अपना काम धंधा छोड़ सूदन पापाजी पिछले 46 साल से कर रहे हैं लाचार लोगों की मदद
हर किसी की मदद को कोई तैयार हैं अमरजीत सिंह सूदन....46 साल से लगातार दूसरों की सेवा करते हैं अमरजीत सिंह सूदन...सेवा का ऐसा जुनून जिसके चलते सूदन नें अपना काम धंधा तक छोड दिया....
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुद और परिवार से ऊपर उन लोगों को मानते हैं, जो लाचार, बीमार और परेशानहाल हैं। सिर्फ मानते ही नहीं बल्कि उनकी सेवा के लिए अपना सबकुछ छोड़ भी देते हैं। चाहे कितनी मुश्किलें आएं, वो अपनी गतिविधियों से पीछे नहीं हटते। ऐसे ही एक शख्स हैं जो पिछले 46 सालों से लाचार लोगों की सेवा में जुटे हुए हैं। नाम है अमरजीत सिंह सूदन। इंदौर में फादर टेरेसा के नाम से मशहूर अमरजीत सिंह सूदन यानी सूदन पापाजी, जिन्हें गरीबों का मसीहा भी कहा जाता है। हर तरह के लाचार की मदद के लिये सूदन पापाजी 24 घंटे तैयार रहते हैं। सडक पर कोई बीमार, लाचार, विक्षिप्त पड़ा हो, उसकी मदद के लिये अगर आप पुलिस कन्ट्रोल रुम पर फोन करेंगे तो आपको कन्ट्रोल रुम से एक ही नंबर मिलेगा, सूदन पापाजी का। सडक किनारे फुटपाथ पर बीमार पड़े लोगों का एक ही सहारा, सूदन पापाजी। सूदन उन्हें अपनें हाथों से उठाकर अस्पताल या आश्रम तक पहुंचाते हैं, नहलाते हैं, साफ कपड़े पहनाते हैं और ठीक होने तक पूरी सेवा करते हैं। ऐसे लोग जिनको उठाने के लिए सरकारी एंबूलेंस वाले भी तैयार नहीं होते उनको सेवा देने सूदन पापाजी पहुंच जाते हैं। पिछले 46 साल से सूदन का समाजसेवा का ये सफर जारी है।
60 साल के सूदन का समाज सेवा का सफर जब शुरु हुआ जब वो महज 14 साल के थे। खंडवा के लौहारी गांव में गुरुद्वारा जाते समय सूदन को सड़क पर एक 85 साल की महिला दिखी। जो मूसलाधार बारिश में भीग रही थीं। जिसके पैरों में कीड़े पड़ गये थे। चल फिर नहीं सकती थी, शरीर से बदबू आ रही थी। सूदन उस बूढ़ी औरत को पीठ पर लादकर गुरद्वारा ले आये। गुरुद्वारे के ज्ञानी जी से कहकर वहीं रहने की जगह दी और लंगर से खाना लाकर दिया। दूसरे दिन से सूदन ने तांगे से उस महिला को अस्पताल ले जाकर इलाज करवाना शुरु कर दिया। तीन महीने में बूढ़ी औरत ठीक हो गईं। उसके बाद सूदन का समाज सेवा का ये सिलसिला चल पड़ा। बालक सूदन से सूदन पापाजी बन गये। सूदन सड़क पर चलते लोगों को अपना विजिटिंग कार्ड बांटते रहते हैं जिस पर उनका मोबाईल नंबर और नाम के साथ संदेश होता है कि
“सडक पर पड़े लाचार को देखकर नाक मुंह बंद न करें, मुझे एक कॉल कर मानवता का धर्म निभायें।”
आज सूदन इंदौर के सभी सरकारी अस्पतालों, पुलिस विभाग और समाजसेवी संस्थाओं का जाना माना नाम हैं। जब भी कोई काम जिसे कोई करने को तैयार नहीं होता तो सूदन का मोबाईल नंबर घुमाया जाता है।
सूदन के यूं तो समाजसेवा के हजारों किस्से हैं। मगर कुछ किस्से ऐसे भी हैं जिसमें सूदन को कई मुसीबतों का सामना करना पडा। 2005 में सूदन के पास पुलिस विभाग से फोन आया कि इंदौर के बिलावली तालाब में एक युवती की लाश तैर रही है। लाश की हालत इतनी ज्यादा खराब है कि कोई निकालने को तैयार नहीं है। सूदन पापाजी ने आकर तालाब से लाश तो निकाली मगर लाश बुरी तरह सड चुकी थी। लाश के शरीर पर कपडे तक नहीं थे। सूदन पापाजी ने तमाशा देख रहे लोगों से गुहार लगाई की कोई लाश को ढकने के लिये कपड़ा लाकर दे दे। मगर जब कोई तैयार नहीं हुआ तो सूदन पापाजी नें अपनी पगड़ी उतारकर लाश को ढक दिया। मगर इस घटना पर विवाद बढ़ गया। सिख समाज ने सूदन पापाजी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मगर सूदन पापाजी भी अड़ गये। समाज की पंचायत में जमकर खुद ही जिरह की और गुरुओं की सेवा का हवाला देते हुऐ जान न्योछावर करने की बात कही। पंचायत तो उन्हें सजा देने के लिये बैठी थी, मगर सूदन पापाजी की दलीलों के आगे मामला उलट गया। पंचायत ने सभा बुलाकर सूदन पापाजी को सम्मानित किया और पूरे समाज को सूदन पापाजी की मिसाल दी। 2008 में इंदौर के आईटी पार्क के निर्माण के दौरान मजदूरों के ऊपर लिफ्ट गिर गई। 8 मजदूर लिफ्ट के नीचे दब गये। सूचना मिलते ही पुलिस और दमकल विभाग से पहले सूदन पापाजी वहां पहुंच गये। लोगों की मदद से मजदूरों को निकालकर अस्पताल भेजने का काम शुरु हो गया। आखिरी मजूदर को अपने कंधे पर लादकर एंबुलेंस की तरफ दौड़ते हुए सूदन पापाजी को दिल का दौरा पड़ गया। सूदन पापाजी को अस्पताल ले जाया गया। शहर के हजारों हाथ सूदन पापाजी की सलामती के लिये दुआ मांगने लगे। तीन महीने तक जिंदगी और मौत से लड़कर मौत को मात देने के बाद आखिरकार सूदन पापाजी ने वापस समाजसेवा का काम संभाल लिया।
इंदौर के ज्योति निवास आश्रम में 10 साल से लेकर 90 साल तक के ऐसे लावारिस और अनाथ सदस्य हैं जो कभी सड़कों पर बेसहारा पड़े थे। जिन्हे सूदन ने आश्रम तक पहुंचाकर नया जीवन दिया। इनमें से कई तो अर्धविक्षिप्त हैं जो बोल भी नहीं पाते, मगर उनकी नजरें हर शाम आश्रम के दरवाजे पर टिकी रहती हैं, सूदन पापाजी के इंतजार में। और सूदन पापाजी भी उनको निराश नहीं करते। कहीं भी हों अपने इन दिल के रिश्तों से मिलने पहुंच ही जाते हैं। और सूदन पापाजी के आते ही इनके चेहरे पर खुशी भी देखते ही बनती है।
ऐसा नहीं कि सूदन पापाजी सिर्फ बेसहाराओं की ही मदद करते हैं। शाम को ऑफिस छूटने के वक्त पर व्यस्ततम चौराहों पर ट्रैफिक की कमान संभालने पहुंच जाते हैं। हर शाम को 2 घंटा लोगों को ट्रैफिक जाम से निकालकर घर पहुंचने में मदद करते हैं। सूदन पापाजी को अब तक इतने सम्मान मिल चुके हैं कि अवार्ड को सजाकर रखें तो पूरा ड्राईंगरुम भर जाये मगर वो अवार्ड को स्टोर में छुपाकर रखते हैं। सूदन का कहना है,
"कहीं ऐसा न हो जाये कि ये अवार्ड देखकर उनके मन में किसी तरह का अहंकार आ जाये। मैं खुशनसीब है जो मुझे ईश्वर ने पैसा कमाने की बजाय लोगों की दुआ कमाने का मौका दिया है। और जब तक सांस है तब तक ये सिलसिला चलता रहेगा।"
सूदन पेशे से एलआईसी एजेन्ट थे। मगर अपने पेशे की वजह से समाजसेवा के लिये समय कम पड़ता था। जिसके चलते सूदन पापाजी ने एलआईसी का काम भी बंद कर दिया। सूदन पैतृक सम्पत्ति के नाम पर दो दुकानें मिली थीं। जिसके किराये से सूदन पापाजी का घर चलता है। अगर बचत के नाम पर कुछ बचता भी है तो वो भी समाजसेवा की भेंट चढ़ जाता है।
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