IIT दिल्ली में नीचे से तीसरे नंबर पर रहने वाला छात्र, आज है फोटोग्राफी का 'क्षितिज'
थ्री- इडियट्स में आमिर खान के किरदार को असल में जीते नज़र आते हैं क्षितिज...परंपरा से हटकर कुछ नया और दिलचस्प करने में रखते हैं विश्वास... काबिलियत और रूचि के अनुसार काम करने की सीख भी देते हैं ...नयी-नयी संभावनाएं तलाशना ही जीवन का मकसद
क्षितिज मारवाह, कुछ-कुछ फिल्म थ्री- इडियट्स में आमिर खान के किरदार की याद दिलाते हैं। उनकी कहानी किताबी ज्ञान से हटकर व्यक्ति की निजी रुचियों और प्रतिभाओं के मेल से हासिल हुई सफलता की कहानी है। क्षितिज प्रगतिशील विचारों व्यक्ति के तौर पर परंपरागत शिक्षा और करियर से हटकर वैकल्पिक रास्तों पर चलते हैं और एक मिसाल बन जाते हैं। वे आईआईटी से पढ़ चुके इंजीनियर हैं और फोटोग्राफी से उनका गहरा लगाव है। आईआईटी के औसत से भी कमतर छात्र से एम.आई.टी. मीडिया इंडिया इनिशिएटिव के हेड तक उनका सफर प्रेरणादायक है।
फिल्म थ्री-इडियट्स में आमिर खान आईआईटी जैसे ही एक सर्वोच्च इंजीनियरिंग कॉलेज से किसी और के नाम पर डिग्री लेते हैं लेकिन खुद बिना उस डिग्री का सहारा लिए विज्ञान में गहरी रुचि की वजह से बहुत बड़े वैज्ञानिक बन जाते हैं। फिल्म यही संदेश देती है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था सिर्फ किताबी ज्ञान को महत्व देती है लेकिन इसके रचनात्मक इस्तेमाल पर नहीं। जब व्यक्ति अपने भीतर छिपी प्रतिभा और पसंद को महत्व देता है तो सफलता के रास्ते पर चलने का मज़ा दोगुना हो जाता है। क्षितिज मारवाह की कहानी कुछ ऐसी ही है।
क्षितिज का रचनात्मक व्यक्तित्व औऱ उनकी तकनीकी तालीम उन्हें उनका पहला प्यार फोटोग्राफी की तरफ ले आई है। वे आजकल एम.आई.टी मिडिया लैब के एसोसिएट प्रॉफेसर रमेश रसकर के साथ कैमरा कल्चर ग्रुप में काम कर रहे हैं.. जो तकनीक और कला के मेल का अनोखा प्रयोग कर फोटोग्राफी में बेहतरीन सिंगल शॉट 3 डी हाई रिज़ोल्यूशन तस्वीर निकालना चाहता है।
वे कहते हैं कि फोटोग्राफी में उनके नए तकनीकी प्रयोग को स्पॉन्सर करने के लिए अमेरिका की सिलीकन वैली में कई कम्पनियां तैयार थीं लेकिन वे इसे भारत में ही सफल रूप देकर एक मिसाल कायम करना चाहते हैं और उन्हें इसके लिए दोगुनी रकम और उर्जा खर्च करनी पड़ी।
क्षितिज मारवाह खुद कहते हैं कि वे कॉलेज में एक औसत विद्यार्थी थे। आआईटी दिल्ली में जब उनका रिजल्ट आया तो वे नीचे से तीसरे नंबर पर थे। ऐसा इसलिए नहीं था कि वे पढ़ाई में अच्छे नहीं थे.. पर उनकी रुचि कॉलेज की किताबी पढ़ाई से बढ़कर कुछ और करने की थी। वे बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता को बताया कि एल्फाबेटिकल ऑर्डर में नाम लिखे जाने के कारण उनका नाम रिजल्ट की सूचि में सबसे नीचे है। क्षितिज के पिता आज भी सच्चाई नहीं जानते पर वे अपने बेटे की सफलता पर बहुत गर्व करते हैं।
क्षितिज ने अपने दिल की आवाज़ सुनकर आगे का रास्ता अपनी शर्तों पर तैयार किया। आई.आई.टी जैसे सर्वोच्च संस्थान में भी देश की शिक्षा प्रणाली के बोझिलपन और रचनात्मकता की कमी की छाप नज़र आती है। लेकिन इसे धता बताकर क्षितिज ने वह सब किया जो वह करना चाहते थे।
उनकी कहानी तब शुरू होती है जब आई.आई.टी में इंजीनियरिंग के कोर्स के दौरान उन्हें हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में एक प्रॉजेक्ट करने का मौका मिला। वहां उन्हें डॉक्टर्स के साथ मिलकर काम करना था। उन्हें यहां से अपनी थीसिस भी तैयार करनी थी। क्षितिज को मेडिकल साइंस से कम्प्यूटर साइन्स को जोड़कर कुछ नया करने का अवसर मिला था जो कि उनके लिए बहुत मज़ेदार अनुभव था। जब उन्होंने दिल्ली लौटकर आई.आई.टी में इस अवसर पर कुछ बड़ा करने की पेशकश की तो ज़ाहिर है उन्हें हताशा हाथ लगनी थी। लेकिन उनका जुनून उन्हें दोबारा हार्वर्ड ले आया। क्षितिज बताते हैं कि उन्हें वहां इंजीनियरों, डॉक्टरों और डिज़ायनरों की एक टीम के साथ काम करने का मौका मिला। लेकिन सीमाओं को तोड़कर आगे बढ़ने में रुकावटें तो आती ही हैं। क्षितिज के सामने भी आईं, उन्हें आई.आई.टी से सस्पेन्ड होने की खबर सुनकर दिल्ली लौटना पड़ा।
क्षितिज का सफर हमें लगातार यही अहसास दिलाता है कि किताबी ज्ञान का इस्तेमाल रचनात्मक तरीके से किया जाये तो बहुत कुछ नया किया जा सकता है। वे बताते हैं कि विदेशी कॉलेजों में और भारत में पढ़ाने के तरीकों में यह बड़ा बुनियादी फर्क है।
उन्हें इंजीनियरिंग कोर्स के दौरान स्टेनफॉर्ड यूनिवर्सिटी में सात-आठ महीनों के लिए फेलोशिप का मौका भी मिला। हार्वर्ड और स्टेनफॉर्ड विश्वविद्यालयों में मिले अवसर क्षितिज को बहुत कुछ सिखा गए, अब उनके पास दूसरे क्षेत्रों के प्रॉफेशनल्स के साथ तालमेल बिठाकर मौलिक विचारों पर काम करने का अनुभव भी था। अगर कुछ नहीं मिल पाया तो वह थी अकादमिक सफलता।
जहां हमारे देश में छात्र-छात्राएं अपने ग्रेड्स और अंकों की ज़्यादा चिंता करते हैं वहीं क्षितिज जैसे छात्र अपनी मौलिकता से नए रास्ते बनाने में लगे होते हैं। उनकी कहानी का यह हिस्सा फिल्म थ्री-इडियट्स में एक और हीरो माधवन की कहानी की तरह है जो इंजीनियरिंग पढ़ने के बाद मोटी तनख्वाह वाली नौकरी के बजाय अपनी पहली पसंद फोटोग्राफी को चुनते हैं। उसी तरह आई.आई.टी के बाद क्षितिज ने यूरोप जाकर 6 महीनों के लिए फॉटोग्राफी की।
2011 में क्षितिज मारवाह ने एम.आई.टी मीडिया लैब में दाखिला लिया और वहां उनका सपना पूरा होता नज़र आया। यहां उन्होंने डिज़ायनरों, कलाकारों, डॉक्टरों, फॉटोग्राफरों के साथ वर्कशॉप में हिस्सा लिया।। यहां महत्व अकादमिक सफलता को नहीं बल्कि मौलिक रुचियों और प्रतिभाओं को दिया जाता था। इस संस्था के हेड जोइची इटो भी कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ चुके हैं। क्षितिज जब एम.आई.टी मीडिया लैब इंडिया इनिशिएटिव के हेड बनकर भारत में इस प्रयोग को लाए तो दाखिले के लिए इच्छुक हज़ारों लोगों में से अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े दो सौ प्रतिभागियों को चुना गया। इस वर्कशॉप में 30 प्रॉजेक्टों पर काम किया गया। इसमें से एक प्रतिभागी ने एक प्रॉजेक्ट को आगे बढ़ाते हुए द्रष्टिहीनों की मदद के लिए विकसित एडवांस साधन बनाने वाली कम्पनी की शुरूआत की।
क्षितिज बताते हैं कि इस वर्कशॉप का मकसद प्रतिभागियों को उनके विचार सामने रखने का मौका देना था जो कि शिक्षा और करियर के परंपरागत ढांचों में नहीं मिलता। इस वर्कशॉप में इंजीनियर, डॉक्टर, डिज़ायनर, कलाकार और ग्राहक अपने विचार साझा करते हैं और इस साझा सोच से नए और सार्थक परिणाम सामने आ सकते हैं। वे बैंगलुरू और दिल्ली में भी ऐसी वर्कशॉप आयोजित कर चुके हैं।
फिलहाल वे अपनी कम्पनी खोलकर सभी बड़ी मोबाइल कम्पनियों को फोटोग्राफी की नई तकनीक बेचकर भारत में नया उदाहरण कायम करना चाहते हैं। क्षितिज के लिए संभावनाएं क्षितिज तक मौजूद हैं क्योंकि वो एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अपना संभावनाओं को सफलता में बदलना जानते हैं।