Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

राजस्थान के गांव की बहादुर लड़कियां रोक रही हैं बाल विवाह

राजस्थान के गांव बाल दुल्हनों के लिए कुख्यात हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में वहां की लड़कियां जागरुक हुई हैं। लड़कियां अब लंबे समय से आयोजित परंपरा की बेहतरी और सुधार के लिए एकजुट होकर आगे आ रही हैं, ताकि वे अपने लिए एक नया भविष्य सुनिश्चित कर सकें।

राजस्थान के गांव की बहादुर लड़कियां रोक रही हैं बाल विवाह

Wednesday May 24, 2017 , 6 min Read

सुमन सिर्फ 6 साल की थीं, जब 2006 में उनके पिता का देहांत हो गया। उनकी देखरेख और परवरिश मां ने की। वह बीकानेर के रेगिस्तानी गांव में पली बढ़ीं जहां बाल विवाह का प्रचलन काफी ज्यादा रहा है। लेकिन अब बाल विवाह जैसी प्रथा को रोकने की मुहिम ने सुमन की जिंदगी बदल दी। कैसे? आईये जानते हैं...

image


राजस्थान में बाल विवाह का औसत राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है। यहां बाल विवाह की दर 65% है। बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर और बाड़मेर जैसे राजस्थान के रेगिस्तानी जिलों में बाल विवाह जीवन शैली का हिस्सा रहा है। हालांकि सरकार और कुछ गैरसरकारी संस्थाओं की मदद से इस परिदृश्य में सुधार आया है।

जैसलमेर और बीकानेर के श्रीडूंगरगढ़ ब्लॉक में लोगों ने ये प्रण लिया है कि वे अब 18 साल से पहले किसी बेटी की शादी नहीं करेंगे।

सुमन की रुचि बचपन से ही पढ़ाई में रही है। यदि सुमन की शादी अपने आसपास की लड़कियों की तरह 10-12 साल में ही हो जाती, तो वो शायद कभी नहीं पढ़ पाती। लेकिन मां के साथ और सपोर्ट ने सुमन को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वह बताती हैं, 'मेरी मां हमेशा मेरे पीछे खड़ी रहीं, नहीं तो ये मुमकिन नहीं हो पाता।' सुमन ने दसवीं की परीक्षा फर्स्ट डिविजन से पास की है। इस साल वह 12वीं का एग्जाम देंगी।

हालांकि भारत में बाल विवाह करना कानूनी अपराध है, लेकिन कुछ साल पहले तक देश के कई हिस्सों में कम उम्र में ही बच्चों की शादियां कर दी जाती थीं। राजस्थान में तो इसका हाल और बुरा था। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक बीकानेर में 20-24 साल की 33.4% महिलाओं ने बताया कि उनकी शादी 18 साल से पहले ही कर दी गई थी। राजस्थान में बाल विवाह का औसत राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है। यहां बाल विवाह की दर 65% है। बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर और बाड़मेर जैसे राजस्थान के रेगिस्तानी जिलों में बाल विवाह जीवन शैली का हिस्सा रहा है। हालांकि सरकार और कुछ गैरसरकारी संस्थाओं की मदद से इस परिदृश्य में सुधार आया है। जैसलमेर और बीकानेर के श्रीडूंगरगढ़ ब्लॉक में लोगों ने ये प्रण लिया है कि वे अब 18 साल से पहले किसी बेटी की शादी नहीं करेंगे।

ये भी पढ़ें,

कभी 1700 पर नौकरी करने वाली लखनऊ की अंजली आज हर महीने कमाती हैं 10 लाख

<h2 style=

मां के साथ और सपोर्ट ने सुमन को आगे बढ़ने के लिए हमेशा किया प्रेरित, फोटो साभार: villagesquare.ina12bc34de56fgmedium"/>

इस इलाके में आखिरी बाल विवाह 2014 में हुआ था। शायद यही वजह है कि अब स्कूलों और कॉलेजों में लड़कियों की तादाद बढ़ रही है। गांव के आंगनबाड़ी सेंटर में लड़कियां और उनकी मां संतोष कंवर के आसपास इकट्ठा हुई थीं। संतोष इन सभी लड़कियों का नेतृत्व करती हैं और अभी वह पॉलिटिकल साइंस में एमए कर रही हैं। उन्होंने Villagesquaire.in से कहा, 'जिन लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी जाती है, उन्हें आगे बढ़ने से खुद ब खुद रोक दिया जाता है। मुझे लगता है कि बाल विवाह से लड़कियां सुरक्षा, हेल्थ और शिक्षा से वंचित रह जाती हैं।'

बाल विवाह का प्रचलन ऐसे परिवारों में ज्यादा है, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। जो परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध हैं उनके यहां बाल विवाह का प्रचलन काफी कम ही होता है।

संतोष के बगल में बैठीं बबिता ने कहा, मैंने तो अपनी चचेरी बहनों को ही देखा है जिनकी शादी 18 साल से पहले कर दी गई।' इस उम्र में लड़कियों को न तो गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी होती है और न ही फैमिली प्लानिंग के बारे में। इस उम्र में तो वह मां बनने के काबिल भी नहीं होती हैं। इस हालत में उनका शोषण होने की संभावना और भी ज्यादा होती है।

लड़कियां खुद आ रही हैं आगे

"बाल विवाह को रोकने के लिए सुमन ने रेनू का साथ लिया था। रेनू अभी बीए कर रही है। गांव-गांव में 'एकता' और 'जागृति' जैसे नाम के ग्रुप बना दिए गए हैं। सभी ग्रुप की लड़कियां महीने में एक बार में मिलकर मीटिंग करती हैं और आगे की योजना बनाती हैं।"

ये काफी अच्छी बात है, कि बाल विवाह को रोकने के लिए गांव की लड़कियां खुद आगे आ रही हैं। बाल विवाह को रोकने के लिए सुमन ने रेनू का साथ लिया था। रेनू अभी बीए कर रही है। गांव-गांव में 'एकता' और 'जागृति' जैसे नाम के ग्रुप बना दिए गए हैं। सभी ग्रुप की लड़कियां महीने में एक बार में मिलकर मीटिंग करती हैं और आगे की योजना बनाती हैं। इस मीटिंग में हेल्थ, खानपान, शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करती हैं। और अगर कहीं से भी बाल विवाह की खबर मिलती है, तो ये लड़कियां उसके घर विरोध प्रदर्शन करने पहुंच जाती हैं।

ये भी पढ़ें,

कैसे दिल्ली की एक शर्मिली लड़की बन गई हिप-हॉप ग्राफिटी आर्टिस्ट 'डिज़ी'

जैसलमेर में गांव के बड़े लोग जैसे प्रधान और पंचायत के सदस्य या बड़े बुजुर्ग लड़कियों की इस मुहिम में मदद करते हैं। बीकानेर के एक ट्रस्ट URMUL ने लड़कियों को स्कूल न छोड़ने के लिए प्रेरित किया। ग्राम पंचायत और स्कूल की प्रबंधन समिति लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए प्रतिबद्धता से कम कर रही है। गांव में एक बालिका मंच भी बना दिया है जहां सभी ग्रुप मिलकर इस पर काम करते हैं।

<h2 style=

गांव की पंचायत ने एक गाड़ी की व्यवस्था की है जिस पर बोर्ड और बैनर के माध्यम से बाल विवाह को खत्म करने का आह्वान किया जाता है। फोटो साभार: villagesquare.ina12bc34de56fgmedium"/>

सुमन ने बताया, कि काम के साथ हर दिन मोटिवेशन लेवल बढ़ जाता है। सुमन ने अकेले कम से कम 22 लड़कियों का स्कूल में फिर से एडमिशन करवाया है। गांव की पंचायत ने आसपास के इलाकों में लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए एक गाड़ी की व्यवस्था की है जिस पर बोर्ड और बैनर के माध्यम से बाल विवाह को खत्म करने का आह्वान किया जाता है। इस वैन में कठपुतली, गायक और कई कलाकार रहते हैं, जो लोगों को मनोरंजन करने के साथ ही इन तमाम मुद्दों के बारे में समझाते हैं। ये अभियान बीकानेर, जैसलमेर और जोधपुर के 177 गांव में सफल भी हो रहा है। लगभग 49 गांवों में ये प्रथा बिल्कुल समाप्त हो चुकी है। आने वाले समय में इस मुहिम का परिणाम और अच्छा होगा।

ये भी पढ़ें,

21 साल की उम्र में पहली बार ट्रेन में बैठीं और बन गईं स्टेशन मास्टर