महाराष्ट्र की ये महिला किसान एक एकड़ ज़मीन पर सालाना उगाती है 15 फसलें
महाराष्ट्र की महिला किसान वनिता बालभीम मनशेट्टी ने अपनी कड़ी मेहनत और बुद्धि को सही दिशा देते हुए एक साल में 15 किस्म की फसलें उपजा कर सभी को चकित कर दिया है।
औरत यदि कुछ करने का ठान ले, तो कुछ भी नामुमकिन नहीं हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं महाराष्ट्र की महिला किसान वनिता बालभीम मनशेट्टी।
वे दिन कुछ और थे जब महिलाएं खेतों में किसान भाईयों को सिर्फ नाश्ता-खाना पहुँचाया करती थीं। खेत-खलिहान को पुरुष प्रधान क्षेत्र माना जाता था, क्योंकि खेती करने में शारीरिक श्रम की अत्यधिक आवश्यकता होती थी। समय के साथ-साथ खेती के मायने बदल रहे हैं और हमारे वैज्ञानिकों द्वारा उन्नत तकनीक विकसित किये जाने के साथ शारीरिक बल से ज्यादा बुद्धिबल को प्रयोग में लाया जा रहा है। जिसक चलते अब हमारे देश की किसान महिलाएं भी धरती पुत्री बन पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर कार्यक्षेत्र में बढ़-चढ़ कर अपना योगदान दे रही हैं।
इन बातों को सत्यार्थ करते हुए महाराष्ट्र की महिला किसान वनिता बालभीम मनशेट्टी ने अपनी कड़ी मेहनत और बुद्धि को सही दिशा देते हुए एक साल में 15 किस्म की फसलें उगा कर सभी को चकित कर दिया है। वर्ष 2014 में वनिता ने ‘एक एकड़ में खेती’ का फ़ॉर्मूला अपनाया और अथक परिश्रम कर अपने सपनों को साकार कर दिखाया। इस फ़ॉर्मूले की सफलता से वनिता को अपने परिवार का भविष्य उज्जवल नज़र आ रहा है, क्योंकि अब उन्होंने खुद को एक आत्मनिर्भर महिला किसान के रूप में खड़ा कर लिया है।
महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के छोटे से गाँव चिवडी की रहने वाली 35 वर्षीय वनिता बालभीम मनशेट्टी चार बेटिओं की माँ हैं। खुद 8वीं कक्षा तक पढने वाली वनिता अपनी चारों बेटियों को पोस्ट-ग्रेजुएशन करवा कर उन्हें अच्छी नौकरी के काबिल बनाना चाहती हैं। उनकी बड़ी बेटी ग्रेजुएशन तथा सब से छोटी बेटी अभी आठवीं कक्षा की छात्रा है।
वनिता के पति बालभीम मनशेट्टी खेती में हाथ बटाने के साथ-साथ ठेकेदारी भी करते हैं और घर का खर्च चलाने में दोनों अपना योगदान देते हैं। अपनी पत्नी को एक सफल किसान के रूप में देख कर बालभीम मनशेट्टी खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। वनिता ने अपने घर पर कुछ गायें भी पाल रखी हैं, जिससे प्राप्त दूध को गाँव में बेचती है और गोबर को उर्वरक के रूप में खेतों में इस्तेमाल करती है। एक बार शिक्षण प्रयोग (एसएसपी) के सदस्य कुछ महिलाओं को स्वउद्यम की कार्यशाला में जैविक खेती से सम्बंधित कार्यों से अवगत कराने हेतु कृषि विज्ञान केंद्र सिद्धागिरी ले गये, तो उनमें वनिता भी शामिल थीं। इस दौरान वनिता को जैविक खेती के बारे में काफी करीब से जानने का मौका मिला। उन्होंने देखा कि एक एकड़ जमीन पर हमारे रोजमर्रा के जीवन में उपयोग होने वाली करीब 100 फसलें उगाई गयी थीं। एक छोटे से खेत में तरह-तरह की फसलें देख कर वनिता आश्चर्यचकित रह गयीं। वनिता बताती है कि वहाँ से आने के बाद मन में एक विचार घर कर बैठा कि वो भी अपनी एक एकड़ जमीन पर जैविक खेती कर सकती हैं और उसी समय उन्होंने फैसला किया, कि "मैं भी ऐसा कर के दिखाउंगी।"
वनिता के पति हाई ब्लड प्रेशर तथा मधुमेह से ग्रसित थे जिसके कारण वह बहुत चिंतित रहा करती थीं और उसके विचार से जैविक खेती में ही चिंता का समाधान नज़र आ रहा था। उसने जैविक खेती कर अपने परिवार को पौष्टिक व स्वच्छ आहार देने का फैसला किया। खेती में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त जैविक खेती की शुरुआत करने के लिए उन्होंने दो एकड़ खेत बटाई पर लिया और अपनी एक एकड़ जमीन पर उन्होंने दलहन, अनाज और हरी सब्जियां उगानी शुरू कर दीं। अपने खेतों में अंगूर और सोयाबीन की खेती करनी शुरू की। फिर अगले साल भी इन्हीं फसलों को दोहराया, लेकिन इस बार कुदरत की मार के वज़ह से उन्हें सफलता हासिल न हो सकी। वर्ष 2016 में उन्होंने सफलतापूर्वक एक एकड़ में 15 फसलें जैसे- अनाज, दलहन और हरी सब्जियां उगा कर एक मिसाल कायम कर दी है। वनिता एक प्रशिक्षित किसान की तरह खेत के 68 फीसदी हिस्से में बरसात के समय खरिफ़ तथा जाड़ों में रबी की फसलों की बड़ी कुशलतापूर्वक खेती करती हैं।
2015 में वनिता ने लगभग 3900 किलो फसल उपजाई, जिसमें 25 फीसदी का इस्तेमाल स्वयं कर बाकी बची हुई फसल का व्यापार किया। जैविक खेती में उन्होंने प्रति एकड़ 9500 रूपये की लागत लगा कर दो फसली मौसम में करीब 44500 रूपये तक का मुनाफा कमाया। वनिता खेतों में उपयोग करने के लिए खाद की जगह अपनी गाय के गोबर का प्रयोग कर खाद का पैसा भी बचा लेती हैं और साथ ही साथ पौष्टिक फसल भी उपजाती हैं।
वनिता कहती हैं कि "मैं जानती हूँ कि एक परिवार के स्वास्थ के लिए सुद्ध और पौष्टिक आहार की महत्त्वपूर्ण है। मेरा परिवार मेरा पूर्ण रूप से सहयोग करता है। बच्चे मुझे इज्ज़त देते हैं और मेरी बेटियां मुझे अपना आदर्श मानती हैं। इन सब के साथ-साथ गाँव वाले मुझे प्रगतिशील महिला किसान के रूप में जानते हैं।"
वनिता ने अपने बलबूते सफलता के पायदान को पार कर लिया है और समाज के लिए नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। इनके हौसले और मेहनत ने देश की महिलाओं को प्रेरित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ उनका उत्साहवर्धन भी किया है।
-प्रस्तुति: उत्पल आनंद
ये भी पढ़ें: सिर्फ 5 लाख में बिना मिट्टी के खेती की, दो साल में टर्नओवर हुआ 6 करोड़