बी.टेक की डिग्री डाल दी डस्टबीन में, बच्चों को पेंटिंग सिखा कर कमा रही हैं लाखों रुपये महीना
डिग्री से इंजीनियर लेकिन पेशे से आर्टिस्ट...
ज़रूरी नहीं कि हर बार कमाई का जरिया डिग्रियां ही हों, कुछ शौक भी ऐसे होते हैं जो ज़िंदगी को संवारने और उन्हें बेहतर तरीके से जीने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसा ही शौक है लखनऊ की कल्याणी पाठक को। कल्याणी वैसे तो लखनऊ की रहने वाली हैं, लेकिन आजकल बैंगलोर में अपनी कला के रंग नन्हें-नन्हें हाथों में भर रही हैं। कल्याणी के लिए आसान नहीं था मां-पिता की मेहनत को एक पल में दरकिनार कर अपने सपनों को पंख देना, लेकिन उन्होंने कर दिखाया तो सिर्फ अपने सपनों के बल पर...
मां-बाप ने बी.टेक की डिग्री तो दिलवाई थी कि बेटी किसी आईटी कंपनी में नौकरी करे, लेकिन बेटी का दिल तो रंगों की दुनियां में तितलियां पकड़ रहा था।
हम सिर्फ कहने के लिए कह देते हैं, कि डिग्रियों को कूड़ेदान में डाल दो जब किसी काम की नहीं, लेकिन कल्याणी पाठक ने अपनी काम की डिग्रियों को भी कूड़ेदान में सिर्फ इसलिए डाल दिया ताकि फिर कभी लोग उन्हें इंजीनियर बनने को न कहें। कल्याणी डिग्री से इंजीनियर हैं, लेकिन प्रोफेशन से आर्टिस्ट वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें रंगों से प्यार है।
सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती है ये बात, लेकिन है सच। लखनऊ की कल्याणी पाठक ने बच्चों को ड्रॉइंग-पेंटिंग सिखाने के लिए अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री को डस्टबीन में डाल दिया। कल्याणी को बचपन से ही बच्चों और रंगों से प्यार था। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पली-बढ़ी कल्याणी एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। हमारे देश में अधिकतर परिवार आज भी लड़कियों को पढ़ाते इसलिए नहीं हैं कि वो पढ़-लिख कर डॉक्टर या इंजीनियर बन जायेंगी, बल्कि इसलिए पढ़ाते हैं कि शादी किसी डॉक्टर या इंजीनियर से हो जायेगी। कल्याणी के परिवार में भी कुछ ऐसा ही था। उनके परिवार वालों ने भी उन्हें इंजीनियरिंग इसीलिए करवाई कि बेटी की शादी किसी इंजीनियर से हो जाये और शादी इंजीनियर से हो भी गई।
वैसे तो कल्याणी ने बचपन में संगीत की भी शिक्षा ली है, लेकिन बड़े होने पर मां-बाप की इच्छा के चलते उन्हें इंजीनियरिंग करनी पड़ी। कल्याणी ने बी.टेक की डिग्री ले तो ली, लेकिन उन्हें हमेशा से पता था कि ये काम उनके लिए नहीं है और न ही वो कभी इंजीनियर बनना चाहती थीं।
शादी के बाद कल्याणी दिल्ली, नोएडा, हैदराबाद, होते हुए बेंगलुरू पहुंच गईं। खाली समय में उनके पास करने के लिए कुछ नहीं होता था। सभी ने कहा कि किसी आईटी कंपनी में नौकरी कर लो, लेकिन कल्याणी चाहती थीं कुछ ऐसा करना जिसे करने में उन्हें मज़ा आये न कि 10 से 5 वाली कोई नौकरी। वो किसी की नौकरी नहीं करना चाहती थीं और लॉस के डर से उनमें ऐसा कोई बिज़नेस खड़ा करने की भी हिम्मत नहीं थी, जिसमें आमदनी लाखों हो। फिर ऐसे में उनके सामने सबसे बेहतरीन विकल्प था कि क्यों न अपने सोये हुए बचपन के शौक को फिर से जगाया जाये। उन्होंने शुरू कर दी आसपास के बच्चों की ड्रॉइंग क्लास लेनी और Any Body Can Be Artist नाम से एक ड्रॉइंग स्कूल खोल दिया।
कल्याणी कहती हैं, "मुझे बहुत अच्छा लगता है, जब मेरे सिखाये हुए बच्चे लाजवाब पेंटिंग्स बना कर बड़ों-बड़ों को अचरज में डाल देते हैं। उन बच्चों के मां-बाप के चेहरे की खुशी मैं महसूस कर पाती हूं। नन्हें हाथों में पेंटब्रश कितने अच्छे लगते हैं। मेरे पास 2.5 साल से लेकर 55 साल तक के लोग पेंटिंग सीखने आते हैं और सभी इतनी शिद्दत इतनी लगन से अपना काम करते हैं, मानों उन्हें कोरे कागज़ पर रंग भरने में कितना मज़ा आ रहा हो।"
क्लयाणी की पेंटिंग की सबसे खास बात ये है, कि वो अपने स्टूडेंट्स को सिर्फ एक तरह की ही पेंटिंग नहीं सिखाती हैं, बल्कि हर तरह से उन्हें परिपक्व बनाती हैं, फिर चाहें स्कैचिंग हो, अॉइल पेंटिंग हो, वॉटर कलर हो या फइर क्रेयॉन्स हों। उनका स्टूडेंट छोटा हो या बड़ा, सभी को वो फलों में रंग भरने से शुरुआत नहीं करवातीं, बल्कि सबसे पहले पेंसिल पकड़ना सिखाती हैं। शेड करना बताती हैं उसके बात रंगों तक पहुंचती हैं।
आमतौर पर देखा गया है, कि अधिकतर ड्रॉइंग स्कूल और टीचर्स बच्चों या बड़ों को अपनी सुविधानुसार ड्राइंग सिखाते हैं। लेकिन कल्याणी के साथ ऐसा नहीं, वो उसी तरह सिखाती हैं जो कि सही मायने में सीखना चाहिए।
पढ़ें: सीखेंगे! सिखाएंगे! कमाएंगे!
कल्याणी आठ सालों से ड्राइंग की क्लासिज़ ले रही हैं। ये शुरुआत उन्होंने हैदराबाद से की थी। इन दिनों बेंगलुरु में रहती हैं और कई हाउसिंग सोसाईटीज़ में अपनी सुविधा प्रदान कर रही हैं। अपने शुरुआती दिनों में कल्याणी सिर्फ वीकेंड्स पर ही क्लासिज़ लेती थीं, लेकिन बच्चों की संख्या इतनी बढ़ गई कि उन्हें वीकडेज़ में भी अपनी क्लासिज़ शुरू करनी पड़ीं। आज की तारीख में कल्याणी के पास लगभग 100 के आसपास स्टूडेंट्स हैं।
बच्चों को सिखाने के साथ-साथ कल्याणी उन महिलाओं को भी सिखाती हैं जो सारा दिन घर में रहती हैं, ताकि वे भी अपने समय का सदुपयोग कर सकें। अपनी ड्रॉइंग कि क्लासिज़ से कल्याणी लाखों रुपये महीना कमाती हैं और अपने ज़रूरी खर्चों के लिए किसी पर निर्भर न रह कर घर की जिम्मेदारियों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं।
पढ़ें: मर्दों की दुनिया में एक मंज़िल
कल्याणी कहती हैं, "अपना काम करते हुए मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है। मैं उस शहर से आती हूं, जहां लोग पटर-पटर अंग्रेजी नहीं बोलते। बैंगलोर में आकर मुझे लगा कि यहां कोई भी काम शुरु करने से पहले ज़रूरी है कि आपको खूब अच्छी इंग्लिश आती हो, तभी आप लोगों से जुड़ सकते हैं। शुरू में सोचा यहां क्लासिज़ न शुरू करूं, लेकिन फिर लगा कि कर देती हूं। मुझे मेरे काम से पहचान मिलनी चाहिए न कि मैं कौन-सी भाषा बोलती हूं उससे। काम शुरू करने के बाद इतने स्टूडेंट्स आये मेरे पास, कि मुझे लगने लगा कि सचमुच ही काम बोलता है, हिन्दी या अंग्रेजी नहीं। मेरे पास कई ऐसे बच्चे भी आते हैं, जो पूरी तरह से कन्नड़ हैं, लेकिन उनकी मम्मियां जब कहती हैं, कि कल्याणी आप ड्रॉइंग सिखाने के साथ-साथ हमारे बच्चे को हिन्दी भी सिखा रही हैं। वो मुझे थैंक्स कहती हैं, तो मुझे दिल से खुशी होती है।"
कल्याणी बहुत ही साफ दिल की महिला हैं। वो अपने दिल में आने वाली हर बात को शब्द देने से नहीं कतरातीं। वो कहती हैं, "अंग्रेजों की तरह अंग्रेजी बोलनी नहीं आती तो उसमें शर्म कैसी। मैं उसी भाषा में बात करूं जो मेरे दिल के करीब है, फिर मैं चाहे बेंगलुरु में रहूं या बैंगकॉक में।" कल्याणी के पास दो बच्चे हैं। वो अपने दोनों बच्चों को भी साथ-साथ पेंटिंग और संगीत की शिक्षा दे रही हैं। भविष्य में कल्याणी एक स्कूल खोलना चाहती हैं, जहां बच्चों को सिर्फ ड्रॉइंग-पेंटिंग और म्यूज़िक सिखाया जाये।
पढ़ें: सदी के महानायक ने पेश किया सदी का सबसे महान उदाहरण
वीकेंड्स पर कल्याणी गरीब इलाकों में जाकर बच्चों को मुफ्त ड्रॉइंग और पेंटिंग सिखाती हैं। वो कहती हैं, "बहुत ज़रूरी है, पैसा कमाने के साथ-साथ मन का सुकून। मैं हर रविवार और शनिवार स्लम या अनाथ आश्रण बच्चों को रंगों की दुनिया में ले जाती हूं। उन हाथों में ब्रश पकड़ाती हूं, जो कूड़ा उठाते हैं, दुकानों पर काम करते हैं, सिग्नल पर गाड़ियां साफ करते हैं। मुझे दिल से अच्छा लगता है इनके साथ वक्त गुज़ारना और साथ ही मैं अपने बच्चों को भी ले जाती हूं। मेरे बच्चे इसीलिए हर वर्ग के बच्चों के साथ घुल-मिल जाते हैं। वो स्लम के बच्चों को ड्रॉइंग सिखाने में मेरी मदद करते हैं।" कल्याणी महीने में एक बार ज़रूरतमंद बच्चों को कलर और किताबें देती हैं। अपने इस काम को वो किसी एनजीओ के तहत नहीं करतीं। उनका मानना है, कि किसी भी सोशल काम को करने के लिए आपको एनजीओ खोलने की ज़रूरत नहीं और न ही किसी एनजीओ से जुड़कर कोई काम करने की आवश्यकता है, बल्कि यदि कुछ करना है, तो अकेले घर से निकल पड़ना चाहिए।
कल्याणी कहती हैं, कि लोगों के दिमाग में ये कीड़ा बैठा है कि यदि आप इंजीनियर या डॉक्टर होंगे तभी लोगों की नज़रों में बड़े बनेंगे, जबकि आज जब हर तरह के लोगों का प्यार पाती हूं तो सोचती हूं, अच्छा किया इंजीनियरिंग की डिग्री को डस्टबीन में डाल दिया। कल्याणी को कई आईटी कंपनियों से नौकरी के अॉफर भी मिले लेकिन उन्होंने उन अॉफर्स को ठुकरा दिया, सिर्फ इसलिए कि उनका क्या होगा, जिनकी नन्हीं उंगलियां उन्हें हर दिन जीने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।