5 भारतीय जिन्होने 20 हज़ार रुपये से शुरुआत कर खड़ी की करोड़ों की कंपनी
देश में उद्यमियों के बाद नए आइडिया तो हैं, लेकिन पूंजी की कमी उन इरादों को आगे बढ़ने में बड़ी बढ़ा साबित होती है। फिर भी कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जिन्होने 20 हज़ार रुपये से भी कम निवेश के साथ अपना व्यवसाय शुरू करते हुए करोड़ों की कंपनी खड़ी की।
भारत देश में उद्यमियों के पास नए आइडिया की कमी नहीं है, हालांकि पूंजी की कमी जरूर इनके रास्ते में बड़ी बाधा के रूप में खड़ी रहती
फंड तक पहुंच भारत में उद्यमिता की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। D&B इंडिया के शोध से पता चलता है कि केवल चार प्रतिशत छोटे उद्यमियों और उद्यमों के पास ही वित्त के एक औपचारिक स्रोत तक पहुंच है, इसके अलावा उद्यमियों की बैंक क्रेडिट भी घट रही है।'
उद्यमियों को पहली बार अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए परिवार और दोस्तों, व्यक्तिगत बचत या ऋण पर निर्भर रहना पड़ता है। कई मामलों में ये उद्यमी 20,000 रुपये से अधिक नहीं जुटा पा रहे हैं।
पूंजी भले ही छोटी हो सकती है, लेकिन उद्यमियों के सपने बड़े हैं, इसी के साथ सफल होने की उनकी इच्छा और भी बड़ी है।
नीच हम ऐसे ही पाँच उद्यमियों के बारे में आपको बता रहे हैं, जिन्होने 20 हज़ार या उससे भी कम पूंजी के साथ अपना व्यवसाय शुरू किया और आज करोड़ों रुपये मूल्य की कंपनी की स्थापना कर चुके हैं।
राहुल जैन - eCraftIndia.com
राजस्थान के जयपुर में जन्मे और पले-बढ़े होने के चलते हस्तशिल्पियों ने हमेशा ही राहुल जैन को मंत्रमुग्ध किया, लेकिन जब राहुल ने मुंबई के एक मॉल में कदम रखा तो वह हैरान रह गए कि राजस्थान के हस्तशिल्प की कीमत वहाँ इतनी अधिक थी।
इसी अनुभव ने राहुल को कारीगरों और शिल्पकारों के साथ सहयोग करने और बिचौलियों को काटकर किफायती उत्पाद बेचने के लिए अपनी खुद की ईकॉमर्स कंपनी खोलने के लिए प्रेरित किया। 2014 में, राहुल, अंकित अग्रवाल और पवन गोयल ने eCraftIndia.com की स्थापना मात्र 20,000 रुपये की पूंजी के साथ की थी।
शुरुयात एक छोटे से ऑनलाइन हैंडीक्राफ्ट स्टोर के रूप में हुई और इसका पहला उत्पाद लकड़ी का हाथी था, जिसकी कीमत 250 रुपये थी। कुछ वर्षों में इसका विस्तार हुआ और गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कलाकार भी इसके साथ जुड़े। फिलहाल eCraftIndia.com ने अपनी विनिर्माण इकाई भी खोल ली है।
आज राहुल की कंपनी के संग्रह में 9,000 से अधिक स्टॉक कीपिंग यूनिट हैं और आज यह भारत के सबसे बड़े हस्तशिल्प ई-स्टोरों में से एक है, जो कि 12 करोड़ रुपये सालाना कारोबार करता है।
आरएस शानबाग - वैल्यूपॉइंट सिस्टम
उद्यमी बनने से पहले, आरएस शानबाग एक छोटे से गाँव से निकले हुए एक इंजीनियर थे। साल 1991 में उनकी जेब में 10,000 रुपये थे और उन्होंने एक छोटी-सी कंपनी शुरू करने के लिए इसका इस्तेमाल किया।
'वैल्यूपॉइंट सिस्टम्स' नाम का यह व्यवसाय ग्रामीण लोगों को नौकरी देने के लिए शुरू किया गया था, ताकि उन्हें हरियाली वाले चरागाहों की तलाश में भटकना न पड़े।
उन्होंने इसे बेंगलुरु में शुरू किया, लेकिन जल्द ही इसके तहत छोटे टाउन और कस्बों से स्नातकों को हायर कर उन्हे टेक्नालजी और सेवाओं की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया गया।
जल्द ही कंपनी ने आईटी क्षेत्र की तरफ रुख कर लिया और बड़ी कंपनियों की इन्फ्रास्ट्रक्चर जरूरतों को पूरा करने लगी। आज वैल्यूपॉइंट दक्षिण एशिया की प्रमुख आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर सेवा कंपनी है। कंपनी का बिजनेस जल्द ही 600 करोड़ पार करने वाला है।
पुनीत कंसल - रोल्स मेनिया
साल 2009 में 18 वर्षीय पुनीत कंसल ने पुणे में रोल्स मेनिया की शुरुआत की। उन्होंने 20,000 रुपये की पूंजी के साथ काठी रोल व्यवसाय शुरू किया। ये पैसे उन्होंने एक दोस्त से उधार लिए थे। शुरुआती समय में मागरपट्टा शहर के एक रेस्तरां के बाहर एक मेज के आकार का स्टॉल चलाया गया, जहां सिर्फ एक ही शेफ था।
इस दौरान पुनीत ने कुछ ग्राहकों गगन सियाल और सुखप्रीत सियाल से दोस्ती की जो रेस्तरां क्षेत्र में उद्यमी थे। जब उन्होंने पुनीत के व्यवसाय में क्षमता को पहचाना, तो वे रोल्स मेनिया को पंजीकृत करने और 2010 में दूसरा आउटलेट खोलने के लिए पुनीत के साथ आए।
उन्होंने धीरे-धीरे इसकी स्केलिंग शुरू कर दी और ऐसे मौके पर जब डिलीवरी पार्टनर्स न होने पर उन तीनों ने व्यक्तिगत रूप से खाना डिलीवर किया। रोल्स मेनिया कुछ ही वर्षों में चर्चित हो गया। पुनीत ने फ्रैंचाइज़ी मॉडल के लिए दरवाजे खोले और कंपनी का विस्तार 30 शहरों में किया गया।
आज, पुनीत की कंपनी के देश भर में 100 से अधिक आउटलेट हैं, जहां प्रत्येक दिन लगभग 12,000 रोल बेंचे जाते हैं। यह कंपनी 35 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार कर रही है।
नितिन कपूर - इंडियन ब्यूटीफुल आर्ट
हाथ मिलाने से पहले नितिन कपूर ने एक निजी बैंक में काम कर रहे थे और अमित कपूर ईबे के साथ काम कर रहे थे, इसके बाद दोनों ने मिलकर कुछ नया करने का निश्चय किया। उन्होंने परिधान उद्योग द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पन्न कचरे पर ध्यान दिया, साथ ही उन्होंने उद्योग में पानी जैसे बहुमूल्य संसाधनों की बरबादी पर भी ध्यान दिया।
इसने उन्हें 10,000 रुपये के निवेश के साथ एक ईकॉमर्स कंपनी शुरू करने के लिए प्रेरित किया, जो ‘जस्ट इन टाइम’ इन्वेंट्री प्रबंधन पद्धति का पालन करती थी। उनकी कंपनी, इंडियन ब्यूटीफुल आर्ट ने सुनिश्चित किया कि ग्राहक द्वारा ऑर्डर देने के बाद ही कपड़ों का निर्माण किया जाए। नितिन ने यह देखा कि मुद्रण से उत्पाद को भेजने तक की प्रक्रिया 48 घंटों के भीतर पूरी हो और इसमें प्रकृतिक संसाधन बिलकुल भी बरबाद न हो।
उन्होंने अमेरिका और यूके सहित अन्य देशों में बेचने के लिए खंबात, अहमदाबाद, जयपुर, मेरठ, कोलकाता, खुर्जा, मुरादाबाद, लुधियाना, अमृतसर, मुंबई, नई दिल्ली, हैदराबाद और लखनऊ में स्थित निर्माताओं से उत्पाद मंगवाए।
आज, इंडियन ब्यूटीफुल आर्ट वैश्विक स्तर पर भारतीय उत्पादों के ई-कॉमर्स क्षेत्र में सबसे बड़े ऑनलाइन विक्रेताओं में से एक है। कंपनी 30 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार करती है।
जुबैर रहमान - द फैशन फैक्ट्री
2014 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर जुबैर रहमान तमिलनाडु के तिरुपुर में एक सीसीटीवी ऑपरेटर के तौर पर काम कर रहे थे, लेकिन 21 वर्षीय रहमान ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का सपना देख रखा था। इसी बीच एक दिन, उन्हें एक ईकॉमर्स कंपनी के कार्यालय में सीसीटीवी लगाने का अनुरोध मिला।
उन्होंने वहाँ के मैनेजर से बात की और समझा कि कैसे कंपनी ऑनलाइन सोर्सिंग और आइटम बेचकर पैसा कमा रही है। ई-कॉमर्स जुबैर के लिए सही था, क्योंकि उन्हे निर्माण में भारी निवेश नहीं करना था।
इससे प्रेरित होकर उन्होंने सिर्फ 10,000 रुपये के निवेश के साथ अपने घर से एक ईकॉमर्स कंपनी ‘द फैशन फैक्टरी’ शुरू की। उन्होंने तिरुपुर से कपड़ा मंगवाया और इसे फ्लिपकार्ट और अमेज़ॅन पर कॉम्बो पैक तरीके से लिस्ट करना शुरू कर दिया।
कॉम्बो पैक में बिकने से कपड़े सस्ते हो गए। जुबैर ने प्रति बिक्री कम लाभ देखा, लेकिन उनकी प्रति-यूनिट की कम कीमतों ने लोगों ध्यान आकर्षित किया और इसी के साथ उनके पास बड़ी संख्या में ऑर्डर आना शुरू हो गए।
जुबैर की रणनीति ने इतनी अच्छी तरह से काम किया कि ‘द फैशन फैक्टरी’ को अब प्रति दिन 200 से 300 ऑर्डर मिलते हैं। उन्होंने अमेज़न पर इन्हे बेचने के लिए एक विशेष सौदे पर भी हस्ताक्षर भी किए हैं। फैशन फैक्ट्री सालाना 6.5 करोड़ रुपये का राजस्व उठा रही है और अगले वर्ष 12 करोड़ रुपये के राजस्व का लक्ष्य निर्धारित है।