बच्चों को पढ़ाने का नया तरीका: इस स्कूल को दिया गया 'तोत्तो चान' के स्कूल का लुक
क्लास को बनाया ट्रेन का डिब्बा, जिंदगी सीखने का दूसरा नाम
शिक्षाविद सोसाकु कोबायाशी द्वारा स्थापित उस स्कूल की खास बात ये थी कि वहां पढ़ाने के परंपरागत तौर-तरीकों से अलग स्वच्छंद वातावरण में बच्चों को शिक्षा दी जाती थी। स्कूल के क्लासरूम पुरानी ट्रेनों के जैसे बने थे, जो सीखने को एक यात्रा के रूप में प्रदर्शित करते थे। स्कूल में बच्चों पर किसी भी प्रकार की बंदिश नहीं थी।
आज के दौर में जब बच्चे मोटी-मोटी किताबों से दूर भागते हैं वहां उन्हें पढ़ाने और सीखने का यह तरीका बेहद पसंद आएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसी पहलें बच्चों में सकारात्मक बदलाव ला पाएंगी।
द्वितीय विश्व युद्ध में एक स्कूल था जिसे ध्वस्त कर दिया गया था। शिक्षाविद सोसाकु कोबायाशी द्वारा स्थापित उस स्कूल की खास बात ये थी कि वहां पढ़ाने के परंपरागत तौर-तरीकों से अलग स्वच्छंद वातावरण में बच्चों को शिक्षा दी जाती थी। स्कूल के क्लासरूम पुरानी ट्रेनों के जैसे बने थे, जो सीखने को एक यात्रा के रूप में प्रदर्शित करते थे। स्कूल में बच्चों पर किसी भी प्रकार की बंदिश नहीं थी। वे जब चाहें, जिस कक्षा में जाकर पढ़ सकते थे। उस स्कूल से प्रेरणा लेकर केरल के कोल्लम के स्कूल को ट्रेन के डिब्बों में परिवर्तित कर दिया है।
दरअसल जापान के उस अनोखे स्कूल में पढ़ने वाली एक विद्यार्थी तोत्सुकों कुरोयानगी ने एक बहुत ही मशहूर किताब 'तोत्तो चान' लिखी थी। यह किताब इतनी पसंद की गई कि इसे आज दुनियाभर के स्कूलों में पढ़ाया जाता है। इसी किताब से प्रेरित होकर केरलल के DVUPS स्कूल की दीवारों को ट्रेन के डिब्बों जैसा कर दिया गया है। सरकारी सहायता प्राप्त इस स्कूल के हेडमास्टर हेमनाथ ने बताया, 'यह कहानी हमारे इंग्लिश मीडियम के 5वीं क्लास की किताब का हिस्सा है। पिछले वार्षिकोत्सव के दौरान हमारे बच्चों ने इस पर एक नाटक किया था। यह कहानी इस विषय पर आधारित है कि अच्छे अध्यापक और अच्छे स्कूलों का स्वरूप कैसा होना चाहिए।'
इस नाटक को देखने के बाद स्कूल के अध्यापकों ने पैरेंट्स टीचर मीटिंग के दौरान यह प्रस्ताव रखा कि क्यों न स्कूल में 5 से 7वीं क्लास तक की दीवारों को ट्रेन के डिब्बों के जैसे पेंट कर दिया जाए। इस आइडिया पर विचार करने के बाद 6 आर्टिस्टों को क्लासरूम को पेंट करने में लगा दिया गया। उन्होंने दिन रात काम करते इसे पूरी तरह बदल दिया। अब ये कलाकृति 6 क्लासरूम तक बढ़ गई है। हेमनाथ ने बताया, 'हमारे यहां अपर प्राइमरी कक्षाओं में 145 स्टूडेंट्स हैं। इस उम्र में बच्चे बहुत कल्पनाशील होते हैं। इसलिए उनकी क्लासरूम कुछ इस तरह से होनी चाहिए कि वे ज्यादा से ज्यादा आनंद लेते हुए पढ़ाई कर सकें।'
द न्यूज मिनट के मुताबिक गर्मी की छुट्टियों के दौरान कई लोग स्कूल आए और नई दीवारों के साथ तस्वीरें खिचाईं। लेकिन अधिकतर बच्चों ने जब पहली बार अपनी कक्षाओं को देखा तो वे खुशी से झूम उठे। जापान में जो स्कूल था वो जपानीज ट्रेन पर बना था, लेकिन केरल के स्कूल को भारतीय रेल के डिब्बों जैसा पेंट किया गया है। हेडमास्टर ने बताया कि हालांकि ऐसा पहली बार हुआ है कि स्कूल की दीवारों को कलाकृति का रूप दे दिया गया है, लेकिन हर बार यहां के बच्चों के लिए कुछ न कुछ नया किया जाता है। बीते साल स्कूल में बांस का उपवन तैयार किया गया था जिसमें बच्चे अपना खाली समय बिताते थे।
हेमनाथ ने कहा, 'तोत्तो चान की कहानी एक ऐसे स्कूल के बारे में हे जहां टीचर और बच्चे प्रकृति से जुड़कर सीखने का प्रयास करते हैं। हमने भी उस प्रक्रिया को अपने यहां अपनाने की कोशिश की। हम अपने बच्चों को खेती किसानी के बारे में भी शिक्षा देते हैं। इसकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दूसरे स्कूलों में भी ऐसा करवाने की कोशिश की जा रही है।' आज के दौर में जब बच्चे मोटी-मोटी किताबों से दूर भागते हैं वहां उन्हें पढ़ाने और सीखने का यह तरीका बेहद पसंद आएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसी पहलें बच्चों में सकारात्मक बदलाव ला पाएंगी।
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