Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

गरीब महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन देने के साथ ही उन्हें जागरूक कर रही हैं ये कॉलेज गर्ल्स

गरीब महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन देने के साथ ही उन्हें जागरूक कर रही हैं ये कॉलेज गर्ल्स

Tuesday September 19, 2017 , 5 min Read

शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 48 प्रतिशत महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। यानी आधी से अधिक ग्रामीण महिलाएं पीरियड्स के दिनों में सबसे जरूरी सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल ही नहीं करतीं।

महिलाओं को समझातीं इनब और डॉ. हेतल

महिलाओं को समझातीं इनब और डॉ. हेतल


 डॉ. हेतल ने बताया कि चंडीगढ़ में भी ऐसा ही एक कैंपेन चल रहा था जिसके बारे में पढ़ने के बाद उन्होंने जयपुर में भी ऐसा ही कुछ करने का फैसला किया। 

महिलाएं नैपकिन के विकल्प के तौर पर गंदे कपड़े या अन्य उपायों का इस्तेमाल करती हैं। हेतल और इनब उन्हें बुनियादी स्वास्थ्य और नैपकिन को डिस्पोज करने के बारे में भी बता रही हैं।

स्लम एरिया में रहने वाली महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने और पीरियड्स के दिनों में सैनिटरी नैपकिन के प्रयोग के बारे में बताने के लिए जयपुर की दो लड़कियां इन दिनों कैंपेन चला रही हैं। केमिस्ट्री में पीजी करने वाली इनब खुर्रम और डेंटल की पढ़ाई कर रहीं डॉ. हेतल सच्चानंदिनी जयपुर के झुग्गी-झोपड़ियों वाले इलाकों में जा जाकर वहां की महिलाओं को फ्री में नैपकिन और स्वच्छता से जुड़ी अन्य सामग्री डिस्ट्रीब्यूट कर रही हैं। इनब ने बताया, 'इस कैंपेन के जरिए हम महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन की जगह गंदे कपड़े के इस्तेमाल से होने वाली बीमारियों के बारे में जागरूक कर रहे हैं।' इनब उन्हें बुनियादी स्वास्थ्य और नैपकिन को कैसे डिस्पोज किया जाए इस बारे में भी बता रही हैं।

भारत में महिला स्वास्थ्य और उनकी सेहत से जुड़ी साफ-सफाई का हाल काफी बुरा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 48 प्रतिशत महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। यानी आधी से अधिक ग्रामीण महिलाएं पीरियड्स के दिनों में सबसे जरूरी सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल ही नहीं करतीं। वहीं शहरी इलाकों में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। यहां भी 78 प्रतिशत महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग करती हैं। ये महिलाएं नैपकिन के विकल्प के तौर पर गंदे कपड़े या अन्य उपायों का इस्तेमाल करती हैं।

हेतल और उनकी टीम

हेतल और उनकी टीम


खास बात तो यह है कि उन्हें ट्विटर के जरिए लोग उन्हें मदद कर रहे हैं और पेटीएम से डोनेट कर रहे हैं। इनब और हेतल का यह कारवां बढ़ रहा है। अब दिल्ली में भी इनब के कुछ ट्विटर फ्रेंड इसे आगे बढ़ा रहे हैं।

डॉ. हेतल बताती हैं, 'अभी मैंने कुछ दिनों पहले ही एक रिसर्च स्टडी के बारे में पढ़ा जिसमें भारत की महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में कुछ आंकड़े दिए हुए थे। इसके जरिए मुझे मालूम चला कि 80 प्रतिशत भारतीय महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल ही नहीं करती हैं।' वह कहती हैं कि कई महिलाओं को तो इस बारे में भी नहीं पता कि नैपकिन क्या होती है। वहीं कुछ महिलाएं तो जागरूक हैं, लेकिन माली हालत अच्छी न होने की वजह से वह इसे नहीं खरीद पाती हैं। डॉ. हेतल ने बताया कि चंडीगढ़ में भी ऐसा ही एक कैंपेन चल रहा था जिसके बारे में पढ़ने के बाद उन्होंने जयपुर में भी ऐसा ही कुछ करने का फैसला किया। इस काम में उनकी दोस्त इनब भी मदद कर रही हैं।

हालांकि उन्हें किसी भी एनजीओ या सरकारी संस्था से कोई मदद नहीं मिली है। बल्कि खास बात तो यह है कि उन्हें ट्विटर के जरिए लोग उन्हें मदद कर रहे हैं और पेटीएम से डोनेट कर रहे हैं। इनब और हेतल का यह कारवां बढ़ रहा है। डॉ. हेतल की एक दोस्त त्रिशल पिंचा ने भी उनकी काफी मदद की। वह भी हेतल की टीम में शामिल हैं। अब दिल्ली में भी इनब के कुछ ट्विटर फ्रेंड इसे आगे बढ़ा रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2012 में ग्रामीण क्षेत्रों में सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल को बढ़ाने को लेकर एक स्कीम शुरू की थी औऱ उस फंड में 150 करोड़ रुपये भी दिए थे। उस स्कीम के तहत बीपीएल परिवार से ताल्लुक रखने वाली लड़कियों को एक रुपये की दर से नैपकिन दिया जाता था वहीं एपीएल यानी गरीबी रेखा से ऊपर वाले परिवार की लड़कियों को 6 रुपये की दर से सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराया गया था। 

एक अन्य स्टडी में तमिलनाडु, केरल और दिल्ली जैसे राज्यों में 10 में से 9 महिलाएं पर्सनल हाइजीन प्रोडक्ट का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन बिहार, मध्य प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य इस मामले में सबसे फिसड्डी हैं। बाकी राज्यों की तुलना में इन राज्यों में आधे से भी कम महिलाएं नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। स्टडी में यह बात सामने निकलकर आई कि पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन न होने से स्कूल जाने वाली 12 से 18 साल की लड़कियों को महीने में पांच दिन स्कूल का नुकसान होता है। वहीं 70 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं का कहना था कि वे इसे अफोर्ड ही नहीं कर सकती हैं। स्वच्छता और स्वास्थ्य के मामले में जहां एक तरफ हालत बदतर हैं वहां डॉ. हेतल और इनब जैसी लड़कियों की सोच और मेहनत इस देश को आगे ले जाने का काम कर रही है। आप चाहें तो उन्हें 8055566223 पर पेटीएम के जरिए मदद कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें: छुपा कर अंडरगारमेंट्स सुखाने वाले देश में कैसे सफल हुआ एक ऑनलाइन लॉन्जरी पोर्टल