खतरे में पड़ी यूनेस्को विरासत 'छऊ नाच' को संजीवनी दे रहे हैं पद्मश्री नेपाल महतो
पुरुलिया के नेपाल महतो को छऊ नृत्य में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा है। नेपाल जी ने छऊ नाच को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए अपने पैसों से एक ट्रेनिंग रूम बनवाया है, जहां पर वो अपनी मंडली के साथ छऊ की बारीकियां सिखाते हैं।
छऊ नृत्य को यूनेस्को ने साल 2010 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था। दुखद ये है कि ये सूची इंटैंजिबल कल्चरल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी यानि कि खतरे में पड़ी विरासतों की है।
भारत कितना खूबसूरत देश है न! अलग-अलग संस्कृतियां, रंगों से भरी लोक कलाएं, प्यारे और कर्मठ लोग। मैं घूमते-घूमते पश्चिम बंगाल पहुंच गई थी। वहां जाकर मुझे कई सार्वजनिक स्थलों की दीवारों पर एक खास नृत्य की तस्वीरें बनी हुई दिखाई दीं। चमकीले कपड़े, बड़े-बड़े वाद्य यंत्रों के साथ, सिर पर भारी-भरकम मुखौटों के साथ नाचते लोग। पता चला कि ये है 'पुरुलिया छऊ'। छऊ नाच के तीन प्रकारों में से एक है।
छऊ नृत्य के बारे में और पढ़ा तो पता चला कि यूनेस्को ने इस नृत्य को साल 2010 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था। दुखद ये है कि ये सूची इंटैंजिबल कल्चरल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी यानि कि खतरे में पड़ी विरासतों की है। छऊ नृत्य की भारत में जड़ें सदियों पुरानी हैं। विश्व पटल में डंका बजता है इस कला का, लेकिन अपने ही देश में ये हाशिए पर है। हममें से कितने कम लोगों को ही इस अद्भुत कला के बारे में मालूमात है।
कोलकाता से पुरुलिया तक का सफर पूरा हुआ। इंटरनेट पर सर्च किया तो पद्मश्री नेपाल महतो जी का नाम नजर आया। पुरुलिया के नेपाल महतो को छऊ नृत्य में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा है। नेपाल जी अपने परिवार और मंडली के साथ बलरामपुर ब्लॉक के आदाबोना गांव में रहते हैं। मुझे उनका मेहमान बनने का सौभाग्य मिला। नेपाल जी के घर के आस-पास कई और छऊ कलाकारों के भी घर हैं। गांव कe वो इलाका छऊ पाटी कहलाता है। नेपाल जी ने छऊ नाच को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए अपने पैसों से एक ट्रेनिंग रूम बनवाया है, जहां पर वो अपनी मंडली के साथ छऊ की बारीकियां सिखाते हैं।
छऊ की एक मंडली में 12-20 लोग होते हैं। जिनमें से छः से सात लोग गायक मंडली रहते हैं। बाकी के कलाकार वेष बदल-बदलकर नृत्य करते हैं। छऊ के गानों के मुख्य विषय पौराणिक कथाएं होती हैं। महिषासुर मर्दन, नरकासुर का वध, ऐसी ही अनूठी कहानियां लेकर कलाकार मध्यरात्रि में दर्शकों के सामने आते हैं। दृश्यों के मुताबिक मास्क पहनते हैं। ये एक मास्क कई किलो का होता है, कलाकारों की पोशाकें भी कई किलो भारी होती हैं, इसके बावजूद कलाकार इतनी फुर्ती और लोच के साथ नृत्य करते हैं कि दर्शक दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।
नेपाल महतो जी ने बताया कि एक मंडली तैयार करने में दो से तीन लाख का खर्च आता है। मुखौटे सजाने, वाद्ययंत्र खरीदने में, पोशाकें तैयार करने में ही बहुत पैसे लग जाते हैं। फिर पूरी मंडली को एक साथ लाने-ले जाने में छोटा ट्रक लगता है, उसका खर्चा। इन सब चीजों के रखरखाव और कलाकारों का मेहनताना में भी अच्छा-खासा व्यय हो जाता है। सरकार की तरफ से फिलहाल पंद्रह सौ रुपए मासिक की प्रोत्साहन राशि इन छऊ कलाकारों को थमा दी जाती है। इस झुनझुने जैसी राशि से तो कुछ होने जाने से रहा। नेपाल जी अपने खर्चे से एक हिस्सा निकालकर छऊ नाच के संसाधनों को पूरा करने में लगे रहते हैं।
नेपाल जी ने एक बड़ी ही प्यारी बात बोली, छऊ नाच में हमारी जान बसती है, ये सब काम दिल से होता है। पैसे की कमी से थोड़ा दिक्कत तो होती है लेकिन जब तक छऊ नाच कर न लो तो हम लोगों का दिन नहीं पूरा होता। नेपाल जी और बाकी के छऊ कलाकारों की तरफ से हम भी सरकार से और आप सभी पाठकों से ये अपील करते हैं कि अपने देश की इस विश्वस्तरीय लोककला को समय रहते मिलकर संजो लिया जाए। वरना ये कला केवल यादों का एक हिस्सा बनकर रह जाएगी।
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