3 कुर्ते और 1 साइकिल वाला IIT प्रोफेसर
April 20, 2017, Updated on : Wed Nov 10 2021 12:35:59 GMT+0000

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आलोक सागर अपना पूरा दिन बीज इकट्ठा करने और उसे आदिवासियों के बीच वितरित करने में लगाते हैं। उन्हें कई भाषाओं के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली बोलियां भी बोलनी आती हैं।
आसान नहीं होता है, सारे ऐशो आराम छोड़ कर अभावों की ज़िंदगी जीना। एक ओर जहां दुनिया का हर व्यक्ति धन-दौलत बंगला-गाड़ी के पीछे भाग रहा है, वहीं आलोक सागर जैसे लोग भी हैं, जो यदि चाहते तो कुछ भी बन सकते थे, कितना भी पैसा कमा सकते थे, लेकिन उन्होंने मुश्किलों से भरा हुआ जीवन चुना और वे अपने इस फैसले से संतुष्ट और खुश हैं।

आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग में डिग्री के साथ परास्नातक डिग्री और ह्यूस्टन से पीएचडी करने वाले आलोक सागर पूर्व आईआईटी प्रोफेसर हैं। मालूम हो कि वे आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के प्रोफेसर भी रह चुके हैं और अब 32 सालों से मध्य प्रदेश के दूरदराज आदिवासी गांवों में रहे हैं।
आदिवासी गांव में रहते हुए वे वहां के लोगों के उत्थान में अपनी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। किसी भी तरह के लालच और ज़रूरत को एक तरफ छोड़ कर वे पूरी तरह से आदिवासियों के उत्थान के लिए समर्पित हैं।

आईआईटी दिल्ली में पढ़ाते हुए, आलोक ने भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर, रघुराम राजन सहित, कई छात्रों को तैयार किया था। प्रोफेसर के पद से इस्तीफा देने के बाद, आलोक ने मध्य प्रदेश के बेतुल और होशंगाबाद जिलों में आदिवासियों के लिए काम करना शुरू किया।
पिछले 26 वर्षों से वे 750 आदिवासियों के साथ एक दूरदराज के गांव कोछमू में रह रहे हैं, जहाँ न तो बिजली है और न ही पक्की सड़क सिवाय एक प्राथमिक विद्यालय के।आलोक का पूरा जीवन नेक कामों से भरा हुआ है। उनकी सादगी उनके व्यक्तित्व को प्रेरणादायक बनाती है।

अब तक आलोक ने आदिवासी इलाकों में कुल 50,000 से अधिक पेड़ लगाए हैं और उनका विश्वास है कि लोग जमीनी स्तर पर काम करके देश को बेहतर सेवा दे सकते हैं।
एक अंग्रेजी अखबार के साथ अपने इंटरव्यू में बात करते हुए आलोक कहते हैं,
'भारत में लोग इतनी सारी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, लेकिन वे लोगों की सेवा करने और कुछ अच्छा काम करने की बजाय अपने आप को सबसे अधिक बुद्धिमान और बेस्ट साबित करने में लगे हुए हैं।'
देश दुनिया की बातें छोड़ कर आलोक खामोशी से अपना काम कर रहे हैं। पिछले साल बैतूल जिला चुनाव के दौरान स्थानीय अधिकारियों को उन पर संदेह हुआ और उन्हें बैतूल से चले जाने के लिए कहा गया।
तब आलोक ने जिला प्रशासन के सामने अपनी विभिन्न शैक्षिक योग्यता की लंबी सूची का खुलासा किया। पत्रिका के अनुसार अधिकारी तब आश्चर्य चकित रह गये, जब सत्यापित करने पर उनकी सभी योग्यता सही पायी गयी। आलोक के पास सिर्फ तीन कुर्ते और एक साइकिल है। वे अपना पूरा दिन बीज इकट्ठा करने और उसे आदिवासियों के बीच वितरित करने में लगाते हैं।
आलोक कई भाषाओं के साथ ही क्षेत्र में आदिवासियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भिन्न-भिन्न बोलियां बोल सकते हैं। 'श्रमिक आदिवासी संगठन' से बहुत निकट से जुड़े आलोक अपना अधिकांश समय आदिवासियों के उत्थान के लिए काम करते हुए बिताते हैं।
Edited by Ranjana Tripathi
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