पदक, पोस्टिंग एवं प्रमोशन के मकड़जाल से दूर पुलिस अफसर 'अमिताभ यश'
अमिताभ यश का शुमार उत्तर प्रदेश के उन चुनिंदा पुलिस अधिकारियों में किया जाता है, जिन्होंने पदक, पोस्टिंग एवं प्रमोशन के मकड़जाल से दूर रहते हुए पुलिसिंग को नए आयाम दिये और अपने सेवाकाल की आधी अवधि एसटीएफ में रहकर उन्होंने करीब तीन दर्जन से ज्यादा यानि की 36 से भी ज्यादा अपराधियों को मार गिराया।
"खिरदमंदों से क्या पुछूं कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फिक्र में रहता हूं मेरी इन्तिहा क्या है,
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है?"
मशहूर शायर अल्लामा इकबाल का ये जोशीला कलाम भारतीय पुलिस सेवा के जांबाज, कर्मठ, जुझारू अफसर अमिताभ यश की अफसानवी शख्सियत को बखूबी बयान कर रहा है। दशकों तक आतंक का पर्याय रहे ददुआ, ठोकिया और निर्भय गुर्जर जैसे डकैतों को उनके अंजाम तक पहुंचा कर उत्तर प्रदेश पुलिस के ध्येय वाक्य 'परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्’ को मूर्तरूप प्रदान करने वाले अमिताभ यश वर्तमान समय में पुलिस महानिरीक्षक, रेलवे के पद पर तैनात हैं।
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ऐसे कई वाकये हुए जब अपराधियों पर सख्ती के कारण अमिताभ यश का तबादला हुआ, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी शैली में बदलाव नहीं किया। बीहड़ के पथरीले रास्तों से लेकर महानगरों के राजमार्गो तक को कानून व्यवस्था का पाठ पढ़ाने वाले अमिताभ आधुनिक तकनीक में विश्वास करते हैं।
मूल रूप से बिहार के रहने वाले आईपीएस अमिताभ यश को अपराधियों के खिलाफ सख्त रवैये के लिए जाना जाता है। यहां एक बात का ज़िक्र मौज़ू होगा कि जहां एक तरफ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी किसी ऑपरेशन के दौरान पीछे रहते हैं और कनिष्ठ अधिकारी आगे लेकिन यूपी पुलिस के एंग्री यंग मैन अमिताभ यश को ऑपरेशन को लीड करने का शौक है। अमिताभ की यही अदा उन्हें दूसरों से जुदा करती है। अपने सेवाकाल की आधी अवधि एसटीएफ में रहकर उन्होंने करीब तीन दर्जन से ज्यादा यानि की 36 से भी ज्यादा अपराधियों को मार गिराया। इसके अलावा कई दर्जन एनकाउंटर करने वाली टीमों को उन्होंने गाइड और लीड किया।
अपराधियों में अपने नाम के ख़ौफ पर अमिताभ कहते हैं, कि 'अपराधी खौफ खाएं ये सबको अच्छा लगेगा। लेकिन जहां तक बात सुपर कॉप होने की है तो पुलिसिंग कोई एकल विधा नहीं है। ये टीम वर्क है। सभी की अपनी-अपनी भूमिका है। अत: कोई सुपर कॉप नहीं है। हां एक अच्छी टीम अच्छे परिणाम देती है। किन्तु आपकी व्यक्तिगत बहादुरी, रणनीति कौशल , समस्याओं से लड़ने की जिजीविषा अवश्य ही टीम में विश्वास और उत्साह जगाता है तथा अपराधियों में भय उत्पन्न करता है।'
मोटीवेशन है सफल पुलिसिंग की बुनियाद : अमिताभ यश
अमिताभ यश ने हाईस्कूल पटना के सेंट मिशेल हाईस्कूल से किया। हाईस्कूल करने के बाद वे दिल्ली आ गये और दिल्ली के डीपीएस आर.के पुरम से इंटर पास किया। दिल्ली के ही सेंट स्टीफेन कॉलेज से बीएससी आनर्स किया और कानपुर आईआईटी से एमएससी। वे अपने डिपार्टमेंट के टॉपर और पढ़ाई में हमेशा से होशियार रहे।
एक टीम लीडर के बारे में बात करते हुए अमिताभ कहते हैं, कि 'टीम लीडर का काम अपनी टीम को मोटीवेट करना होता है। दरअसल पुलिसिंग की सम्पूर्ण विधा ही मोटीवेशन पर आधारित है। जितना उम्दा मोटीवेशन होगा उसके उतने ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे और सकारात्मक परिणाम देने वाली टीम का लीडर उत्कृष्ट टीम लीडर के रूप में जाना जायेगा। अपने सहकर्मियों और मातहतों की क्षमता को पहचान कर उन्हें उनकी रूचि का कार्य सौपना साथ ही क्षमता अभिवर्धन के लिये प्रेरित और संसाधन उपलब्ध कराना भी टीम लीडर के दायित्व के दायरे में आता है।' उनके अनुसार मोटिवेशन कोई प्रबंधकीय शब्दकोष का शब्द मात्र न होकर पूरा एक दर्शन है। एक टीम लीडर का सबसे बड़ा दायित्व है कि वो अपनी टीम को मोटिवेट करने में सफल हो।
सूबे में दिनोंदिन खराब होती कानून-व्यवस्था पर बात करते हुए अमिताभ कहते हैं, कि 'कौन कहता है कानून-व्यवस्था की स्थिति दिनोंदिन खराब हो रही है? ज्यादा पीछे नहीं नब्बे के दशक से लेकर आज तक का ग्राफ देख लीजिये। डकैती विद मर्डर आये दिन की घटना होती थी। लेकिन अब वो हालात नहीं है। मुझे याद है कि लगभग एक दशक पहले तक प्रत्येक जनपद में कोई न कोई माफिया होता था लेकिन आज स्थिति नियंत्रण में है। अत: यदि आप समीक्षा करें तो पायेंगे कि अपराध का स्तर कम हो रहा है। कानून का इकबाल बुलंद हुआ है और अपराधी के मन में भय बढ़ा है।'
'सुधार सतत चलने वाली प्रक्रिया है। उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में हर स्तर पर सुधार की दरकार है। पुलिसिंग के तरीके में सुधार की जरूरत है। हमारे सभी कर्मचारियों की व्यवसायिक दक्षता को बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है': अमिताभ यश
उनके अनुसार पुलिसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी सुधार की जरूरत है। अत्याधुनिक हथियारों से लेकर तकनीकि दक्षता में अभिवर्धन समय की मांग है। जिस प्रकार आतंरिक सुरक्षा के क्षेत्र में विदेशी हस्तक्षेप के साक्ष्य मिल रहे हैं, उस लिहाज से पुलिस का आधुनिकीकरण अपरिहार्य आवश्यकता है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अमिताभ कहते हैं, कि 'अपराध और अपराधी से निपटने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम को अंजाम देना चाहिए। मेरा मानना है कि अपराध रोकने के लिए पुलिस के तीन काम होते हैं। सबसे पहले ऑपरेशन, दूसरा इन्वेस्टिगेशन और तीसरा रिकार्ड मेनटिनेन्स। इन तीनों पर गंभीरता से कार्य करने की बहुत जरूरत है। पहला ऑपरेशन बेसिकली अपराधी को पकड़ना अपराधी की पहचान करना, इन्वेस्टिगेशन यानी जो विवेचनाएं हैं उनको जल्द से जल्द पूरा कराना, अच्छी विवेचना करना यानी साक्ष्य संकलन अच्छा कराना, दोषियों पर चार्जशीट लगाना, निर्दोषों को बरी करना और उसके बाद सफल प्रोसिक्यूशन कराना। यदि विवेचना सही प्रारूप में की जाती है तो किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलेगी। क्षेत्र में पूर्व में घटित हुए अपराधों और विवादों पर पुलिस की पैनी नजर होनी चाहिए।
अमिताभ यश ने एसटीएफ में रहकर लगभग तीन दर्जन से ज्यादा डकैतों का खात्मा किया है। उन दिनों के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, 'वो दौर मुश्किल तो था, लेकिन था बड़ा मजेदार। उस वक्त हमारे साथ टीम भी बहुत अच्छी थी, जो हमारे साथ लड़के थे कांस्टेबल से लेकर एडिशनल एसपी तक सभी अपने-अपने क्षेत्र के एक्सपर्ट थे। शुरूआती दिनों में जब अनुभव कम था, तब ऊर्जा का इस्तेमाल अधिक होता था, किंतु अनुभव बढ़ने के साथ-साथ आपरेशंस में ताकत का कम, दिमाग और टेक्नोलॉजी का ज्यादा इस्तेमाल बढ़ गया।'
21 जुलाई 2007 को चित्रकुट, बांदा में दहशत का पर्याय बने ददुआ का एनकांउन्टर, 4 अगस्त 2007 को चित्रकुट में ही ठोकिया का सफाया और 19 मार्च 2008 को फतेहपुर में उमर केवट को मार गिराने का काम अमिताभ यश के कार्यायकाल के दौरान ही किया गया।
कोई भी गुडवर्क टीम भावना से ही संभव होता है। जिन दिनों अमिताभ यश बुदेलखण्ड में थे, तो उनके अधिनस्थ काम करने वाली टीमों ने लगभग 18 गैंग का सफाया किया था और फिरौती हेतु अपहरण करने वाले लगभग 100 से ज्य़ादा अपराधियों को मार गिराया था। उनके एसटीएफ और एसएसपी के सवा दो साल के कार्यकाल में 65 से ज्य़ादा अपराधियों का सफाया किया गया था। उस बीच कुछ ऐसे भी विशेष कार्य थे जिन्हें अमिताभ पब्लिकली डिस्कस नहीं करते। अपनी उपलब्धियों के लिए वे अपनी टीम के साथ-साथ अपने उच्चाधिकारियों के मार्गदर्शन की भूमिका को अहम मानते हैं।
अमिताभ के अनुसार उत्तर प्रदेश पुलिस में मानव संसाधन की कमी एक बड़ा विषय है। कमोबेश कम या ज्यादा मात्रा में कानून व्यवस्था की स्थिति भी इससे प्रभावित होती है। लेकिन उनका मानना है कि पुलिसिंग संख्या से अधिक सामर्थ्य और संकल्प पर निर्भर करने वाली विधा है। एक सक्षम, समर्थ पुलिस बल की छोटी टोली ज़िले में अपराधियों को इलाका छोड़ने को विवश कर देती है।
'एनकाउन्टर नियोजित नहीं, बल्कि परिस्थितजन्य कार्यवाही है। ये अंतिम विकल्प है, इसलिये इसे अपरिहार्य होने की आवश्यकता नहीं': अमिताभ यश
एनकाउन्टर पुलिसिंग पर बात करते हुए अमिताभ कहते हैं, कि 'एनकाउन्टर पुलिसिंग की अपरिहार्य आवश्यकता बिल्कुल नहीं। कोई गिरोह या अपराधी लगातार संज्ञेय अपराधों को अंजाम दे रहा है, कानून-व्यवस्था के लिये सवाल बनता जा रहा है, तो स्वाभाविक रूप से पुलिस अपने दायित्व के अनुसार उसे पकड़ने, गिरफ्तार करने की कोशिश करेगी। इस कोशिश के दौरान अगर अपराधी हिंसक हो जाये, पुलिस पर हमलावर हो जाये तो विकल्प शून्यता की स्थिति में अपराधी को नियंत्रित करने के लिये पुलिस को भी वैसी ही कार्यवाही करनी पड़ती है। उसमें कभी-कभी पुलिस कर्मियों को शहादत नसीब होती है तो कभी अपराधी गोली के शिकार बनते हैं। इसलिये एनकाउन्टर एक परिस्थितजन्य कार्यवाही है। वह कोई नियोजित नहीं होती। चूंकि ये अंतिम विकल्प होता है, इसलिये कतई अपरिहार्य नहीं।'
अमिताभ यश को अपने काम के चलते कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है, जिनमें मुख्य रूप से तीन बार गारंटी मेडल और पुलिस मेडल मिल चुका है। मुख्यमंत्री उत्कृष्ट सेवा मेडल से भी उन्हें नवाजा जा चुका है।
योर स्टोरी के माध्यम से अमिताभ यश अपने मातहत कर्मचारियों और नागरिकों से ये कहना चाहते हैं, कि 'कर्मचारी अपने पदेन दायित्वों के निर्वाहन में कोई शिथिलता न बरतें। पुलिसिंग को सिर्फ नौकरी नहीं बल्कि एक संकल्प मानें' और नागरिकों से वे ये अपील करते हैं, कि 'पुलिस आपके सहयोग के लिए है और पुलिस विभाग बिना अवाम के सहयोग के नहीं चल पायेगा, तो अवाम जितना सहयोग देगी पुलिस विभाग उतनी ही तत्परता से उनकी सेवा के लिए हाजिर रहेगा।'
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