Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

घर-घर जाकर लोगों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं केरल की ये दादी

घर-घर जाकर लोगों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं केरल की ये दादी

Thursday March 05, 2020 , 3 min Read

पिछले 14 वर्षों में उमादेवी अंतरजनम ने किताबें पढ़ने का बढ़ावा देने के लिए केरल के बुधनूर गांव में कम से कम 220 घरों का दौरा किया है।

उमादेवी अन्तरजनम

उमादेवी अन्तरजनम (चित्र: द हिन्दू)



जब आपने आखिरी बार एक किताब उठाई थी, तो उसके पन्नों के बीच एक महक थी, जिसमें कई बार आप खो भी गए होंगे। सोशल मीडिया की आज की अतिसक्रिय दुनिया में हमने कई आदतें खो दी हैं जो हमने अपने बचपन के दौरान पैदा की थीं, जैसे कि आउटडोर गेम खेलना, नृत्य या संगीत की कक्षाओं में भाग लेना या खुद को किताबों और कॉमिक्स की तरफ ले जाना।


उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने हाल ही में युवाओं के बीच किताब पढ़ने की आदतों में कमी से पर चिंता व्यक्त की है, लेकिन केरल की एक महिला इसे बदलने की कोशिश कर रही हैं।


73 वर्षीय उमादेवी अन्तरजनम केरल में पढ़ने को बढ़ावा देने के लिए हर दिन चार-पांच किलोमीटर सड़कों पर पैदल चलकर जाती हैं। इस दौरान उनके साथ किताबों से भरा बैग और साथ में छाता होता है। पिछले 14 वर्षों में ये केरल में चेंगन्नूर के पास बुधनूर गांव में कम से कम 220 घरों का दौरा कर चुकी हैं।


मैटर्स इंडिया से बात करते हुए उमादेवी ने कहा,

“मैं किताबें लेने के लिए शाम को तीन बजे तक लाइब्रेरी पहुँच जाती हूँ। ज्यादातर बच्चे और महिलाएं मुझसे पढ़ने के लिए किताबें लेती हैं। छात्रों के मामले में वे मुझे पहले से सूचित करते हैं कि उन्हें कौन सी किताब चाहिए। मैं इसे लाइब्रेरी से इकट्ठा करती हूं और उन्हें डिलीवर करती हूं।”

वह कहती हैं कि पुस्तकालय जो गाँव में स्थित है वह सभी विषयों पर पुस्तकों से भरा हुआ है। इसमें फ़िक्शन, नॉन- फ़िक्शन और जासूसी उपन्यासों के साथ-साथ ज्यादातर पौराणिक पुस्तकें बुजुर्गों द्वारा पढ़ी जाती हैं।


शशि थरूर के साथ उमादेवी

शशि थरूर के साथ उमादेवी (चित्र: ट्विटर)




वह यह भी सुनिश्चित करती हैं कि पुस्तकालय के सदस्य वास्तव में वह पुस्तक पढ़ें जो वह उनके लिए लाई गई हैं। जब वह कुछ हफ़्ते बाद किताबें वापस लेने जाती हैं, तब वह बच्चों से यह बताने के लिए कहती है कि उन्होंने किताबों से क्या सीखा? अब लोग उनसे अपने परिवार के पढ़ने के लिए किताबों का सुझाव देने के लिए कहते हैं।


पुस्तकालय के अध्यक्ष विश्वंभर पनिकर द्वारा काम करने के लिए आमंत्रित किए जाने के बाद उन्होने गाँव के चक्कर लगाना, किताबें बाँटना और किताब-पढ़ने की आदतें बनाना शुरू कर दिया।


वह कहती हैं,

“एक नंबुदिरी समुदाय से होने के चलते मुझे पहले बाहर जाने की अनुमति नहीं थी। मेरी शादी तब हुई जब मैं बीए की छात्रा थी। मैं जिस परिवार में आई वो परंपराओं और रीति-रिवाजों का कट्टर अनुयायी थे। मैंने पहले 20 से अधिक वर्षों तक एक ट्यूशन शिक्षक के रूप में काम किया था। मैं ट्यूशन सेंटर जाती थी और और छात्रों को पढ़ाती थी, लेकिन 18 साल पहले मेरे पति की मृत्यु के बाद मुझे संघर्ष करना पड़ा।”

उनकी पहल और पढ़ने के प्रति उनके प्यार को पहचानने के लिए उमादेवी को कांग्रेस सांसद शशि थरूर और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।