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शिक्षा की नयी पहचान- राखी चावला

शिक्षा की नयी पहचान- राखी चावला

Tuesday November 24, 2015 , 4 min Read

राखी ने अपनी नयी सोच ओर नयी तकनीक से बच्चों के पड्ने का दायरा बदल दिया. जी हाँ येह कहानी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से बनी एक मां और फिर एक सफल एडुपरेनेउर राखी चावला की है. जिन्दगी के हर एक पडाव ने उन्हे एक नया किरदार दिया. शिक्षा के क्षेत्र मे एक मुकाम हासिल करने वाली राखी ने अपने जीवन के हर मोड पर डट कर सामना किया और आगे बड्ती चली गयी. गणित की पढ़ाई कर रही राखी को बहुराष्ट्रीय कम्पनी से काम करने का परस्ताव मिला और वही अगले महीने उनकी सगाई विकाश से हुई जो श्लुमबेर्गेर में रहते थे. अगर वह चाहती तो अपने पति के साथ रहकर देश विदेश घूम सकती थी लेकिन शादी के बाद राखी ने हैदराबाद से अपना व्यवसाय प्रारंभ किया और अपने बेटे के जन्म के उपरान्त अपने माता- पिता के शहर आगरा मे रुक कर उसे बड्ते देखने का फैसला किया.आगरा में रहते उन्होने शिक्षक के रूप में बच्चों को गणित और कंप्यूटर विज्ञान पडाना शुरू किया. लेकिन वहाँ की शिक्षा उन्हे रास नहीं आई और उनहोने शिक्षा प्रणाली पर शोध करने का फैसला किया. उसके उपरान्त उन्होने करीबन २ साल बच्चों को अलग तरीकों से पडाना शुरू किया. लेकिन वहीं दूसरी तरफ बच्चे अपने पडने की पुरानी तकनीक को भूल नहीं पाए और नयी तकनीक में घुल मिल नहीं सके. राखी को एह्सास हुआ कि समस्या प्राथमिक और माध्यमिक स्तर (कक्षा 8 तक) पर थी.

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वह मानती हैं कि बच्च जैसे ही कक्षा ९ में जाते हैं वह माता पिता, सकूल और कोचिंग सेंटर की नजर में आ जाते हैं. उस के साथ जबरदस्त साथियों के दबाव, गगनचुम्बी उम्मीदों, प्रवेश परीक्षा और प्रमुख संस्थानों में शामिल होने की होड उन्हे नयी तकनीक सीखने का मौका नहीं देती. बस यहीं से राखी के Ed3D का सफर शुरू हुआ. उनका मानना है कि बच्चों को पडाई के लिये स्मार्ट शिक्श्क और स्मार्ट तरीके की जरूरत है और इसी सोच को ध्यान में रखकर राखी Ed3D की को-फाउंडर बनी.

शिक्षा के क्षेत्र में जहां बच्चे एक पुरानी तकनीक अपना रहे थे राखी ने अपनी सोच और अपने बनाये Ed3D से उनको पड़ने का एक नया रास्ता दिखाया. Ed3D बनाने क बाद राखी को कईं मुश्किलो का सामना करना पड़ा और वहीँ दूसरी तरफ उन्होंने बच्चो के परिवार वालो को यह कांसेप्ट समझने क लिए कड़ी मशकत की, Ed3D को 3 भागों में बांटा गया- गणित व तर्क, कंप्यूटर और विज्ञान जिनसे उन्हें बेसिक कांसेप्ट समझ में आने लगे. और बच्चे इसमें जोर शोर से भाग लेने लगे से और उसी दौरान राखी को पता चला की हर बच्चे की अपनी काबिलियत है और चीजों को अपने अलग अंदाज़ से करने का प्रयतन करते हैं, फिर राखी ने बच्चो की बुद्धि क हिसाब से एंट्रेस टेस्ट तैयार किये और उनकी कक्षा के आधार पर प्रशन पूंछे जाने लगे , बाद में वह उस टेस्ट का हर एक पड़ाव निचे करते रहे जब तक बच्चे को अच्छे से समझ में नहीं आ जाता और फिर उसी दौरान राखी ने ५-१३ साल के बच्चो के लिए भी एक सरंचना तैयार की क्योंकि वे चाहती थी की उनका बेटा भी अनुशंधान प्रोयोग को समझे और उन्हें एक्स्प्लोर करे. राखी का यह सफर यही खत्म नहीं हुआ. 

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फिर उनकी ज़िन्दगी मे एक और पड़ाव आया जहाँ उन्हें मुंबई में म.टी.टी.एस एग्जाम देने का मौका मिला. शहर से बहार जाने का यह उनका पहला कदम उन्हें और आगे की तरफ लेता चला गया,फिर उन्होंने कानपूर में आई.टी. रिसर्च प्रोजेक्ट में एम.टेक की तयारी करी और पुरे भारत में ६६ रैंक के स्थान पर आई. इनकी ज़िन्दगी का यह सफर इतना आसान न होता अगर इनके परिवार ने इनका साथ न दिया होता. अपने पति और ६ साल के बेटे के इस समर्थन से राखी आज कहाँ से कहाँ पहुँच गई है.