परिवारवालों ने किया इनकार तो डॉक्टर ने किया निपाह वायरस से जान गंवाने वालों का अंतिम संस्कार
एक तरफ जहां निपाह वायरस से मरने वालों को परिजन उनके अंतिम संस्कार को लेकर चिंतित थे, वहीं डॉ. गोपाकुमार ऐसे परिवारों के लिए नायक बनकर सामने आए हैं।
बीते कुछ वर्षों में भारत में इतनी तेजी से फैलने वाले वायरस में निपाह सबसे घातक साबित हुआ है। एक तरफ जहां यह संपर्क में आते ही संक्रमित व्यक्ति को तेजी से बीमार करता है, वहीं इससे होने वाली मौत के बाद पीड़ित का शरीर भी उतना ही खतरनाक हो जाता है।
केरल के कुछ हिस्सों में निपाह वायरस के भयानक प्रकोप के बीच कुछ लोग नायक बनकर उभरे हैं। कोझिकोड की नर्स ‘लिनी’ के बारे में तो आपने सुना ही होगा, कि कैसे अपनी ड्यूटी निभाते हुए लिनी, निपाह वायरस के संक्रमण में आईं और ड्यूटी करते हुए अपना जीवन खो दिया। ऐसा ही सेवा भाव फिर से नज़र आता है कोझिकोड में ही, जहां डॉक्टर ने गंभीर खतरों के बावजूद निपाह वायरस से मरने वाले 12 लोगों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उठाई।
कोझिकोड निगम के एक स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आर. एस. गोपाकुमार ने संक्रमण की चपेट में आने का खतरा उठाते हुए 12 मृतकों का अंतिम संस्कार किया। एक तरफ जहां निपाह वायरस से मरने वालों को परिजन उनके अंतिम संस्कार को लेकर चिंतित थे, वहीं डॉ. गोपाकुमार ऐसे परिवारों के लिए नायक बनकर सामने आए हैं। कोझिकोड में निपाह वायरस से अब तक 14 लोगों की मौत की पुष्टि की गई है, जबकि मलप्पुरम में 3 लोगों की मौत की पुष्टि की गई है।
12 पीड़ितों के परिवार के सदस्य अंतिम संस्कार से दूर रहे, उनका डर था कि कहीं वह भी वायरस की चपेट में न आ जाएं। इसी डर से वह अपने परिजनों के अंतिम संस्कार से भी दूर बने हुए थे। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया से बात करते हुए डॉ. गोपाकुमार ने वायरस की चपेट में आने के खतरे के बावजूद ऐसे मामलों को सुलझाने की चुनौतियों के बारे में बताया।
उन्होंने बताया कि 17 वर्षीय निपाह वायरस पीड़ित की मां ने डॉ. गोपाकुमार को अपने बच्चे का अंतिम संस्कार करने की इजाजत दी क्योंकि उन्हें वायरस की चपेट में आने का संदेह था। यहां तक कि मृतक के परिजनों ने खुद को अंतिम संस्कार से बिल्कुल अलग रखा और परिवार से किसी ने भी अंतिम संस्कार के लिए जरूरी रस्मों को नहीं निभाया।
पीटीआई को बताते हुए उन्होंने कहा "मैं दुखी था कि आखिरी यात्रा के दौरान अंतिम संस्कार के लिए उसके परिजनों में से कोई भी नहीं था। यह देखकर मैंने दोबारा नहीं सोचा और खुद ही सभी संस्कार करने का फैसला लिया। मैं चाहता था कि वह पूरी गरिमा के साथ अपनी अंतिम यात्रा पर जाए। यह मेरा कर्तव्य था।"
बीते कुछ वर्षों में भारत में इतनी तेजी से फैलने वाले वायरस में निपाह सबसे घातक साबित हुआ है। एक तरफ जहां यह संपर्क में आते ही संक्रमित व्यक्ति को तेजी से बीमार करता है, वहीं इससे होने वाली मौत के बाद पीड़ित का शरीर भी उतना ही खतरनाक हो जाता है। निपाह वायरस से मरने वालों के शरीर से निकलने वाला प्रत्येक पदार्थ अत्यधिक संक्रमित और स्वास्थ्य की दृष्ट से बेहद खतरनाक बताया जाता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि मृत शरीर का संक्रमण भी उन लोगों के ही बराबर है , जो जीवित हैं।
निपाह से प्रभावित निकायों से निपटने के लिए राष्ट्रीय नियंत्रण केंद्र ने एक सख्त प्रोटोकॉल स्थापित किया है। प्रोटोकॉल के अनुसार "किसी भी स्थिति में निपाह वायरस से पीड़ित व्यक्ति के मृत शरीर को छिड़काव या धुलाई के संपर्क में नहीं लाया जाना चाहिए। स्वास्थ्य कर्मियों और शव के पास जाने वालों को तय मानक के अनुसार दस्ताने, गाउन, एन95 मास्क, आंखों की सुरक्षा के लिए कवर एवं जूते जैसे सुरक्षात्मक उपकरण पहनना आवश्यक हैं।
जानकारी के मुताबिक जिन 12 व्यक्तियों की मौत हुई थी, उनमें से 9 व्यक्तियों के निपाह वायरस की चपेट में आऩे की पुष्टि की गई थी, जबकि अन्य 4 लोगों की मौत का कारण संदिग्ध बताया गया था। प्रारंभ में श्मशान भी निपाह वायरस से मरने वालों के शवों का अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दे रहे थे, लेकिन बाद में वह ऐसा करने के लिए मान गए। फिलहाल केरल के लिए राहत की बात यह है कि 30 मई से निपाह वायरस का कोई भी मामला अब तक सामने नहीं आया है।
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