जिन्हें हम अक्षम मानते हैं, देखिये वे क्या करने जा रहे
जीवन जीने के लिए ऐसे लोगों को रोजगार की सख्त जरूरत होती है, लेकिन देश में बढ़ती बेरोजगारी और विकलांग लोगों के प्रति लोगों के नजरिए की वजह से उन्हें आसानी से रोजगार नहीं मिल पाता। हम यह समझकर बैठे हैं कि विकलांग लोग सही से काम नहीं कर सकते हैं। उनके काम करने से प्रोडक्टिविटी घट जाएगी या काम पर बुरा असर होगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है
हमारे समाज में विकलांगता को एक अभिशाप माना जाता है और ऐसे लोगों को बोझ समझा जाता है या फिर उन्हें काफी दयनीय नजरों से देखा जाता है। क्योंकि विकलांग या शारीरिक रुप से अक्षम व्यक्ति आज भी अपने माता-पिता या परिवार के लोगों पर निर्भर होते हैं। उन्हें छोटी से छोटी जरूरत के लिए भी किसी का सहारा लेना पड़ता है। हमारे प्रधानमंत्री जी ने विकलांग शब्द की जगह ऐसे लोगों के लिए दिव्यांग शब्द का प्रयोग करने की सलाह दी और लोगों की मानसिकता बदलने के लिए सुगम्य भारत अभियान भी चलाया, लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर अभी भी विकलांगों की सुविधा के लिए जैसे इंतजाम होने चाहिए, नहीं होते हैं।
कई सारे एनजीओ विकलांगों को रोजगार दिलाने और आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रहे हैं, ऐसी ही एक संस्था है 'जनविकास समिति' जो विकलांग युवाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही है। ये संस्था बनारस में एक अनूठा कॉफी हाउस खोलने जा रही है। इस कैफे का नाम है 'कैफेबिलिटी'।
जीवन जीने के लिए ऐसे लोगों को रोजगार की सख्त जरूरत होती है, लेकिन देश में बढ़ती बेरोजगारी और दिव्यांग लोगों के प्रति लोगों के नजरिए की वजह से उन्हें आसानी से रोजगार नहीं मिल पाता। हम ये समझकर बैठे हैं कि विकलांग लोग सही से काम नहीं कर सकते हैं। उनके काम करने से प्रोडक्टिविटी घट जाएगी या काम पर बुरा असर होगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है। भले ही शारीरिक रूप से वे सामान्य व्यक्तियों की तरह काम न कर पायें, लेकिन यदि उन्हें थोड़ी-सी ट्रेनिंग और थोड़ा सा हौसला मिल जाये तो आप भी नहीं जानते कि वे क्या-क्या कर सकते हैं।
संविधान में सरकारी नौकरियों में विकलांगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था जरूर है, लेकिन वहां इतनी नौकरियां नहीं हैं कि सबको रोजगार मिल सके। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में लगभग 21 मिलियन यानी 2.1 करोड़ (कुल जनसंख्या का 2.21%) लोग विकलांगता के शिकार हैं। अब इतनी बड़ी आबादी को सरकारी नौकरी मिल पाना तो नामुमकिन है।
कई सारे एनजीओ हैं जो विकलांगों को रोजगार दिलाने और आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रहे हैं। ऐसी ही एक संस्था है 'जनविकास समिति' जो विकलांग युवाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही है। ये संस्था बनारस में एक अनूठा कॉफी हाउस खोलने जा रही है। इस कैफे का नाम है 'कैफेबिलिटी'। कैफेबिलिटी को विकलांगता के अंग्रेजी शब्द डिसेबिलिटी से बनाया गया है। इस कैफे की खास बात ये है कि यहां सिर्फ विकलांग युवा ही काम करेंगे। यह कैफे विकलांगों के लिए जॉब और ट्रेनिंग सेंटर की तरह भी काम करेगा। देश में अब तक लगभग 25,000 विकलांगों को आत्मनिर्भर बनाने वाली इस संस्था के उपनिदेशक सजी जोसेफ ने बताया कि 'कैफेबिलिटी' में काम के साथ विकलांग युवाओं को कैफे और रेस्टोरेंट उद्योग के बारे में अच्छी ट्रेनिंग दी जाएगी, जिससे वे कहीं भी जाकर काम कर सकें।
संस्था के साथ काम करने वाले शशिभूषण तिवारी ने कहा कि 'कैफेबिलिटी' देश के किसी भी बड़े नामी गिरामी रेस्टोरेंट से मुकाबला करने में पूरी तरह से सक्षम है। यहां पर वैसे ही सर्विस मिलती है जैसे किसी बड़े मल्टीनेशनल कैफे में मिलती है। उन्होंने बताया कि 'कैफेबिलिटी' से जुड़े युवाओं को ट्रेनिंग दिलाने के बाद होटलों और रेस्टोरेंट में जॉब दिलाने में भी मदद की जायेगी है। खास बात ये है कि इस कैफे से जो कमाई होगी, वो भी इन्हीं लोगों पर खर्च कर दी जायेगी।
22 अप्रैल को ये कैफे बनारस में खुलने जा रहा है, अगर आप कभी बनारस जाते हैं तो इनका हौसला बढ़ाने जरूर पहुंचिये, इन्हें अच्छा लगेगा।
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