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रेस्टोरेंट के बचे खाने को जरूरतमंदों तक पहुंचा रही रॉबिनहुड आर्मी

रेस्टोरेंट के बचे खाने को जरूरतमंदों तक पहुंचा रही रॉबिनहुड आर्मी

Tuesday October 30, 2018 , 6 min Read

2030 तक ‘शून्‍य भुखमरी (जीरो हंगर)’ वाली दुनिया बनाने के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता के साथ चल रहे हैं। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकारें तो निरंतर चरणबद्ध ढंग से कार्य कर रही हैं, लेकिन कई ऐसे गैरसरकारी संगठन भी हैं जो लोगों की भूख मिटाने का प्रयत्न कर रहे हैं। 

रॉबिनहुड आर्मी के जवान

रॉबिनहुड आर्मी के जवान


इस संगठन की शुरुआत 6 वॉलन्टीयर्स के साथ 2014 में दिल्ली में हुई थी। उस दौरान ग्रुप के सदस्य हौजखास फ्लाईओवर्स के पास गरीबों को खाना बांटते थे। आज देश और दुनिया के अलग-अलग शहरों और इलाकों में इसके अलग-अलग चैप्टर्स हैं।

एफएओ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद लगभग एक अरब के आसपास है। दुनियाभर में इतनी बड़ी संख्या में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या यह दर्शाती है कि अभी हम बुनियादी जरूरत उपलब्ध कराने के मामले में कितने पीछे हैं। तमाम देश मिलकर दुनिया को 2030 तक ‘शून्‍य भुखमरी (जीरो हंगर)’ वाली दुनिया बनाने के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता के साथ चल रहे हैं। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकारें तो निरंतर चरणबद्ध ढंग से कार्य कर रही हैं, लेकिन कई ऐसे गैरसरकारी संगठन भी हैं जो लोगों की भूख मिटाने का प्रयत्न कर रहे हैं। रॉबिनहुड आर्मी एक ऐसा ही संगठन है।

रॉबिनहुड आर्मी ने 150 बेसहारा लोगों के साथ इस मिशन की शुरुआत की थी। आज पूरी दुनिया के 80 से भी अधि शहरों में यह संगठन 2.75 लाख से भी अधिक लोगों का पेट भर रहा है। यह संगठन रेस्टोरेंट्स से समझौता करके वहां के बचे हुए खाने को एकत्रित करता है और उसे जरूरतमंदों के बीच बांट देता है। बेंगलुरु के जयनगर इलाके में हरी टीशर्ट पहने इस ग्रुप के लोग नजदीकी रेस्टोरेंट से खाना एकत्र करते हैं और उसे वैन में भरकर गरीबों में बांट देते हैं।

इस संगठन की शुरुआत 6 वॉलन्टीयर्स के साथ 2014 में दिल्ली में हुई थी। उस दौरान ग्रुप के सदस्य हौजखास फ्लाईओवर्स के पास गरीबों को खाना बांटते थे। आज देश और दुनिया के अलग-अलग शहरों और इलाकों में इसके अलग-अलग चैप्टर्स हैं। हर चैप्टर में एक कोर टीम होती है जो वॉलंटीयर को मैनेज करने, रेस्टोरेंट से संबंध स्थापित करने और खाना वितरित करने के काम में लगी होती है। उसके बाद टीम किसी खास स्थान पर मिलने की योजना बनाती है फिर रेस्टोरेंट से खाना लेकर पैक कर जरूरतमंदों में बांट दिया जाता है।

रॉबिनहुड आर्मी के संस्थापक नील घोष पहले जोमैटो में काम करते थे। वे कहते हैं, 'हमारे पास वॉट्सऐप ग्रुप बने हुए हैं हमारी टीम विकेंद्रित है जहां सारा लेखा जोखा होता है। हर शहर में टीम लीडर इस वॉट्सऐप ग्रुप से जुड़े होते हैं और हर अपडेट साझा करते हैं। इससे काम करने में काफी आसानी हो जाती है।' हर टीम में अलग-अलग लोगों को अलग जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं। नील ने बताया कि सोशल मीडिया पर भी ग्रुप की अच्छी खासी पहुंच है। उन्होंने कहा, 'हाल ही में केरल में आई बाढ़ से भीषण तबाही के दौरान हमने इंडिगो से टाईअप किया था। उसी तरह हमने स्वतंत्रता दिवस पर उबर, जोमैटो और वायकॉम जैसे संस्थानों के साथ गठजोड़ किया था।'

हालांकि संगठन को कहीं से खास आर्थिक सहायता नहीं मिल पाती इसलिए पूरी टीम वॉलंटीयर्स के सहारे चलती है। जोमैटो में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर काम कर चुके नील कहते हैं कि वे पुर्तगाल में काम कर रहे थे और एक फूड टेक प्रॉडक्ट लॉन्च करने की तैयारी में थे। लोकल पार्टनरशिप के साथ काम करते हुए उन्हें रीफूड नाम की एक संस्था के बारे में जानकारी हुई। इस संस्था के वॉलंटियर्स रेस्टोरेंट से बचे हुए खाने को गरीबों और जरूरतमंदों में बांटने का काम करते थे।

नील ने कहा, 'इस सिस्टम ने मुझे काफी प्रभावित किया और फिर मैंने इससे जुड़ी सारी जानकारी एकत्रित करनी शुरू की। मुझझे समझ आया कि कैसे ये पूरा सिस्टम काम करता है। जब मैं अगस्त में भारत वापस लौट कर आया तो अपने दोस्त आनंद सिन्हा को यह बात बताई। हम दोनों ने फिर इसकी शुरुआत की। हालांकि फिर भी हमें अंदाजा नहीं था कि हमारा काम इस स्तर पर पहुंच जाएगा।' शुरू में तो नील को यह भी नहीं पता था कि वे दिल्ली में 150 लोग खोज भी पाएंगे जिन्हें खाने की जरूरत है, लेकिन जब वे खाना बांटने पहुंचे तो उन्हें हकीकत का अंदाजा हुआ। रॉबिन्स की फूड ड्राइव ज्यादातर संडे को रखी जाती है ताक‌ि ज्यादा से ज्यादा लोग पहुंच सकें।

वे कहते हैं, 'जब हम खाना बांटने पहुंचे तो हमें हजारों की संख्या में लोग भूखे मिले। हमें अहसास हुआ कि इतने छोटे पैमाने पर काम करके कुछ खास बदलाव नहीं लाया जा सकता। इशलिए हमने कुछ और रेस्टोरेंट्स से गठजोड़ी की और काम के दायरे को विस्तृत किया।' रॉबिनहुड आर्मी की सफलता के पीछे सबसे बड़ी भूमिका सोशल मीडिया की रही। सोशल मीडिया के जरिए टीम का विस्तार हुआ और सही समय पर खाने की पहुंच भी सुनिश्चित की गई।

इतना सबकुछ करने के बावजूद रॉबिनहुड आर्मी का मानना है कि उन्होंने समस्या को सिर्फ सतही तौर पर स्पर्श भर किया है; समस्या का महज़ 1% समाधान तलाशा है। अभी इस दिशा में उन्हें लगातार, लम्बा संघर्ष करना है। इस मुहिम के प्रणेता नील घोष कौन बनेगा करोड़पति के विशेष “कर्मवीर” एपिसोड में आमंत्रित किये गए और उनका साथ देने के लिए मौजूद थीं बॉलिवुड ऐक्ट्रेस अभिनेत्री काज़ोल।

ये अवेयरनेस फैलाने और टीम मेम्बर्स में संवाद के लिए फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं। बहुत से होटल – रेस्तरां अब खुद इन्हें संपर्क करते हैं और आसपास रहने वाले रॉबिन्स खाना इकठ्ठा करने पहुँच जाते हैं, फिर इस भोजन को आसपास के जरूरतमंद लोगों में बाँट दिया जाता है। सिर्फ दो घंटे का समय देकर कोई भी इस मुहिम से जुड़ सकता है। जो समय नहीं दे सकते, लेकिन खाना सप्लाई कर सकते हैं वे भी रॉबिनहुड आर्मी का हिस्सा बन सकते हैं।

नील कहते हैं, 'भले ही हमने 16,000 से ज्यादा वॉलंटियर्स के साथ 85 लाख लोगों का पेट भरा होगा, लेकिन अभी भी वैश्विक स्तर पर भूख मिटाने के लिए काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। अब रॉबिनहुड आर्मी का लक्ष्य छोटे शहरों और कस्बों की तरफ है जहां भूख से प्रभावित लोगों की एक बड़ी आबादी रहती है।' भूख मिटाने के साथ ही यह संगठन अब बच्चों की पढ़ाई और उनके विकास पर भी ध्यान दे रहा है।

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