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इंडियन प्रोफेशनल्स की बदल रही एंप्लॉयमेंट च्वॉयस

क्यों आज का भारतीय युवा नई कंपनियों को दे रहा है फर्स्ट इम्पॉर्टेंस?

इंडियन प्रोफेशनल्स की बदल रही एंप्लॉयमेंट च्वॉयस

Wednesday May 16, 2018 , 8 min Read

मल्टीनेशनल इंप्लॉयमेंट में अब उल्टी गंगा बहने लगी है। एक वक्त था, जब लाखों आइआइटी प्रोफेशनल्स के सपनों में विदेशी मल्टीनेशल कंपनियों के सपने दौड़ लगाया करते थे। एक सर्वे के मुताबिक अब ज्यादातर ऐसे भारतीय युवा गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल जैसी जानी-मानी कंपनियों में काम नहीं करना चाहते हैं। तेजी से उनकी च्वॉयस बदल रही है। अब वे भारत की ही नई कंपनियों को फर्स्ट इम्पॉर्टेंस दे रहे हैं।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


हालात ऐसे हो गए हैं कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई में लाखों रुपये खर्च करने के बाद छात्र चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हैं। वहीं रोजगार देने वाली एजेंसियों को भी नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

हाल ही में प्रोफेशनल नेटवर्किंग वेबसाइट लिंक्डइन ने ऐसे भारतीय प्रोफेशनल्स की पसंदीदा कंपनियों की एक लिस्ट ओपेन की है, जिसमें भारतीय कंपनी फ्लिपकार्ट, केपीएमजी इंडिया, वन97 कम्युनिकेशन और ओयो उनकी पहली च्वॉयस बन चुकी हैं। इसके बाद ये प्रोफेशनल्स अमेरिकी कंपनियों एमेजॉन, मैकेंजी एंड कंपनी, अल्फाबेट, एक्सपीडिया, एडोबी और मॉर्गन स्टेनली को प्रमुखता दे रहे हैं। कई एक प्रोफेशनल्स ऐसे भी हैं, जो बेल्जियन कंपनी आनहॉयजर बुश, ब्रिटिश कंपनी एर्न्स्ट एंड यंग, जर्मन कंपनी डायमलर एजी और सिंगापुर के डीबीएस बैंक में भी अपनी किस्मत आजमाना चाह रहे हैं। हालांकि, कंपनियों ने अपनी हायरिंग में बड़ा बदलाव किया है, साथ ही, कंपनियों का फोकस अब खास टैलेंट पर रहता है।

खासकर आईटी कंपनियां ऐसी टैलेंट पर फोकस कर रही हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल तकनीक से लैस हों। इनमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉकचेन, रोबोटिक्स, डेटा एनालिटिक्स आदि शामिल हैं। देश भर की आईटी कंपनियां अगले कुछ महीनों में बड़े पैमाने पर नौकरियां देने जा रही हैं। केंद्र सरकार देश में आईटी उद्योग का आकार आठ फीसदी बढ़कर 167 अरब डॉलर पर पहुंचने की संभावना जता रही है। इसके साथ ही इस साल रोजगार के एक लाख से अधिक अवसर बनने की संभावना है। देश में आईटी उद्योग में काम करने वाले लोगों की संख्या करीब 40 लाख तक पहुंचने वाली है। पिछले साल भी आईटी सेक्टर ने देश में एक लाख से अधिक युवाओं को रोजगार दिया था।

सॉफ्टवेयर कंपनियों के संगठन नैस्कॉम के अनुसार वर्ष 2018-19 में आईटी कंपनियों का निर्यात बढ़कर 137 अरब डॉलर पर पहुंच जायेगा। पिछले साल यह 126 डॉलर था। एक लाख नए जॉब के साथ ही देश के समग्र आईटी-बीपीओ उद्योग का आकार 14-16 अरब डॉलर तक बढ़ जायेगा। मैन पावर ग्रुप इंडिया के आईटी एंप्लॉयमेंट आउटलुक सर्वे में यह सामने आ चुका है कि देश में इस साल आईटी उद्योग में जमकर नियुक्तियां होनी हैं। यह हायरिंग नई तकनीक के लिए की जानी है। सर्वे में 500 बड़ी आईटी कंपनियों को शामिल किया गया था। सर्वे के मुताबिक, नई तकनीक के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए आईटी कंपनियां इस साल थोड़ी ज्यादा हायरिंग करने की योजना बना रही हैं।

केंद्रीय विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद का कहना है कि 'नैसकॉम की प्रेजिडेंट देबजानी घोष ने मुझसे मुलाकात की। हमने भारत की आईटी इंडस्ट्री पर चर्चा की। उन्होंने मुझे बताया कि 2018 में भारत की आईटी इंडस्ट्री 8 फीसदी की दर से 167 बिलियन डॉलर तक ग्रोथ हासिल करेगी और सीधे तौर पर करीब 39 लाख लोगों को नौकरी मिलेगी।' आईटी सेक्टर के जानकार बताते हैं कि लगभग 167 अरब डॉलर का आईटी उद्योग इस समय में कई तरह के बदलावों के दौर से गुज़र रहा है। दुनिया के कई देशों में भारतीय आईटी कंपनियां सेवाएं दे रही थीं लेकिन अब इनकी मांग में कमी देखी गई है। वे दिन चले गए, जब आईटी उद्योग में 35 से 40 फ़ीसदी की सालाना वृद्धि देखी जाती थी।

इन दिनों आईटी उद्योग छह से आठ प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। बड़े प्रॉजेक्ट जो पहले 15 से 20 महीनों में ख़त्म हो जाते थे, वे अब तीन-चार महीने में ही ख़त्म हो जा रहे हैं। इसलिए इनके लिए ज़रूरी कौशल में बड़ा बदलाव आया है। ये बदलाव सिर्फ़ तकनीक के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि टेस्टिंग, इवैल्यूएशन और प्रॉजेक्ट मैनेजमेन्ट के क्षेत्र में भी आए हैं। आईटी एक्सपर्ट्स का मानना है कि जो लोग अब प्रोडक्टिव होते हैं, कंपनियां अब उन पर ही ज्यादा ध्यान दे रही हैं। अगर भारत के भीतर टैलेंट की बात करें तो सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि बेरोजगारी की समस्या भारत में लगातार बढ़ती जा रही है।

हालात ऐसे हो गए हैं कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई में लाखों रुपये खर्च करने के बाद छात्र चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हैं। वहीं रोजगार देने वाली एजेंसियों को भी नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। स्टार्टअप्स, ई-कॉमर्स और खुदरा फर्मों के कारण दक्षिण भारत में रोजगार के अवसर लगातार बढ़ते जा रहे हैं लेकिन अगर टैलेंट की बात की जाए तो उत्तर भारत के लोगों में दक्षिण के मुकाबले अधिक टैलेंट है। यही कारण है कि नौकरी की तलाश में उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। रैंडस्टैड इंडिया और टीमलीज कंपनियों के मुताबिक नौकरी के 40 फीसदी पद दक्षिण भारत में मौजूद हैं जबकि पश्चिम में 28 फीसदी, उत्तर में 25 फीसदी और पूर्व में 7 फीसदी है।

फॉर्मल सेक्टर में नौकरी की बात की जाए तो आधी से भी ज्यादा नौकरियां बंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद में उपलब्ध हैं। भारत में आईटी सेक्टर के तीन बड़े केंद्र बंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद इस सेक्टर के 60 फीसदी से भी अधिक लोगों को नौकरी के अवसर दे रहे हैं। चेन्नई और हैदराबाद विनिर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर के सबसे बड़े केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं। दक्षिण भारत आईटी और उससे संबंधित सेक्टरों में रोजगार के अवसर लगातार बढ़ा रहा है। यह विभिन्न कंपनियों की शुरुआती बढ़त में मददगार साबित हो सकता है। अन्य क्षेत्रों से आने वाले लोगों को यहां अलग भाषा और खानपान से संबंधित परेशानी हो सकती है लेकिन उनमें से टैलेंटेड लोगों की तलाश करने में कंपनी को कोई मुश्किल नहीं आ रही है।

जिस तरह भारत का यूथ एम्प्लॉयमेंट में अपनी च्वॉयस बदल रहा है, उसी तरह एजुकेशन सेक्टर में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। बड़ी संख्या में भारत के छात्र विदेशों में पढ़ाई करने जा रहे हैं। इस बीच भारत सरकार ने एक नई पहल की है। वह चाहती है कि अब विदेशी स्टूडेंट्स भारत आकर पढ़ाई करें। इसके लिए उनकी राह आसान करने पर भी काम चल रहा है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज कहती हैं कि हम विदेशी छात्रों का देश में तहेदिल से स्वागत करते हैं। हम आह्वान करते हैं कि वे भारत आएं और हमारे यहां अध्ययन करें। विदेशी छात्रों में भारत में शिक्षा ग्रहण करने के मिशन को प्रमोट करने के लिए सरकार ने देशभर की 800 यूनिवर्सिटीज और 40 हजार से ज्यादा कॉलेजों में से विश्वस्तरीय शिक्षा देने वाले देश के सर्वोच्च 160 इंस्टीच्यूट्स को चुना है।

सरकार का मकसद है कि वर्ष 2023 तक यह संख्या बढ़कर दो लाख हो जाए। अभी भारत में दो विश्वस्तरीय यूनिवर्सिटी हैं, एक- नालंदा, जो कि ईस्ट एशिया समिट का हिस्सा है, जिससे वहां ईस्ट एशिया के छात्रों की संख्या अधिक है। दूसरी, साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, जो कि साउथ एशियन समिट का हिस्सा होने से वहां साउथ एशिया के छात्र अधिक संख्या में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसमें आईआईटी,आईआईएम और एनआईटी भी शामिल हैं। इंस्टीच्यूट की नैशनल रैकिंग भी बताई जाएगी। विदेशी स्टूडेंट्स के लिए स्कॉलरशिप तो नहीं होगी लेकिन फीस माफी जैसा प्रावधान इंस्टिच्यूट अपने स्तर पर करेंगे। स्टूडेंट्स को आकर्षित करने के लिए भारत सरकार विदेश जाकर रोड शो करने पर भी विचार कर रही है।

इस बीच ग्लोबल टैलेंट कॉम्पीटिटिव इंडेक्स (जीटीसीआई) पर भारत की रैंकिंग में बड़ा सुधार देखने को मिला है। इस सूची में भारत 11 पायदानों की छलांग लगाकर 92वें से 81वें स्थान पर पहुंच गया है। इस सूची में 119 मुल्क और 90 शहर शामिल हैं। इस सूची में टैलेंट की ग्रोथ और ज्ञान के पैमाने पर आंकलन किया जाता है। इस साल की थीम 'डायवर्सिटी फॉर कॉम्पीटिटिवनेस' (प्रतिस्पर्धा के लिए विविधता) रही है। विविधता में संज्ञात्मकता, पहचान और मूल्यों को शामिल किया गया, जिसमें ज्ञान, अनुभव, व्यक्तित्व आदि के आधार पर टैलेंट ग्रोथ पर जोर दिया गया। भारत ने भले ही अपनी रैंकिंग में सुधार किया है, मगर उस पर अपने सर्वेश्रेष्ठ टैलेंट को गंवा देने का खतरा अभी बना हुआ है। शहरों की बात की जाए तो मुंबई और दिल्ली जीटीसीआई-सिटी की सूची में क्रमश: 89वें और 90वें स्थान पर रहे। शहरों का चयन राजधानी के आधार पर न करते हुए, इनकी मजबूती और आकर्षण के आधार पर किया गया। हालांकि, निचले स्थान पर होने का अर्थ यह नहीं कि इन शहरों में टैलेंट कम है।

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