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कभी 3.25 रुपये का था एक डॉलर, अब है 80 का, जानिए 75 सालों में रुपये ने दीं कितनी कुर्बानियां

रुपये के लिए पिछले 75 साल बहुत ही भारी रहे. तीन बार डीवैल्युएशन भी झेलना पड़ा. देश को बचाने के लिए हर कदम पर रुपये ने दी है कुर्बानी.

कभी 3.25 रुपये का था एक डॉलर, अब है 80 का, जानिए 75 सालों में रुपये ने दीं कितनी कुर्बानियां

Tuesday August 16, 2022 , 3 min Read

भारत को आजाद हुए 75 साल (75 Years Of Independence) पूरे हो चुके हैं और इस वक्त देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इन 75 सालों में भारत ने बहुत कुछ पाया है और काफी कुछ खोया भी है. पिछले 75 सालों में जिस मामले में हम बहुत ज्यादा कमजोर हुए हैं, वह है हमारी करंसी रुपया. जब देश आजाद हुआ था तब डॉलर की कीमत भारत के करीब 3 रुपये (Rupee Against Dollar) के बराबर थी, लेकिन आज यह कमजोर होते-होते 80 रुपये (Rupee) के करीब आ चुका है.

आजादी से अब तक 20 गुना गिरा रुपया?

आजादी के दौरान भारत के 13 रुपये अमेरिका के 4 डॉलर के बराबर थे. यानी भारत के 3.25 रुपये अमेरिका के 1 डॉलर के बराबर थे. तब से लेकर अब तक रुपया गिरते-गिरते 79.32 के स्तर पर आ गया है. यानी आजादी से लेकर अब तक रुपया करीब 20 गुना तक गिर चुका है.

1966 में किया गया था रुपये का डीवैल्युएशन

आजादी के बाद 1966 तक रुपया करीब 4.76 रुपये प्रति डॉलर तक जा पहुंचा था. 6 जून 1966 को पहली बार इंदिरा गांधी सरकार ने रुपये का डीवैल्युएशन किया और इसे 7.50 रुपये प्रति डॉलर कर दिया. इससे पहले रुपये को पाउंड की तुलना में देखा जाता था. यह व्यवस्था ब्रिटिश राज से चली आ रही थी. 1966 में भारत ने ब्रिटिश पाउंड को छोड़कर डॉलर को स्टैंडर्ड ग्लोबल करंसी चुना. 1965-66 का समय वह था, जब मॉनसून खराब था, अनाज का उत्पादन बहुत कम हुआ था और इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन भी काफी कम था. इस दौरान देश ने कई आर्थिक और राजनीतिक संकट भी देखे. उस वक्त बाजार में बहुत सारा पैसा आ गया था, जिसके चलते महंगाई भी बढ़ने लगी थी. इन्हीं सब की वजह से रुपये का डिवैल्युएशन हुआ.

जब 3 दिन में दो बार हुआ रुपये का डीवैल्युएशन

1966 जैसे ही हालात 1991 में भी बने. महंगाई काबू से बाहर होने लगी, विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने लगा और सरकार डिफॉल्ट करने के कगार पर जा पहुंची. सरकार के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वह अपनी जरूरत की चीजों का भुगतान कर पाए. सरकार के बजट डेफिसिट और खराब बैलेंस और पेमेंट पोजीशन ने एक बार फिर रुपये का डीवैल्युएशन कराया. सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर 1 जुलाई 1991 को रुपये का 9 फीसदी डीवैल्युएशन किया. इसके बाद रुपये की कीमत 21.14 रुपये प्रति डॉलर से कमजोर होकर 23.04 रुपये हो गई. दो दिन बाद फिर से 11 फीसदी डीवैल्युएशन किया गया और डॉलर की तुलना में रुपया 25.95 रुपये का हो गया. महज 3 दिनों में इस तरह रुपये में करीब 18.5 फीसदी की गिरावट आई.

और बस गिरता ही चला गया रुपया...

2000-2007 के बीच यह 44 से 48 रुपये के बीच स्थिर रहा और 2007 के अंत में यह 39 रुपये के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंचा. 2008 की आर्थिक मंदी से रुपया नहीं बच सका और उसमें फिर से भारी गिरावट देखी गई. 2009 में रुपये 46.5 रुपये के लेवल पर था और वहां से गिरता ही चला गया. जून से अगस्त 2013 के बीच रुपये में 27 फीसदी की भारी गिरावट देखने को मिली. गिरते-गिरते आज की तारीख में रुपया 79.32 के लेवल पर पहुंच गया है. रुपये में गिरावट की वजहों में से एक ये भी है कि आजादी के वक्त भारत पर कोई ट्रेड डेफिसिट नहीं था, जो अब करीब 31 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है. इसकी सबसे बड़ी वजह है तेल का बहुत ज्यादा आयात. एक वक्त था जब भारत को तीसरी दुनिया की तरह देखा जाता था, लेकिन आज भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है.