कैसे स्वच्छ ऊर्जा स्टार्टअप्स सरकार के 100 प्रतिशत ग्रामीण विद्युतीकरण के सपने को कर रहे हैं पूरा
भारत में दुनिया की ऐसी एक तिहाई आबादी रहती है जिसकी बिजली तक पहुंच नहीं है। द क्लाइमेट ग्रुप की एक रपट के मुताबिक, करीब 300 मिलियन भारतीयों की पहुंच बिजली तक है ही नहीं और करीब 100 मिलियन ऐसे हैं जिन्हें प्रतिदिन चार घंटे से भी कम बिजली मिलती है।
2015 से 2018 के बीच 30 स्टार्टअप ने 31 मिलियन डाॅलर के निवेश के साथ, एनर्जी एक्सेस इंडिया कार्यक्रम ने स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंचने में मदद करते हुए 1.2 मिलियन व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित किया है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 28 अप्रैल 2018 की तारीख तक भारत के सभी गांवों के विद्युतीकरण का काम पूरा हो चुका है और अब भारत के 100 प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंच चुकी है। लेकिन वास्तव में इसके मायने क्या हैं? कुछ चुनिंदा स्टार्टअप्स ने अपने स्वच्छ ऊर्जा उत्पादों के जरिये इसे वास्तविकता में जमीनी हकीकत में बदलने का बीड़ा उठाया है।
भारत सरकार ने गांवों के 100 प्रतिशत विद्युतीकरण के काम को अपनी प्राथमिकता की सूची में रखा और अब यह उनकी एक बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि है। अप्रैल के महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था, 'भारत की विकास यात्रा में 28 अप्रैल 2018 का दिन स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। कल हमने एक ऐसा वायदा पूरा किया जिससे कई भारतीयों का जीवन हमेशा के लिये बदल जाएगा! मैं काफी खुश हूं कि अब भारत के हर गांव तक बिजली पहुंच चुकी है।'
ऊर्जा मंत्रालय का कहना है कि ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ (DDUGJY) के तहत तय किया गया ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य समय से पहले ही पूरा कर लिया गया है। इस परियोजना के तहत किसी भी गांव के कम से कम 10 प्रतिशत घरों का विद्युतीकरण होना आवश्यक है तभी वह गांव विघुतिकृत माना जाएगा। केंद्र सरकार का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण का स्तर 82 प्रतिशत से अधिक है जो विभिन्न राज्यों में 47 से 100 प्रतिशत के मध्य है।
राजनीतिक बयानबाजी और दावों को पीछे छोड़ते हैं, लेकिन क्या यह वास्तविकता है? ओनर्जी के सहसंस्थापक पियूष जैन का मानना है कि गांवों का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण अभी भी एक सपना ही है। 'अभी भी ऐसे कई गांव मौजूद हैं जहां बिजली की पहुंच नहीं है। और अगर किसी गांव में बिजली पहुंची भी है तो वह आती-जाती रहती है।'
पीयूष का ओनर्जी, जो एक नवीनीकृत ऊर्जा उद्यम है, फिलहाल ग्रामीण भारत को 'रोशन' करने के मिशन में लगी है और अबतक के अपने आठ सालों के सफर में 10 मेगावाट की संयुक्त बिजली क्षमता के साथ कई सौर छत परियोजनाएं सफलतापूर्वक पूरी की हैं, स्कूलों सहित 300 से अधिक संस्थानों को सौरकृत किया है, 250 सौर माइक्रो-ग्रिड, 5,000 सौर स्ट्रीट रोशनी स्थापित की हैं और 500 से अधिक सौर ऊर्जा चलित सिंचाई पंप बेचे हैं।
विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में विद्युतीकरण के स्तर में घटबढ़ के मद्देनजर सरकार ने दिसंबर 2018 के अंत तक सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण हासिल करने के लिए ‘प्रधान मंत्री सहज बिजली हर घर योजना’ - सौभाग्य को लॉन्च किया। इस मिशन में सरकार के प्रयासों की सहायता करने का काम यूनाईटेड स्टेट्स एजेंसी फाॅर इंटरनेश्नल डवलपमेंट द्वारा वित्त पोषित ‘एनर्जी एक्सेस इंडिया’ (ईएआई) कार्यक्रम और मिलर सेंटर फॉर सोशल एंटरप्रेनरशिप और न्यू वेंचर्स इंडिया द्वारा कार्यान्वित किया गया। ये आगा खान फाउंडेशन, ग्रासरूट एंड रूरल इनोवेटिव डवपलमेंट प्राइवेट लिमिटेड सहित ओनर्जी और ऊर्जा डवलपमेंट साॅल्यूसंश जैसे कई स्टार्टअप के साथ काम करता है।
मिलर सेंटर फॉर सोशल एंटरप्रेनरशिप के सीनियर डायरेक्टर एंड्रयू लीबरमैन कहते हैं, 'हम समाज में सबसे निचले तबके पर रहने वाली आबादी जो प्रतिवर्ष 3,000 डाॅलर (करीब 2.15 लाख रुपये) से कम कमाते हैं, को स्वच्छ ऊर्जा के विकल्प उपलब्ध करवाने में लगे उद्यमियों के सामने आने वाली बाधाओं को दूर करना चाहते हैं, वह भी व्यवसायिक रूप से व्यवहारिक व्यापार माॅडल के जरिये। हमनें उन राज्यों पर अधिक ध्यान देने को प्राथमिकता दी जहां ऊर्जा तक पहुंच बनाना सबसे मुश्किल काम है।'
2015 से 2018 के बीच 30 स्टार्टअप ने 31 मिलियन डाॅलर के निवेश के साथ, एनर्जी एक्सेस इंडिया कार्यक्रम ने स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंचने में मदद करते हुए 1.2 मिलियन व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित किया है।
आवश्यकता
भारत में दुनिया की ऐसी एक तिहाई आबादी रहती है जिसकी बिजली तक पहुंच नहीं है। द क्लाइमेट ग्रुप की एक रपट के मुताबिक, करीब 300 मिलियन भारतीयों की पहुंच बिजली तक है ही नहीं और करीब 100 मिलियन ऐसे हैं जिन्हें प्रतिदिन चार घंटे से भी कम बिजली मिलती है।
एंड्रयू बताते हैं, 'गांव के विद्युतीकरण की हमारी परिभाषा और सरकारी परिभाषा में बहुत अंतर है। ऊर्जा तक पहुंच प्रकृति में दोहरी नहीं होती - ऊर्जा तक पहुंच में नाकामी को एकदम एक ही कदम में ऊर्जा तक पहुंच में नहीं तब्दील किया जा सकता। ऊर्जा तक पहुंच का विश्वनीय होना आवश्यक है। प्रतिदिन सिर्फ चार घंटे से भी कम बिजली पाना या फिर कई दिनों तक एकसाथ बिजली न मिल पाना किसी भी सूरत में पूर्ण विद्युतीकरण नहीं कहा जा सकता।'
पियूष कहते हैं, 'प्रत्येक परिवार और समुदाय की जरूरत अपने हिसाब से बिल्कुल अलग होती है और वे ऊर्जा तक बिल्कुल अलग तरह से पहुंचते हैं। एक किसान की आवश्यकता घरेलू से या फिर एक छोटे व्यवसायी की जरूरत से बिल्कुल अलग हो सकती है।'
वल्र्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट एंड इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन की एक रपट के मुताबिक ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच में कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग कई बार मजबूरी में अनौपचारिक बाजारों पर भरोसा करते हैं और ऐसा करने के क्रम में अक्सर अधिक पैसा भी चुकाते हैं। ऐसे में चुने गए स्टार्टअप्स का प्रमुख काम ऊर्जा तक स्केलेबल पहुंच बनाना और वह भी वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य हो तैयार करना है।
दीर्घकालिक काम
स्टार्टअप्स के सामने आने वाली सबसे प्रमुख चुनौतियों में से एक था सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडियों के चलते बिजली के उपयोग के बदले किये जाने वाले भुगतान को करने में उपभोक्ताओं की अनिच्छा। सरकार द्वारा 2.75 मिलियन सौर पंपों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करवाने की प्रतिबद्धता ने न सिर्फ उपभोक्ताओं के भुगतान करने की इच्छा को कमजोर किया बल्कि ऊर्जा के नए विकल्पों और प्रौद्योगिकियों को अपनाने में भी काफी पछाड़ दिया।
सिम्पा नेटवक्र्स के सह-संस्थापक पॉल नीधाम कहते हैं, 'ग्रामीण भारत में सौर ऊर्जा का विकतरण मुख्यतः दो कारणों के चलते अधिक परवान नहीं चढ़ पाया हैः पहला क्योंकि इसकी अग्रिम कीमत बहुत अधिक है और दूसरा पारंपरिक विक्रेता तकनीक को अपनाने और उपभोक्ताओं से भुगतान लेने के प्रति काफी उदासीन हैं।'
सिम्पा नेटवर्क ने प्रारंभ में सिर्फ घरेलू सौर प्रणाली प्रदान करवाने से बाजार में कदम रखा था, लेकिन वर्ष 2013 के बाद से इन्होंने उपभोक्ताओं की आसानी के लिये उपभोक्ता वित्तपोषण की सुविधा प्रारंभ की। ऐसे उत्पादों को, जिन्हें ग्रामीण या फिर अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ता वहन नहीं कर सकते, सिम्पा नेटवर्क उन्हें उत्पाद और सेवाएं पे-एस-यू-गो यानी समय के साथ भुगतान करते रहें के जरिये उपलब्ध करवाते हैं।
पाॅल बताते हैं, '18 महीने का अनुबंध पूरा होने के बाद सिस्टम स्वयं ही स्थाई रूप से अनलाॅक हो जाता है, इसका स्वामित्व उपभोक्ता को स्थानांताित कर दिया जाता है और मिलने वाली ऊर्जा निःशुल्क और स्वच्छ होती है।'
कोलकाता स्थित अंतर्राष्ट्रीय स्टार्टअप एमलिंडा झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के लिये सोलर माइक्रोग्रिड्स को डिजाइन, स्थापित, संचालित करने के अलावा उनका रखरखाव करता है। ये माइक्रोग्रिड्स 24 घंटे तीन फेज़ वाली बिजली प्रदान करते हैं जिससे उत्पादन का काम भी किया जा सकता है। इसके अलावा यह स्टार्टअप स्थानीय निवासियों को बाजार से संबंध बनाने और स्वयं को विकसित करने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा ये स्थानीय लोगों को जैविक चावल और सरसों के तेल जैसे मूल्यर्वाित उत्पादों के उत्पादन और विपणन में भी मदद करते हैं।
भविष्य
वर्ष 2022 तक ऑफ-ग्रिड और ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा के 100 जीडब्ल्यू के लक्ष्य को पाने के लिए भारत सरकार को 100 अरब डॉलर की धनराशि की आवश्यकता पड़ेगी।
मिशिगन विश्वविद्यालय से जुड़ी और क्लोज़िग सर्किटः एक्सिलरेटिंग क्लीन एनर्जी इन्वेस्टमेंट इन इंडिया रिपोर्ट के सह-लेखक काॅम फे कहते हैं, 'भारत में वर्ष 2030 तक कुल ऊर्जा क्षेत्र में होने वाला निवेश बढ़की 48 बिलियन डाॅलर तक पहुंच सकता है। ऐसे में वित्त पोषण की उपलब्धता न केवल भारत में स्वच्छ ऊर्जा उद्यमियों के लिए बल्कि उन निवेशकों के लिए भी महत्वपूर्ण चुनौती है जो उन्हें समर्थन देना चाहते हैं।'
एक तरफ जहां पूरी दुनिया में आॅफ-ग्रिड ऊर्जा उद्यमों में निवेश काफी तेजी से बढ़ रहा है वहीं एशिया में वर्ष 2013 से 2017 के बीच ऑफ-ग्रिड निवेश बेहद नाटकीय रूप से 31 प्रतिशत से गिरकर एक प्रतिशत से भी कम पर आ गया है। इस गिरावट का सबसे बड़ा कारण ग्रिड विस्तार की उन आक्रामक नीतियों को माना जा रहा है जो ऑफ-ग्रिड व्यापार मॉडल की व्यवहार्यता के लिये खतरा पैदा कर रहे हैं।
अक्सर सीमित मांग और भुगतान करने के प्रति उपभोक्ताओं की अनिच्छा के चलते वाणिज्यिक व्यवहार्यता सुनिरिूचत करने के लिये स्टार्टअप्स अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न करने के क्रम में कई पूरक उत्पाद और सेवाएं भी पेश कर रहे हैं। ग्रास रूट्स एनर्जी इनकाॅर्पोरेटिड अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिये ऊर्जा उत्पादन के उप-उत्पादों का इस्तेमाल करता है। यह स्टार्टअप बिजली का उत्पादन करने के लिये बायोगैस या बायोमास अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन की प्रणालियों को प्र्रयोग में लाता है। इसके अलावा बायोगैस उत्पादन के प्राप्त होने वाला अपशिष्ट कृषि उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया और बेचा जाता है।
भारत ने कुल स्थापित सौर क्षमता के मामले में 25 जीडब्ल्यू के आंकड़े को पार कर लिया है और वह वर्ष 2022 के 100 जीडब्ल्यू के लक्ष्य के करीब पहुंचता जा रहा है। सरकार और स्टार्टअप दोनों के निरंतर प्रयासों के साथ, भारत, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता बनने के अपने लक्ष्य को आसानी से पूरा कर सकता है जो इसकी वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धता का हिस्सा भी है।
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