किसी को भी खून की कमी ना हो, इसके लिये ‘द सेवियर’ नाम से मुहिम चला रहा है एक युवा
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में किसी को भी, कभी भी खून की जरूरत पड़ सकती है। इस बात का एहसास हमें तब होता है जब कोई अपना खून के लिये जिंदगी और मौत के बीच जूझता है। जिसके बाद हमारी नींद टूटती है और खून जुटाने के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ती है। तब किसी ब्लड बैंक से किसी अंजान व्यक्ति का दिया खून ही हमारे अपनों की जिंदगी बचाने में मददगार साबित होता है। लेकिन एक शख्स है जो जानता है कि किसी की जिंदगी बचाने के लिए खून कितना कीमती है। इसलिए वो रात दिन इसी कोशिश में रहता है कि जहां भी खून की कमी हो, वहां वो अपने साथियों की मदद से उसे पूरा करे। कोलकाता में रहने वाले कुणाल ने बकायदा इसके लिए एक संगठन बनाया है ‘द सेवियर’। उनका ये संगठन कोलकाता के अलावा दिल्ली एनसीआर, बेंगलुरू, मुंबई और दूसरे शहरों में काम कर रहा है।
कुणाल ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई दिल्ली में रहकर पूरी की। जब वो ग्रेजुएशन के दूसरे साल में थे तो उन्होने बीबीए जैसे विषयों पर किताब लिखना शुरू कर दिया था। इसके अलावा कुणाल ने सेवियर पब्लिकेशन नाम से एक कंपनी स्थापित की। इसके तहत ये खुद ही किताब लिखते थे, उसे छपवाते थे और खुद ही उसे बेचने का काम करते थे। खास बात ये की उनकी लिखी किताबें दिल्ली के इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के छात्र पढ़ते थे। कुणाल के मुताबिक “मैंने ‘सेवियर’ नाम अपनी दादी के नाम से लिया है जिनका नाम सावित्री था और डिक्शनरी में अगर एसएवी नाम से कोई शब्द ढूंढा जाए तो पहला शब्द सेवियर ही होता है।”
पढ़ाई में होशियार कुणाल जहां अपनी पढ़ाई के साथ साथ बीबीए जैसे विषयों पर किताब लिख रहे थे वहीं इस दौरान उन्होने बुजुर्गों के लिए एक ऐप भी बनाया और उसका नाम रखा ‘नो मोर टेंशन’। ये ऐप अब भी गूगल प्ले स्टोर में मौजूद है। इस ऐप के जरिये बुजुर्ग किसी भी वेबसाइट को कुछ ही सेकेंड में खोल सकते थे। इस ऐप को 24 कैटेगरी में बांटा गया था और हर कैटेगरी में कई वेबसाइट होती थी जिसके बाद सिर्फ दो क्लिक में कोई भी व्यक्ति अपनी मनचाही वेबसाइट पर पहुंच सकता था।
दिल्ली में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनको वापस कोलकाता लौटना पड़ा। लेकिन इससे पहले उन्होने एक नॉवेल लिखना शुरू कर दिया था और उसका नाम था “हाउ एन आईफोन मेड मी द यंगस्ट बिलेनियर”। ये नॉवेल सिर्फ उद्यमिता से जुड़ा हुआ था और इसमें उद्यमियता से जुड़े हर उन सवालों का जवाब था जो लोग जानना चाहते हैं। नॉवेल लिखने के दौरान इनके दादा जी की एक दुर्घटना में पैर पर चोट आ गई थी। जिसके बाद उनका ऑपरेशन करना पड़ा। कुणाल के मुताबिक “इस दौरान हमें बी पॉजिटिव खून की जरूरत हुई लेकिन अस्पताल के पास ये खून नहीं था इसलिए हमें ये खून जुटाने के लिए काफी दिक्कत हुई। तब मुझे एहसास हुआ कि देश में खून की कमी तब है जब 63 करोड़ लोग खून देने के काबिल हैं। बावजूद एक करोड़ लोगों से खून नहीं मिलता।” कुणाल बताते हैं कि उन्होने कहीं पढ़ा था कि देश में हर साल तीस लाख यूनिट खून की कमी पड़ जाती है। जिससे कई लोगों की जान चली जाती है।
अपने साथ हुई इस घटना के बाद कुणाल ने अगस्त, 2014 में ‘द सेवियर’ नाम से फेसबुक पर अपनी इस मुहिम को शुरू किया। शुरूआत में इन्होने अपने साथ 4-5 ऐसे लोगों को जोड़ा जो जरूरत पड़ने पर खून देने के लिए तैयार थे। जिसके बाद धीरे धीरे इन्होने और लोगों को अपने साथ जोड़ा और पिछले डेढ़ साल के अंदर इनकी एक बड़ी टीम तैयार हो गई है। जिसके सदस्य ना सिर्फ कोलकाता में बल्कि दिल्ली, बेंगलुरू, मुंबई और दूसरे शहरों में हैं। इन जगहों पर ‘द सेवियर’ के सदस्य ना सिर्फ ब्लड कैम्प लगाते हैं बल्कि लोगों को खून दान देने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाते हैं। कुणाल के मुताबिक हर महिने विभिन्न जगहों पर 4-5 अलग अलग तरह के कार्यक्रम होते हैं। इसके अलावा आपातकालीन स्थिति में इनकी टीम जरूरतमंदों को खून पहुंचाने का काम करती है।
खास बात ये है कि फेसबुक के साथ साथ इनका वट्स अप में अपना एक ग्रुप है। जहां पर किसी भी जरूरमंद जानकारी एक दूसरे को दी जाती है और जब डोनर का इंतजाम हो जाता है तो उसके बाद जिसे खून की जरूरत होती है उससे मुलाकात कराई जाती है। इतना ही नहीं डोनर को ‘द सेवियर’ की टीम एक सार्टिफिकेट भी देती है और उसकी जानकारी ये लोग फेसबुक पर भी साझा करते हैं। कुणाल के मुताबिक अब तक 15 हजार ब्लड डोनर इनके साथ रिजस्टर्ड हो चुके हैं। दिल्ली में ‘द सेवियर’ के काम को मनीषा जैन देखती हैं। कुणाल के मुताबिक “मैं अकेले इतने बड़े काम को नहीं कर सकते था लेकिन मनीषा जैन और सरन थाम्बी ने हमारी इस मुहिम में काफी साथ दिया है।”
‘द सेवियर’ की टीम लोगों में रक्त दान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए त्योहार जैसे मौकों का खूब इस्तेमाल करती है। ये लोग होली, दिवाली, क्रिसमस और दूसरे मौकों पर विभिन्न तरह के कार्यक्रम करते हैं और वहां आने वाले लोगों में रक्त दान को लेकर जागरूक करते हैं। जागरूकता से जुड़े सभी कार्यक्रमों की जानकारी ये फेसबुक में भी साझा करते हैं। कुणाल के मुताबिक “हमारी टीम अपना काम एक खास फलसफे के तहत काम करती है और वो फलसफा है कि, जब आप दूसरों की मदद करते हैं, तो कायनात भी आपकी मदद करने में जुट जाती है।” बात अगर पिछले 4-5 महिनों की करें तो ये अब तक करीब सात सौ यूनिट खून इकट्ठा कर चुके हैं। ‘द सेवियर’ की कोर टीम में 60 से ज्यादा सदस्य शामिल हैं जो कि देश के अलग अलग हिस्सों में इस मुहिम के साथ जुड़े हैं। इसके अलावा इनके पास काफी संख्या में वॉलंटियर भी हैं। जो इनके इस काम में मदद करते हैं। कुणाल का कहना है कि अगर किसी जरूरतमंद को खून की जरूरत हो तो वो इनसे फेसबुक, बेवसाइट और इनके अपने नेटवर्क के जरिये सम्पर्क कर खून हासिल कर सकता है।
वेबसाइट : www.thesaviours.org