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इस रिक्शेवाले ने गरीबों के बच्चों को पढ़ाने के लिए खोले 9 स्कूल

कम उम्र से रिक्शा चलाने वाले इस शख़्स ने ज़रूरतमंद बच्चों के लिए खोल दिये 9 स्कूल...

इस रिक्शेवाले ने गरीबों के बच्चों को पढ़ाने के लिए खोले 9 स्कूल

Monday March 12, 2018 , 3 min Read

अहमद बताते हैं कि काफी कम उम्र में ही उन्हें रिक्शा थमा दिया गया था। घर का गुजारा चलाने के लिए वह रिक्शा चलाते रहे। लेकिन वह हमेशा यह सोचते थे कि आने वाली पीढ़ी के बच्चों को ऐसी मुश्किल की वजह से स्कूल न छोड़ना पड़े इसलिए कुछ किया जाए।

अहमद अली (सबसे बाएं)

अहमद अली (सबसे बाएं)


रिक्शा चलाने वाले अहमद के पास इतने पैसे तो थे नहीं कि वह खुद से स्कूल खोल सकें, इसलिए उन्होंने अपनी एक कीमती जमीन बेच दी। उन्होंने गांव के लोगों से भी थोड़े-थोड़े पैसे लिए। तब जाकर 1978 में पहला स्कूल खुला।

समाज में कई सारे लोगों को जिंदगी में मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं होती हैं। दो वक्त की रोटी जुटाना ही मुश्किल होता है तो फिर उनके लिए पढ़ाई-लिखाई दूर की कौड़ी लगने लगती है। ऐसे लोग अपने परिवार का गुजारा करने के लिए मजदूरी करते हैं और वे शिक्षा से पूरी तरह से बेखबर हो जाते हैं। लेकिन हम आपको एक ऐसे अशिक्षित व्यक्ति की कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं जो पिछले 40 सालों से न जाने कितने बच्चों को शिक्षित कर चुका है।

असम के करीमगंज जिले के रहने वाले अहमद अली रिक्शा चलाते थे। अहमद की पारिवारिक पृष्ठभूमि कुछ ऐसी थी कि उनकी पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाई। उन्हें अपनी जिंदगी गरीबी में गुजारनी पड़ी। लेकिन उन्होंने अपने आने वाली पीढ़ी को पढ़ाने के लिए एक अनोखा रास्ता चुना। उन्होंने अपनी जमीन बेचकर स्कूल खोले और बच्चों की पढ़ाई का प्रबंध किया। पिछले 40 सालों में वह अपने इलाके में 9 स्कूल खोल चुके हैं।

अहमद बताते हैं कि काफी कम उम्र में ही उन्हें रिक्शा थमा दिया गया था। घर का गुजारा चलाने के लिए वह रिक्शा चलाते रहे। लेकिन वह हमेशा यह सोचते थे कि आने वाली पीढ़ी के बच्चों को ऐसी मुश्किल की वजह से स्कूल न छोड़ना पड़े इसलिए कुछ किया जाए। वह कहते हैं कि अशिक्षा किसी भी समाज के लिए एक अभिशाप है और अशिक्षित समाज की जड़ें कमजोर होती हैं जिससे समाज में कई तरह की समस्याएं जन्म लेती हैं।

रिक्शा चलाने वाले अहमद के पास इतने पैसे तो थे नहीं कि वह खुद से स्कूल खोल सकें, इसलिए उन्होंने अपनी एक कीमती जमीन बेच दी। उन्होंने गांव के लोगों से भी थोड़े-थोड़े पैसे लिए। तब जाकर 1978 में पहला स्कूल खुला। अब तक वे तीन लोवर प्राइमरी स्कूल, पांच इंग्लिश मीडियम मिडल स्कूल और एक हाई स्कूल की स्थापना कर चुके हैं। अब वे एक कॉलेज खोलने की प्रक्रिया में हैं। अहमद की दो पत्नियां और सात बच्चे हैं। स्कूल खोलने के एवज में अहमद को कुछ नहीं चाहिए। वह कहते हैं कि जब उनके स्कूल के बच्चे कुछ अच्छा करते हैं या नौकरी पा जाते हैं तो उन्हें काफी सुकून महसूस होता है।

इलाके के विधायक क्रिश्नेंदु पॉल ने अहमद की प्रशंसा की और कहा कि वह सच्चे समाज सेवी हैं। विधायक ने उन्हें और स्कूल खोलने के लिए सरकार की तरफ से केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के तहत 11 लाख रुपये भी दिए। अहमद उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा बन गए हैं जो समाज में किसी भी तरह का बदलाव लाने में यकीन रखते हैं।

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