50 पैसे की कमाई से हर दिन 2 लाख कमाने वालीं पेट्रिशिया नारायण
शून्य से शुरू करके पेट्रिशिया ने खुद को शिखर तक पहुंचाया। आज सारी दुनिया उनकी फैन है। उनके इस जुझारूपन के लिए उन्हें फिक्की की तरफ से बेस्ट वुमेन बिजनेसपर्सन का अवॉर्ड भी मिल चुका है...
पेट्रिशिया को कुकिंग का बड़ा शौक था लेकिन कभी इसको बिजनेस के तौर पर शुरू करने का उसे ख्याल नहीं आया। वो किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी।
पेट्रिशिया ने अपनी बेटी की याद में एक रेस्टोरेंट खोला और उसका नाम अपनी बेटी के नाम पर रखा, 'संदीपा'। संदीपा को वो अपने बेटे के साथ मिलकर चलाती हैं।
एक लड़की जब अपनी मर्जी से प्रेम विवाह करती है तो उसकी क्या आशा रहती है? यही न कि उसका चाहने वाला उसे ताउम्र प्यार करता रहे। वो अपने पार्टनर के साथ मिलकर एक सपनों वाला घर सजाए और उसे खुशियों से भर दे। वो एक ऐसे दम्पती बनें जिसकी दुनिया मिसाल दे। उनके घरवाले उनकी समृद्धि देखकर गर्व से बोलें कि देखो दुनियावालों, ये हैं हमारे बच्चे। लेकिन जब किसी की जिंदगी में इन सब सुनहरी बातों के उलट ही सब कुछ हो तो वो क्या करेगा।
वो औरत जो अपना सबकुछ छोड़-छाड़ कर, अपने घरवालों के मर्जी के खिलाफ अपने मनचाहे जीवनसाथी के पास आती है, अगर वही जीवनसाथी उसकी जान का दुश्मन बन जाए तो उसपर क्या बीतेगी। निसंदेह वो टूट जाएगी, बिखर जाएगी। लेकिन चेन्नई की पेट्रिशिया इतनी कमजोर नहीं निकलीं। हर तरह के जुल्मों के बावजूद वो उठ खड़ी हुईं। शून्य से शुरू करके उन्होंने खुद को शिखर तक पहुंचाया। आज सारी दुनिया उनकी फैन है। उनके इस जुझारूपन के लिए उन्हें फिक्की की तरफ से बेस्ट वुमन बिजनेसपर्सन का अवॉर्ड मिला है।
कौन हैं पेट्रिशिया?
पेट्रिशिया की कहानी शुरू होती है जब वो कॉलेज में पढ़ती थी। उसके मां-बाप अच्छी नौकरियों में थे। घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। पेट्रिशिया भी अपनी सपनों की दुनिया में मगन रहती थी। फिर उसे इश्क हुआ। वो एक क्रिश्चियन थी और लड़का हिंदू। लड़के का नाम था नारायण। नारायण और पेट्रिशिया शाम में एक साथ बैठकर अपनी हसीन जिंदगी पर रश्क खाते थे, इठलाते थे। फिर एक दिन दोनों ने शादी करने का मन बना लिया। कोर्ट में जाकर शादी की लेकिन पेट्रिशिया का कॉलेज अभी खत्म नहीं हुआ था। तो ये निर्णय लिया गया कि कॉलेज के इम्तेहान खत्म होने के बाद दोनों ही अपने अपने घरों में इस शादी की बात बता देंगे।
इस कोर्ट वाली शादी को तीन महीने भी नहीं हुए होंगे कि नारायण उसपर दवाब बनाने लगा कि दोनों को अब साथ में रहना चाहिए, पेट्रिशिया को लुगाई बनकर नारायण के घर आ जाना चाहिए। वो धमकी देने लगा कि अगर तुम नहीं बताओगी तो मैं जाकर बता दूंगा तुम्हारे घरवालों को। पेट्रिशिया ने हारकर अपने घरवालों को इस शादी के बारे में बता दिया। उसके घर में तो मानो बवंडर सा आ गया। उसकी मां का रो रोकर बुरा हाल था, उसके पिता अपना सिर पीट रहे थे कि ये हमारी बच्ची ने क्या कर दिया। बात फैल गई और रिश्तेदारों तक पहुंच गई। अब जब सबको मालूम ही चल गया था तो घरवालों ने रीति-रिवाजों के साथ दोनों की शादी कर दी।
हालात बद से बदतर होते गए। नारायण अपने नशे की खब्त को पूरा करने के लिए पेट्रिशिया से पैसे मांगता जब वो नहीं दे पाती तब उसे सिगरेट से जलाता। हर तरफ हारी हुई पेट्रिशिया अपनी फूटी किस्मत पर रोती रहती।
लेकिन उसके बाद दोनों के ही घर वालों ने उन दोनों से रिश्ता तोड़ लिया। सबसे जुदा होकर नारायण और पेट्रिशिया एक किराए का घर लेकर रहने लगे। पेट्रिशिया के लिए अपना घर होना और नारायण के साथ रहना, सब सपने सच होने जैसा था। लेकिन ये खुशफहमी वाली दुनिया जल्द ही बदरंग होने लगी। नारायण शरा और ड्रग्स के नशे में डूबने लगा। इसी पेट्रिशिया प्रेग्नेंट हो गई। हालात बद से बदतर होते गए। नारायण अपने नशे की खब्त को पूरा करने के लिए पेट्रिशिया से पैसे मांगता जब वो नहीं दे पाती तब उसे सिगरेट से जलाता। हर तरफ हारी हुई पेट्रिशिया अपनी फूटी किस्मत पर रोती रहती।
वक्त दौड़ता रहा। पेट्रिशिया दो बच्चों की मां बन गई। एक लड़का और उससे छोटी लड़की। नारायण की आवारगी बढ़ती जा रही थी। यही वक्त था जब पेट्रिशिया ने ठान लिया कि इस गंदगी के छींटे वो अपने बच्चों तक नहीं जाने देगी। उसने अपनी मां से बात की। हालांकि वो पेट्रिशिया से खुश नहीं थीं, लेकिन मां का दिल तो मां का दिल होता है। उन्होंने पेट्रिशिया के पिता से बातकर के उसके लिए एक क्वार्टर खाली कर दिया। पेट्रिशिया अपने बच्चों और नारायण के साथ वहां शिफ्ट हो गई।
जब आगाज हुआ एक महिला उद्यमी का
पेट्रिशिया को कुकिंग का बड़ा शौक था लेकिन कभी इसको बिजनेस के तौर पर शुरू करने का उसे ख्याल नहीं आया। वो किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। उसने अपनी मां से बात की। और खूब सारे जैम, अचार, केक बना डाले एक ही दिन में। उनकी मां अपने ऑफिस में ये सब सामान लेकर गईं और वो सारे सामान कुछ घंटों में ही बिक गए। पेट्रिशिया और मेहनत करने लगी। और ऐसे ही एक दिन उसके पापा के एक दोस्त ने उसका बनाया केक खाया। वो मुरीद हो गए। पापा के वो दोस्त दिव्यांगों के लिए एक स्कूल चलाते थे। और वो उस वक्त सामान बेचने के लिए चलती फिरती दूकान बांट रहे थे।
लेकिन इस दूकान को लेने की एक ही शर्त थी कि इसमें उन दिव्यांग लोगों में से किसी दो को काम दिया जाए। पेट्रिशिया ने ये तुरंत मान लिया। वो साल था 1998। वो मरीन बीच पर उस दूकान को लेकर गईं। वो बड़ी उत्साहित थीं लेकिन दिन भर में उनकी सिर्फ एक कॉफी ही बिकी थी। उस कॉफी के मिले थे उनको पचास पैसे। वो घर आकर खूब रोईं। तब उनकी मां ने समझाया कि तुमने अच्छी शुरुआत की है। तुमने 50 पैसे कमाए हैं। देखना कल से तुम्हारी दूकान अच्छी चलने लगेगी। और हुआ भी यही। अगले दिन पेट्रिशिया की दूकान से 6-7 हजार रुपए का सामान बिक गया।
पचास पैसे की कमाई से दो लाख तक का सफर
इस कमाई से पेट्रिशिया दोगुने उत्साह से काम पर लग गईं। उनकी मेहनत और उनके बनाए हुए का स्वाद देखकर उनको एक कैंटीन में केटरिंग का ऑफर आया। पेट्रिशिया सुबह वहां जातीं और शाम को बीच पर अपनी दूकान चलातीं। उनकी कमाई बढ़ रही थी, बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ने लगे थे। लेकिन नारायण की हालत और खराब होती जा रही थी। वो बस पैसे लेने आता, मारपीट करता और गायब हो जाता। ऐसे ही 2002 में वो गायब हुआ फिर उसकी मरने की खबर आई। पेट्रिशिया टूट रही थीं लेकिन वो काम करती रहीं।
पचास पैसे से शुरू हुए सफर को इस मुकाम तक देखकर पेट्रिशिया भावुक हो जाती हैं। वो कहती हैं कि पहले मैं रिक्शे पर जाती थी, फिर ऑटो रिक्शे परऔर आज मेरी खुद की कारें हैं।
उनको एक सरकारी कैंटीन में खाना बनाने का ऑफर आया। वहां उनको 600 लोगों के लिए तीन टाइम खाना बनाना था। दो लोगों के साथ शुरू हुई पेट्रिशिया की टीम में अब सौ से ऊपर लोग काम कर रहे थे। इस नए काम से उनकी कमाई हजारों रुपए हो गई। लेकिन एक और काली सुबह को पेट्रिशिया की बेटी और उसका दामाद एक एक्सीडेंट में मारे गए। इस हादसे ने पेट्रिशिया को पूरी तरह तोड़ दिया। वो ट्रामा में चली गईं। यहां उनके बेटे ने उन्हें संभाला। पेट्रिशिया ने अपनी बेटी की याद में एक रेस्टोरेंट खोला और उसका नाम अपनी बेटी के नाम पर रखा, 'संदीपा'। संदीपा को वो अपने बेटे के साथ मिलकर चलाती हैं।
आज उनकी कमाई दो लाख रुपए हर दिन है। पचास पैसे से शुरू हुए सफर को इस मुकाम तक देखकर पेट्रिशिया भावुक हो जाती हैं। वो कहती हैं कि पहले मैं रिक्शे पर जाती थी, फिर ऑटो रिक्शे परऔर आज मेरी खुद की कारें हैं। अच्छा लगता है ये सब देखकर। पेट्रिशिया इस देश की उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो जुल्म का शिकार हैं। पेट्रिशिया की कहानी बताती है कि अगर सोच ऊंची हो, दिल मजबूत हो और इरादे पक्के, तो सब कुछ संभव है। सब कुछ।
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