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जितनी देर में मैगी बनकर तैयार होती है उतनी ही देर में कीर्ति जैन ज़रूरतमंद को बिना किसी सिक्योरिटी और गारंटर के कर्ज दे देते हैं

घटनाक्रम साल 2000 का है। कीर्ति जैन पुणे विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। उनकी ‘बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग’ की पढ़ाई का ये आखिरी साल था। कीर्ति का मन उत्साह और उमंग से भरा हुआ था। वे नए-नए और सुन्दर सपने संजो रहे थे। उन्हें पूरा भरोसा था कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के पूरा होते ही उन्हें शानदार नौकरी मिलेगी और वे अपनी ज़िंदगी को नए सिरे से संवारेंगे, लेकिन उसी साल उनके पिता की तबीयत अचानक बिगड़ गयी। सेहत इतनी खराब हुई कि उन्हें बिस्तर तक ही सीमित होना पड़ा। पिता का जो छोटा-सा कारोबार था, वो भी बंद हो गया। उसी साल कीर्ति की बड़ी बहन की शादी करने की भी योजना थी। शादी की तारीख भी तय हो चुकी थी, लेकिन पिता ने बीमारी में बिस्तर पकड़ लिया तो घर-परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।पिता की बीमारी, खुद की पढ़ाई का बोझ और बहन की शादी का दबाव कीर्ति पर इतना भारी पड़ा कि वे घबराकर तनाव में आ गए। कीर्ति के लिए सबसे चौंकाने और तकलीफ़ देने वाली बात ये रही कि उस बुरे वक्त में सारे रिश्तेदार और सभी क़रीबी दोस्त-साथी भी कन्नी काट गए। कीर्ति कहते हैं, “तब मैंने देखा कि जब वक़्त ठीक होता है तो दोस्त, रिश्तेदार और दूसरे लोग आपके साथ खड़े होते हैं, लेकिन जब वक़्त बुरा आता है तो यही लोग सबसे पहले आपसे दूर भागते हैं। उस वक़्त अगर हम एक हज़ार रुपये भी किसी से मांगेंगे तो कोई मदद को आगे नहीं आएगा।”मुसीबत से उबरने के लिए कीर्ति के माता-पिता को कर्ज लेना पड़ा। यही वो समय था, जब कीर्ति जान गए कि ज़रूरतमंद लोगों को कर्ज लेने के लिए कितनी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं। उन्हें इस बात का भी अहसास हो गया कि कर्ज लेने के लिए कई बार तो लोगों को अपमान के घूँट भी पीने पड़ते हैं। कई साहूकार ऐसे होते हैं, जोकि मजबूरी का नाजायज़ फ़ायदा उठाते हुए ब्याज ज्यादा वसूलते हैं। बैंक से कर्ज लेने में भी इतना समय लग जाता है कि परेशानहाल इंसान की मुसीबत और भी बढ़ जाती है। कागज़ी कामकाज में ज़रूरतमंद इतना उलझ जाता है कि बैंक से बाहर बड़ी ब्याज दर पर किसी साहूकार से कर्ज लेने में ही अपनी भलाई समझता है।मुश्किलों से भरे इसी दौर में कीर्ति ने बहुत कुछ देखा, समझा और सीखा था। वे इन हालात से निपटते हुए सोचने लगे थे कि क्यों न टेक्नोलॉजी के ज़रिए कुछ ऐसा किया जाये, जिससे मुश्किल हालात में किसी इंसान को अपना सोना न बेचना पड़े, उसे अपनी इज्जत दांव पर न लगानी पड़े, उसे किसी से भीख न मांगनी पड़े या हालात से निपटने के लिए उसे अपना घर न बेचना पड़े। आसानी से लोगों को कर्ज़ दिलाने के उपायों की खोज में कीर्ति का मन डूब गया। इसी दौरान उन्होंने ऐसा उत्पाद बाज़ार में उतारने के बारे में सोचा जिसके ज़रिए लोगों को मुश्किल वक्त में आर्थिक मदद मिल सके। ज़िंदगी के सबसे कठिन दौर में कीर्ति जैन ने संकल्प लिया कि वे आगे चलकर कुछ ऐसा करेंगे कि जिससे लोगों को अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेने में आसानी हो। संकल्प लेने के पूरे 14 साल बाद कीर्ति जैन कामयाब हो पाए। इन 14 सालों में कीर्ति ने आईसीआईसीआई, यस बैंक और नागार्जुन कंस्ट्रक्शन जैसी नामचीन संस्थाओं में काम कर खूब शोहरत और धन-दौलत कमाई। नौकरी करने के दौरान कीर्ति अपने संकल्प को पूरा करने के बारे में ही सोचते रहे थे। आखिरकार फरवरी, 2014 में कीर्ति जब नागार्जुना कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी कर रहे थे, तब उन्हें लगा कि संकल्प को पूरा करने का सही समय आ गया है।

जितनी देर में मैगी बनकर तैयार होती है उतनी ही देर में कीर्ति जैन ज़रूरतमंद को बिना किसी सिक्योरिटी और गारंटर के कर्ज दे देते हैं

Sunday July 31, 2016 , 12 min Read

2014 में कीर्ति आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से इतना मज़बूत हो गए थे कि उन्होंने उद्यमी बनने से होने वाले जोखिमों का सामना करने का फैसला कर लिया। पर्याप्त पूँजी जमा होते ही कीर्ति ने अपनी कंपनी शुरू कर ली और ज़रूरतमंद लोगों को कम ब्याज पर, कम समय में, बिना किसी खिचखिच के कर्ज़ देना शुरू कर दिया। हैदराबाद के कीर्ति जैन ने सितंबर, 2014 में ‘एनी टाइम लोन सर्विस’ की शुरुआत की। उन्होंने ‘वोट फॉर कैश डॉट इन’ की शुरुआत कर दुनिया का ऐसा पहला ऑनलाइन प्लेटफॉर्म खड़ा किया, जहाँ पर बिना कोई दस्तावेज़, जमानत, सत्यापन के कोई भी लोन ले सकता है। एक बात का ख़ास ख्याल रखा गया कि कर्ज की अर्जी देने वाला कोई भी शख़्स किसी भी सूरतेहाल अपमानित या शर्मिंदा न महसूस करे। इसके अलावा कीर्ति जैन ‘एसएमईबैंक डॉट इन’ के ज़रिए ज़रूरतमंद लोगों को 30 हज़ार रुपये से लेकर 30 लाख रुपये तक का कर्ज भी दे रहे हैं, ताकि वे भी उद्यमी बनने का अपना सपना जी सकें।

बड़ी बात ये है कि ‘वोट फॉर कैश डॉट इन’ ‘पीयर टू पीयर’ के क्षेत्र में देश की नंबर एक कंपनी है। कीर्ति की ये कंपनी आज 1 हज़ार रुपये से लेकर 30 लाख रुपये तक कर्ज देती है। कर्ज देने के लिए कीर्ति की कंपनी ‘प्रिडिक्टिव साइंस’ के एक ख़ास टूल ‘बीम्स’ का इस्तेमाल करती है। कर्ज की अर्जी देने वाले व्यक्ति की मनोवृत्ति को समझने ले लिए ‘आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस’ की तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है। कीर्ति कहते हैं, “इस तकनीक की मदद से तस्वीर देखकर ही ये पता लग जाता है कि कर्ज की अर्जी देने वाला शख्स जानबूझकर कर्ज़ की रकम चुकाने से बचेगा या नहीं। इतना ही नहीं कीर्ति का दावा है कि उनकी कंपनी सिर्फ 2 मिनट में कर्ज दे देती है, बशर्ते अर्ज़दार सारे मापदंडों को पूरा करे। दिलचस्प बात ये है कि अर्ज़दार को कीर्ति की कंपनी से कर्ज लेने के लिए किसी भी तरह का कोई काग़ज़ भी उनके पास जमा नहीं करना पड़ता है।

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कीर्ति की कंपनी के एक नहीं बल्कि कई सारे दिलचस्प पहलू हैं। उनकी कंपनी न सिर्फ कर्ज देती है, बल्कि अगर कोई व्यक्ति चाहे तो उनकी कंपनी में निवेश भी कर सकता है। इसके लिए इच्छुक व्यक्ति को 20 हज़ार रुपये या इससे ज्यादा की रकम इनकी कंपनी में लगाने पड़ते हैं। कीर्ति का दावा है कि लोग उनके पास क़रीब साढ़े छह करोड़ रुपये का निवेश करना चाहते हैं। खास बात ये भी है कि इसमें निवेशक को ये सोचने, जानने और समझने की ज़रूरत नहीं है कि कर्जदार का रिकॉर्ड कैसा है? कर्ज लेने वाला व्यक्ति कर्ज और ब्याज की रकम चुकाने का सामर्थ्य रखता है या नहीं? इस तरह के सारे सवालों को जानने की जिम्मेदारी कंपनी खुद संभालती है।

कंपनी तीन तरह के कर्ज देती है। ये हैं पर्सनल लोन, स्कूली शिक्षा के लिए लोन और माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइज़ेस के लिए लोन। ये देश की पहली कंपनी है, जो हायर एजुकेशन की जगह स्कूली शिक्षा के लिए लोन देती है। कीर्ति जैन बताते हैं, “देश में कोई भी वित्तीय संस्थान केजी से टेन प्लस टू तक की पढ़ाई के लिए लोन नहीं देती। हालत ऐसी है कि स्कूल की फीस भी इतनी ज्यादा हो गयी है कि कई लोगों को इसके लिए भी कर्ज लेना पड़ता है। अपने बच्चों की फीस चुकाने के लिए लोगों को परेशान न होना पड़े इसी मकसद से हमने स्कूल की फीस अदा करने के लिए भी कर्ज देना शुरू किया है।”

लोगों के लिए कर्ज पाने की प्रक्रिया को आसान बनाने वाले कीर्ति जैन कई सालों तक नौकरी करने के बाद उद्यमी बने थे। वैसे तो उद्यमी बनने का सपना वे अपने कॉलेज की पढ़ाई के दिनों से ही देखते आ रहे थे, लेकिन पूँजी की किल्लत की वजह से वे उद्यमी नहीं बन पाए। करीब 14 साल तक नौकरी करने के बाद जब कीर्ति आर्थिक रूप से ताकतवर हुए तब जाकर उन्होंने अपनी कंपनी शुरू की और उद्यमी बने। उद्यमी बनने की सारी तकलीफ़ों और जोखिमों को कीर्ति अच्छी तरह से जानते और समझते हैं। यही वजह है उन्होंने अपनी कंपनी के ज़रिए उद्यमिता को बढ़ावा देने में भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। वे लघु और मध्यम वर्ग के उद्यमियों को भी काफी कम ब्याज पर कर्ज दे रहे हैं। कर्ज देते भी हैं, वो भी बिना किसी सिक्योरिटी, बिना गारंटर, बिना किसी परेशानी के एसएमई लोन देते हैं। कीर्ति ने बताया कि उनकी कंपनी 0.05 की ब्याज दर से कर्ज देती है। उनका दावा है कि ये जो बाज़ार में मिलने वाले कर्ज के मुकाबले किफ़ायती है।

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कीर्ति ने हैदराबाद से अपने उद्यमी सफ़र की शुरुआत कर कम समय में बहुत ही बड़ी कामयाबी हासिल की है। कीर्ति की कामयाबी का अंदाज़ा इस बात से आसानी से लगाया जा सकता है कि ‘वोट फॉर कैश डॉट इन’ ने पिछले 19 महीनों के दौरान 20 हज़ार से ज्यादा लोगों को 34 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज दिया है। महत्वपूर्ण बात ये भी है कि कीर्ति ने अपनी कंपनी की किसी भी तरह की कोई मार्केटिंग नहीं की, सिर्फ मौखिक तौर ही प्रचार हुआ है। कीर्ति की कंपनी से लाभ उठाने वाले लोग दूसरे ज़रूरतमंद लोगों को अपने अनुभव बताते हैं और इसी तरह से कंपनी की लोकप्रियता बढ़ रही है।

कीर्ति के काम का इतना नाम है कि उनकी कंपनी इन दिनों हर महीने 3 करोड़ रुपये कर्ज़ की राशि लोगों को दे रही है। भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर कीर्ति ने बताया, “फिलहाल हमारी कंपनी 3 करोड़ रुपये महीने कर्ज दे रही है और हम चाहते हैं कि अगले 5 साल में ये रकम 1000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाय। इसके अलावा हमारा लक्ष्य है कि ‘वोट फॉर कैश डॉट इन’ को देश की सबसे इन्नोवेटिव, तेज़ और किफ़ायती दर पर कर्ज़ देने वाली कंपनी बने।” कीर्ति ने ये भी बताया कि आने वाले साल की शुरुआत से, यानी जनवरी 2017 ने ज़रूरतमंद की अर्जी मिलती ही फौरी तौर पर कर्ज देने की योजना की भी शुरुआत की जायेगी। इसका मतलब है कि जनवरी, 2017 से कीर्ति की कंपनी को कर्ज देने में दो मिनट का भी समय नहीं लगेगा। इंस्टेंट लोन यानी तत्काल कर्ज दिया जाएगा।

आत्म-विश्वास से भरे इस युवा उद्यमी के सपनों को मज़बूत पंख लगाकर दुनिया-भर में ऊंची उड़ान भरने में टी-हब बड़ी भूमिका निभा रहा है। टी-हब की मदद से कीर्ति जैन अपने कार्य-क्षेत्र का विस्तार करने की नयी-नयी योजनाएँ बना रहे हैं। इस बात में दो राय नहीं कि कीर्ति ने काफी कम समय में अपने स्टार्टअप से देश-भर में खूब नाम कमाया है। उनके एक संकल्प ने उन्हें सोचने पर ऐसे मजबूर किया कि वे एक बहुत ही नए, कारगर और अनूठे आइडिया के साथ उद्यमी बने। उद्यमी बनने के बाद उनकी मेहनत, लगन ईमानदारी और ज़रूरतमंदों को मदद करने के जज़्बे ने उन्हें काफी कम समय में बड़ी कामयाबी दिलाई। मुसीबतों से उभरने के लिए रुपये जुटाने की कोशिश में बेचैन, मायूस और हताश होते लोगों को आसानी से कर्ज दिलवाते हुए कीर्ति ज़रूरतमंदों के सबसे बड़े मददगार बन गए हैं।

अपनी अद्भुत कल्पनाओं से नए कीर्तिमान बनाना और कारोबार की दुनिया में नए तौर-तरीके लाना कीर्ति के लिए कोई नयी बात नहीं है। कीर्ति एक मायने में कीर्तिमानों के बादशाह हैं। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरीपेशा ज़िंदगी की शुरुआत करते ही कीर्ति ने नए-नए कीर्तिमान बनाने शुरू कर दिए थे। पुणे के के.के. वाघ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एजुकेशन एंड रिसर्च से प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री लेने वाले कीर्ति जैन की दिलचस्पी शुरू से ही कारोबार में थी। वे कारोबार-प्रबंधन की बारीकियाँ सीखना चाहते थे। इसी चाहत में उन्होंने कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) की तैयारी शुरू की थी। कीर्ति को ‘कैट’ में उनके प्रदर्शन के आधार पर आईआईएम कोष़िक्कोड में दाखिला मिला था। आईआईएम कोष़िक्कोड में कीर्ति जैन ने कारोबार की बारीकियों को समझा और सीखा। यहाँ पर पढ़ाई करते हुए कीर्ति ने देश और दुनिया के अलग-अलग कामयाब बिज़नेस-मॉडल का भी अध्ययन किया।

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कीर्ति ने आईसीआईसीआई बैंक से अपनी नौकरीपेशा ज़िंदगी की शुरुआत की थी। आईसीआईसीआई बैंक की अलग-अलग शाखाओं में काम करते हुए कीर्ति ने वो सब हासिल किया, जो उनके पहले बैंक के किसी कर्मचारी ने हासिल नहीं किया था। कीर्ति ने आईसीआईसीआई में करीब साढ़े तीन साल के अपने कार्य-काल में ‘सेल्स और बिज़नेस’ करते हुए 17 नेशनल रिकॉर्ड अपने नाम किये। आईसीआईसीआई के लिए काम करते हुए कीर्ति ने कारोबार को बढ़ाने के लिए कई नयी रणनीतियाँ बनायीं और उन्हें अमल में लाया। कीर्ति ने आईसीआईसीआई में संपदा-प्रबंधन को नए माप-दंड दिए। 

कीर्ति 17 नेशनल रिकॉर्ड बनाने तक ही नहीं रुके। उन्होंने एक ऐसा बड़ा और नायाब काम किया, जिससे उनका नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हुआ। 27 मार्च, 2015 को एक ही दिन में कीर्ति ने 7.93 करोड़ रुपये की खुदरा बीमा पालिसियाँ करवाईं और अंतर्राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया।

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कीर्ति ने आईसीआईसीआई को छोड़ने के बाद यस बैंक ज्वाइन किया। आईसीआईसीआई की तरह ही कीर्ति ने यस बैंक में भी कई कीर्तिमान अपने नाम किये। वे हैदराबाद में यस बैंक के पहले कर्मचारी बने। ये कीर्ति की पहल का ही नतीजा था कि भारत में पहली बार रिवर्स बैंकिंग की शुरुआत हुई और इसका श्रेय यस बैंक को गया। कीर्ति ने यस बैंक में एटीएम और रिटेल बैंकिंग की भी शुरुआत करवाई।

कीर्ति के कीर्तिमानों और उनकी कार्य-क्षमता/दक्षता हो ध्यान में रखते हुए यस बैंक ने उन्हें दक्षिण और पश्चिमी क्षेत्र का प्रभारी बना दिया। कीर्ति ने अपने अंदाज़ में काम करते हुए दक्षिण और पश्चिम भारत में यस बैंक के कार्य- क्षेत्र और कारोबार को विस्तार किया और अलग-अलग जगह कई शाखाएँ स्थापित कीं। तीन साल और तीन महीनों तक अपनी सेवाएं देने के बाद कीर्ति जैन ने यस बैंक को अलविदा कह दिया।

बैंकिंग सेक्टर में धूम मचाने और अपनी कामयाबी के ऊँचे परचम लहराने के बाद कीर्ति ने कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में कदम रखा। उन्होंने हैदराबाद की ही नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी ज्वाइन की। इस कंपनी में कीर्ति को अपना दमखम साबित करने और अपनी शानदार प्रतिभा की मुहर लगाने का मौका उस समय मिला जब उन्हें रांची में खेल-गाँव की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।

खेल-गाँव की ज़िम्मेदारी संभालते हुए कीर्ति जैन ने भारत के निर्माण-उद्योग को एक बेहद शानदार और नयी स्कीम दी। ये स्कीम थी – ‘फ्लैट खरीदो और पहले ही महीने से किराया पाओ’ स्कीम। हुआ यूँ था कि झारखण्ड की राजधानी में राष्ट्रीय खेलों के लिए खेल-गाँव का निर्माण किया गया। खेल-गाँव के तहत छोटे-बड़े स्टेडियमों के अलावा खिलाड़ियों और खेल-अधिकारियों के रहने-ठहरने के लिए अपार्टमेंट भी बनाये गए, लेकिन कुछ कारणों से राष्ट्रीय खेलों के आयोजन को स्थगित करना पड़ा था। खेल-गाँव की ये परियोजना भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत बनाई गयी सबसे बड़ी परियोजना थी। इस परियोजना के तहत अपार्टमेंट बनकर तैयार तो हो गए थे, लेकिन राष्ट्रीय खेलों के स्थगित होने की वजह से इन्हें बनाने वाली कंपनी नागार्जुन कंस्ट्रक्शन को घाटा हो रहा था, चूँकि अपार्टमेंट खाली पड़े थे और राष्ट्रीय खेलों के पूरा होने के बाद ही उन्हें बेचने के योजना थी। नागार्जुन कंस्ट्रक्शन ने बैंकों से कर्ज लेकर खेल-गाँव की अपनी परियोजना को पूरा किया था।

राष्ट्रीय खेल हुए नहीं थे, इस वजह से फ्लैट बेचे नहीं जा सकते थे और कंपनी को कर्ज चुकाना था। इससे घाटा बढ़ता जा रहा था। इस घाटे से उबारने की ज़िम्मेदारी कीर्ति जैन को सौपीं गयी। कीर्ति ने कंपनी को इस परियोजना में घाटे से उबारने के लिए अपनी पूरी दिमागी ताकत लगा दी। इसका नतीजा भी जल्द ही निकला। कीर्ति ने अपनी कंपनी के सामने ‘फ्लैट खरीदो और पहले ही महीने से किराया पाओ’ स्कीम पेश की। स्कीम नयी थी और असरदार भी। कंपनी ने इसे लागू करने के कीर्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इस स्कीम के तहत खेल-गाँव में बने अपार्टमेंट्स के फ्लैट खरीदने पर मालिक को फ्लैट को नहीं सौंपा गया, लेकिन पहले ही महीने से उसे किराया मिलने लगा। फ्लैट खरीदने वालों से ये करार किया गया कि राष्ट्रीय खेलों के पूरा होने के बाद उन्हें फ्लैट सौंपे जाएंगे और तब तक उनके हर महीना फ्लैट का किराया दिया जाएगा। इस आकर्षक स्कीम को लोगों ने हाथों हाथ लिया और फ्लैट ख़रीदे। कीर्ति के दिमाग से उपजी इस स्कीम ने नागार्जुन कंस्ट्रक्शन को भारी नुकसान से बचा लिया था। इस तरह से कीर्ति जैन ने बैंकिंग सेक्टर के बाद कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में भी अपनी ख़ास छाप छोड़ी और अपने तेज़ दिमाग का परिचय देते हुए अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया।

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2014 से कीर्ति जैन ने ‘उद्यमिता’ को पूरी तरह से अपना लिया। स्टार्टअप की अनूठी दुनिया में उन्होंने तेज़ी से कदम बढ़ाये और अपनी दिमागी ताकत और दमखम से कामयाब उद्यमी बन गए। 

जितनी अनूठी कीर्ति की सोच हैं, उतने ही अनूठे उनके जीवन के कई सारे अनुभव और पहलु भी हैं। अपनी दिमागी ताकत से हर किसी को प्रभावित करने वाले कीर्ति सातवीं क्लास तक पढ़ाई-लिखाई के मामले में औसत थे। उनका सारा ध्यान एक्स्ट्रा-करिक्युलर एक्टिविटीज़ में रहता था। वे अभिनय, गायन, निर्देशन में अव्वल थे, लेकिन एक दिन पिता ने कीर्ति को याद दिलाया कि उनकी दोनों बड़ी बहनें पढ़ाई-लिखाई में काफी तेज़ हैं और उन्होंने गोल्ड मैडल भी जीता है। पिता ने अपने लाड़ले बेटे को ये सलाह भी दी कि उसे भी अपनी बहनों की तरह क्लास में फर्स्ट आना चाहिए। इसके बाद कीर्ति ने फैसला कर लिया कि वे पढ़ाई-लिखाई को काफी गंभीरता से लेंगे और इस मामले में भी अव्वल रहेंगे। पढ़ाई-लिखाई में अपनी बहनों जैसे बनने के संकल्प ने कीर्ति को उत्कृष्ट छात्र बना दिया। कीर्ति ने हैदराबाद के हनुमान व्यायामशाला स्कूल से दसवीं की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने इंजीनियर बनने के मकसद से हिमायत नगर इलाके में सैंट मेरीज़ कॉलेज में दाखिला लिया था।

टी-हब में हुई एक ख़ास मुलाक़ात में कीर्ति जैन ने ये भी बताया कि उनके दिमाग में और भी बहुत सारी योजनाएँ और परियोजनाएँ हैं। फिलहाल वे इन्हें अपने दिमाग तक ही सीमित रख रहे हैं। अपनी ‘एनी टाइम लोन सर्विस’ स्कीम को नयी बुलंदियों पर पहुंचा लेने के बाद वे इन नयी योजनाओं और परियोजनाओं को हक़ीक़त में बदलने के लिए काम शुरू करेंगे। कीर्ति ये कहने से भी नहीं चूके कि वे अगले दस सालों के लिए काफी व्यस्त रहेंगे। कीर्ति ये कहने से भी नहीं हिचकिचाए कि उनकी पत्नी चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं और वे भी धन-दौलत कमा रही हैं और इसी वजह से वे अब आर्थिक रूप से जोखिम उठाने की स्थिति में हैं। कीर्ति के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा तीसरी क्लास में है जबकि छोटा बेटा अभी किन्डर्गार्टन में है।