पिछले 45 सालों से यह डॉक्टर मरीजों से इलाज के लिए लेता है सिर्फ 5 रुपये की फीस
डॉ. जयचंद्रन के मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या कूड़ा बीनने वाले और दिहाड़ी मजदूरों की होती है। पैसों के आभाव में किसी की जान न चली जाए इस मकसद से जयचंद्रन ने करीब पचास साल पहले कम पैसों में इलाज करना शुरू किया था...
अगर कोई मरीज इतने पैसे भी देने की हालत में नहीं होता तो वे एक भी रुपये नहीं लेते। गरीबों का बेहतर इलाज करते-करते उन्हें बाकी लोग भी जानने लगे और जिनके पास अच्छा-खासा पैसा होता था वह भी उनके पास इलाज के लिए आने लगा।
जयचंद्रन को अपने पेशे से बेहद लगाव और प्यार है। वह कहते हैं कि इस पेशे में आप सबसे बेहतर तरीके से इंसानियत की सेवा कर सकते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने जो कुछ भी पढ़ाई की है उसका पैसा नहीं वसूलना चाहते।
एक वक्त में जब पूरे देश में स्वास्थ्य की सेवाएं बदहाल हैं और सरकारी अस्पताल में बदहाली के सिवा और कुछ नहीं है वहां एक डॉक्टर सिर्फ 5 रुपये की फीस में लोगों का इलाज कर रहा है। चेन्नई में 1970 में अपनी डॉक्टरी की प्रैक्टिस शुरू करने वाले डॉ. जयचंद्रन शुरू में अपने मरीजों से सिर्फ 2 रुपये ही लेते थे। 68 की उम्र में पहुंच चुके जयचंद्रन चेन्नई के वन्नरपेट्टई इलाके में रहते हैं। उनके मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या कूड़ा बीनने वाले और दिहाड़ी मजदूरों की होती है। पैसों के आभाव में किसी की जान न चली जाए इस मकसद से जयचंद्रन ने करीब पचास साल पहले कम पैसों में इलाज करना शुरू किया था।
अपने इस महान कार्य के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, 'मेरे परिवार में कोई पढ़ा-लिखा नहीं था। मेरे माता-पिता खेतों में मजदूरी किया करते थे। यहां तक कि गांव में भी कोई ऐसा नहीं था जिसने अपनी पढ़ाई पूरी की हो। मैं इकलौता ऐसा था जिसने हाई स्कूल पास किया हो। मैं अपने गांव में देखता था कि कई सारे लोग इलाज के आभाव में दम तोड़ देते थे। उस हालत ने मुझे डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित किया। मैं डॉक्टर बनकर ऐसे लोगों का मुफ्त में इलाज करना चाहता था, जिनके पास पैसे नहीं होते। '
जयचंद्रन ने अपने एक साथी डॉक्टर कांगवेल के साथ 1971 में क्लिनिक की शुरुआत की थी। उस वक्त वह किसी भी मरीज से कोई पैसा नहीं लेते थे। लेकिन उनके एक दोस्त ने उनसे मरीजों से 2 रुपये की फीस लेने की सलाह दी थी। उस दोस्त ने ही डॉक्टर जयचंद्रन का क्लिनिक खोलने में मदद की थी। उस दोस्त का मानना था कि अगर वे मुफ्त में लोगों का इलाज करेंगे तो कोई भी उनकी अहमियत नहीं समझेगा। इसीलिए वह अपने मरीजों से नाममात्र का पैसा लेने लगे। वे कहते हैं, 'मेरा एक सिद्धांत हमेशा से रहा है कि किसी को भी पैसा देने के लिए बाध्य न करूं। मरीज जो कुछ अपनी इच्छा से दे देते हैं वही मैं रख लेता हूं।'
अगर कोई मरीज इतने पैसे भी देने की हालत में नहीं होता तो वे एक भी रुपये नहीं लेते। गरीबों का बेहतर इलाज करते-करते उन्हें बाकी लोग भी जानने लगे और जिनके पास अच्छा-खासा पैसा होता था वह भी उनके पास इलाज के लिए आने लगा। उन्हें इलाके में सबसे अच्छे डॉक्टर के रूप में जाना जाता है। वे सारे लोग जयचंद्रन को फीस के एवज में अच्छे-खासे पैसे देते थे, लेकिन वे सीधे ही इनकार कर देते थे। वे उन्हें पैसों की बजाय कुछ दवाईयां लाने को कहते थे। इन दवाईयों को वह गरीबों और जरूरतमंदों के इलाज में इस्तेमाल कर देते हैं। पिछले पांच दशकों में जयचंद्रन ने एक ही परिवार की पांच पीढ़ियों का इलाज किया है।
जयचंद्रन को अपने पेशे से बेहद लगाव और प्यार है। वह कहते हैं कि इस पेशे में आप सबसे बेहतर तरीके से इंसानियत की सेवा कर सकते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने जो कुछ भी पढ़ाई की है उसका पैसा नहीं वसूलना चाहते। उनके दर पर आने वाले मरीजों में कभी भेदभाव नहीं किया जाता। चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या संप्रदाय से ताल्लुक रखते हों, जयचंद्रन की नजर में सब मरीज बराबर होते हैं। वे कहते हैं कि किसी की जान बचाने पर जो खुशी मिलती है उसकी तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती।
एक समय गरीबी में जीवन बिताने वाले जयचंद्रन का परिवार अब समृद्ध हो चुका है। उनकी पत्नी और तीन बच्चे भी इसी पेशे में हैं। शायद यही वजह है कि उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ती। उनकी पत्नी अपनी कमाई से घर संभालती हैं और जयचंद्रन अपनी काबिलियत को गरीबों की सेवा में लगा देते हैं। वे समय-समय पर आस-पास के इलाकों में जाकर गरीबों के लिए मेडिकल कैंपलगाते हैं। अब तक वे 3,000 से भी ज्यादा कैंप लगा चुके हैं। इस उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर भी दूसरों के लिए सोचने वाले जयचंद्रन डॉक्टरी के पेशे के साथ ही अपनी जिंदगी को भी सार्थक कर रहे हैं।
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