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अपने लिए जिये तो क्या जिए....

Tuesday January 05, 2016 , 2 min Read

जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारो मगर लावारिश शवो का दहा संस्कार करने वाला बदायूं का सलीम है शरीफ मिया पिछले 25 सालो से लावारिश शवो का उनके धर्म के अनुसार क्रिया कर्म करता है इस काम में वो किसी का सहारा भी नहीं लेता है मगर समय समय पर कुछ लोग जुड़ते रहते है कुछ दिनों बाद यह जिम्मा स्वम ही उठाते है.

शरीफ मिया 55 s/o लियाकत अली बदायूं जनपद के शहर में पुराना बस स्टैंड के पास रहते है बचपन से उन्हें कुछ समाज को करने का शौक था . 1991 में उन्हें पता चला की शहर में लावारिश लाश मिली है जिसका कोई नहीं है उनके मन में एक सवाल आया की अब इस शव का क्रिया कर्म कैसे होगा . और कौन करेगा .सो अब उसी दिन से शरीफ मिया ने जिम्मा उठा लिया . तब से लेकर आज तक लावारिश लाशो का क्रिया कर्म उनके धर्म के अनुसार करते है

इस काम के लिए उन्हें लकड़ी के साथ साथ कपडे की जरुरत पड़ती है कुछ लोग कभी कभी पैसा , लकड़ी और कपडा दे देते है .

शरीफ मिया ने एक वन भी बना राखी है जो केवल लावारिश लाशो को लाती है कोई कभी इन्हें बाता दे तो तुरंत अपना क्रेनो का काम छोड़ कर इस काम में लग जाते है.

इन्होने एक संस्था बनाई है जिसमे अभी 4 तो कबी 11, तो कभी 8 मेम्बर रहे जाते है मगर लावारिशो लाशो का क्रिया कर्म येही कराते है . 

कोई किसी धर्म की लाश क्यों न हो उन्हें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है शरीफ मिया कहते है येही मेरी इबादात है।