्ता कोई भी हो वो आपसी समझ से बनता है। कोई एक इंसान दो लोगों के रिश्ते को अपने कंधे पर उठाकर नहीं चल सकता है, साथ ही अाने वाली चुनौतियों का डर कर नहीं डट कर सामना करें। अपने अधिकारों के बारे में जानें।
अपने कानूनी अधिकारों को जानने के लिए इस स्टोरी पर जायें...
वे कानूनी अधिकार जिनकी जानकारी होनी है बेहद ज़रूरी
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