छत पर उगाएं सब्जियां, सेहत के साथ लाखों कमाने का मौका भी
छत पर सब्जी उगा कर कमाएं लाखों रूपए...
ये कैसा जमाना आ गया कि गांवों में खेतों में मकान बन रहे हैं और शहरों में मकानों पर खेती हो रही है। यह एक अजीब तरह का विरोधाभास भी है और सुखद भी कि बेरोजागारी, महंगाई के कठिन वक्त में जागरूक लोग अपने घर की छत पर फल-फूल, सब्जियों, फसलों की खेती कर परिवार का पोषण करने के साथ ही लगे हाथ सालाना लाखों की नकद कमाई भी कर रहे हैं।
आईआईटी ग्रेजुएट कौस्तुभ खरे और साहिल पारिख बाकायदा 'खेतीफाई' नाम से अपनी बिजनेस कंपनी बनाकर मात्र उन्नीस हजार की लागत से दो सौ वर्ग मीटर की छत पर सात-आठ सौ किलो सब्जियां उगा रहे हैं।
यह सुखद दास्तान किसी एक शहरी किसान की नहीं। छत्तीसगढ़ की पुष्पा, पानीपत (हरियाणा) के कृष्ण कुमार, हिसार के हरबंस सिंह, दिल्ली के संतोष आदि इसी तरह की किसानी से हरे-भरे हो रहे हैं। अब तो कई उच्च शिक्षा प्राप्त युवा बाकायदा इस तरह की खेती के प्रोत्साहन, प्रशिक्षण में जुट गए हैं। कंपनी बनाकर वह छतों पर खेती करवा रहे हैं। जैसे कि दिल्ली में निशांत चौधरी, आईआईटी ग्रेजुएट कौस्तुभ खरे, साहिल पारिख आदि। दिल्ली में तिब्बती रिफ्यूजी कॉलोनी के पीछे यमुना नदी के किनारे खेती कर रहे संतोष बताते हैं कि छत पर खेती करना ज्यादा आसान है। दिल्ली में तमाम मकानों की छतों पर इस तरह की खेती हो रही है।
अंबेडकर यूनिवर्सिटी में फेलो इन एक्शन रिसर्च, सेंटर फॉर डेवलेपमेंट प्रैक्टिस के निशांत चौधरी बताते हैं कि दिल्ली में जो किसान यमुना किनारे खेती करते हैं उन पर विकास प्राधिकरण की कार्रवाई का खतरा रहता है। इसीलिए उन्होंने किसानों के लिए 'क्यारी' नाम से एक नया मॉडल तैयार किया, जो मजबूत मैटेरियल से बना एक तरह का बस्ता होता है। इसमें नारियल का सूखा छिलका होता है। छत पर भार, पानी रिसाव से बचने के लिए बिना मिट्टी वाले इस बस्ते में उपजाऊपन बढ़ाने के लिए कंपोस्ट, बारह किस्म के और भी मिश्रण होते हैं। इसमें केमिकल की जगह पारंपरिक कीटनाशक छाछ, नींबू, मिर्ची आदि का इस्तेमाल होता है। उन्हें इस मॉडल की प्रेरणा केरल से मिली। छत पर खेती की क्यारियां वॉटर प्रूफ होती हैं। चार फीट के एक बस्ते में गर्मियों में पांच लीटर पानी दिन में दो बार, सर्दियों में दो दिन में एक बार दिया जाता है।
निशांत इस समय यमुना किनारे खेती करने वाले लगभग दो दर्जन किसानों को छत पर खेती के लिए प्रशिक्षित कर चुके हैं। ये किसान छतों पर भिंडी, टमाटर, बैंगन, मेथी, पालक, चौलाई, पोई साग और मिर्च उगा रहे हैं। आईआईटी ग्रेजुएट कौस्तुभ खरे और साहिल पारिख बाकायदा 'खेतीफाई' नाम से अपनी बिजनेस कंपनी बनाकर मात्र उन्नीस हजार की लागत से दो सौ वर्ग मीटर की छत पर सात-आठ सौ किलो सब्जियां उगा रहे हैं। इनका मॉडल भी बिना मिट्टी-पानी वाला है। उन्होंने भी छत पर खेती करने के लिए वॉटर प्रूफ क्यारियां बनाई हैं। जैविक सामग्री से लैस इन क्यारियों में भिंडी, टमाटर, बैंगन, मेथी, पालक, चौलाई, पोई साग और मिर्च उगाई जा रही हैं।
ये तो रही तकनीकी तरीके से नए मॉडल विकसित कर छतों पर खेती कराने की पहल, लेकिन अन्य राज्यों में तमाम किसान अपनी सीमित छतों पर इसी तरह सब्जियों की खेती कर रहे हैं। जैसे पानीपत (हरियाणा) के कृष्ण कुमार। वह पेशे से किसान नहीं हैं। जब वह रेलवे नौकरी से रिटायर हुए तो अपनी कोई खेती-बाड़ी न होने के कारण दो गज के मकान की छत पर बागवानी करने लगे। मछली के वेस्ट थर्मोकोल की ट्रे बनाई और उसमें फलों और सब्जियों का उत्पादन शुरू कर दिया। करीब दो दशक से वह छत पर बागवानी कर रहे हैं। वह सब्जी उत्कृष्टता केंद्र, घरौंडा से सब्जी और सहारनपुर (यूपी) से फलदार पेड़ों की पौध लाते हैं। जहां भी बागवानी विभाग के मेले लगते हैं वहां जाना नहीं भूलते।
आक, तंबाकू आदिसे वह खुद का जैविक घोल तैयार कर पौधों को कीट और फसली बीमारियों से बचाते हैं। इस सब्जी का स्वाद ही अलग होता है। अब तो वह रोजाना छह-सात किलो टमाटर का उत्पादन हो रहा है। साथ ही बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च, गोभी, भिंडी, धनिया भी उगा रहे। छत पर ही गमलों में अमरूद, अनार, चीकू, सेब, आड़ू, चेरी आदि फल पैदा हो रहे हैं, जिनमें नौ प्रकार के अमरूद, तीन तरह के अनार, पांच तरह के आड़ू, चेरी, सेब आदि के फल मिल रहे हैं। इसी तरह हरियाणा के उपमण्डल टोहाना के गांव जापतावाला के किसान हरबंस सिंह जुगत लड़ाकर अपने घर की छत पर विभिन्न तरह की सब्जियों की खेती कर रहे हैं। उनके घर की छत पर तैयार सब्जियों की फसल से न केवल उसके परिवार के सदस्य दोनों समय की ताजा व बिना कीटनाशकों के छिड़काव वाली सब्जियां खा रहे हैं बल्कि इस समय छत पर मिर्च, मटर, बैंगन, अंगूर, गोभी, चोले, टमाटर, शिमला मिर्च, धनिया, पालक, मूली और गाजर की पैदावार भी ली जा रही है।
सब्जियों को कीटनाशक व रासायनिक खाद रहित जैविक तकनीक से पैदा किया गया है। पांचवीं तक पढ़े हरबंस बताते हैं कि बचपन से ही उनका सब्जियां उगाने का शौक रहा है। खेती की जमीन कम होने के कारण उन्होंने किसानी का ये तरीका खुद विकसित किया। छत पर ही ट्रे और गमलों में बेल वाली सब्जियों की रोपाई करने लगे। आज करीबन एक दर्जन किस्म की सब्जियां उनकी छत पर पैदा हो रही हैं। उनके पास मात्र एक एकड़ भूमि है, जिसमें फसलों की खेती करते हैं। उनकी छत पर ज्यादातर हाइब्रिड बीजों वाली सब्जियां पैदा हो रही हैं।
छत्तीसगढ़ की किसान पुष्पा साहू अपने घर की छत पर फल, फूल और सब्जियों के साथ औषधीय फसलों की बागवानी भी कर रही हैं। वह बताती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के इस युग में खास कर कृषि एवं पर्यावरण के क्षेत्र में सर्वाधिक नुकसान हो रहा है। इस नुकसान से बचने एवं घरेलू महिलाओं तथा बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार मुहैया कराने की दिशा में छत पर फलों, साग-सब्जियों और औषधीय पौधों की खेती एक नई संभावनाओं से भरा क्षेत्र है। डिजाइनर पॉट्स में भी किचन प्लांट्स लगा सकते हैं। अपने घर को आर्टिस्ट लुक देना सभी को खूब भाता है। छत पर खेती करना सामान्य खेती करने से अलग है। छत पर गीली मिट्टी बिछाकर खेती नहीं की जा सकती, क्योंकि पानी रिसाव (सीपेज) से छत एवं मकान को क्षति पहुंचती है। इसके लिए विभिन्न प्रकार के उपायों को अपनाया जा सकता है, जैसे सीपेज रोधी केमिकल की कोटिंग के साथ उच्च गुणवत्ता वाली पॉलीथिन शीट बिछाकर क्यारी का निर्माण किया जा सकता है।
वह अपने घर की छत पर सब्जी और फलों की खेती कर रही हैं। छत पर गोभी, बैगन, कुंदरू, कांदा भाजी, टमाटर, लौकी, मिर्ची पालक भाजी, मूली, धनियां, पुदीना आदि सब्जियों, गेंदा, गुलाब, मोंगरा, नीलकमल आदि पुष्पों के साथ ही सेब, अमरूद, केला, आम, मौसबी, नींबू, चीकू, पपीता और मुनगा फलों की खेती कर रही हैं। मात्र दो-तीन हजार रुपये खर्च कर उनका पूरा परिवार साल भर मौसमी जैविक सब्जियों और फलों का स्वाद ले रहा है। घर की छत पर बिना रासायनिक खाद के उगीं सब्जियां खाने का मजा ही कुछ और होता है। तमाम लोग अब दिल्ली, मुम्बई में अपने फ्लैट की छतों पर सीमित जगह में पुराने सिंक, टब, बाल्टियों, बोरियों, डिब्बों, पेटियों में मेथी, पालक, हरा धनिया, पुदीना, सलाद ही नहीं, टमाटर, बैंगन व गोभी आदि भी सब्जियां उगा रहे हैं। वे पुराने व्यर्थ पड़े सिंक, टब, बाल्टियों, लकड़ी की पेटियों के साथ-साथ छत पर ही नीचे प्लास्टिक की मोटी चादर बिछा कर उस पर शाक वाली सब्जियां लगा रहे हैं।
इस विधि से खेती में पानी के निकास की व्यवस्था पर खास ध्यान होना चाहिए। इसके लिए आप मिट्टी के बड़े गमलों के साथ-साथ इस व्यर्थ कबाड़ का सदुपयोग भी कर सकते हैं। पेंट, डिस्टेंपर आदि की व्यर्थ इकट्ठी होती बाल्टियां, पेंट के बड़े-बड़े डिब्बों के नीचे आपको कम से कम तीन छेद अवश्य बनाने चाहिए, ताकि पानी का निकासी होती रहे। पात्र कोई भी चुनें, उसमें पानी के निकास की भरपूर व्यवस्था अवश्य करें। खाद मिट्टी दूसरा चरण है। छेद पर कम से कम दो इंच मिट्टी के ठीकरे अवश्य बैठाएं। इससे फालतू पानी भी सूख जाता है और निकल भी जाता है। खाद मिट्टी की व्यवस्था के लिए वही नियम लागू होता है, जो फूलों के गमलों के लिए। मिट्टी भारी व चिकनी नहीं होनी चाहिए। दो भाग पुरानी मिट्टी, एक भाग गोबर की अच्छी पुरानी खाद व एक भाग पत्ती की पुरानी खाद व कुल तैयार खाद में दसवां भाग नीम की खली का चूरा मिला दें।
यदि मिट्टी थोड़ी भारी लग रही है तो नदी की बालू रेत या बदरपुर की मोटी बजरी वाली एक भाग मिला दें, ताकि मिट्टी हल्की हो जाए व पानी की निकासी होने से जड़ों के विकास में सहायता मिले। मिट्टी न मिलने की स्थिति में नदी की मोटी वाली बालू रेत अथवा बदरपुर की मोटी वाली बजरी में पत्ती व गोबर की खाद मिला कर सब्जियों को सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। जिस तरह से खेती के लिए जमीन कम हो रही हैं, भविष्य में इस तरह की खेती का चलन बढ़ते जाना है। चार फीट गुणा चार फीट की चार क्यारियों लगाने पर एक परिवार अपने महीने भर की जरूरत की सब्जी उगा सकता है। एक घंटा इन क्यारियों में समय लगाने से मन लायक सब्जी उगाई जा सकती हैं।
खेतों के घटने और ऑर्गनिक फूड प्रोडक्ट की मांग बढ़ने से अर्बन फार्मिंग में नई और कारगर तकनीकों का चलन बढ़ता जा रहा है। मांग पूरी करने के लिए कारोबारी और शहरी किसान छतों पर, पार्किंग में या फिर कहीं भी उपलब्ध सीमित जगह का इस्तेमाल पैदावार के लिए कर रहे हैं। ये खेती की हाइड्रोपानिक्स विधि है। इस तरीके से ये लोग एक लाख रुपए की लागत से घर बैठे सालाना दो लाख तक की सब्जियां उगा रहे हैं। एक पॉड से साल भर में पांच किलो सलाद पत्ते की उपज मिल सकी है। ऐसे में 10 टावर यानि 400 पॉड से 2000 किलो सालाना तक उपज मिल रही है। हमारे देश में इस समय सलाद पत्ता 180 रुपए किलो है। थोक में सौ रुपए किलो भी मिलता है तो साल में दो लाख रुपए की उपज संभव है।
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