रेल की पटरी पर दौड़ते हादसे आखिर कब रुकेंगे?
रेल भारत की जीवन रेखा है। यहां लोहे की पटरियों में जीवन गतिशील होता है पर 23 अगस्त और 19 अगस्त के काले शनिवार को जीवन देनी वाली रेल के पटरियों पर मौत और खौफ ने यात्रा की। पढ़ें इस घटना पर पूरी रिपोर्ट...
मीडिया ने अपने सवालों के पोटली खोल दी है तो मंत्रालय ने भी जांच कमीशन बैठा कर महज पंद्रह दिन में सब दूध का दूध पानी का पानी करने का बयान जारी करने वाला है।
यदि ऐसे ही ट्रैक पर पटरियां टूटती रहीं या फिर डंपर आते रहे तो क्या जो बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया जा रहा है, वह पूरा हो पाएगा?
रेल भारत की जीवन रेखा है। यहां लोहे की पटरियों में जीवन गतिशील होता है पर 23 अगस्त और 19 अगस्त के काले शनिवार को जीवन देनी वाली रेल के पटरियों पर मौत और खौफ ने यात्रा की। दरअसल 19 अगस्त दिन शनिवार की शाम पुरी से हरिद्वार जा रही कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के 14 डिब्बे उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के नजदीक खतौली में पटरी से उतर गए, जिसमें 23 से अधिक लोगों की मौत हो गई। जबकि 97 घायल हैं। घायलों में से 26 की हालत गंभीर बताई जा रही है। वहीं दूसरी ओर आज उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में कैफियत एक्सप्रेस ट्रेन के इंजन और ब्रेक यान सहित 12 डिब्बे पटरी से उतर गए जिसके कारण कम से कम 74 लोग घायल हो गए हैं। हादसे में अभी तक किसी की जान जाने की कोई खबर नहीं है। राज्य में पिछले चार दिनों में यह दूसरी बड़ी ट्रेन दुर्टना है। बताया जा रहा है कि कैफियत एक्सप्रेस का इंजन अछल्दा और पाता रेलवे स्टेशन के बीच एक मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग पर रेल फाटक पार कर रहे एक डंपर से टकरा गया था। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर गए। बताया यह भी जा रहा है कि डंपर चला रहे ड्राइवर को नींद आ जाने के चलते यह भीषण दुर्घटना घटी।
कुल मिलाकर रेल पर दौड़ती जिंदगी ने दो दर्जन से अधिक मौतों का नजराना लेने के बाद अपनी गति को विराम दिया है। मीडिया, सरकार, मंत्रालय, स्थानीय प्रशासन सभी सक्रिय हो गए हैं। दुर्घटना के कारणों की समीक्षा प्रारंभ हो चुकी है। मीडिया ने अपने सवालों के पोटली खोल दी है तो मंत्रालय ने भी जांच कमीशन बैठा कर महज पंद्रह दिन में सब दूध का दूध पानी का पानी करने का बयान जारी करने वाला है। उत्कल एक्सप्रेस हादसे में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304-ए (अनदेखी की वजह से मौत) का मामला दर्ज हो ही चुकी है। कैफियत एक्सप्रेस की दुघर्टना में भी ऐसे ही क्रियाकलाप की पुनरावृत्ति की जायेगी।
प्रधाननंत्री मोदी के वादे पर बुलेट ट्रेन की आतुर प्रतीक्षा के कालखंड में रेल दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या अत्यंत गंभीर विमर्श खड़े कर रही है। सवाल यहां से खत्म नहीं बल्कि जन्म लेता है कि क्या यह पहली रेल दुर्घटना थी? क्या मंत्रालय द्वारा गठित जांच आयोग ने प्रथम बार आकार पाया है? शायद नहीं तो फिर पिछली दुर्घटनाओं से सरकार ने कोई सबक क्यों नहीं लिया और जांच आयोगों की सिफारिशों को मूर्त रूप प्रदान करने में सरकार ने क्यों कोताही बरती?
दीगर है कि भाजपा वर्ष 2014 में सत्ता में आई, तब से अब तक 27 रेल हादसे हो चुके हैं, जिनमें 259 यात्रियों की जान गई और 899 घायल हो गए। आखिर सरकार कब जागेगी? उत्तर मध्य रेलवे सूत्रों ने बताया कि हादसे के समय समर्पित मालभाड़ा गलियारा का काम दुर्घटना स्थल पर चल रहा था। उन्होंने बताया कि डंपर रेलवे का नहीं है। अगर ट्रैक पर काम चल रहा था, तो किसी को जानकारी क्यों नहीं थी? कैफियत एक्सप्रेस के अधिकारियों से किसी का संपर्क क्यों नहीं हो रहा था? रेलवे क्रॉसिंग के बगैर रेल का ही डंपर क्रॉसिंग कैसे पार कर सकता है?
हाल ही में खतौली में जो रेल हादसा हुआ था, उस हादसे में 23 लोगों की जान चली गई थी, जबकि 150 से ज्यादा जख्मी हैं। दुर्घटना इतनी भयावह थी कि पटरी से उतरे 13 कोच एक-दूसरे पर जा चढ़े थे। हादसे की वजह थी कि पटरी टूटी हुई थी और मरम्मत का काम चल रहा था। ऐसा ही कारण इस रेल हादसे में भी मिला है, कैफियत एक्सप्रेस गुजर रही थी तो ट्रैक पर डंपर आ गया। अब सवाल ये उठता है कि अगर ऐसे ही ट्रैक पर पटरियां टूटती रहीं या फिर डंपर आते रहे तो क्या जो बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया जा रहा है, वह पूरा हो पाएगा।
रेल महज लोहे के पटरियों पर दौड़ते यातायात के संसाधन का नाम नहीं वरन एक मुकम्मल जिंदगी है। भारत हर खास और आम अवाम रेल के सफर को बड़े ही इत्मिनान के साथ करता है। हकीकत कहें तो इत्मिनान से ज्यादा बेख्याली रहती है। मुसाफिर दिन के समय बातचीत करते, पुस्तक को पढ़ते हुए और रात आराम से सोते हुए सफर को पूरा करने की जहनियत से रेल का टिकट लेता है। यह बेख्याली एक तरह से मुसाफिर की रेलवे के प्रति विश्वास का परिणाम है। लेकिन मुसलसल हादसों की लंबी होती फेहरिश्त इस विश्वास को कमजोर कर रही है।
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