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दृष्टिहीनता की चुनौती का सामना करते हुए स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी तक की यात्रा करने वाले कार्तिक साहनी

नेत्रहीनता के बावजूद नया आदर्श स्थापित करने वाले कार्तिक साहनीनेत्रहीनता को कभी भी नहीं बनने दिया रास्ते का रोड़ासंघर्ष और प्रतिभा के बल पर सामान्य लोगों को भी पछाड़ाकंप्यूटर को बनाया साथी , विज्ञान और गणित की भी की पढ़ाईनेत्रहीनों की ज़िंदगी रोशन करना ही है अब जीवन-लक्ष्य

दृष्टिहीनता की चुनौती का सामना करते हुए स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी तक की यात्रा करने वाले कार्तिक साहनी

Friday January 23, 2015 , 8 min Read

कार्तिक साहनी उस भारतीय युवक का नाम है जो इस दुनिया को देख नहीं सकता , लेकिन उसने दुनिया के कई लोगों को सही रास्ता दिखाया है। बचपन में ही आँखों की रोशनी खो देने वाले कार्तिक ने कभी हार नहीं मानी। उसने कभी खुद को निराश होने नहीं दिया और सामान्य लोगों की तरह की पढ़ने-लिखने की अपनी कोशिशों को जारी रखा। वो दुनिया की रंगीनियत, अलग-अलग चीज़ों और लोगों को देख तो नहीं सकता था , लेकिन उसने सुनहरे सपने देखना बंद नहीं किया। कार्तिक की खूबी इस बात में भी है उसने अपने सपनों को साकार करने के लिए कोई कसार बाकी नहीं छोड़ी और नेत्रहीनों के लिए दुनिया मैं मौजूद टेक्नोलॉजी का हर मुमकिन इस्तेमाल किया। इस नेत्रहीन युवक ने अपने दृढ़ संकल्प और संघर्ष से जो कामयाबियाँ हासिल की हैं , उन्हें हासिल करने में कई सामान्य लोग भी विफल रहे हैं। कार्तिक के संघर्ष और कामयाबी की कहानी सिर्फ नेत्रहीनों को ही नहीं बल्कि सामान्य लोगों के लिए भी प्रेरणादायक है।

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कार्तिक साहनी का जन्म नई दिल्ली में 22 जून1994 को एक मध्यम वर्गीय परिवार हुआ। पिता रविंदर साहनी की लाजपत नगर में एक दूकान है और वो कारोबार करते हैं। माँ इंदू साहनी गृहणी है। कार्तिक की एक जुड़वा बहन है और एक बड़ा भाई भी।

पैदा होने के कुछ ही दिनों बाद ये पता चला कि कार्तिक को 'रेटिनोपेथी ऑफ़ प्रीमेच्यूरिटी' नाम की एक बीमारी है। इस बीमारी की वजह से कार्तिक के आँखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गयी। कार्तिक नेत्रहीन हो गया, लेकिन माँ-बाप ने कार्तिक के लालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी और उसे पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

छोटी-सी उम्र में ही कार्तिक को नेशनल एसोशिएशन ऑफ़ ब्लाइंड में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। नेशनल एसोशिएशन ऑफ़ ब्लाइंड की वजह से ही कार्तिक ने अपना हौसला नहीं गंवाया और पढ़ने-लिखने के अपने सपने को ज़िंदा रखा। एसोशिएशन में मिले प्रोत्साहन की वजह से कार्तिक का आत्मविश्वास भी बढ़ता गया। कार्तिक की काबिलीयत और पढ़ाई में दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए माता-पिता ने उसका दाखिला सामान्य बच्चों के बड़े और मशहूर स्कूल - दिल्ली पब्लिक स्कूल में कराया।

ये दाखिला कोई मामूली घटना नहीं थी। दिल्ली पब्लिक स्कूल जैसे नामचीन शैक्षणिक संस्थान में सामान्य बच्चों के बीच एक नेत्रहीन बच्चे का दाखिला बहुत बड़ी, आसामान्य और अभूतपूर्व बात थी। इससे पहले शायद ही ऐसा कभी हुआ था।

दिल्ली पब्लिक स्कूल ने भी कार्तिक को दाखिला देकर एक साहसिक और सराहनीय काम किया था। स्कूल प्रबंधन भी कार्तिक की प्रतिभा से प्रभावित हुआ था और इसी वजह से उसने एक बड़ा और अभूतपूर्व फैसला लिया।

वैसे तो नेत्रहीनों को सामान्य बच्चों के स्कूलों में दाखिला नहीं दिया जाता और नेत्रहीनों के अलग से बनाये गए स्कूलों में ही उन्हें पढ़ाया जाता है, लेकिन कार्तिक ने अपनी प्रतिभा और तेज़ दिमाग से सभी का मन जीता था। कार्तिक वो करने में कामयाब हुआ था जो दूसरे नेत्रहीन बच्चे अभी नहीं कर पाये थे।

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कार्तिक ने दिल्ली पब्लिक स्कूल की ईस्ट ऑफ़ कैलाश की शाखा में पढ़ाई शुरू की। काम बिलकुल मुश्किल था। दूसरे बच्चे देख सकते थे , लेकिन कार्तिक नेत्रहीन था। नेत्रहीन होने की वजह से कार्तिक किताबें पढ़ नहीं सकता था।

कार्तिक की पढ़ाई के लिए उसकी माँ ने खूब मेहनत की और पाठ्य-पुस्तकों को ब्रेल लिपी में उपलब्ध कराया। ब्रेल पद्धति एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है। इस पद्धति का आविष्कार 1821 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। फिर क्या था, कार्तिक ने पाठ्य-पुस्तकों का ज्ञान सामान्य बच्चों की तरह हासिल करना शुरू किया।

चूँकि कार्तिक के हौसले बुलंद थे और उसके मन में कुछ बड़ा हासिल करने का इरादा था उसने 'एक्सेस टेक्नोलॉजी' की मदद से कंप्यूटर का इस्तेमाल करना सीख लिया। प्रशांत रंजन वर्मा नाम के एक शख्स ने कार्तिक को कंप्यूटर का इस्तेमाल करना सिखवाया था। कुछ ही महीनों में कार्तिक ने कंप्यूटर पर ही अपने स्कूल के सारे काम करना शुरू कर दिया। दूसरी क्लास का एग्जाम उसने कंप्यूटर के ज़रिये ही दिया था।

कंप्यूटर और ब्रेल लिपी के ज़रिये कार्तिक की पढ़ाई आगे बढ़ी। एक के बाद वो हर क्लास पास करता गया। दसवीं की परीक्षा में भी उसने कमाल किया था। परीक्षा में उसका प्रदर्शन वाकई काबिले तारीफ था।

जब कार्तिक के लिए इंटर में दाखिला लेने का समय आया, तब उसे अपनी इच्छा अनुसार विषय चुनने का विकल्प था। अपनी दिलचस्पी के मुताबिक कार्तिक ने गणित , विज्ञान और कम्प्यूटर साइंस चुना। कार्तिक का ये चुनाव देखकर कई लोग दंग रह गए। एक नेत्रहीन छात्र द्वारा विज्ञान , गणित जैसे गंभीर और जटिल विषय चुनना सभी को आश्चर्य में डालने वाला कदम था।

लेकिन, कार्तिक का फैसला अडिग था। कार्तिक के फैसले पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को भी हैरानी हुई। शुरू में तो बोर्ड के अधिकारी कार्तिक को दाखिला देने से इंकार कर रहे थे, लेकिन बाद में उसकी काबिलयत देखकर उसे विशेष अनुमति दे दी। विज्ञान और गणित की क्लास में दाखिला कार्तिक की एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

सामान्य तौर पर विज्ञान और गणित की क्लासों में नेत्रहीन बच्चों को दाखिला नहीं दिया जाता। आम तौर पर नेत्रहीन बच्चों को आर्ट्स की ओर मोड़ा जाता हैं। लेकिन, कार्तिक ने अपनी प्रतिभा , मेहनत और मजबूत इरादों की वजह से बोर्ड के अधिकारियों को भी मनाने में कामियाब रहा।

दाखिले के बाद कार्तिक ने किसी को भी निराश नहीं किया। ग्यारहवीं की परीक्षा में उसने ९३. ४ % और बारहवीं की परीक्षा में और भी ज्यादा 95.8 % अंक हासिल किये।

कार्तिक ने अपने इन अंकों की वजह से भारत में विज्ञान और गणित वर्ग में ये उपलब्धि हासिल करने वाला पहला नेत्रहीन छात्र बन गया। यानी कार्तिक ने वो कर दिखाया जिसे भारत में पहले किसी दूसरे नेत्रहीन लड़के ने नहीं किया था। दिल्ली पब्लिक स्कूल रामकृष्णा पुरम में ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई करने वाले कार्तिक ने कम्प्यूटर साइंस में ९९ अंक, इंग्लिश, गणित , भौतिक-शास्त्र और रासायनिक शास्त्र में 95.95 अंक हासिल किये थे। एक मायने में कार्तिक ने वो कर दिखाया था जो कई सामान्य बच्चे नहीं कर पाते हैं। परीक्षाओं में कार्तिक ने कई सामान्य बच्चों को पछाड़ा था।

दृढ़ संकल्प और एक अजब-सी जिद का नतीजा था कि कार्तिक लगातार कामयाब होता आ रहा था।

कार्तिक ने बारहवीं की परीक्षा देने से पहले ही ठान ली थी कि वो देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी में दाखिला लेगा। उसने आईआईटी में दाखिले के लिए जेईई यानी 'जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम' के लिए भी तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन, आईआईटी के नियमों के मुताबिक किसी नेत्रहीन विद्यार्थी को संस्था में दाखिला नहीं दिया जा सकता था। आईआईटी में पढ़ने के अपने सपने को साकार करने के लिए कार्तिक ने अपनी कोशिशें जारी रखीं। कार्तिक ने उसकी काबिलियत को परखने के बाद ही उसे संस्था में जगह देने का अनुरोध किया। लेकिन, संस्था के अधिकारी नियमों का हवाला देते रहे और कार्तिक को आईआईटी में जगह नहीं मिल पाई। कार्तिक निराश तो हुआ , लेकिन उसने अब अपना लक्ष्य बदल लिया।

कार्तिक ने अपनी प्रतिभा के बल पर अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिले की योग्यता हासिल कर ली। महत्वपूर्ण बात तो ये भी है कि कार्तिक ने यूनिवर्सिटी की परीक्षा पास कर "फुल स्कालरशिप" हासिल की। यानी कार्तिक को यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए कोई फीस नहीं देनी पड़ी। कार्तिक की अनेक कामयाबियों में ये भी एक बड़ी कामयाबी थी। उसे पिता अपनी संतान की इन कामयाबियों बहुत फक्र महसूस कर रहे हैं।

कार्तिक २००७ में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से बीएस की अपनी डिग्री हासिल कर लेगा। वो फिलहाल कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहा है। उसने अभी से मन बना लिया है कि अपने ग्रेजुएशन के बाद को नेत्रहीन लोगों के विकास के लिए खुद को समर्पित करेगा। उसका इरादा है कि टेक्नोलॉजी की मदद से नेत्रहीनों को पढ़ाया-लिखाया जाय और उन्हें भी आत्म-निर्भर बनाने में उनकी हर मुमकिन मदद की जाय।

इस बात में दो राय नहीं है की कार्तिक की कहानी कोई सामान्य कहानी नहीं है। संघर्ष और मेहनत की एक ऐसी कहानी है जो दुनिया-भर के लोगों को सन्देश देती है कि कठिन परिस्थितियों में हार मान लेने से ज़िंदगी थम जाती है और चुनौतियों का डट कर मुकाबला करने से ही असामान्य जीत हासिल होती है। कार्तिक सिर्फ नेत्रहीनों के लिए ही आदर्श नहीं है , उससे सामान्य लोग भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। नेत्रहीन होने के बावजूद जिस तरह से कार्तिक ने पढ़ाई-लिखाई की और बड़ी-बड़ी परीक्षाओं में अव्वल दर्जे के नंबर हासिल किये, उसने भारत में ही नहीं लेकिन दुनिया-भर के लोगों का ध्यान उसकी ओर आकर्षित किया। कार्तिक को उसकी आसामान्य कामयाबियों के लिए राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। कामयाबी की उसकी कहानी दुनिया-भर में सुनी-सुनायी जाने लगी।

कार्तिक के जीवन और उसकी कामयाबी में उसके माता-पिता भी अहम भूमिका है। जब कार्तिक के माता-पिता को पहली बार जब ये मालूम हुआ कि कार्तिक कभी देख नहीं पाएगा तो उनपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। अपनी संतान को लेकर कई सुनहरे सपने जो उन लोगों ने संजोये थे वो चकनाचूर हो गये थे। उन्हें लगा कि उनका बेटा ज़िंदगी भर परेशानियों से झूझता रहेगा, लेकिन जैसे-जैसे कार्तिक बड़ा होता गया, उसके हौसले बढ़ते गए। उसमें जो काबिलियत थे और सामान्य बच्चों की तरह की पढ़ने की जो प्रबल इच्छा थी , उसके देखकर माँ के मन में भी नए सपने जगे थे। माँ ने कार्तिक को पढ़ाने के किये खूब मेहनत की थी। माँ ने कार्तिक के लिए जो कुछ किया वो भी कइयों के लिए एक ऐसा उदाहरण है जिससे ज़िंदगी की चुनौतियों का किस तरह से सामना करना है इसकी जानकारी मिलती है।