डिग्री देते हुए क्यों पहनाया जाता है काला गाउन और टोपी?
आगामी 25 फरवरी को होने जा रहा दिल्ली विश्वविद्यालय का 99वां दीक्षांत समारोह कुछ अलग होने जा रहा है. इसका कारण है कि स्टूडेंट्स ब्लैक गाउन के बजाय ‘अंगवस्त्र’ के साथ भारतीय परिधान में नजर आएंगे.
स्टूडेंट लाइफ के सबसे महत्वपूर्ण पलों में से एक वह होता है जब डिग्री सौंपे जाने के दौरान स्टूडेंट्स को ब्लैक गाउन और कैप पहनने का मौका मिलता है. दुनियाभर की विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएशन सेरेमनी के दौरान स्टूडेंट्स द्वारा चौकोर कैप को उछालने की तस्वीरें बेहद आम भी हैं.
हालांकि, आगामी 25 फरवरी को होने जा रहा दिल्ली विश्वविद्यालय का 99वां दीक्षांत समारोह कुछ अलग होने जा रहा है. इसका कारण है कि स्टूडेंट्स ब्लैक गाउन के बजाय ‘अंगवस्त्र’ के साथ भारतीय परिधान में नजर आएंगे.
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने कहा, “चोगा (रोब) या गाउन काफी लंबे समय से था. विश्वविद्यालय ने इसे बदलने की जरूरत महसूस की. छात्रों ‘अंगवस्त्र’ और अधिकारी खादी सिल्क से बने परिधान धारण करेंगे, यह अपनी जड़ों की ओर लौटने जैसा है.”
अधिकारियों और मेहमानों के लिए, पोशाक खादी सिल्क से बनेगी, जो भारतीय परंपराओं और संस्कृति को बढ़ावा देने का एक और तरीका है. हालांकि, छात्रों के लिए भारतीय पोशाक पहनना अनिवार्य नहीं होगा, लेकिन विश्वविद्यालय उनसे कुर्ता और साड़ी जैसे पारंपरिक परिधान चुनने का अनुरोध कर रहा है.
हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब ऐसा फैसला लिया गया है. साल 2019 में मुंबई यूनिवर्सिटी और उसके बाद महाराष्ट्र के कई अन्य कॉलेजों ने अपने दीक्षांत समारोह में बदलाव किए थे.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि ऐसे ब्लैक गाउन और कैप का कल्चर क्यों है? यह कब और कहां से आया?
स्कॉलर गाउन और कैप का इतिहास?
आज दुनियाभर में विश्वविद्यालय जिस रूप में मौजूद हैं, वे सदियों पहले पश्चिमी देशों में मौजूद संस्थाओं का ही आधुनिक रूप में हैं. उन विश्वविद्यालयों में जिन परंपराओं का पालन किया जाता था, उन्हें ही बाकी जगहों पर प्रैक्टिस बना लिया गया. दुनिया के कई देशों में ग्रेजुएशन सेरेमनी में इसी तरह के पहनावे को फॉलो किया जाता है.
ऐसा भी माना जाता है कि इस ब्लैक गाउन को पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के इस्लामिक स्कॉलर्स पहनते थे और वहां से ही वह पश्चिमी देशों में पहुंचा था.
मकदिसी द्वारा साल 1981 में लिखी गई किताब ‘द राइज ऑफ कॉलेजेज: इंस्टीट्यूशंस ऑफ लर्निंग इन इस्लाम एंड द वेस्ट’ के अनुसार, इजिप्ट में स्थित मदरसा-अल-अजहर की स्थापना 10वीं शताब्दी में हुई थी. यहीं से ब्लैक गाउन की शुरुआत भी हुई थी.
यूरोप की तरह ही, इन क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के संस्थानों का शुरुआती उद्देश्य धार्मिक शिक्षा देना था और बाद में वहां कानून, गणित और खगोल विज्ञान की पढ़ाई शुरू हुई.
दुनिया में साइंस के सबसे प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट्य में से एक मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के अनुसार, अकेडमिक पहनावों की शुरुआत 12वीं से 13वीं शताब्दी के आस-पास यूरोपीय यूनिवर्सिटियों से हुई थी जो कि धार्मिक संगठन से बदलकर शिक्षा के केंद्र में तब्दील हो रही थीं.
यही कारण रहा कि स्कॉलर का साधारण पहनावा, एक मौलवी के पहनावे के रूप में ही था. मध्यकालीन स्कॉलर आमतौर पर सिर मुंडवा लेते थे. ऐसे में सिर की सुरक्षा के लिए पाइलस जैसी टोपी पहनी जाती थी, जो खोपड़ी जैसी दिखती थी. आजकल पहनी जाने वाली चौकोर टोपी बाद में चलन में आई.
वहीं, 14वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटेन के कुछ कॉलेजों ने लंबे और साधारण गाउन पहनने की सलाह देने लगे. ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसे ब्रिटेन के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों ने एक निश्चित शैक्षणिक पोशाक निर्धारित की और इसे विश्वविद्यालय के नियंत्रण में ला दिया.
उपनिवेशीकरण के साथ यह अमेरिका में आया. न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय का कहना है कि गर्म गाउन और हुड बिना गर्म इमारतों में भी उपयोगी थे. इसके अलावा, खास गाउन ने स्टूडेंट्स को उसके साथी नागरिकों से अलग करने का काम किया क्योंकि, लंबे समय तक, कोलंबिया के छात्रों ने वहां रहने के दौरान टोपी और गाउन पहना था. समय के साथ, गाउन के लिए ब्लैक कलर को चुना गया और कोर्स की डिग्री के अनुसार उसमें खास चीजें जोड़ी गईं.
कैप में उछालने का चलन कैसे आया?
वहीं, कैप को हवा में उछाले जाने के बारे में भी नेशनल जियोग्राफिक का एक आर्टिकल एक शुरुआती धार्मिक प्रभाव को वजह बताता है. दरअसल, प्रार्थना के दौरान छोड़कर टोपियों को हमेशा पहना जाता था.
हालांकि, साल 1912 में अमेरिकी नौसेना अकेडमी ने तब अपनी टोपियों को हवा में उछाल दिया, जब एक सेरेमनी के दौरान उन्हें नए ऑफिसर कैप्स दिए गए. इसने एक नई परंपरा की शुरुआत कर दी.
2015 में UGC ने दिया था निर्देश
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 2015 में विश्वविद्यालयों से उन्हें बढ़ावा देने के लिए औपचारिक पोशाक के लिए हथकरघा कपड़े का उपयोग करने पर विचार करने के लिए कहा था.
इसका हैदराबाद विश्वविद्यालय जैसे परिसरों में कुछ विरोध देखा गया, जहां लोगों ने एक विशेष प्रकार के भारतीय कपड़ों को दूसरों के ऊपर चुने जाने की आवश्यकता पर सवाल उठाया.
Edited by Vishal Jaiswal