वो फॉरेस्ट अॉफिसर जिसने आदिवासी कॉलोनियों में करवाया 497 शौचालयों का निर्माण
मिलिए केरल के आदिवासी कॉलोनियों में 497 शौचालयों का निर्माण कराने वाली वन अधिकारी से...
केरल के एरनाकुलम जिले में पी.जी. सुधा एक बीट वन अधिकारी हैं। खुले में शौच से छुटकारा पाने के लिए कुट्टमपुझा वन के आदिवासी कालोनियों में 497 शौचालयों के निर्माण की पहल करने के लिए सुधा को उत्कृष्टता का एक प्रमाण पत्र मिलना चाहिए। उन्होंने इस काम को अपने निजी हित के रूप में चुना, क्योंकि वह हमेशा पर्यावरण को स्वच्छ और साफ बनाना चाहती थी।
जीवन में अभूतपूर्व चीजों को प्राप्त करने के लिए, तीव्रता, दृढ़ता और इच्छा शक्ति के साथ एक मजबूत दृष्टि किसी के लिए भी आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त है। पी.जी. सुधा सिर्फ एक नाम नहीं है, बल्कि अनगिनत भावनाओं की एक मूरत है।
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा काम होगा जिसे महिलाएं न कर सकें! और शायद ही दुनिया में कोई ऐसा हो जो महिलाओं को अच्छे काम करने से रोक सके। कम उम्र में महिलाओं से बहुत कुछ हासिल करने की उम्मीदें की जाती हैं। हालांकि वे मौजूदा समय में इन उम्मीदों पर खरा भी उतर रही हैं। लेकिन क्या आप विश्वास करेंगे कि 50 की उम्र में कोई महिला समाज में बदलाव ला सकती है? केरल की एक महिला अॉफिसर ने बदलाव लाने की बात को सच करने के साथ-साथ ये भी साबित किया है, कि किसी भी अच्छे काम को करने की कोई उम्र नहीं होती और न ही ज़रूरी है किसी का स्त्री या पुरुष होना। उम्र तो बस नंबरों का गणित है।
जीवन में अभूतपूर्व चीजों को प्राप्त करने के लिए, तीव्रता, दृढ़ता और इच्छा शक्ति के साथ एक मजबूत दृष्टि किसी के लिए भी आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त है। पी.जी. सुधा सिर्फ एक नाम नहीं है, बल्कि अनगिनत भावनाओं की एक मूरत है। तथ्य यह है कि पी.जी. सुधा ने खुद को एक भव्य वर्ग के प्रतीक के रूप में स्थापित किया है, जिस पर दूसरे लोग वास्तव में गर्व करते हैं।
क्या है जो पी.जी. सुधा को बनाता है इतना खास
केरल के एरनाकुलम जिले में पी.जी. सुधा एक बीट वन अधिकारी हैं। खुले में शौच से छुटकारा पाने के लिए कुट्टमपुझा वन के आदिवासी कॉलोनियों में 497 शौचालयों के निर्माण की पहल करने के लिए सुधा को उत्कृष्टता का एक प्रमाण पत्र मिलना चाहिए। उन्होंने इस गतिविधि को अपने निजी हित के रूप में चुना क्योंकि वह हमेशा पर्यावरण को स्वच्छ और साफ बनाना चाहती थीं।
धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ सुधा ने मामूली बदलाव लाने का प्रयास किया। कहना गलत नहीं होगा कि सुधा के ही सतत और कड़ी मेहनत के दम पर केरल खुले में शौच मुक्त राज्य बन पाया। दरअसल राज्य को खुले शौच मुक्त राज्य घोषित किया गया था, केरल इस उपलब्धि को हासिल करने वाला देश का तीसरा बना। राज्य की बड़ी उपलब्धि में सुधा का बेहद महत्वपूर्ण योगदान है। गौरवान्वित और जुझारू महिला सुधा ने 1 नवंबर, 2016 को मुख्यमंत्री के ओपन डेफकेशन फ्री अभियान का पुरस्कार भी जीता।
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अपनी उपलब्धि पर क्या कहती हैं पी.जी. सुधा?
सुधा कहती हैं कि "इन आदिवासी कालोनियों में जीवन कठिन है, यहां क्षेत्र के अन्य हिस्सों की तुलना में सुविधाएं बहुत कम हैं। किसी को आदिवासी बस्तियों तक पहुंचने में तीन घंटे तक चलना पड़ता है।" सुधा आगे कहती हैं कि "यहां लोगों के पास शौचालय नहीं थे यही कारण था कि वे लोग केवल खुले में शौच करने के लिए जाते थे। यहां तक कि अगर कोई शौचालय चाहता भी था, तो उसका निर्माण बहुत कठिन होता था। निर्माण सामग्री का ट्रांसपोर्टेशन बहुत कठिन था। लेकिन असंभव नहीं था।"
सुधा आगे बताती हैं कि "ऐसा नहीं है कि ये लोग शौचालय अफोर्ड नहीं कर सकते थे। कर सकते थे लेकिन कालोनी में एक भी नहीं था। दरअसल इसका कारण यह है कि ये लोग खुले में शौच के साथ सहज हैं। दूसरा ये भी था कि शौचालयों का निर्माण एक आसान काम नहीं है, क्योंकि बाहर से बिल्डिंग मटेरियल मंगाना भी एक कठिन काम है।"
एनडीटीवी से बात करते हुए सुधा ने आगे बताया कि "सबसे बड़ी चुनौती शौचालय निर्माण नहीं था बल्कि बिल्डिंग मटेरियल को लाने की थी। ये आदिवासी कालोनी रिमोट एरिया में हैं। उनके पास जाने के लिए कोई उचित सड़कें नहीं हैं। वास्तव में, इन बस्तियों तक पहुंचने के लिए कम से कम 15 से 20 किलोमीटर की दूरी तक पैदल चलना पड़ता है क्योंकि कोई अन्य साधन नहीं है।"
सुधा बताती हैं कि उन्होंने हार नहीं मानी। सामग्री को साइट तक लाने के लिए कई उपाय किए गए। कई बार तो राफ्टिंग के जरिए सामग्री को साइट तक पहुंचाया। हालांकि इस बीच वजह ज्यादा होने से कई बार ये सामग्री पानी में भी बह गई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज गर्व के साथ कह सकती हैं कि उन्होंने इस आदिवासी कालोनी को खुले में शौच मुक्त बना दिया।
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