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छत्तीसगढ़ के लाइवलीहुड कॉलेज में प्रशिक्षण लेने के बाद ऑटोमोबाइल के बिजनेस से चल रहा परिवार

छत्तीसगढ़ के लाइवलीहुड कॉलेज में प्रशिक्षण लेने के बाद ऑटोमोबाइल के बिजनेस से चल रहा परिवार

Thursday September 27, 2018 , 4 min Read

यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...

कवर्धा जिले के छोटे से गांव रीवापार में रहने वाले अजय के माता-पिता खेती-किसानी कर जीवन यापन करते हैं। घर में एक बड़ा भाई और एक बहन। परिस्थितियों को देखते हुए सबसे पहले बड़े भाई ने लाइवलीहुड कॉलेज में ऑटोमोबाइल रिपेयरिंग की ट्रेनिंग ली।

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आज अजय रोज के 300 से 500 रुपए तक कमाता है। उसका कहना है कि यह तो औसत कमाई है। इंजन का काम आया तो चार-पांच हजार रुपए बन ही जाते हैं। अब वह परिवार के बजट में अपनी हिस्सेदारी भी देने लगा है। 

बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने की नीयत से शुरू की गई योजना का लाभ उन्हें मिलने लगा है। कवर्धा के महाराजपुर स्थित लाइवलीहुड कॉलेज से ट्रेनिंग लेने के बाद कई युवा खुद का व्यवसाय चला रहे हैं। रीवापार गांव के अजय कुमार गेंड्रे भी उनमें से ही हैं, जिन्होंने ऑटोमोबाइल रिपेयरिंग की ट्रेनिंग ली और बड़े भाई की दुकान में काम करने लगे। भाई का सेना में चयन हो गया तो पूरा व्यवसाय वे ही संभाल रहे हैं।

कवर्धा जिले के छोटे से गांव रीवापार में रहने वाले अजय के माता-पिता खेती-किसानी कर जीवन यापन करते हैं। घर में एक बड़ा भाई और एक बहन। परिस्थितियों को देखते हुए सबसे पहले बड़े भाई ने लाइवलीहुड कॉलेज में ऑटोमोबाइल रिपेयरिंग की ट्रेनिंग ली। तकरीबन 70 दिन की ट्रेनिंग लेने के बाव वह बाइक, स्कूटर, इलेक्ट्रिक साइकल आदि सुधारने में एक्सपर्ट हो गया। वहां से निकलने के बाद एक दुकान खोली। धीरे-धीरे व्यवसाय भी जम गया। आसपास के गांव वालों के बीच अच्छी पहचान बन गई। इसी बीच उसका आर्मी में चयन हो गया।

उसने फौरन आर्मी ज्वाइन की और अजय को लाइवलीहुड कॉलेज का फार्म भरवा दिया। इधर अजय की ट्रेनिंग शुरू हो गई। गांव में दोस्तों के साथ घूमने वाला अजय का मन भी ट्रेनिंग में लगने लगा। ठीक 70 दिन बाद उसने भी अपना प्रशिक्षण पूरा कर लिया। अब उसके सामने चुनौती थी भाई के व्यवसाय को अच्छे से आगे बढ़ाने की। उसने मन में ठाना और काम शुरू कर दिया। परिवार वालों ने अजय का हौसला बढ़ाया और बड़े भाई ने समय-समय पर उसे उचित सलाह दी तो व्यवसाय अच्छा खासा चल निकला।

आज अजय रोज के 300 से 500 रुपए तक कमाता है। उसका कहना है कि यह तो औसत कमाई है। इंजन का काम आया तो चार-पांच हजार रुपए बन ही जाते हैं। अब वह परिवार के बजट में अपनी हिस्सेदारी भी देने लगा है। उसका कहना है कि लाइवलीहुड कॉलेज में जाने से उसके जीवन काे दिशा मिली। अजय की तरक्की से उसके माता-पिता भी काफी खुश हैं। त्याेहारों के खर्च की जिम्मेदारी वह खुद उठाता है। भाई-बहनों के लिए तोहफे लाता है। दोस्तों को प्रशिक्षण लेने की सलाह देता है।

रीवापार के ग्रामीणों का कहना है कि आसपास के गांव के युवाओं को भी लाइवलीहुड कॉलेज में ट्रेनिंग का फायदा मिल रहा है। वे खुद अपना व्यवसाय संभाल रहे हैं। किसानी करने वाले माता-पिता के लिए जवान बच्चे का बेरोजगार होना भारी बोझ है। ऐसे में कवर्धा का यह कॉलेज राहत दे रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने युवाओं की सुध ली और उन्हें बेरोजगारी के जंजाल से बाहर निकाला है। वैसे तो सरकार की सभी योजनाएं अच्छी है, लेकिन युवाओं को राेजगार देने वाली यह योजना सबसे बेहतर है।

गोपाल ने मरकाभेरी में दुकान खोली और रीवापार का अजय भी आत्मनिर्भर हो गया। लाइवलीहुड कॉलेज खोले जाने का भी यही मकसद है। कवर्धा में हाईस्कूल के बच्चों को डॉक्टर-इंजीनियर बनाने के लिए निशुल्क कोचिंग दी जा रही है। बैगा आदिवासी बच्चों की शिक्षा को लेकर भी सरकार ने काम किए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हर बीपीएल परिवार को मकान देने का लक्ष्य रखा गया है। इन सबसे बड़ा काम है बेरोजगारी खत्म करना और युवाओं को हुनरमंद बनाना।

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