मिर्च की खेती से लाखों रुपए कमा रहे छत्तीसगढ़ के किसान
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मिर्च की खेती ने किसानों की जिंदगी में भरपूर मिठास घोल दी है। मध्य प्रदेश के किसान तो सालाना सत्तर लाख रुपए तक कमाने लगे हैं। एक एकड़ में चार-पांच लाख का मुनाफा हो जा रहा है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह स्वयं खेतों तक पहुंचकर ऐसे किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
हर वर्ष ऐसे किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे आसपास के मजदूरों को रोजगार भी मिल रहा है। किसान तीखी मिर्च की बिक्री से लाखों रुपए कमा रहे हैं।
तीखी मिर्ची की खेती ने छत्तीसगढ़ के किसानों की जिंदगी में मिठास घोल दी है। वे पांच-पांच लाख रुपए सालाना का मुनाफा कमाकर मालामाल हो रहे हैं। वह जगदलपुर (छत्तीसगढ़) के गांव भाटपाल के दशरथ, रुपसिंह हों या लैलूंगा (रायगढ़) के गांव कूपापानी के मुकुंद राम प्रधान, किसानों की जिंदगी में आई हरियाली पर मुग्ध प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह स्वयं खेतों में पहुंचकर उन्हें शाबाशी दे आए। पूरे छत्तीसगढ़ में मिर्च की खेती किसानों के लिए वरदान बनकर आई है। यहां की मिर्च की बाजार में भारी डिमांड है।
दशरथ सिंह और उनके भाई रूप सिंह ने घर की तंगहाली में मिर्च की खेती शुरू की। उनके पास कुल बारह एकड़ जमीन है। पहले धान की खेती से उनके घर-परिवार नहीं चल पाते थे। वह उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से मिले। उनके सहयोग से वे वर्ष 2012 में साढ़े तीन एकड़ में मिर्च की खेती करने लगे। ड्रिप सिस्टम लगा लिया। पूरे साल खेती होने लगी। जब घर में इफरात पैसे आने लगे, उन्होंने मिर्च बाजार तक पहुंचाने के लिए अपनी गाड़ियां भी खरीद लीं। अब मिर्च की खेती से उनकी सालाना पांच लाख रुपए तक की कमाई होने लगी है। इसी तरह कूपाकानी के किसान मुकुंद राम प्रधान सवा एकड़ में मिर्च की खेती कर सालाना लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं। राष्ट्रीय बागवानी मिशन की मदद एवं नई तकनीक से मिर्च की खेती ने उनके जीवन में खुशहाली ला दी है। परंपरागत खेती से वह सवा एकड़ में बमुश्किल 15-20 हजार रुपए कमा पाते थे। अब उनकी देखादेखी गांव के अन्य कृषक भी मिर्च, बैगन, बरबटी, टमाटर, लौकी, मखना, तोरई की खेती करने लगे हैं।
मुकुंद राम बताते हैं कि 'छत्तीसगढ़ शासन द्वारा हम जैसे छोटे किसानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इसका लाभ भी किसानों को मिलने लगा है। अब तक वह पारंपरिक खेती से अपने परिवार का गुजारा करते आ रहे थे, अब शासन की योजना एवं उद्यान विभाग की सलाह से मिर्च की खेती उन्हें मालामाल कर रही है। उनके पास कुल चार एकड़ पुश्तैनी कृषि भूमि है। उसमें से पहले उन्होंने सवा एकड़ की गहरी जुताई कर दस ट्रैक्टर गोबर की खाद और संतुलित मात्रा में रसायनिक उर्वरक का छिड़काव किया। उद्यानिकी विभाग से हाईब्रिड मिर्च के बीज लेकर पॉलीथिन की थैलियों में उसका पौधा तैयार किया। पौधों को थायरम दवा से उपचारित कर कतारों में रोप दिया। अब उन्होंने मिर्च की खेती का रकबा बढ़ा दिया है। अच्छी-खासी आमदनी होने लगी है। बाद में तो जिला कलेक्टर ने भी गांव पहुंचकर उनको शाबाशी दी।
बलरामपुर (छत्तीसगढ़) के शंकरगढ़ और कुसमी क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर किसान पिछले पांच सालों से मिर्च की खेती कर रहे हैं। हर वर्ष ऐसे किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे आसपास के मजदूरों को रोजगार भी मिल रहा है। किसान तीखी मिर्च की बिक्री से लाखों रुपए कमा रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी भी इन किसानों की हर तरह से मदद कर रहे हैं; लेकिन जशपुर के किसानों की दास्तान कुछ अलग है। यहां नाबार्ड ने एनजीओ रिड्स के साथ मिलकर हरित क्रांति नाम का संगठन बनाया और आदिवासी किसानों से मिर्च की खेती करवाई। उनसे हरी मिर्च की खरीद भी होने लगी।
आज दो साल बीत जाने के बावजूद इन किसानों को उनकी फसल के पूरे दाम नहीं दिए गए हैं। किसानों ने अपनी लगभग पचास लाख की मिर्च वर्ष 2015 में हरित क्रांति किसान संगठन के माध्यम से अम्बिकापुर मंडी में बेची थी। नाबार्ड के अधिकारी भुगतान करने की बजाय कह रहे हैं कि ब्याज के साथ पैसा मिलेगा, चिंता मत करो। कलेक्टर और एसपी तक गुहार लगाने का भी कोई असर नहीं हो रहा है। हरित क्रांति किसान संगठन के सीईओ राजा भैया पटेल का कहना है कि किसानों को उनकी फसल का ज्यादातर भुगतान कर दिया गया है। मिर्ची खरीदने वाले व्यापारी ने चेक दिया था, जो बाउंस हो गया। उसका कोर्ट में केस चल रहा है।
छत्तीसगढ़ की तरह पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भी किसान बड़े पैमाने पर मिर्च की खेती करने लगे हैं। यही वजह है कि हरदा जिले के किसान धीरे-धीरे परंपरागत खेती छोड़ने लगे हैं। मिर्च की खेती में उनको कम रकबे में उम्मीद से ज्यादा मुनाफा मिल रहा है। जिले के किसान अमरसिंह मीणा की जिंदगी मिर्च ने बदल दी है। पहले जहां उनके पास 16 एकड़ जमीन थी, अब उसे बढ़ाकर साठ एकड़ कर दी है। मूल रूप से खेती से जुड़े भाजपा नेता अमरसिंह ने पहली बार प्रयोग के तौर पर सोलह एकड़ में मिर्च की खेती शुरू की तो करीब साढ़े तीन हजार कुंतल मिर्च पैदा हुई। उसे इंदौर और भोपाल के थोक व्यापारी खरीद ले गए।
उन्हें करीब 55 लाख रुपए मिले। इसमें पैंतीस लाख रुपए लागत थी। फिर भी उन्हें बीस लाख का मुनाफा हुआ। फिर उन्होंने मिर्च का रकबा सोलह से बढ़ाकर साठ एकड़ कर दिया। इसी तरह छोटी हरदा के किसान संतोष जेवल्या ने चौदह एकड़ में मिर्च लगाई। सरकारी सहायता से पांच लाख की ड्रिप लगवाई। दो लाख रुपए अनुदान में मिले। मिर्च लगाने में प्रति एकड़ डेढ़ लाख खर्च आया। प्रति एकड़ औसतन पांच सौ क्विंटल मिर्च का उत्पादन हुआ, जिसमें से प्रति एकड़ पांच लाख यानी सत्तर लाख का शुद्ध मुनाफा हुआ है।
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