बिजनेस शुरू करने के लिए बेच दिया घर, आज करोड़ों की कंपनी के मालिक
बेंगलुरु स्थित 'चुंबक' कई सारे नॉवेल्टी प्रॉडक्ट्स तैयार करता है जिनमें चाबी के गुच्छों से लेकर, बैग, पर्स, और जूलरी तक शामिल होती है।शुभ्रा ने सबसे पहले फ्रिज के दरवाजे पर लगने वाले खूबसूरत मैग्नेट बनाने से शुरुआत की थी।
अब उनकी कंपनी 'चुंबक' के भारत में 150 और जापान में 70 स्टोर हैं। इतना ही नहीं उनकी कंपनी ऑनलाइन रूप से भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है।
'चुंबक टीम में एक वक्त सिर्फ 30 लोग काम करते थे, लेकिन अब 'चुंबक' की टीम 150 लोगों की हो गई है। आने वाले कुछ ही सालों में 400 करोड़ का सालाना रेवेन्यू जुटाने का टार्गेट रख रहा है।
अगर आपके पास सपने हैं तो उन्हें पूरा करने की शुरुआत कीजिए, आप जरूर सफल होंगे। इस बात का सबसे सफल उदाहरण हैं गिफ्ट और यादगार निशानी वाले सामान बनाने वाली कंपनी 'चुंबक' की सीईओ और को-फाउंडर शुभ्रा चढ्ढा। आज से तकरीबन 7 साल पहले शुभ्रा और उनके हसबैंड विवेक ने अपने सपने पूरे करने की नींव रखी थी। लेकिन इस काम को शुरू करने में उन्हें कई सारे रिस्क लेने पड़े, यहां तक की उन्हें अपना घर भी बेचना पड़ा। लेकिन अपनी मेहनत के दम पर आज उन्होंने अपनी कंपनी स्थापित कर ली है।
बेंगलुरु स्थित 'चुंबक' कई सारे नॉवेल्टी प्रॉडक्ट्स तैयार करता है जिनमें चाबी के गुच्छों से लेकर, बैग, पर्स, और जूलरी तक शामिल होती है।शुभ्रा ने सबसे पहले फ्रिज के दरवाजे पर लगने वाले खूबसूरत मैग्नेट बनाने से शुरुआत की। जल्द ही उन्हें यह अहसास हुआ कि कुछ और कैटिगरी के सामान बनाने चाहिए। उन्हें लगभग 12 अन्य सामानों की कैटिगरी बनाने में एक साल लग गए। उस वक्त उन्होंने इसे मास ब्रैंड के तौर पर शुरू किया था, लेकिन अब उनकी कंपनी के भारत में 150 और जापान में 70 स्टोर हैं। इतना ही नहीं उनकी कंपनी ऑनलाइन रूप से भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। 7 साल के बिजनेस के बाद 'चुंबक' लगभग 400 से भी ज्यादा प्रॉडक्ट ऑफर कर रही है।
गूगल ने चुंबक को दुनियाभर की उन तमाम कंपनियों में से केस स्टडी के लिए चुना था जो गूगल की सर्विस के जरिए अपने बिजनेस को बढ़ा रहे हैं। 'चुंबक' का ऑफिस बेंगलुरु के इंदिरा नगर में स्थित है। बेंगलुरु के अलावा मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में 'चुंबक' एक बेहतरीन ब्रैंड बन चुका है। 2012 में ही चुंबक को डेढ़ करोड़ रुपये की फंडिंग मिली थी। अपने शुरुआती आइडिया के बारे में बताते हुए चुंबक के को-फाउंडर विवेक कहते हैं, 'जब भी हम कहीं जाते थे तो वहां से यादगार चीज के तौर पर खरीदने के लिए हमारे पास ज्यादा विकल्प नहीं होते थे। ताजमहल वाले गिफ्ट से तो हम ऊब चुके थे।'
उन्होंने बताया कि विदेशी पर्यटकों को भारत की कुछ अच्छी निशानी के तौर पर कोई सामान बनाने के उद्देश्य से हमने इसकी स्थापना की। हमारा मकसद था कि विदेशी जब भारत घूमने आएं तो यहां से ऐसी चीज ले जाएं जिसमें भारत की तस्वीर झलकती हो। घर बेचकर मिले 45 लाख रुपयों से विवेक और शुभ्रा ने इस कंपनी की नींव रखी थी। आज ये कंपनी स्टेशनरी, बैग्स, पर्स और जूलरी जैसे सामान बनाती है। 'चुंबक' घर की सजावट के लिए कई सारे सामान बनाती है।
'चुंबक टीम में एक वक्त सिर्फ 30 लोग काम करते थे, लेकिन अब 'चुंबक' की टीम 150 लोगों की हो गई है। आने वाले कुछ ही सालों में 400 करोड़ का सालाना रेवेन्यू जुटाने का टार्गेट रख रहा है। हालांकि मार्केट में तब से लेकर अब तक कई नए खिलाड़ी आ गए हैं जिनसे चुंबक को चुनौती मिल रही है। अब ये 'चुंबक' की बिजनेस स्ट्रैटिजी पर निर्भर करता है कि वह आने वाले समय में अपने प्रतिद्वंद्वियों से कैसे आगे निकल पाता है। इस बिजनेस में रिस्क की कमी तो नहीं है लेकिन कठिन परिश्रम का फल जरूर मिलता है।
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