GST के 5 साल, कब से शुरू हुई पूरी कवायद, अब तक कितना बदला
राष्ट्रव्यापी माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में उत्पाद शुल्क, सेवा कर और मूल्यवर्धित कर (वैट) जैसे 17 स्थानीय कर और 13 उपकर समाहित किए गए और इसे एक जुलाई, 2017 की मध्यरात्रि को लागू किया गया था.
भारत के सबसे बड़े कर सुधार माल एवं सेवा कर (जीएसटी) का आधे दशक का सफर 30 जून को पूरा हो गया है. इस दौरान कई तरह के फायदे नजर आए तो कई नुकसान भी दिखे , लेकिन इसे लेकर सबसे बड़ी बात रही कर अनुपालन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग. इसके चलते हर महीने एक लाख करोड़ रुपये का राजस्व संग्रह एक सामान्य बात हो गई है.
राष्ट्रव्यापी माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में उत्पाद शुल्क, सेवा कर और मूल्यवर्धित कर (वैट) जैसे 17 स्थानीय कर और 13 उपकर समाहित किए गए और इसे एक जुलाई, 2017 की मध्यरात्रि को लागू किया गया था.
जीएसटी में कितने प्रकार के टैक्स स्लैब हैं?
जीएसटी के तहत कर के चार स्लैब हैं. इसमें कुछ जरूरी वस्तुओं पर छूट है या पांच प्रतिशत की दर से सबसे कम कर लगता है. जबकि सर्वाधिक 28 प्रतिशत कर आरामदायक और समाज के नजरिये से अहितकर वस्तुओं पर लगाया जाता है. दो अन्य स्लैब 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत हैं.
जीएसटी से पहले के दौर में एक उपभोक्ता को वैट, उत्पाद शुल्क, सीएसटी आदि को मिलाकर औसतन 31 प्रतिशत कर देना होता था. वहीं, हालिया बदलावों के बाद भी अभी कुछ चीजें टैक्स स्लैब के दायरे से बाहर हैं जिन पर कोई टैक्स नहीं लगता है.
इसके अलावा, 28 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में आने वाले सामान पर उपकर भी लगाया जाता है. सोने, गहनों और कीमती पत्थरों के लिए 3 प्रतिशत और कटे और पॉलिश किए गए हीरों पर 1.5 प्रतिशत की विशेष दर है.
जीएसटी ने दिखाई वित्तीय संघवाद की राह
जीएसटी में वित्तीय संघवाद की अभूतपूर्व कवायद हुई जिसमें केंद्र और राज्य नई कर प्रणाली के सुगम क्रियान्वयन के लिए जीएसटी परिषद में एक साथ आए.
परिषद की अबतक 47 बैठकें हो चुकी हैं और जो कदम उठाए गए हैं उनके परिणामस्वरूप प्रतिमाह एक लाख करोड़ रुपये का जीएसटी संग्रह एक नया ‘सामान्य’ बन गया है.
जीएसटी आने के बाद कर संग्रह में हुई रिकॉर्ड बढ़ोतरी
सरकार एक जुलाई को जून के जीएसटी संग्रह के आंकड़े जारी करेगी. ऐसे में यह अनुमान है कि बीते चार महीने की तरह इस बार भी संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपये तक होगा.
पांच साल पहले 66 लाख रुपये की तुलना में अप्रैल, 2022 में यह संग्रह रिकॉर्ड 1.68 लाख करोड़ रुपये था. अप्रैल, 2018 में संग्रह पहली बार एक लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया था.
जीएसटी की शुरुआत कैसे हुई?
एक सामान्य कर के रूप में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का प्रस्ताव पहली बार साल 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में रखा गया था. वाजपेयी ने पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता की अध्यक्षता वाली समिति को जीएसटी का मॉडल तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी.
साल 2005 में 12वें वित्त आयोग की सिफारिश पर विजय केलकर की सिति ने जीएसटी की शुरुआत की सिफारिश की थी. 22 मार्च, 2011 को तत्कालीन यूपीए सरकार ने जीएसटी लाने के लिए लोकसभा में 115वें संविधान संशोधन विधेयक को पेश किया था.
मई, 2016 में लोकसभा और अगस्त, 2016 में राज्यसभा ने जीएसटी का रास्ता साफ करते हुए संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी थी. 18 राज्यों की मंजूरी मिलने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विधेयक को मंजूरी दे दी थी.
'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स' में महत्वपूर्ण सुधार हुआ
जीएसटी आने के बाद ही वर्ल्ड बैंक ग्रुप द्वारा उपयोग किये जाने वाली ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स (Ease of Doing Business Index) में भारत की रैंकिंग लगातार ऊपर आई है. भारत इस इंडेक्स में 2018 में 100 वें स्थान पर, 2019 में 77वें स्थान पर और साल 2020 में 63वें स्थान पर आ गया. जीएसटी की यह एक बड़ी उपलब्धि है.
लगातार हो रही है सरलीकरण की मांग
राजस्व में वृध्दि, करों का सरलीकरण , इनपुट क्रेडिट की निर्बाध गति और कर के आधार को बढ़ाना जीएसटी के मुख्य घोषित लक्ष्य थे. इसमें से कर के आधार को बढ़ाना और कर के राजस्व में वृद्धि में निरंतर वृद्धि हो रही है.
हालांकि, जीएसटी को शुरू से सरलीकृत किए जाने की मांग की जाती रही है और शुरुआत में सरकार ने इन दिशा में प्रयास भी किए लेकिन अब जीएसटी के सरलीकरण की दिशा में कोई खास प्रयास नहीं होता दिख रहा है.
जीएसटी लागू होने के पांच साल बाद भी कई सारी चुनौतियां हैं, जिनका समाधान किया जाना बाकी है. 28 फीसदी की उच्चतम टैक्स रेट (कई वस्तुओं पर कंपनसेशन सेस), कई सारे टैक्स स्लैब, कुछ उत्पादों व सेक्टर्स को जीएसटी में नहीं लाना (पेट्रोलियम उत्पादन और बिजली) और टैक्स पोर्टल की तकनीकी गड़बड़ियां जैसी कई चुनौतियां जीएसटी में मौजूद हैं.
जीएसटी की 47वीं बैठक में हुए कई बड़े बदलाव
जीएसटी परिषद की 47वीं बैठक हाल ही में चंडीगढ़ में समाप्त हुई है. इसमें टैक्स की दरों में बदलाव हुए हैं. यह बदलाव 18 जुलाई से प्रभावी होंगे. जीएसटी परिषद ने कुछ सामानों पर छूट को वापस लेने जबकि कुछ पर दरें बढ़ाने का फैसला किया है. इस फैसले के बाद पैक्ड गेहूं आटा, पापड़, पनीर, दही और छाछ पर 5 प्रतिशत टैक्स लगेगा.
1,000 रुपये प्रतिदिन से कम किराये वाले होटल कमरों पर 12 प्रतिशत जीएसटी. अस्पताल में 5,000 रुपये से अधिक किराये वाले कमरों पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगेगा. वहीं, उपकरणों पर जीएसटी 12 से घटाकर 5 प्रतिशत हुआ.
पांच साल पूरे होने पर संस्थाओं ने गिनाई खूबियां
जीएसटी की पांचवीं वर्षगांठ पर केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने ट्वीट किया, ‘‘जीएसटी में कई कर और उपकर शामिल हो गए. अनुपालन का बोझ कम हुआ, क्षेत्रीय असंतुलन दूर हुआ और अंतर-राज्य अवरोध भी खत्म हुए. इससे पारदर्शिता और कुल राजस्व संग्रह भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है.’’
बीडीओ इंडिया में भागीदार और लीडर (अप्रत्यक्ष कर) गुंजन प्रभाकरण ने कहा, ‘‘बीते पांच वर्षों में जीएसटी कानून विकसित हुआ है और करदाताओं को आने वाली कई परेशानियों को समयबद्ध स्पष्टीकरण और संशोधनों के जरिये दूर किया गया.’’
एएमआरजी एंड एसोसिएट्स में वरिष्ठ भागीदार रजत मोहन ने कहा, ‘‘पांच साल में जीएसटी कानून तेज गति से विकसित हुआ है. अब ऐसा लगता है कि यह कानून नए चरण में प्रवेश कर चुका है जहां मुकदमेबाजी को कम से कम करना होगा.’’