चल निकली निकिता और भविष्य की चाय पर चर्चा, विदेशों में कारोबार फैलाने 'ब्लूबिन्स' की योजना
दो दोस्त जो कभी एक साथ नौकरी करते थे आज कारोबार संभाल रहे हैं। 24 साल की निकिता बर्मन और 27 साल की भविष्य भान जब जोमाटो के लिए काम करते थे, उस वक्त इनको पता चला कि विभिन्न रेस्टोरेंट मालिकों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ-साथ कई लोगों से बात करने पर पता चला कि रेस्टोरेंट मालिकों को उनके मन मुताबिक उचित प्लेटफॉर्म नहीं मिलता। इस कारण कई बार वो अपने ज़रूरी काम की ओर ध्यान नहीं दे पाते। तब निकिता और भविष्य भान ने तय किया कि क्यों ना वो मिलकर रेस्टोरेंट मालिकों की उन समस्याओं को दूर करें। इसके लिए दोनों ने चाय के दौरान काफी बातचीत करने के बाद आखिरकार साल 2015 की शुरूआत में ब्लूबिन्स(Bluebeans) की स्थापना की। ये रेस्टोरेंट की हर तरह की डिजिटल मार्केटिंग की ज़रूरत को पूरा करता है। ब्लूबिन्स के संस्थापकों के अनुसार, “ये एक सोच समझ कर लगाई गई छलांग थी।”
शुरूआत और चुनौतियाँ
निकिता और भविष्य ने जब अपने काम की शुरूआत की तो उन्होने इस बारे में रेस्टोरेंट मालिकों से बात की इस तरह उनको अपनी कंपनी के लिये कई ग्राहक मिल गये। हालांकि दोनों ने इस तरह बातचीत तब ही शुरू कर दी थी जब वो जोमाटो के लिए काम कर रहे थे। बावजूद हर उद्यमशीलता की यात्रा की तरह आने वाली चुनौतियों का सामना इन लोगों ने भी किया।
दोनों संस्थापकों का कहना है कि “हमारे इस काम के लिए लोगों की नियुक्ति करना काफी मुश्किल था। हम एक ऐसी टीम तैयार करना चाहते थे, जो इस काम के लिए पूरी तरह समर्पित हो और वो गुणवत्ता के साथ कोई समझौता ना करे। हमें अब एहसास होता है कि लोगों को अपने काम को लेकर विश्वास दिलाना कितना मुश्किल होता है और भी तब, जब आपका काम बिल्कुल शुरूआती स्तर का हो।” वो बताते हैं कि उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब उनकी कंपनी का पहला कर्मचारी अच्छी ख़ासी कॉरपोरेट नौकरी छोड़कर इनके साथ काम करने के लिए आया। तब से अब तक निकिता और भविष्य ने एक लंबा रास्ता तय कर लिया है और आज इनकी टीम में कुल 15 सदस्य हैं।
विदेशी बाज़ार की खोज
ब्लूबिन्स इस वक्त दिल्ली और एनसीआर के करीब 40 रेस्टोरेंट को अपनी सेवाएँ दे रहा है। अब इनकी योजना दुबई में भी अपने काम को विस्तार देने की है। क्योंकि दिल्ली एनसीआर इलाके में कारोबार करने के बाद ब्लूबिन्स लाभ की स्थिति में आने लगा है, ऐसे में इसके संस्थापक चाहते हैं कि काम को विस्तार देने के लिए अलग से बाजार को ढूंढा जाये। इसके लिये दुबई की फूड एंड बेवरेज इंडस्ट्री काफी अच्छा विकल्प हो सकती है। संस्थापकों के मुताबिक “वहां के रेस्टोरेंट मालिकों को विभिन्न संगठनों के साथ काम करने की आदत है वहीं दूसरी ओर वहां पर निवेश से मिलने वाला लाभ कहीं अधिक होता है। हमारा मानना है कि हम जिस तरह की सेवाएँ उनको देंगे उसको लेकर वो अच्छा अनुभव करेंगे।”
खास बात ये है कि इनकी टीम का बड़ा हिस्सा दिल्ली में रहकर काम करता है। जबकि दो लोग दुबई में सेल्स और ग्राहकों की सेवाओं का काम देख रहे हैं। अपनी निजी पूँजी लगाकर शुरू हुआ ये स्टार्टअप तेजी से आगे बढ़ रहा है ऐसे में इसके संस्थापक फिलहाल किसी निवेश की संभावना से इंकार कर रहे हैं।
“कई बार निवेश अच्छा विकल्प नहीं होता है और आप अपने दूसरे खर्च बचाकर नई चीजें कर सकते हैं। इसके अलावा बाहरी हस्तक्षेप के बिना आप अपने ग्राहकों पर ज्यादा ध्यान दे सकते हैं।” फिलहाल ये स्टार्टअप 15 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है।
बाज़ार का आकार और प्रतियोगिता
ईवाई की सामाजिक मीडिया मार्केटिंग भारत ट्रेंड रिपोर्ट के मुताबिक 41.5 प्रतिशत सोशल मीडिया से जुड़े संगठन मानते हैं कि उनका 1 से 5 प्रतिशत मार्केटिंग का बजट सोशल मीडिया पर खर्च होता है। तीन चौथाई संगठन ऐसे हैं, जिनका सोशल मीडिया बजट 1 करोड़ रुपये से कम है। जबकि एक चौथाई संगठन ऐसे हैं, जिनका सोशल मीडिया से जुड़ा बजट 2 करोड़ रुपये से ज्यादा का है। बावजूद इसके साल 2014 में14 प्रतिशत ब्रांड ने सोशल मीडिया पर 1-2 करोड़ रुपये खर्च किये। ये बताता है कि साल 2014 में केवल 14.3 फीसदी लोगों ने ही 2 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किये। जबकि इससे पिछले साल 2013 में 17.1 फीसदी लोगों ने इतना खर्च किया था। इससे पता चलता है कि ब्रांड अपने रिटर्न को ध्यान में रखते हुए सोच समझ कर खर्च कर रहे हैं।
बाजार में हर रोज़ नई कंपनियां प्रवेश कर रही हैं और इस कोशिश में हैं कि वो बाज़ार का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा हासिल कर सकें। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि ब्लूबिन्स बड़े खिलाड़ियों की मौजूदगी में अपनी सेवाएं किस तरह की देता है। सोशल मीडिया मार्केटिंग, डिजिटल पीआर, रणनीति और मार्केटिंग गठजोड़ के साथ डिजाइन और सामग्री ये ऐसे मुद्दे हैं जहां पर इस क्षेत्र को मुख्य तौर पर चुनौती का सामना करना पड़ता है। निकिता और भविष्य को इनके अलावा लैंगिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। दोनों संस्थापक भी मानते हैं कि “आधुनिक समय में भी ये निश्चित रूप से कठिन है। हम दोनों के परिवार की बड़ी चिंता यही है कि कब हम लोग शादी कर अपना घर बसाएंगे? एक दिन हमारे एक ग्राहक ने भी पूछ लिया कि अगर आप दोनों की शादी हो गई तो इस कारोबार का क्या होगा? तो हमने भी बिना वक्त गवांए जवाब दिया कि वही हाल होगा जैसा आपकी शादी के बाद आपके रेस्टोरेंट का हुआ था।”
अपने को नीचा महसूस करने की बजाय ये लड़कियां बाजार को अच्छी तरह समझ रही हैं साथ ही इनकी कोशिश है अपनी ओर से बेहतर करने की और उन समस्याओं को दूर करने की जिनका सामना इनको करना पड़ता है। अब इनकी नजर ऐसी ही सफलता दुबई में भी दोहराने की है।
लेखिका- प्रतिक्षा नायक
अनुवाद – गीता बिष्ट