शेरवानी में घोड़ी पर सवार बेटियां तोड़ रहीं रस्मोरिवाज
बदल रहे हैं हम, बदल रही है सोच...
बेटियां अब सामाजिक रूढ़ियों, स्त्री-विरोधी रस्मोरिवाज और ज्यादा बर्दाश्त करने के हक में नहीं हैं। मध्य प्रदेश में एक बेटी ने अपनी मां को मुखाग्नि दी तो राजस्थान में एक बेटी शेरवानी में घोड़ी पर सवार होकर विवाह स्थल पर पहुंची। हरियाणा में पिता ने बेटे की शादी की सारी रस्में अपनी बेटी से पूरी कराईं तो बिहार में दहेज के लिए बारात बैरंग लौट जाने पर दूल्हे ने ससुर की मान-मर्यादा बचा ली।
घोड़े पर राजस्थान की बेटी नेहा जब बारात लेकर निकली तो हर कोई आंखें फाड़-फाड़ कर देखता रह गया। नेहा बताती हैं कि उन्होंने ऐसा खुद नहीं, बल्कि अपने परिजनों के कहने पर किया। उनके परिवार वाले समाज को संदेश देना चाहते थे कि बेटियों और बेटों में कोई फर्क नहीं है।
बड़े घर की बेटियां तो पिता अथवा पति की धन-दौलत, शोहरत से मीडिया की सुर्खियों में आती रहती हैं, जैसे अनिल कपूर की बेटी सोनम या अभिनेता पवन सिंह की नवविवाहिता ज्योति सिंह आदि लेकिन हमारे समाज में आज तमाम बेटियां अपने हुनर और हिम्मत से रूढ़ियों, परंपराओं, रस्मों को ढहाती हुई बराबरी का संदेश दे रही हैं। कहते भी हैं कि बेटी किसी बेटे से कम नहीं होती। जो काम बेटा कर सकता है, वही बेटी भी क्यों न कर दिखाना चाहेगी। काम घर के अंदर का हो या चारदीवारी से बाहर का। एक ताजा वाकया है सागर (म.प्र.) के गांधी चौक वार्ड निवासी प्रेमलता पटैरिया के परिवार का।
पिछले दिनो प्रेमलता का निधन हो गया। उनकी इकलौती बेटी भानु ने अंतिम संस्कार के समय उन्हें मुखाग्नि दी। प्रेमलता की आखिरी इच्छा थी की उनकी चिता को आग देने की रस्म बेटी ही निभाए। यद्यपि इस तरह के कदम तो अब तक देश की कई बेटियां उठा चुकी हैं लेकिन बदलते जमाने में ऐसे कदमों को पुरुष परिजनों का भी सहयोग मिलना अत्यंत सुखद है। ऐसा ही दो दिन पहले का एक वाकया सोनीपत (हरियाणा) का सामने आया है। सोनीपत स्थित जीवन नगर के लाला शेख। तीस मार्च को उनके बेटे साहिब अभिषेक की शादी थी। साहिब के पिता लालाशेख ने कहा कि जो रस्में समाज में आज तक दामाद निभाते रहे हैं, वह अपने बेटे की शादी में उसके विपरीत पहली स्वंत्रता अपनी बेटी को देना चाहते हैं। उन्होंने निर्णय लिया कि बेटे की शादी में बेटी शबनम ही रस्म निभाएगी। आखिरकार, शबनम ने ही भाई साहिब को घोड़ी चढ़ाने, सेहरा बांधने, माला डालने आदि की रस्में निभाईं।
यहां तक, तो भी रस्में टूटने को समाज पचा ले रहा है लेकिन राजस्थान का वाकया तो वाकई एक बड़ी नजीर की तरह सामने आया है। इस पर हैरत होना इसलिए भी लाजिमी है कि यह वाकया और कहीं नहीं, बल्कि बाल विवाह के लिए कुख्यात राजस्थान के नवलगढ़ (झुझनूं) शहर में हुआ है। घोड़े पर यहां की बेटी नेहा जब बारात लेकर निकली तो हर कोई आंखें फाड़-फाड़ कर देखता रह गया। नेहा बताती हैं कि उन्होंने ऐसा खुद नहीं, बल्कि अपने परिजनों के कहने पर किया। उनके परिवार वाले समाज को संदेश देना चाहते थे कि बेटियों और बेटों में कोई फर्क नहीं है। बाद में तो हर कोई नेहा की तारीफ करने लगा। नेहा दूल्हे के घर के पास घोड़े से उतर कर सीधे वरमाला के स्टेज पर पहुंच गईं। इसके बाद वरमाला की रस्म निभाई गई। उल्लेखनीय है कि इससे पहले इसी साल जनवरी में यूनाइटेड स्टेट से एमबीए कर चुकीं झुझनूं के ही सांसद संतोष अहलावत की बेटी गार्गी भी सिर पर पगड़ी बांधकर घोड़ी वाले रथ से विवाह स्थल पर पहुंची थीं।
बदलाव के इस दौर में ऐसा नहीं कि बेटियां अकेले ही रूढ़ियों, रस्म-रिवाजों से मोरचा ले रही हैं। सोनीपत की तरह पिछले दिनो एक और वाकया बिहार के खैरा (लखी सराय) का सामने आया है। यहां के गांव धर्मपुर में पिछले दिनो जब टुनटुन राम की बेटी की शादी लखीसराय के ही गांव नूनगढ़ गांव निवासी मटुकी राम के बेटे कुंदन कुमार के साथ हो रही थी। शादी की रस्म निभाने के दौरान दूल्हे के परिजन तत्काल दहेज में दस हजार रुपए न देने पर बारात और शादी के जेवर, कपड़ा आदि सभी सामान समेटकर बैरंग लौट गए। मंडप में अकेले रह गए दूल्हे ने इज्जत का वास्ता लेते हुए कहा कि अब इस दुल्हन की जिम्मेदारी खुद उसकी है। यद्यपि दुल्हन ने अंदेशा जताया है कि ससुराल जाते हुए उसे डर लगा है कि भविष्य में उसके साथ कहीं कोई अनहोनी न हो जाए।
टुनटुन राम का भी कहना है कि कि बेटी की शादी तो हो गयी है लेकिन उन्हें डर सता रहा है कि जिस व्यक्ति ने दस हजार रुपये के लिए हमारी मान-मर्यादा को कुचल दिया, उस घर में बेटी के साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा, क्या ठिकाना। दूल्हा कुंदन कुमार का कहना है कि पत्नी की जिम्मेदारी अब उसकी है। वह अपनी पत्नी का हर तरह से ध्यान रखेगा।
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