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गरीबी में जीवन जीने वाले पद्मश्री करीमुल हक, 20 गांवों के लोगों को बाइक से पहुंचाते हैं अस्पताल

गरीबी में जीवन जीने वाले पद्मश्री करीमुल हक, 20 गांवों के लोगों को बाइक से पहुंचाते हैं अस्पताल

Sunday December 10, 2017 , 5 min Read

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के धालाबाड़ी गांव के रहने वाले करीमुल हक ने अपनी बाइक को एंबुलेंस का रूप दे दिया है, ताकि जरूरतमंदों को वक्त पर अस्पताल पहुंचाकर उनकी जिंदगी बचा सकें।

करीमुल हक (फोटो साभार- रूरल इंडिया ऑनलाइन)

करीमुल हक (फोटो साभार- रूरल इंडिया ऑनलाइन)


50 साल के करीमुल हक को वहां के लोग 'बाइक वाले एंबुलेंस दादा' के नाम से जानते हैं। चाय के बागानों में काम करने वाले करीमुल ने इस काम की शुरुआत तब की थी जब उनकी मां को सही वक्त पर इलाज नहीं मिल पाया था।

धालाबाड़ी और उसके आसपास के करीब 20 गांव के लोगों की एकमात्र लाइफ लाइन करीमुल की बाइक ऐंबुलेंस ही है। उनके गांव में कोई अस्पताल नहीं है। उन्हें इलाज के लिए 45 किलोमीटर दूर जलपाईगुड़ी सदर अस्पताल जाना पड़ता है।

भारत के कई इलाके आज भी पिछड़े हैं। शायद यही वजह है कि वहां शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली, मेडिकल और रोजगार की सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं। आज के वक्त में ये सभी सुविधाएं जिंदगी जीने के लिए बुनियादी जरूरतें हैं। लेकिन अधिकतर ग्रामीण और दूरदराज इलाकों में लोगों को इनसे दो चार होना पड़ता है। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के धालाबाड़ी गांव के रहने वाले करीमुल हक ने अपनी बाइक को एंबुलेंस का रूप दे दिया है, ताकि जरूरतमंदों को वक्त पर अस्पताल पहुंचाकर उनकी जिंदगी बचा सकें। बिना किसी स्वार्थ के समाजसेवा का काम करने वाले करीमुल को इसी साल राष्ट्रपति ने पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा था।

50 साल के करीमुल हक को वहां के लोग 'बाइक वाले एंबुलेंस दादा' के नाम से जानते हैं। चाय के बागानों में काम करने वाले करीमुल ने इस काम की शुरुआत तब की थी जब उनकी मां को सही वक्त पर इलाज नहीं मिल पाया था। करीमुल बताते हैं कि काफी समय पहले उनकी मां की तबीयत अचानक खराब हो गई थी, वे मदद के लिए सबके पास गए लेकिन अपनी मां को अस्पताल नहीं पहुंचा पाए। समय पर एंबुलेंस न मिलने के कारण उनकी मां का निधन हो गया। इसके बाद करीमुल सदमें में चले गए। लेकिन उन्होंने ठान लिया कि अब से गांव के किसी व्यक्ति को एंबुलेंस के आभाव में दम नहीं तोड़ना पड़ेगा।

ऐसे ही एक बार वे चाय के बागान में काम कर रहे थे तभी बागान में काम कर रहे एक मजदूर की हालत गंभीर हो गई। करीमुल उसे अपनी बाइक पर बैठाकर अस्पताल ले गए। इसके बाद उनके मन में ख्याल आया कि उनकी बाइक तो एंबुलेंस का काम कर सकती है। इसके बाद आस-पास के इलाके में किसी को भी अस्पताल पहुंचाना होता तो वह करीमुल को फोन करता। ऐसा करते-करते करीमुल पूरे गांव में प्रसिद्ध हो गए। वहां के डॉक्टर बताते हैं कि उन्होंने 3000 से ज्यादा लोगों की जान बचाई होगी। इतना ही नहीं कई बार वह बीमार लोगों को फर्स्ट एड भी देते हैं।

धालाबाड़ी और उसके आसपास के करीब 20 गांव के लोगों की एकमात्र लाइफ लाइन करीमुल की बाइक ऐंबुलेंस ही है। उनके गांव में कोई अस्पताल नहीं है। उन्हें इलाज के लिए 45 किलोमीटर दूर जलपाईगुड़ी सदर अस्पताल जाना पड़ता है। करीमुल बताते हैं कि वहां पर एक पुल की जरूरत है, लेकिन चेल नदी पर पक्का पुल बनाने के लिए उत्तर बंगाल विकास मंत्रालय को एक प्रस्ताव सौंपा गया है, जिसके बनने में न जाने कितने और साल लगेंगे। करीमुल की जिंदगी में कई सारी परेशानियां हैं, लेकिन उसके बाद भी वे आजीवन बाइक एम्बुलेंस सेवा जारी रखना चाहते हैं।

अत्यंत गरीब पृष्ठभूमि व घोर अभावों, कठिनाईयों के बीच पले-बढ़े करीमुल की कहानी बड़ी प्रेरणादायक है। चाय बागानों में मजदूरी और गरीबी की तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने भाग्य का रोना नहीं रोया। उनसे जो भी बन पड़ा, उन्होंने गरीबों के लिए किया। इस बहादुरी के लिए उन्हें इसी साल पद्मश्री पुरस्कार के लिए नामित किया गया और विराट कोहली, अनुराधा पौडवाल, कैलाश खेर, साक्षी मलिक, दीपा कर्मकार व दीपा मलिक सरीखी हस्तियों के साथ पद्म सम्मान से विभूषित किया गया।

अपनी नई एंबुलेंस गाड़ी के साथ करीमुल हक (फोटो साभार- यूट्यूब)

अपनी नई एंबुलेंस गाड़ी के साथ करीमुल हक (फोटो साभार- यूट्यूब)


वाहन निर्माता कंपनी बजाज ने उनकी कहानी पर एक छोटी सी डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। जिसमें उनके जीवन को दिखाने की कोशिश की गई थी। कंपनी ने उन्हें एक मोडिफाईड बाइक भी उपलब्ध करवाई है जिसमें एंबुलेंस जैसा एक छोटा सा स्ट्रेचर भी इनबिल्ट है। गांव के किसी व्यक्ति को आपातकालीन स्थिति में मुश्किल न झेलनी पड़े इसके लिए करीमुल ने अपने घर पर ही क्लिनिक खोल लिया है। वे अपनी बाइक एम्बुलेंस में भी प्राथमिक उपचार की पूरी किट रखते हैं कि न जाने कब कहां किसी के काम आ जाए। इसके अलावा वह लोगों व संस्थाओं से जुटा कर नए-पुराने कपड़े, दाना-पानी, दवा आदि भी लाते हैं और जरूरतमंद गरीबों को नि:शुल्क प्रदान करते हैं।

हालांकि इतने लोगों की समस्याओं का समाधान करने वाले करीमुल को पद्मश्री पुरस्कार जरूर मिल गया, लेकिन उनकी जिंदगी में कोई खास सुधार नहीं आया। वे आज भी उसी चाय बागान में मजदूरी कर रहे हैं और उनका राशनकार्ड तक नहीं बना है। इसीलिए उनके घर में आज भी चूल्हे में खाना पकता है और उन्हें रसोई गैस का कनेक्शन तक नहीं मिल पाया है। इतना ही नहीं उनका साढ़े तीन साल का पोता फरहान हक ब्लड कैंसर से पीड़ित है। उसके इलाद के लिए भी काफी पैसे की जरूरत नहीं पूरी हो पाई है। इन तमाम समस्याओं के बावजूद करीमुल अपने इलाके के गरीब लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटते। ऐसे लोगों को हमें सच में सलाम करने की जरूरत है।

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