कैंप में रहने वाली कश्मीरी पंडित लड़की ने राज्य सिविल सर्विस में हासिल की चौथी रैंक
कश्मीर प्रशासनिक सेवा के सोमवार को घोषित हुए परिणाम में चौथा स्थान लाकर कश्मीरी पंडित विस्थापित लड़की कश्यप नेहा ने अपने सपनों को साकार कर लिया है।
मूल रूप से कश्मीर के शोपियां जिले की रहने वाली नेहा का परिवार 1992 में विस्थापित हो गया था। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 2 साल थी। इसके बाद उन्हें जम्मू के झिरी इलाक में टेंट में रहना पड़ा।
नेहा ने प्रीलिम्स में वैकल्पिक विषय के रूप में प्राणि विज्ञान विषय लिया था और मेन्स में प्राषमि विज्ञान के साथ मानव विज्ञान भी चुना था। इसके पहले नेहा प्रधानमंत्री स्पेशल जॉब्स स्कीम के तहत शोपियां जिले में ट्रेजरी के तौर पर काम कर रही थीं।
जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का हाल काफी बुरा रहा है। अधिकतर कश्मीरी पंडित या तो राज्य छोड़कर पलायन कर चुके हैं या फिर विस्थापितों की तरह कैंप में रहने को मजबूर हैं। उसी समाज से आने वाली एक लड़की ने कठिन हालात में परीक्षा पास कर कश्मीर प्रशासनिक सेवा में चौथा स्थान हासिल किया है। मूल रूप से कश्मीर के शोपियां जिले की रहने वाली नेहा का परिवार 1992 में विस्थापित हो गया था। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 2 साल थी। इसके बाद उन्हें जम्मू के झिरी इलाक में टेंट में रहना पड़ा।
उसके बाद पहली कक्षा से ही नेहा को पांच सदस्यीय परिवार में संघर्ष करना पड़ा। उस वक्त उन्हें नहीं लगता था कि वह कभी उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाएंगीं। लेकिन इस बार की राज्य सिविल सेवा परीक्षा में चौथा स्थान लाकर उन्होंने अपने सपने को साकार कर लिया है। कश्मीर प्रशासनिक सेवा के सोमवार को घोषित हुए परिणाम में सुरनकोट के अंजुम बशीर खान ने पहला स्थान हासिल किया है। किश्तवाड़ की आलिया तबस्सुम दूसरे और भद्रवाह के फरीद अहमद तीसरे स्थान पर रहे। नेहा ने ऑर्गैनिक केमिस्ट्री में एमएससी और एजुकेशन में बैचलर किया है।
अपनी कहानी बताते हुए वह कहती हैं कि 1992 में जिस वक्त कश्मीरी पंडितों का विस्थापन हुआ तो मैं सिर्फ 2 साल की थी। इसके बाद 5-6 साल उन्हें खुले कैंपों में रहना पड़ा। इसके बाद सरकार ने उन्हें रहने के लिए एक कमरों का घर उपलब्ध करवाया। लेकिन एक कमरे के रूम में पढ़ना काफी मुश्किल होता था। शोरगुल होना, बिजली पानी की सही से व्यवस्था न होने के कारण उन्हें काफी दिक्कतें आईं। उनके घर की हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद नेहा ने सफलता के झंडे गाड़ दिए।
नेहा बताती हैं कि उनके बड़े भाई कश्यप विरेश और अंकल रतन लाल ने उन्हें सिविल सेवा में जाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने शुरू के एक महीने तक कोचिंग भी ली थी, लेकिन बाद में उसे भी बंद कर दी। उनके पिता रोशन लाल को सरकार की तरफ से मिलने वाले राशन पर जीविका चलानी पड़ती थी। कश्मीर से पलायन करने के बाद उनके पुश्तैनी काम धंधे भी बंद हो गए थे, इसलिए परिवार चलाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। जम्मू कश्मीर के जिस शोपियां जिले से नेहा ताल्लुक रखती हैं वह पिछले कई सालों से जम्मू-कश्मीर का सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित जिला रहा है।
नेहा ने प्रीलिम्स में वैकल्पिक विषय के रूप में प्राणि विज्ञान विषय लिया था और मेन्स में प्राषमि विज्ञान के साथ मानव विज्ञान भी चुना था। इसके पहले नेहा प्रधानमंत्री स्पेशल जॉब्स स्कीम के तहत शोपियां जिले में ट्रेजरी के तौर पर काम कर रही थीं। इस सफलता का श्रेय अपने पिता, भाई और चाचा को देते हुए नेहा ने बताया कि वह इस परीक्षा को पास करने के लिए रोजाना 12 से 14 घंटों तक पढ़ाई करती थीं। उनकी इस सफलता पर बधाईयों का भी सिलसिला शुरू हो गया। प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री नईम अख्तर जगटी विस्थापित शिविर में आकर नेहा पंडिता और उनके परिवार से मुलाकात की।
नेहा की सफलता के लिए उसके परिवार को श्रेय देते हुए मंत्री ने कहा कि परिवार का समर्थन एक बच्चे की सफलता की कुंजी है और यह महत्वपूर्ण है कि लड़कियों को जीवन में सफलता हासिल करने के लिए अनुकूल वातावरण दिया जाए। राज्य की प्रतिष्ठित नागरिक सेवाओं के लिए योग्यता प्राप्त करने वाली जगटी विस्थापित शिविर की पहली कश्मीरी लड़की होने के नाते मंत्री ने कहा कि उनका चयन समुदाय से दूसरों को अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
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