WWE में हिस्सा लेने वाली पहली महिला पहलवान कविता देवी
इस महिला के निकट मत फटकना वरना उठाकर पटक देगी...
पुलिस में काम कर चुकीं हरियाणा की कविता देवी भारत की पहली ऐसी महिला पहलवान हैं, जो वर्ल्ड रेसलिंग एंटेरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाग ले रही हैं। हरियाणा के लोग हंसी-मजाक में कहते हैं कि कविता के ज्यादा निकट मत जाना वरना वह उठाकर पटक देगी। अमेरिका में अभी गत आठ-नौ अगस्त को 'मे यंग क्लासिक' टूर्नामेंट में उन्होंने लगातार दूसरे साल भारत का प्रतिनिधित्व किया है।
आज कविता देवी तो प्रोफेशनल रैसलिंग और खासकर भारतीय फैंस के लिए एक बड़ा नाम बन चुकी हैं। उनका नाम सुनते ही फैंस के जहन में एक ऐसी महिला रैसलर की छवि आ जाती है, जो सूट सलवार पहनकर लड़ती है।
अब हमारे देश की लड़कियां भी सारे बंधन तोड़कर रेसलिंग की रिंग में उतर रही हैं। पुलिस में काम कर चुकीं हरियाणा की कविता देवी भारत की पहली ऐसी महिला पहलवान हैं, जो वर्ल्ड रेसलिंग एंटेरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाग ले रही हैं। हरियाणा के लोग हंसी-मजाक में कहते हैं कि कविता के ज्यादा निकट मत जाना वरना वह उठाकर पटक देगी। अभी पिछले दिनो आठ-नौ अगस्त को फ्लोरिडा (अमेरिका) में आयोजित डब्ल्यूडब्ल्यूई के 'मे यंग क्लासिक' टूर्नामेंट में लगातार दूसरे साल भारत की ओर से हिस्सा ले चुकीं कविता पिछले साल इसी टूर्नामेंट की वजह से रातोरात सुपरहिट हो गई थीं। 'मे यंग क्लासिक' टूर्नामेंट की टेपिंग (रिकॉर्डिंग) के दौरान कविता को इस बार पूर्व डब्ल्यूडब्ल्यूई डीवाज़ चैंपियन और चार साल बाद वापसी कर रहीं कैटलिन के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
कविता देवी को हराकर कैटलिन ने टूर्नामेंट के अगले राउंड में जगह बना ली। फ्लोरिडा की फुल सेल यूनिवर्सिटी में 'मे यंग क्लासिक' टूर्नामेंट के 4-एपिसोड की रिकॉर्डिंग की गई। टूर्नामेंट में भारत के अलावा अमेरिका, ब्राजील, चीन, स्कॉटलैंड, कनाडा, मैक्सिको जापान आदि दुनिया के अलग-अलग देशों की 32 महिला रैसलर ने हिस्सा लिया। पिछले साल भी कविता को 'मे यंग क्लासिक' टूर्नामेंट के पहले ही राउंड में न्यूजीलैंड की रैसलर डकोटा काई के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा था। कविता देवी और डकोटा काई के उस मैच की वीडियो को करीब 16-17 मिलियन लोगों ने देखा था। फिलहाल कविता डब्ल्यूडब्ल्यूई परफॉर्मेंस सेंटर में ट्रेनिंग करती हैं।
हरियाणा के एक किसान परिवार की कविता को भले पराजय का मुंह देखना पड़े, रिंग में वह अपने प्रतिद्वंद्वी को केवल पटकती ही नहीं, असल ज़िंदगी में अपने और रेसलिंग के बीच आने वाली दीवारों को गिराने की भी कोशिश करती हैं। कविता ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सूट-सलवार पहनकर रेसलिंग कर चुकी हैं। वह बताती हैं कि 'मैंने सूट इसलिए पहना ताकि कपड़ों को लेकर बाकी लड़कियों को किसी तरह की हिचक न हो। साथ ही मैं अपनी संस्कृति को भी दर्शाना चाहती थी। ये सब इतना आसान नहीं है। उन्हें ट्रेनिंग के लिए महीनों अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है।' कविता को शोहरत तो अब मिली है लेकिन एक वक़्त था, जब उनके और खेल के बीच इतनी दूरी आ गई कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी ही खत्म करनी चाही।
पैंतीस वर्षीय कविता पहले वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक विजेता रही हैं। अब एक प्रोफ़ेशनल रेसलर हैं। वेटलिफ्टिंग के दौरान ही उनकी शादी हुई, फिर बच्चा। कविता बताती हैं - 'शादी और बच्चे के बाद मुझे बोला गया कि खेल छोड़ दूं। ऐसा भी वक़्त आया, जब मुझे ज़िंदगी और मौत के बीच किसी एक को चुनना था। मैंने अपनी जान देने की कोशिश की क्योंकि मेरा खेल का करियर लगभग ख़त्म सा लगने लगा था। एक तो ये समझा जाता है कि आप शादी के बाद घर संभालो। हमारा समाज पुरुष प्रधान है। अगर कोई औरत कामयाब होती है तो कभी-कभी उसका पति भी ये बर्दाश्त नहीं कर पाता है। आख़िरकार उन्होंने अपने परिवार को मनाया और एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता। अब वह वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाग लेने वाली भारत की पहली महिला रेसलर बन चुकी हैं।
कविता ने ग्रेट खली (दलीप सिंह राणा) की अकादमी से प्रशिक्षण लिया है। वही खली, जो लंबे समय तक विदेशी पहलवानों को धूल चटाते हुए रेसलिंग में एक मुहावरा बन चुके हैं। कविता बताती हैं कि 'महिला खिलाड़ियों की एक लड़ाई रिंग मे होती है तो दूसरी उनकी असल जिंदगी में। रिंग के बाहर लोगों की सोच से जूझना पड़ता है। कभी उनसे रिश्तेदारों ने कहा था कि लड़कियों को खेल में नहीं जाना चाहिए लेकिन खेल में अगर कामयाब होना है तो फोकस ज़रूरी होता है। जब मैं रिंग में होती हूं तो मैं भूल जाती हूं कि मेरा एक परिवार है या एक बच्चा। तब सिर्फ़ ये खेल होता है और मैं।' अपनी पंजाब स्थित अकादमी में कविता को प्रशिक्षित कर इंटरनेशनल स्पोर्ट तक पहुंचाने वाले ग्रेट खली कहते हैं कि 'आज भी लोग महिलाओं को खेल में जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते। हमारा समाज ऐसा है कि यहां औरतों पर दबाव बनाया जाता है। अगर कोई लड़की कुछ अलग करना भी चाहे तो काफ़ी मुश्किलें पेश की जाती हैं। घरवाले दिक्कतें पैदा करते हैं। मानसिक तौर पर उन्हें हराया जाता है।'
आज कविता देवी तो प्रोफेशनल रैसलिंग और खासकर भारतीय फैंस के लिए एक बड़ा नाम बन चुकी हैं। उनका नाम सुनते ही फैंस के जहन में एक ऐसी महिला रैसलर की छवि आ जाती है, जो सूट सलवार पहनकर लड़ती है। कविता एक मैच से वह कामयाबी हासिल कर चुकी हैं, जो कई रैसलर्स ढेर सारे मैच लड़कर भी नहीं कर पाते हैं। कविता देवी की एक वीडियो तो सोलह मिलियन लोग देख चुके हैं। इतने ज्यादा व्यूज़ तो कंपनी के बड़े-बड़े सुपरस्टार्स की वीडियो पर भी नहीं आते हैं। कविता आज जिंदर महल से भी ज्यादा पॉपुलर होने के सपने देखती हैं। खली की अकादमी में ट्रेनिंग ले रहीं कर्नाटक की रितिका कहती हैं कि उनकी मां ने हमेशा उनका साथ दिया है लेकिन वह अपने पिता और भाई के बारे में ऐसा नहीं कह सकती हैं क्योंकि उन्हें लगता रहा है कि रेसलिंग सिर्फ़ लड़कों के लिए होती है। इंदौर की दिव्या कहती हैं कि उन्हे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। वह ताकतवर हैं, इसलिए लड़कों को भी हरा सकती हैं। राजस्थान की सन्नी जाट कहती हैं कि लड़कियों से कहा जाता है, घर में रहो लेकिन उन्होंने ये साबित कर दिया है कि हम लड़की हैं तो क्या हुआ, लड़कों से हम भी कुछ कम नहीं।
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