ज़िंदगी मुश्किल है पर हौसले की बदौलत अपना क़द बढ़ाने में जुटी हैं पूनम श्रोती
वो मिसाल हैं उन लोगों के लिये जो अपनी असफलता के लिये जिंदगी भर दूसरों को कोसते रहते हैं, वो हिम्मत हैं उन लोगों के लिए जो मुश्किल हालत में टूट जाते हैं, वो उम्मीद हैं उन लोगों के लिये जो शारीरिक कमजोरी के कारण आगे बढ़ना छोड़ देते हैं। उद्दीप सोशल वेलफेयर सोसायटी की संचालक पूनम श्रोती ओस्टियोजेनिसिस जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। बावजूद इसके पूनम ग्रामीण विकास के अलावा, महिला सशक्तिकरण और दिव्यांग लोगों को उच्च शिक्षा देने के साथ साथ उनका मनोबल बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं।
ओस्टियोजेनिसिस से पीड़ित 31 साल की पूनम श्रोती को अगर हल्की सी ठोकर लग जाये तो उनकी हड्डियां टूट जाती हैं। हालांकि ये बीमारी लाखों में से एक या दो को होती है। अपनी बीमारी के बारे में पूनम बताती हैं,
"मेरी जितनी उम्र है उससे कई गुणा मुझे फ्रैक्चर हो चुके हैं। इस कारण इतने ऑपरेशन हो चुके हैं कि मुझे भी याद नहीं।"
इन सब परेशानियों के बावजूद उन्होंने सामान्य बच्चों के साथ अपनी पढाई पूरी की है। उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई भोपाल के एक केन्द्रीय विद्यालय से की और फाइनेंस जैसे विषय में एमबीए की पढाई की है। इतना ही नहीं एमबीए करने के बाद पूनम ने डिस्टेंस लर्निग से एचआर की पढाई की है। वे बताती हैं,
“मैं पढ़ाई में काफी होशियार थी। मेरे पिता ने मुझे विकलांग बच्चों के स्कूल में पढ़ाने के बजाय सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़ाया। इसलिए मैंने कभी भी अपने को दूसरों से अलग नहीं पाया, मेरे परिवार में माता पिता के अलावा दो भाई हैं।”
हालांकि पूनम कहना है कि उनको समाज में अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग मिले। इसलिए जब भी उनके साथ भेदभाव होता था तो उन्होंने इस चीज को सकारात्मक तौर पर लिया। वे कहती हैं,
“अगर कोई मेरे से कहता कि तुम इस काम को नहीं कर सकती हो, तो मैं उस काम को पूरा करके ही दम लेती हूं। यही वजह है कि ऐसी सोच ने मुझे पॉजिटिव एनर्जी दी है।”
अपनी मुश्किलों के बारे में पूनम बताती हैं कि जब पढाई पूरी करने के बाद वो जहां भी नौकरी के लिए गई, वहां उनके साथ इंटरव्यू में भेदभाव किया जाता। जबकी उनकी काबिलियत दूसरों के मुकाबले बेहतर होती थी लेकिन शारीरिक भेदभाव के कारण उनको मौका नहीं मिलता था।
अनगिनत उपेक्षाओं के बाद आखिरकार एक कंपनी में पूनम को बतौर एक्जिक्यूटिव काम करने का मौका मिला। हालांकि ये उनकी योग्यता के मुताबिक पद नहीं था। लेकिन उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह लिया। पूनम समाज को साबित करना चाहती थीं कि वो भी सामान्य लोगों की तरह 9 घंटे की शिफ्ट बैठ कर पूरी कर सकती हैं। करीब 5 साल तक उस कंपनी में रहने और डिप्टी मैनेजर के पद तक पहुंचने के बाद उन्होंने कुछ नया करने का सोचा और उस कंपनी से त्याग पत्र दे दिया।
नौकरी के दौरान पूनम ने भेदभाव का सामना किया था इसलिए वो चाहती थीं कि जिस तरह की मुश्किलों का सामना उनको करना पड़ा वैसा दूसरे दिव्यांग लोगों को ना करना पड़े। इसलिए उन्होंने साल 2014 में उद्दीप सोशल वेलफेयर सोसायटी की स्थापना की। ताकि दूसरे दिव्यांग लोग अपने मनमुताबिक काम कर समाज में अपनी अलग पहचान बना सकें। आज पूनम अपनी इस संस्था के जरिये तीन अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहीं हैं। वो जहां ग्रामीण विकास पर जोर दे रही हैं तो दूसरी ओर वो महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ दिव्यांग लोगों के लिए काम कर रही हैं।
पिछले दो सालों से पूनम ने दिव्यांगों के सशक्तिकरण के लिए ‘कैन डू’ नाम से एक मुहिम चला रही हैं। इसके जरिये वे लोगों से कहती हैं कि वो दिव्यांग लोगों की जिम्मेदारी उठाने की बजाय उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने का हौसला दें। उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए पूनम कई ट्रेनिंग प्रोगाम और जागरूकता से जुड़े कार्यक्रम चला रहीं हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़ा कार्यक्रम भोपाल के आसपास के ग्रामीण इलाकों में चलाया जा रहा है। इसमें उनकी संस्था महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ वोकेशनल ट्रेनिंग तो दे ही रही हैं इसके अलावा स्वच्छ भारत अभियान के तहत विभिन्न गांवों में सफाई अभियान से जुड़ी हैं।
ये पूनम की कोशिशों का ही नतीजा है कि उन्होंने भोपाल के आसपास के दो गांवों में 15-15 महिलाओं के दो सेल्फ हेल्प ग्रुप तैयार किये हैं। जहां पर महिलाओं को पेपर बैग और दूसरी चीजें बनाना सिखाया जाता है जिससे उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हो सके। इसके लिए पूनम की संस्था उद्दीप इन महिलाओं को कच्चा माल उपलब्ध कराती है। साथ ही वे उन महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं, जिनकी पढ़ाई अलग अलग वजहों से बीच में ही छूट जाती है। इसके अलावा वो गांव के बच्चों का शिक्षा का स्तर उठाने का प्रयास कर रही हैं। इसके जरिये वो उनको किताबों से मदद करती हैं। साथ ही उन्हें कम्प्यूटर का ज्ञान भी देती हैं।
पूनम का कहना है कि वो शुरूआत से ही दिव्यांग लोगों को नौकरी दिलाने का काम करना चाहती थीं। लेकिन जब वो ऐसे लोगों से मिली तब उन्हें लगा की ऐसे लोगों में आत्मविश्वास काफी कम होता है, भले ही वो पढाई में कितने भी होशियार क्यों ना हों। बावजूद वो अपने को दूसरों से कम आंकते हैं। इसी के बाद उन्होंने ट्रेनिंग प्रोगाम के जरिए ऐसे लोगों में आत्मविश्वास जगाने का प्रयास किया और कुछ हद तक वो अपनी कोशिशों में सफल भी हुई। वो कहती हैं,
“जो बच्चे बी टेक, बीसीए कर रहे हैं और अगर उनको किसी तरह की पढाई में दिक्कत होती है तो हमारे वॉलंटियर उनकी मदद करते हैं।”
पूनम का कहना है कि जब दिव्यांग लोगों की पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो उनके लिए प्लेसमैंट दिलाने में भी वो मदद करेंगी। इस बीच एक कंपनी ने दिव्यांग लोगों की नौकरी के लिए पूनम की संस्था से समझौता भी किया है।
अपनी परेशानियों के बारे में पूनम का कहना है कि उनकी सबसे बड़ी समस्या फंडिग की है। फिलहाल वो अपनी बचत का पैसा ही अपने इस नेक काम में लगा रही हूं। इसके अलावा दूसरी समस्या मैन पावर की है। पूनम के मुताबिक
“इस क्षेत्र में जो दिल से काम करना चाहते हैं वही इस क्षेत्र में आते हैं या फिर जिनको बहुत अच्छा वेतन मिले तभी वो काम करने को राजी होते हैं।”
पूनम की टीम में ज्यादातर लोग उनके दोस्त ही हैं। फिलहाल टीम में कुल 11 लोग काम कर रहें हैं। उसमें से भी 5-6 लोग ही एक्टिव मैंबर के तौर पर जुड़े हैं।
मुश्किलों से बेपरवाह पूनम के काम को धीरे-धीरे पहचान भी मिलने लगी है। अभी हाल ही में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने देश की 100 सम्मानित महिलाओं को पुरस्कार प्रदान किया है उनमें से एक पूनम भी थीं। वो बताती हैं कि
“पुरस्कार मिलने के बाद मुझ पर ज्यादा जिम्मेदारी आ गई है। फिलहाल मेरा सारा ध्यान अपने उन सब कामों पर है जो मैंने शुरू किये हैं। अब मेरी कोशिश अपने इस काम को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की है।”