मर्दों की दुनिया में एक मंज़िल
अपराधी उनके नाम से कांपते हैं। जब वो अपने मिशन पर निकलती हैं, तो उनके लिए नामुमकिन कुछ नहीं होता। जी, यहां बात हो रही है उत्तर प्रदेश लखनऊ की पहली महिला एसएसपी मंज़िल सैनी के बारे में। योरस्टोरी ने की मंज़िल से एक ख़ास मुलाकात, जहां उन्होंने अपनी ज़िंदगी के हर रंग के बारे में चर्चा की। कहीं उदास हुईं, तो कहीं मुस्कुराईं। आईये नज़र डालें उनके खट्टे-मीठे पलों पर...
"पुरूषों की बनाई हुई इस दुनिया में यदि कोई औरत बहादुरी से कुछ करने की कोशिश करती है, तो उसे या तो दबा दिया जाता है या फिर उसे खतम करने की कोशिश की जाती है। ऐसे में बहुत मुश्किल हो जाता है आगे बढ़ते हुए खुद की पहचान को कायम रख पाना, लेकिन मंज़िल सैनी एक ऐसा नाम है, जिन्होंने अपनी पहचान को बनाये रखने के साथ-साथ अपनी मां, अपने पति और अपने बच्चों का सिर भी फ़क्र से ऊंचा किया है। इन दिनों मंज़िल लखनऊ की एसएसपी हैं और साथ ही लखनऊ की पहली महिला एसएसपी भी।"
"मंज़िल सैनी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की पहली महिला एसएसपी हैं। अपने तेज़ तर्रार वर्किंग स्टाईल के चलते ही लोग उन्हें लेडी सिंघम भी कहते हैं। मंज़िल सिर्फ गुनाह और गुनाहगार को जानती हैं। गुनाह करने वाला कितना बड़ा व्यक्ति हैं, कितने पैसे वाला है इन सब बातों से उन्हें कोई मतलब नहीं।"
मंज़िल सैनी का जन्म 19 सितंबर 1975 को दिल्ली में हुआ था। अपनी शुरुआती पढ़ाई इन्होंने दिल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से की और उसके बाद दिल्ली कॉलेज ऑफ इकोनॉमिक्स में गोल्ड मेडलिस्ट हुईं। मंज़िल 2005 बैच की आईपीएस ऑफिसर हैं। लखनऊ एसएसपी से पहले ये उत्तर प्रदेश के बंदायू, मुजफ्फरनगर, इटावा, मथुरा समेत आधा दर्जन से भी ज्यादा जनपदों में कार्यरत रही हैं। ये आज़ादी के बाद से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर पहली महिला अफसर तैनात हुई हैं। लेडी सिंघम के नाम से मशहूर मंज़िल सैनी पुलिस के तेज़-तर्रार अधिकारियों में गिनी जाती हैं। जनपद इटावा में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात मंजिल सैनी को कुछ महीने पहले ही लखनऊ की एसएसपी बनाया गया है।"
भारतीय संविधान के अनुसार, पुरुषों की तरह सभी क्षेत्रों में महिलाओं को बराबर अधिकार देने के लिये कानून मौजूद है, लेकिन कई दफा उसे (औरत को) अपनी बराबरी के लिए लड़ना पड़ता है। किसी महापुरुष ने बिल्कुल सही कहा है, कि देश को जगाने के लिये, औरत का जागृत होना बेहद ज़रुरी है और उसका जागृत होना तभी संभव है, जब वह आत्मनिर्भर और बहादुर हो। औरत यदि ताकतवर होती है, तो अपने साथ-साथ वो एक मजबूत परिवार, मजबूत गाँव, मजबूत शहर और मजबूत राष्ट्र का निर्माण करती है, साथ ही अपने आसपास की तमाम लड़कियों और महिलाओं को मजबूती से जीने और आगे बढ़ने की ताकत भी देती है। लखनऊ की पहली महिला एसएसपी मंज़िल सैनी इसी बहादुरी और मजबूती का बोजेड़ उदाहरण हैं। मंज़िल कहती हैं, "किसी भी औरत के लिए आसान तो नहीं होता है यहां तक पहुंच जाना, लेकिन यदि परिवार का सपोर्ट और प्यार हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं।"
मंज़िल की माँ रानी सैनी कहती हैं, कि "मैंने तो अपनी बेटी को वैसे ही पाला जैसे सब माँऐं पालती हैं, लेकिन नजाने कैसे ये इतनी काबिल और बहादुर निकल गई। ये कुछ अलग करेगी, मैं हमेशा से जानती थी, लेकिन कुछ ऐसा करेगी जिस पर मैं गर्व मनाऊं ये इसे इस तरह देखने के बाद ही मालूम चला।" मंज़िल बचपन से ही पढ़ाई में अच्छी थीं। उनकी मां के अनुसार वो सारा दिन किताबों में खोई रहती थीं। जब समय मिलता था, किताबें उठा लेतीं। कोर्स से थोड़ा मन ऊबा तो कोई उपन्यास कोई कहानी, लेकिन किताबें हमेशा से मंज़िल की सबसे अच्छी और करीबी दोस्त रहीं। न किसी से लड़ाई करती थीं, न झगड़ा। स्कूल से लेकर कॉलेज तक हमेशा टीचर्स की फेवरेट रहीं। जिस काम को करना चाहा, उसे पूरा करके ही दम लेना मंज़िल की पुरानी आदत है।
कुछ साल पहले हुए किडनी रैकिट से मंज़िल चर्चा में आई थीं। मंज़िल कहती हैं, कि "मैं यहां देश की सेवा करने के लिए बैठी हूं। अपराधी को पकड़ना मेरा काम है, फिर उसका घराना चाहे जो भी हो," इसीलिए सिर्फ एक मजदूर की शिकायत पर मंज़िल अपने दफ्तर से निकल कर हॉस्पिटल पहुंच गईं थीं, वहां जाकर मालूम चला की किडनी तस्करी के तार बहुत लंबे फैले हैं। मंज़िल ने खोज-खोज कर अपराधियों को निकाला और सबक सिखाया।
"शादी के बाद औरत का एक नया जीवन शुरू होता है और वो जीवन है घर-गृहस्थी और बच्चों को संभालना, लेकिन पति यदि जसपाल दहल जैसे हों, तो वह घर-गृहस्थी को संभालने के साथ-साथ आईपीएस की परीक्षा फर्स्ट अटैंप्ट में क्लियर कर सकती है।"
मंज़िल और जसपाल दहल कॉलेज के दिनों के दोस्त हैं और चूंकि मोहब्बत दोनों में बेपनाह थी, इसलिए इन्होंने 9 मार्च 2000 में अपने संबंधों को शादी में बदल दिया। मंज़िल ने शादी के बाद कॉम्पटिशन की तैयारी की और फर्स्ट अटैंप्ट में ही आईपीएस की परीक्षा पास कर ली, जिसकी सबसे बड़ी वजह जसपाल हैं। जसपाल के साथ, प्यार और भरोसे ने ही मंज़िल को उनकी मंज़िल तक पहुंचाया। मंज़िल और जसपाल के दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं। जसपाल नोएडा में बच्चों के साथ रहते हैं, लेकिन मंज़िल देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए लखनऊ में रहती हैं। मंज़िल कहती हैं, "बच्चों के बिना इतनी दूर रहना आसान तो नहीं है, लेकिन अपने देश के लिए मेरे कुछ कमिटमेंट्स हैं, जिन्हें पूरा करना ज़रूरी है। हर दिन बच्चों से वीडियो चैट करती हूं और कोशिश करती हूं, कि जल्दी-जल्दी मिलती रहा करूं।"
आसान नहीं होता एक मां का इस तरह बच्चों से दूर रह पाना, लेकिन देश के लिए इतना बड़ा कदम मंज़िल जैसी माँ ही उठा सकती हैं और यह काफी हद तक मुमकिन हो पाया है जसपाल की वजह से। जसपाल एक आदर्श पति होने के साथ-साथ आदर्श पिता भी हैं, जो बच्चों के पिता और मां दोनों के हिस्से की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। जसपाल का दिल्ली में अपना टेक्सटाईल का बिज़नेस है। अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद वह अपना अधिकतर समय बच्चों के साथ ही बिताते हैं। उनसे बातें करते हैं, खेलते हैं, बाहर घूमाने ले जाते हैं। बच्चे भी अपनी मां को इतने बड़े ओहदे पर देखकर गौरवान्वित होते हैं। मंज़िल जसपाल को प्यार से महादेव बुलाती हैं।
"पहले अपने आप से जीतना ज़रूरी है, उसके बाद सारी दुनिया से जीतना आसान हो जाता है: मंज़िल सैनी"
वैसे तो मंज़िल एक मजबूत महिला हैं, लेकिन उनकी ज़िंदगी में भी कुछ ऐसे पल आये हैं, जब वे अपने आंसुओं को रोक नहीं पाईं। एक घटना के बारे में बात करते हुए मंज़िल कहती हैं, "एक मां होने के नाते बच्चों से जुड़ा कोई भी गुनाह मुझे भीतर तक हिला देता है। एक किडनैप बच्चे को उसकी मां को सौंपने के बाद जो सुकून मुझे मिला मैं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। मेरे लिए बेहद मुश्किल था उस पल अपने आंसुओं को रोकना। उस दिन मैंने अपने आप पर गर्व महसूस किया, कि हां मैं सचमुच बहुत अच्छा काम कर रही हूं। दुनिया में इससे खूबसूरत और पवित्र बात क्या होगी, कि एक मां अपने खोये हुए बच्चे से मिल जाये।" कुछ साल पहले की बात है, पांच साल के एक बच्चे को मंज़िल ने अपनी दिन-रात की मेहनत से ढूंढ कर उसकी मां के पास सही-सलामत पहुंचाया था। उस किस्से के बार में बात करते हुए मंज़िल इमोशनल हो जाती हैं।
महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों और अपराधियों के बारे में बात करते हुए मंज़िल कहती हैं, "मुझे अपराधियों से कभी सिम्पैथी नहीं होती, खासकर वे अपराधी जो बलात्कार या एसिड अटैक जैसे अपराध करके आते हैं। वे चाहे कितना भी रोएं-गिड़गिड़ाएं लेकिन जब उनके गुनाह मेरे सामने आ जाते हैं, तो मैं उन्हें माफ नहीं करती।" महिलाओं की सुरक्षा के लिए मंज़िल ने एनजीओज़ के साथ मिलकर कुछ प्रोग्राम्स भी शुरू किये हैं। आज कल के संबंधों और लड़कियों की सुरक्षा को लेकर मंज़िल का नज़रिया बिल्कुल साफ है, वो कहती हैं, "मैं मानती हूं, कि अपराध तेज़ी से बढ़ रहे हैं, लेकिन इन्हें कम करने के लिए लड़कियों को आगे आना होगा। सबसे पहले तो उन्हें बहादुर बनना पड़ेगा, साथ ही लोगों की पहचान करना सीखना होगा। लड़कियों को इस बात का ख़याल रखना बेहद ज़रूरी है, कि उन्हें किस रिश्ते में किस हद तक जाना है। ऐसा कोई काम न करें, कि उसे छुपाना पड़े।"
लड़कियों की आत्मनिर्भरता पर बात करते हुए मंज़िल कहती हैं, कि "वो काम करो, जो करने का दिल करे। डॉक्टर बनना है डॉक्टर बनो, इंजीनियर बनना है इंजीनियर बनो, पत्रकार, पुलिस जो बनना है वो बनो। ये कभी मत सोचो कि तुम ये नहीं कर सकती, वो नहीं कर सकती। ये सिर्फ लड़के करते हैं, ये लड़कियां करती हैं। आप कुछ भी कर सकती हैं। पहले अपने आप से जीतना ज़रूरी है, उसके बाद सारी दुनिया से जीतना आसान हो जाता है।"
"जो कभी किसी को अपना आदर्श मान कर किसी के जैसी बनना चाहती थीं, वे अब खुद लाखों-करोंड़ों लड़कियों की आदर्श हो चुकी हैं। नजाने कितनी लड़कियां मंज़िल को देखकर उनके जैसी बनना चाहती हैं और नजाने कितनी माँएें अपनी बेटियों को उनके जैसा बनाना चाहती हैं।"
मंज़िल सैनी किरण बेदी को हमेशा से अपना आदर्श मानती हैं। उनका कहना है, कि स्कूल के दिनों से उन्हें किरण बेदी को देखकर भीतर से कुछ उसी तरह का करने का दिल करता था। अपने स्कूल की किसी घटना का ज़िक्र करते हुए मंज़िल कहती हैं, कि "एक बार मेरे स्कूल में किरण बेदी आई हुईं थी। लड़कियों का उनके प्रति उत्साह और प्रेम मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं खुद भी उन्हें काफी पसंद करती थी। एक महिला का पुरुषों की तरह उठना, बैठना, बात करना और उनका सबकुछ मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे लगा कि मुझे भी कुछ ऐसा ही करना है।"
जो कभी किसी को अपना आदर्श मान कर किसी के जैसी बनना चाहती थीं, वे अब खुद लाखों-करोंड़ों लड़कियों की आदर्श हो चुकी हैं। नजाने कितनी लड़कियां मंज़िल को देखकर उनके जैसी बनना चाहती हैं। नजाने कितनी माँएें अपनी बेटियों को उनके जैसा बनाना चाहती हैं। वो जहां खड़ी होती हैं, सेल्फी और अॉटोग्राफ लेने वालों की भीड़ लग जाती है। लोग उन्हें एक सेलेब्रिटी की तरह लेते हैं। इस पर मंज़िल कहती हैं, कि "बहुत अच्छा लगता है, जब लोगों से आपको इतना प्यार मिलता है। ऐसे में मेरी खुद के प्रति ज़िम्मेदारियां और अधिक बढ़ जाती हैं। चूंकि मैं एक जिम्मेदार पद पर हूं और साथ ही एक औरत भी हूं, तो महिलाओं-लड़कियों की उम्मीदें पुरुषों की अपेक्षा मुझसे थोड़ी ज्यादा होती हैं। साथ ही ड्यूटी को गंभीरता और लगन से निभाना इसलिए भी ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि लोगों को लगता है, कि औरत शारीरिक तौर पर पुरुषों से कमज़ोर है। वो उस स्तर तक बहादुर नहीं हो सकती जिस स्तर तक कोई मर्द। ऐसे में मैं वो हर काम आगे बढ़ कर करना पसंद करती हूं, जिन्हें करने के लिए एक औरत को कई बार सोचना पड़े।"
खाली समय में मंज़िल गाने सुनना भी पसंद करती हैं और जब बच्चों के साथ होती हैं, तो कुकिंग करना उन्हें बहुत अच्छा लगता है। वे कहती हैं, "कुकिंग करने के लिए वैसे तो मैं यूट्यूब का सहारा लेती हूं, लेकिन बहुत अच्छा लगता है बच्चों के लिए रसोईं में खड़े होकर कुछ-कुछ बनाते रहना।"
ऊपर से लेडी सिंघम और दबंग छवि वाली मंज़िल सैनी भीतर से एक मां, एक पत्नी, एक बेटी और एक कोमल हृदय वाली औरत भी हैं। जानवरों से मंज़िल को ख़ासा मोहब्बत है। मंज़िल आज के समय में महिला सशक्तिकरण का एक जीवंत उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी, मेहनत, लगन और काबिलियत के बल पर सबकुछ पाया है। एक आदर्श नारी, जो स्वयं की पहचान और पद को निभाने के साथ-साथ परिवार, पति और बच्चों की ज़िम्मेदारियों को भी निभा रही हैं। ऐसे में मंज़िल सैनी को देश की बेटी कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।